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|| ग़ज़ल || कायदा है ग़ज़लों का कि वो अपनी बहर में रहें । अंदेशा आँधियों का है परिंदे शजर में रहें ।। तुम भी हो मुसाफिर जहान में हम भी हैं मुसाफिर । तकाजा वक्त का है कि कुछ दिन अपने घर मे रहें ।। बहुत दूर रहे हम घर से, घर बसाने के खातिर । गुजारिश बच्चों की है की अब उनके नजर में रहें।। आंधियों की दावत पर ये अंधेरे आये हैं । जलता हुआ चिराग एक छत पर शहर में रहें ।। कोई विषपान न कर ले बनो "अवधेश"तुम शंकर । हवा में घुल रहा है जो कहर वो विषधर में रहें ।। ...डॉ.अवधेश कुमार जौहरी
।।दोहा ।।#सही सही गलत का फैसला, करे विधि का विधान।। असमंजस में क्यों रहे, ओ पागल इंसान।। ....डॉ.अवधेश कुमार जौहरी
#रिश्ता बस्ती है आज बन्द ,ताला चला गया । अंधेरों ने किया राज़,उजाला चला गया ।। रिश्तों में आज कैसी ये बेबस दीवार है । भाभी चली गयी है ,साला चला गया ।। ...डॉ.अवधेश कुमार जौहरी
पहलू विषय पर... एक पहलू गुज़र गया जब ज़िन्दगी का । तब कहीं मिलना हुआ था बन्दगी का ।। फूल ने जो धूल को इस कदर देखा अभी। मौन जैसे शब्द गढ़ता हो शर्मिंदगी का ।। ....डॉ.अवधेश कुमार जौहरी #पहलू
#संरेखित !!ग़ज़ल!!
मेरी चर्चित ग़ज़ल का मक्ता अर्ज है
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