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Anurag Saxena

Anurag Saxena

@anuragsaxena8807


           
मेरी और उसकी छत के बीच 
बस मांझे भर की दूरी थी
कन्नी देने आना उसका
मेरा पतंग उड़ाना मजबूरी थी
पतंग तो एक बहाना था
खाली मुंडेर पर आने का
मेरे हाथों में उसकी चूड़ी थी
उसकी मेहंदी में नाम कोई अनजाना था
डूबती अपनी आंखों से उसने
अलविदा मुझ को बोला था
मैंने दांत से कन्नी काटी
बस हाथ में उसके डोरा था।
                  --अनुराग

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एक छाते के नीचे 
चल रहे थे हम दोनों
दायां कंधा भीगा था मेरा
और बायां कंधा तुम्हारा भी
मैं थामा हुआ था छाता
तुम थामी थी मेरे हाथों को
सड़क से नज़र चुराकर हम
मिला रहे थे नज़र आपस में
तभी हवा के एक झोंके ने
उड़ाकर दुप्पटा तुम्हारा 
मेरे कांधे पर ला दिया
लगा मानो जैसे बारिश की आग में
हम सात फेरे ले रहे हो।
                           ---अनुराग

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