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Anita Bhardwaj

Anita Bhardwaj

@aneebhardwaj6514
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बिटिया हुई है,
जल्दी से बचत करनी शुरू करो!
स्कूल जाने लगी है,
जल्दी से इसे पहनने ओढ़ने का सलीका सिखाओ!
कॉलेज जाने लगी है,
जल्दी घर के काम करने का तरीका सिखाओ!
मंडप तैयार है
जल्दी से कन्या को बुलाओ!
बहू आ गई,
जल्दी से स्वागत के लिए आओ!
बहू आज रसोई की रस्म निभाएगी,
बहू! जल्दी जल्दी हाथ चलाओ!
बहू अब जल्दी से हमें पोते का मुंह दिखाओ!
मेरे कपड़े तैयार कर दिए!मेरा टिफिन भी ले आओ!
बहू जल्दी मेरी चाय ले आओ! मुन्ने को जल्दी चुप कराओ!!
जल्दी करते हुए,धीरे धीरे खुद को भूल जाओ।
अनीता भारद्वाज

-Anita Bhardwaj

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हाथों की उंगलियां भी नहीं होती एक जैसी,
तो क्या हम उन्हें काट देते है,
जिस इंसान को ईश्वर ने नहीं बनाया दूसरों जैसा,
फिर क्यूं हम उन्हें अलग छांट देते हैं।
विकलांग कहा कभी, कभी दिव्यांग कह दिया,
समाज का अंग नहीं समझा कभी,
तो शब्द बदलने से होगा क्या?
तुम्हारी सहानुभूति नहीं,बस अपने हिस्से का संसार चाहिए,
मैं भी घूम सकूं,हंस सकूं,खेल सकूं,पढ़ सकूं,जी सकूं,
अपनी विशेष आवश्यकता के अनुरूप मिले मुझे भी संसाधन
बस इतना सा अधिकार चाहिए।
मुझे शब्दों से मत बहलाओ,
मुझे समाज का अंग समझकर प्यार चाहिए।
अनीता भारद्वाज

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ज़िंदा औरतें समाज को कहां बर्दाश्त होती है!!
जो गाय सी भोली हो, मोरनी सी सुंदर हो;
बस वो ही तो इनके लिए खास होती है।
जिनमें ये जानवरों सी खूबियां ना हो,
ऐसी इंसानी खूबियों वाली ज़िंदा औरतें;
समाज को कहां बर्दाश्त होती है!!

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