Dard se Jeet tak - 4 in Hindi Love Stories by Renu Chaurasiya books and stories PDF | दर्द से जीत तक - भाग 4

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दर्द से जीत तक - भाग 4

“क्या प्यार इतनी बड़ी सज़ा है,

कि इंसान को अपना घर, अपना गाँव छोड़ना पड़े?

काश कोई समझ पाता,

मैं सिर्फ़ जहान से नहीं,

उसकी रूह से जुड़ी हूँ।”

 

सुबह की पहली किरण से पहले ही हम निकल पड़े।

कंधे पर सिर्फ़ एक थैला,

दिल में ढेरों बोझ।

गाँव की गलियों से गुज़रते हुए

हर ईंट, हर पेड़, हर कोना हमें रोक रहा था।

पर भाई का कदम डगमगाया नहीं।

 

मैंने पीछे मुड़कर आख़िरी बार अपना घर देखा।

जैसे वो दीवारें मुझसे कह रही हों—

“जा… पर भूल मत जाना,

तेरी जड़ें यहीं हैं।”

 

गाँव की मिट्टी पीछे छूट चुकी थी।

हम तीनों एक अजनबी रास्ते पर चल रहे थे—

भाई का चेहरा सख़्त था,

भाभी आँसू पोंछते-पोंछते थक गई थी,

और मैं बस भीतर ही भीतर टूट रही थी।

 

कई मील दूर एक कस्बे में आकर हमने डेरा डाला।

वहाँ भाई को मज़दूरी मिली,

भाभी ने सिलाई-कढ़ाई शुरू कर दी।

हमारे सिर पर टूटी छत ही सही,

पर उस छत के नीचे अब अपमान का बोझ नहीं था।

 

रात को अक्सर मैं छत पर बैठकर आसमान देखती।

सितारे मुझे जहान की आँखों जैसे लगते।

मैं खुद से कहती—

“क्या उसे पता होगा कि मैं कहाँ हूँ?

क्या वो मुझे ढूँढेगा?”

 

उधर जहान के घर में तूफ़ान मचा हुआ था।

उसकी बगावत ने पूरे परिवार की नींद छीन ली थी।

पिता ने गुस्से में ऐलान कर दिया था—

“अगर Angel को चुना है तो जाओ,

उसे ही ढूँढो, पर इस घर से उम्मीद मत रखना।”

 

लेकिन कोई भी उसे इतनी आसानी से नहीं जाने देने वाला था।

 

जहान ने बिना कुछ कहे घर छोड़ दिया।

उसके कदम पागलों की तरह भटकते रहे।

गाँव की गलियों में, चौपाल पर, खेतों में—

हर जगह उसने मेरा नाम पुकारा।

 

“Angel…कहाँ हो तुम?

मुझसे छुपकर क्यों चली गई?”

और फिर एक हादसा हुआ ।

उस दिन ज़हन जब एंजल की तलाश में निकला ।

__________

लोग हँसते,

कहते— “पगला गया है ये लड़का,

उस अनाथ लड़की के लिए सब छोड़ दिया।”

 

पर जहान को कुछ सुनाई नहीं देता।

उसके लिए अब बस एक ही आवाज़ थी—

मेरे दिल की धड़कन।

 

उस रात उसने भी अपनी डायरी में लिखा—

“Angel,तू जहाँ भी है,

तेरी साँसों की आहट मुझे वहाँ पहुँचा देगी।

मैं तुझे ढूँढूँगा… चाहे दुनिया के आख़िरी कोनेतक क्यों न जाना पड़े।”

रात का अँधेरा था।

आसमान में घने बादल थे औरबिजली बार-बार चमक रही थी।

ज़हन, एंजल की तलाश में पागलों की तरह गाँव की गलियोंऔर सड़कों पर दौड़ रहा था।

उसके कपड़े भीग चुके थे, चेहरा आँसुओं और बारिश मेंडूबा था।

 

“एंजल… एंजल!”

उसकी आवाज़ अंधेरे में गूँज रही थी, पर कोई

जवाब नहीं आया।

 

तभी, अचानक दूर सड़क पर हल्की सी छाया हिली।ज़हन की आँखें चमकीं—

“शायद वो ही है!”

 

वो बिना सोचे उस तरफ भाग पड़ा।

लेकिन सड़क की दूसरी ओर से तेज़ रफ़्तार से एक ट्रक आ रहा था।

रात का अंधेरा, बारिश की फिसलन और

चालक की लापरवाही… सब मिलकर मौत को बुला रहे थे।

 

एक पल के लिए समय जैसे थम गया।

ट्रक की हेडलाइट्स ज़हन के चेहरे पर पड़ीं—

उसके चेहरे पर सिर्फ़ एक नाम था…

“एंजल!”

 

एक ज़ोरदार टक्कर की आवाज़ गूँजी।

सड़क पर खून की लकीर बह निकली।

 

लोग दौड़कर आए, किसी ने चिल्लाया—

“अरे ये तो ज़हन है! पागल हो गया था, उसी अनाथलड़की के पीछे घूम रहा था!”

