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गर दिल होगा तुम्हारे भी सीने में कभी तो तड़पोगे हम याद आऐंगे -Alok Mishra
इश्क तो किया था दोनों ने | कुछ हमने खोया कुछ तुमने | तन्हा तुम भी हुए और हम भी | कुछ हमने खोया कुछ तुमने | बिछडे थे तो नम थी आंखें चारों | कुछ हमने रोया कुछ तुमने | जहर के बीज थे पनप गए | कुछ हमने बोया कुछ तुमने | शायद कुछ और था पाने को | कुछ हमने पाया कुछ तुमने | बुत हो गए दिल दोनों ही | कुछ हमने ढोया कुछ तुमने | आलोक मिश्रा "बुत"
कितना तराशू में अपने ही बुत को उन्हें तो हर-सू कमीयां नज़र आती है -Alok Mishra
भूल तो बहुत है जिंदगी में । पर भूल से भी तुम्हें भूल जाउं ये हो नहीं सकता । भूलना तुमको मेरी भूल होगी । जो भूल हो ऐसी जिंदगी मुझे भूल जाए । आलोक मिश्रा बुत -Alok Mishra
दस्तान मसला ही कहां था प्यार का | वो हुनर बता रहे थे व्यापार का | बस हम ही बेवकूफ बनते रहे , समय ही कहां था उन्हें प्यार का | बस एक झूठ था उस इकरार का | झूठ था अमल वादों के इरादों का| हमें हर शब्द सच्चा ही लगा हर दम , वो मज़ाक ही उड़ाते रहे एहसास का | किस्सा अजीब था उस बदकार का | हुनर अज़ीम था उस फनकार का | हम ही अश्क बहाते रहे ईमान से , उसे तो मज़ा आ रहा था तमाशे का | आलोक मिश्रा "बुत" -Alok Mishra
कुछ हमनें कुछ तुमनें इश्क तो किया था दोनों ने | कुछ हमने खोया कुछ तुमने | तन्हा तुम भी हुए और हम भी | कुछ हमने खोया कुछ तुमने | बिछडे थे तो नम थी आंखें चारों | कुछ हमने रोया कुछ तुमने | जहर के बीज थे पनप गए | कुछ हमने बोया कुछ तुमने | शायद कुछ और था पाने को | कुछ हमने पाया कुछ तुमने | बुत हो गए दिल दोनों ही | कुछ हमने ढोया कुछ तुमने | आलोक मिश्रा "बुत" -Alok Mishra
मुहब्बतों में गुज़री सारी गई जिंदगानी झूठ ही सही अब तो झगड़ लें ज़रा ज़रा । -Alok Mishra
कल इस बज्म में तुम न होगे हम न होंगे । आज के चर्चे कल खूब होंगे या न होंगे । जिया था इस पल को हमने बस जी भर । हमारे यही किस्से तो बस सरेआम होगे । -Alok Mishra
चीखों,कराहों,अरमानों के एहसास कहने को कुछ लिखता रहा जरा जरा -Alok Mishra
फुर्सत है आराम है आज-कल जमाना छोड़ खुद का ख्याल है आज-कल कराह कर दम तोड़ रहे हैं लोग इंसानियत खूंटियो पर टंगी है आज-कल -Alok Mishra
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