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akhil

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@akhilthakur5068


तुम्हारे प्रेम के संग्रह में
मैं लिखता रहा
अनगिनत कविताएं !

फिर सहसा अहसास हुआ
कहीं न कहीं
मैं करता रहता था अपने ही
जज्बातों का संग्रहण !

या ये कहूँ
ये सबसे आसान तरीका था
तुम्हारे प्रेम के जरिये अपनी
भाषा के संग्रह का !

हम लिखते रहें
टूटी फूटी अनगिनत कविताएं
तुम्हारे प्रेम में
जो करती रही
भाषा को बचाए रखने का कार्य!

मैं लिखता रहूँगा
अपने जज्बात तुम्हारे ख़ातिर
तुम एकत्रित करते रहना
अपनी "निधि" समझ कर !!

प्रेयसी के लिए (अखिल)

१४sep२०२१

(हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 📚)

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छोड़ दिया था मैंने, मैं तो आगे बढ़ गया 

जिस्म जैसे चल रहा था और रूह वही पर रुक गयी थी

तुम मेरे दिल के घर का वो हिस्सा हो जो बन्द कर दो तो शांत हो जाता था ,

लेकिन जो हटाने को किया तो पूरा घर ही ढह गया

तुझे ना सोचू तो दिल मुझसे बगावत कर बैठता है

और जो रखूं ख्यालों में तुझे तो जमाना शिकायत करने लगता है

जब भी सोचता हूँ अब जहन में तू  नही आएगा रह रह के तू याद आता है

वाकिफ कराने को मुझे इस सच से मन अक्सर उदास हो जाता है

तुझे कहाँ खबर है ,कब तू मेरी सुनता है

तुझे चाहने को यह दिल मुझसे हर रोज लड़ता है

कभी खुद से कभी जमाने से अक्सर तुझे छुपाता हूँ

मैं कहाँ किसी से दिल का साझा कर पाता हूँ

छोड़ कर  सब ,जब भी आगे बढ़ता हूँ नए मुकाम पाने को

तभी मेरी रूह मुझे पुकारती है,वापस वहीं लौट आने को

जब दूर तुमसे रहने की ठानी थी 

यह दिल की मर्जी नहीं मेरी  मनमानी थी

जिद करने की मेरी आदत पुरानी थी

हर बार इससे अपनी बात मनवा  भी लेता था

पर इस बार  किस्सा तेरा था कैसे सुनता मेरा यह मन,

इसको तो तुझसे वफादारी निभानी थी

अब भी मैं सोचता हूँ अक्सर

छोड़ दिया था ना मैंने, मैं तो आगे बढ़ गया था

पर जिस्म जैसे चल रहा था और रूह वहीं रुक गयी थी।

                

                          AKHIL

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