Dard se Jeet tak - 8 in Hindi Love Stories by Renu Chaurasiya books and stories PDF | दर्द से जीत तक - भाग 8

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दर्द से जीत तक - भाग 8

कुछ महीने बाद...

वही रोशनी, वही खुशी,

लेकिन इस बार मंच नहीं — मंडप सजा था।

सामने बैठी थी एंजल —

सालों बाद, मुस्कुराती हुई, लाल जोड़े में सजी।

ज़हन उसके सामने, हल्की मुस्कान के साथ।

पंडित की आवाज़ गूंजी—

“फेरे पूरे हुए, अब से तुम दोनों एक-दूसरे के जीवन साथी हो।”


भाई ने उनके सिर पर हाथ रखा,
उनकी आंखों में आंसू थे ।

पर इस बार ये आंसू खुशी के थे ।
गर्भ के थे ।

उनकी मेहनत और लगन का ही तो फल था,

की आज ज़हन सच मच उनके परिवार का हिस्सा बन गया।





रात को सब चले गए थे।

कमरे की मेज़ पर एंजल की डायरी खुली थी।

आखिरी पन्ने पर लिखा था—

> “आज मेरी शादी है।

पर आज भी मैं वही बच्ची हूँ ,

जो कभी भाई की गोद में छिप जाती थी।

मैंने बहुत कुछ खोया, बहुत कुछ पाया।

लेकिन आज, जब ज़हन मेरे साथ है,

मुझे लगता है मेरे सारे मौसम खिल उठे हैं।

यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती…

क्योंकि हर जीत के पीछे एक नई शुरुआत छिपी होती है।

‘दर्द से जीत तक’ —

यही मेरी ज़िंदगी का सफर रहा।”



एंजल ने कलम बंद की,


डायरी के पन्ने पर हाथ फेरा,


और मुस्कुराकर कहा —

“अब ये कहानी पूरी हुई…”

बाहर खिड़की से हल्की हवा आई,

जैसे आसमान भी कह रहा हो —


“हर दर्द में एक जीत छिपी होती है…

बस हिम्मत रखो।”

आँखों में जीत की चमक ,

और होंठों पर बस यही शब्द—


“… अब बस जीतें ही जीत।”

समारोह के कुछ महीने बाद,


ज़हन और एंजल की शादी हो चुकी थी।


भाई अब बूढ़े हो चले थे,

पर चेहरा अब भी वही सुकून लिए था —

वो जो सिर्फ़ अपने बच्चों की जीत देखकर मिलता है।

ज़हन अब देश का नाम रोशन करने वाला अफ़सर था,


और एंजल — एक सामाजिक संस्था चलाती थी,


जो अनाथ बच्चों की शिक्षा के लिए काम करती थी।


सब कुछ परफ़ेक्ट लग रहा था…


पर ज़िंदगी कभी पूरी परफ़ेक्ट नहीं होती।


---

 उस रात की दस्तक


एक रात — ठंडी हवा, और बिजली की गड़गड़ाहट।


एंजल डायरी में कुछ लिख रही थी,


अचानक उसे ज़हन का फ़ोन आया —


“एंजल, मैं आज थोड़ी देर से आऊँगा,

एक केस देखने गाँव गया हूँ।”

वो मुस्कुराई— “ठीक है, जल्दी आना।”

कॉल कट हुई।

रात बढ़ती गई।

बारिश तेज़ होती गई।

घड़ी ने 12 बजाए…

पर ज़हन वापस नहीं आया।

अगली सुबह —

दरवाज़े पर दस्तक हुई।

भाई ने खोला… सामने कुछ पुलिस अफ़सर थे ।


---

 दिल्ली की सर्द सुबह थी।

अख़बार की सुर्ख़ियाँ ज़हन के नाम से भरी थीं —

“साहसी अफ़सर ज़हन ने अपनी जान देकर सैकड़ों को बचाया।”




लोगों की भीड़, सन्नाटा, और एंजल की चीखें।


वो ज़हन के शरीर को सीने से लगाकर बार-बार कहती रही —


“उठो ज़हन, तुमने तो वादा किया था…



अभी तो असली जीत बाकी थी…”



भाई बस खड़ा था, पत्थर बनकर।


उसकी आँखों से आँसू नहीं, बल्कि उम्र टपक रही थी।





लेकिन इससे दो दिन पहले...


