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Anshul Pal

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@anshulpal073639


तेरी कातिल अदाएँ जानम समझ न सके,
नशीली निगाहों का वो सितम समझ न सके।
तुमने बताया तो होगा हाल - ए - दिल पर-
क्यों फिर भी #किताब -ए-इश्क़ हम समझ न सके।।

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)

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जंग लड़ें चलो दिलों में फैले जंग से,
सराबोर हो फ़िज़ा मुहब्बत के रंग से।
करो दफ़न सारे गिले शिक़वे अपने 'रण'-
स्वागत हो #नये_साल का ज़रा ढंग से।।

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर, मोहाली(पंजाब)

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अरमां तो दिल में वो छुपा न सके,
जुबान से भी हमको बता न सके।
जाने क्यों खुद में उलझे रहे 'रण'-
जो #दहलीज इश्क़ की बना न सके।।

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)

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न जाने सूरज आजकल क्यों नज़रें चुरा रहा है,
जहाँ देखो बस धुएँ जैसा कुछ नज़र आ रहा है।
दौड़ती है सिहरन बदन में इन सर्द हवाओं से-
अरे ! ये तो #सर्दी का मौसम रंग दिखा रहा है।।

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)

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जब इश्क़ था मुझसे तो बताया क्यों नहीं,
ख़्वाब आँखों से मेरी चुराया क्यों नहीं।
कहते तो हम हद से भी गुज़र जाते पर-
अधिकार तुमने अपना जताया क्यों नहीं।।

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर, मोहाली(पंजाब)

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लगभग एक ही समय पर सुरेश और राहुल घर पहुँचें तो पूछताछ शुरू हो गई।
"बताओ ये सिगरेट का पैकेट किसका है?"सुरेश की पत्नी रमा ने पूछा,
"ये पैकेट मेरा है।"सुरेश ने कहा,
"पर आपने तो 15 साल पहले ही.......।"रमा कहते-कहते रूक गई,
"यही न छोड़ दी थी, पर जब कभी बहुत ज्यादा तलब लगती है तो छत पर जाकर पी लेता हूँ,पर तुम्हारी कसम आज के बाद बिल्कुल नहीं पीऊँगा"।सुरेश ने सिगरेट का पैकेट रमा से लिया और डस्टबिन में डालते हुए कहा,
मामला वहीं शांत हो गया।
तभी थोड़ी देर बाद राहुल सुरेश के कमरे में पहुँचा और बोला,"पापा मुझे माफ़ कर दो,मैं जिंदगी में सिगरेट तो क्या किसी भी तरह का नशा नहीं करूँगा और कॉलेज में ऐसे लड़कों का साथ भी छोड़ दूँगा।
"कोई बात नहीं बेटा, दोबारा ऐसी गलती मत करना,गलत आदतों और गलत दोस्तों से हमेशा दूर रहो।"
"ठीक है पापा, पर आपने ये इल्ज़ाम अपने सिर क्यों लिया।"
"बेटा #दोस्ती का यही उसूल है कि दोस्त पर कोई मुसीबत आये तो उसका साथ दो और अगर कभी मुझ पर कोई मुसीबत आयेगी तो क्या तुम मेरा साथ नहीं दोगे?"
"दूँगा पापा जरूर दूँगा।"
इतना कहते ही राहुल रोते-रोते अपना पापा के गले से लग गया।

पूर्णतया स्वरचित,स्वप्रमाणित
सर्वाधिकार सुरक्षित

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर, मोहाली(पंजाब)

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ग़ज़ल

तेरे दर्दे दिल का ही तो गुबार हूँ,
मैं तो यारों हादसों का शिकार हूँ।

कह न पाया जिसको तू आज तक कभी,
ढल चुकी लफ़्ज़ों में मैं वो पुकार हूँ।

जी रहे हैं माँगकर साँसें तो कईं,
सोच के ही बन गया ग़मगुसार हूँ।

मुन्तज़िर जिसकी नज़र का रहा सदा,
देख मैं तेरा वो ही ख़ाकसार हूँ।

अब तो देखूँगा वो सपने सुहाने 'रण',
तोड़ने को ये क़फ़स बेकरार हूँ।

पूर्णतया स्वरचित व स्वप्रमाणित
सर्वाधिकार सुरक्षित

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)

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अपने उन वीर सैनिकों को समर्पित जो हमारी कैसी-कैसी विकट परिस्थियों में सीमा पर डटे रहकर हमारी रक्षा करते हैं:-

कहीं बर्फ़ कहीं कोहसार और कहीं उड़ती धूल का कहर,

इतने मुश्किल हालातों में लगती नहीं कभी खुद की ख़बर।

गर है दिल तो रहो ज़रा इन गोलियों व बारूदों की छाँव में-

पता न चलेगा कैसे कट गया एक पूरी ज़िंदगी का सफर।।

पूर्णतया स्वरचित,स्वप्रमाणित
सर्वाधिकार सुरक्षित

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)

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क्यों ?
आखिर क्यों ?
आज ये शीतल चाँदनी
जला रही है मेरे बदन को
चुभो रही है मेरी आँखों को
जैसे
डाल दी हो
कोई रड़क इनमें
भर गया हो लावा कोई
क्यों
हो गई हैं इसकी
गर्म चमकती
सलाखों जैसी किरणें
मेरे बदन के आर-पार
और
भेद रही है मेरे अंतर्मन
का रोम-रोम
लाख कोशिश की
इसकी शीतलता को
महसूस करने की
पर
मेरी तो सभी संवेदनाएं
तुम ही ले गई हो अपने साथ
जला रही है
तभी
मुझे ये शीतल चाँदनी भी
बन गई है जो आग
काश
वो मेरी इस वेदना को
सुन ले
समझ ले
जान ले
काश........।

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)

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