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Asha Gupta  Ashu

Asha Gupta Ashu

@ashag754gmailcom
(62)

तुम न समझोगे...

जानते हो प्रेम कैसा होता है..

सुनो..! 
मन बंजर होता है कैसे
कैसे नमी नहीं टिकती 
कई ख्याल उगते तो होंगे
भाव भी अंकुरित होंगे
और तुम कहते हो, नहीं । 
तो शायद अंतर्मन में कहीं
रह गया है कुछ रीतापन
अपनी कविता से मिलो, 
बैठो, कुछ बात करो
पूछो, उसे कैसा लगता है 
तुम्हारे हाथ से रचे जाना
या फिर तुम्हारे भाव से 
उन्मुक्त हो रूप पाना... ।

पूछो न, जैसे तुम उसे 
तन्हाईयों में गुनगुनाते हो
क्या वो भी अकेले में 
तुम्हें आवाज़ देती हैं? 
और जब तुम पिरोते हो 
सूक्ष्म शब्दों की माला 
तो क्या वो कराती है
कोई रूहानी सा अहसास?

हो सकता है फ़र्ज़ी डोर से 
तुम उसे बाँध रखते होगे
या ये भी कि फ़र्ज़ीपन ही 
तुम्हारा अवलंबन हो कहीं
मगर तब भी स्नेह भाव की 
अविरल धारा तो बहेगी ही
तब भी कहीं कोई शंखनाद 
सुनाई देता रहेगा निरंतर
अह्लादित हो कर बरसेगा 
मन आकाश से नवरस
और फिर कहीं कोई दामिनी 
हो उठेगी बेसुध बेबस...।

©आशा गुप्ता 'आशु'

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तुझको सोचूं तो..

सुनो दिलबर भूल न जाना
अपनी खुशियाँ और गम में
हम भी तुमको याद रखेंगे.......
धूप छाँव के मौसम में

बादल की धरती पे मिल के
ओस किरण की फसल उगायें
उन्मुक्त पवन के पंख लगा कर
नील गगन में यूं उड़ जायें
घन बीच जैसे चमके बिजली
नित बरखा के मौसम में
हम भी तुमको याद रखेंगे.......
धूप छाँव के मौसम में

फूल की नरमी उसकी खूश्बू
अपना सा क्यों लगता है
तुमसे मिलना और बिछड़ना
सपना सा क्यों लगता है
खोज रहे हम बाहर तुमको
और छुपे तुम हो हम में
हम भी तुमको याद रखेंगे.......
धूप छाँव के मौसम में

क्षण प्रतिक्षण के तुम वाहक,
चाह का विस्तार लिये
तुमसे ही तो सब कुछ पाया
कितने तो उपहार दिये
मोल बड़ा है इनका प्रियवर
न लेना इनको कम में
हम भी तुमको याद रखेंगे.......
धूप छाँव के मौसम में !
...आशा गुप्ता 'आशु'

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