वो एक सामान्य सुबह थी।

ज़हन को एक ख़ुफ़िया सूचना मिली थी —

शहर के बाहरी इलाक़े में एक फ़ैक्ट्री में

अवैध विस्फोटक बन रहे हैं।

उसने बिना देर किए अपनी टीम के साथ वहाँ पहुँचने का फैसला किया।

उसने भाई को फोन किया और कहा में एक मिशन पे जा रहा हूँ,

लौटने में देरी होगी।


भाई ने कहा—


“सावधान रहना बेटा।”


और ज़हन ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया—

“भैया, जब तक देश सुरक्षित नहीं, मैं चैन से नहीं बैठूँगा




फ़ैक्ट्री सुनसान थी,


हवा में बारूद की गंध थी।


ज़हन ने टीम को अंदर भेजा।

सब कुछ शांत लग रहा था — पर अंदर मौत छिपी थी।

वो जैसे ही अंदर बढ़ा,

उसने देखो छोटे बच्चों के हाथों से ,

बारूद बनवाया जा रहा है।

बच्चों की हालत बहुत ही खराब थी ।

दिन रात भूख प्यास सहकार बस कम करना ।

ज़हन  बच्चों के पास गया ।

ओर उनको बहा से निकल ने लगा
पर तभी कुछ गुंडे आगे ।

पॉलिश को देख कर
सभी ने बंदूक निकाल ली 

और अंधा ढूंढ गोलियां चलाने लगे।

दोनों तरफ से गोली बारी होने लगी।


तभी किसी ने रिमोट से बम एक्टिवेट कर दिया।


“सब लोग पीछे हटो!!”


वो चिल्लाया,


और अपनी जान की परवाह किए बिना

वो भागकर बम के पास पहुँचा,


तारों को काटने की कोशिश करने लगा।

टीम बाहर थी —

घड़ी की सुइयाँ टिक-टिक कर रही थीं,
और फिर…

 एक ज़ोरदार धमाका हुआ।

आसमान कांप गया।

धूल का गुबार उठा,

और हवा में सिर्फ़ एक नाम गूंजा —


“ज़हन…


---
अगली सुबह — शहादत

जब धुआँ छटा,

लोगों ने देखा —

ज़हन अपने शरीर से ढके उन बच्चों को बचा चुका था



वो चला गया था…


पर उसकी आँखें अब भी खुली थीं —


जैसे अब भी पहरा दे रही हों।


जब ख़बर जब एंजल तक पहुँची,

वो कुछ पल तक चुप रही 

फिर उसने कहा —


“ज़हन ने अपना वादा निभाया…


कहा था ना —


‘असली जीत अभी बाकी है।’


आज उसने वो जीत हासिल कर ली।”

वो रोई नहीं।


बस आसमान की ओर देखा,

जहाँ हल्की-सी सुनहरी रोशनी फैल रही थी —

जैसे खुद ज़हन आसमान से मुस्कुरा रहा हो।


---
 डायरी का आख़िरी पन्ना


एंजल ने उस रात अपनी डायरी खोली।


कलम काँप रही थी,

पर शब्द साफ़ थे—

> “तुम चले गए,


पर मेरा दिल आज भी तुम्हारे शब्दों से धड़कता है।


तुमने मुझे सिखाया कि प्यार सिर्फ़ साथ होना नहीं,

किसी के लिए अपना सबकुछ दे देना भी है।


अब तुम्हारे नाम को कभी मिटने नहीं दूंगी।

 मैं एक स्कूल खोलूँगी —


जहाँ हर बच्चा सीखेगा,

कि सच्ची जीत वो होती है जो दूसरों को जीवन दे जाए।”



उसने आखिरी बार लिखा—

> ‘ज़हन — तू गया नहीं, अमर हो गया।’




डायरी बंद हुई।


मेज़ पर रखी ट्रॉफी की चमक उस पर पड़ी।


वो ट्रॉफी जिसे उसने भाई के हाथ से ली थी।

अब उस पर दो नाम खुदे थे —

“Officer Zhan”

और नीचे —
“In Loving Memory – His Angel.”



कुछ साल बाद


 “ज़हन एजुकेशन फाउंडेशन” का उद्घाटन हुआ।

मंच पर वही भाई और एंजल खड़े थे।

पीछे बड़ी तस्वीर लगी थी —

ज़हन की मुस्कुराती हुई,

वर्दी में, आँखों में वही चमक लिए।


भीड़ खड़ी होकर तालियाँ बजा रही थी।


भाई ने आसमान की ओर देखा और कहा—

“देख बेटा… तू हार नहीं गया,


तू जीत गया —

हम सबके दिलों में।”



समाप्त