 

पर ज़हन की आँखें अब भी खुली थीं।

दर्द सेतड़पते हुए, होंठ काँपते हुए बस इतना कह पाए—

“एंजल… मैं आ रहा हूँ…”

सड़क पर हादसे के बाद लोग भागे-भागे ज़हन को उठाकर अस्पताल ले आए। उसके सिर से खून बह रहा था, बदन जगह-जगह छिल चुका था। स्ट्रेचर पर डालते ही डॉक्टर दौड़ पड़े।

नर्स ने कहा—

“जल्दी करो, मरीज की हालत नाज़ुक है।”

ऑपरेशन थिएटर का दरवाज़ा बंद हुआ। बाहर गाँव वाले खड़े थे, कोई हँस रहा था, कोई ताना मार रहा था—

“देखा, एक लड़की के लिए पागल हो गया।”

लेकिन अंदर…

ज़हन की चेतना अँधेरे और रोशनी के बीच झूल रही थी।

डॉक्टर इंजेक्शन लगा रहे थे, पर ज़हन बेकाबू होकर बार-बार चिल्लाता—

“एंजल… कहाँ हो तुम?”

“एंजल… मुझे छोड़कर मत जा…”

“एंजल… देखो, मैं यहाँ हूँ, तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं…”

उसकी आवाज़ इतनी टूट चुकी थी कि डॉक्टर भी ठहरकर उसे देखते।

डॉक्टर ने धीमी आवाज़ में नर्स से कहा—

“इसकी चोट जितनी गहरी नहीं है, उतनी गहरी चोट इसके दिल पर है।”

ज़हन बार-बार उठने की कोशिश करता, हाथ फैलाकर जैसे किसी को पकड़ना चाहता हो—

लेकिन पकड़ में बस हवा थी।

उसकी आँखों से आँसू बहते रहे, और होंठ काँपते रहे—

“Angel… Angel…”

पूरा अस्पताल

उसकी पुकार से गूंज रहा था।

 अस्पताल में कई दिन बीत गए। ज़हन के घाव धीरे-धीरे भरने लगे, लेकिन उसकी जुबान पर अब भी सिर्फ़ एक नाम था—

“एंजल…”

दिन हो या रात, वो बार-बार उठ बैठता और दीवारों से टकरा कर चिल्लाता—

“एंजल, मुझे क्यों छोड़ गई? मैं तुझे ढूँढ लूँगा… सुन रही हो ना? जवाब दो!”

नर्सें घबरा जातीं। डॉक्टर सिर हिलाते—

“शरीर ठीक है, लेकिन दिमाग़… अब संभलना मुश्किल है।”

गाँव वाले, जो पहले से ही उसकी मोहब्बत का मज़ाक उड़ाते थे, अब और ताने मारने लगे—

“पगला गया है… एक अनाथ लड़की के लिए सब बर्बाद कर दिया।”

“ऐसे लोग समाज के लिए खतरा हैं।”

आख़िरकार, ज़हन के पिता ने कठोर फैसला लिया।

“इसे पागलखाने भेज दो। शायद वहीं ठीक हो जाए।”

अगली सुबह, सफेद कपड़े पहने दो आदमी आए। उन्होंने ज़हन के काँपते हाथ बाँध दिए।

ज़हन चीखता रहा—

“छोड़ दो मुझे! मुझे एंजल के पास जाना है! वो कहीं मेरा इंतज़ार कर रही होगी…”

लेकिन उसकी चीखें अस्पताल की दीवारों से टकराकर लौट आईं।

गाड़ी में बैठाते वक्त भी उसकी आँखें आसमान में किसी को ढूँढ रही थीं। होंठ बस इतना दोहराते रहे—

“Angel… मैं आ रहा हूँ… बस रुक जाना।”

गाड़ी के दरवाज़े बंद हुए। और यूँ, ज़हन का सफ़र मोहब्बत से

पागलपन तक का पूरा हो गया।

___________________

कुछ साल बाद

कस्बे की छोटी-सी झोपड़ी से शुरू हुआ हमारा सफ़र अब ज़िंदगी का सबसे बड़ा इम्तिहान बन गया।

भाई दिन-रात मज़दूरी करता।

पसीने से तर-बतर उसका बदन,

पर आँखों में सिर्फ़ एक सपना—

“Angel पढ़ेगी… वो इतनी ऊँचाई छुएगी कि

दुनिया उसे देखेगी।”

 

भाभी भी साथ देतीं।

सुई-धागे से हर रात हमारी उम्मीदें बुनतीं।

और मैं… किताबों में डूब गई।

गाँव की बेइज़्ज़ती मेरे दिल में आग बन चुकी थी।

मैंने ठान लिया—

“अब मैं साबित करूँगी कि एक लड़की का सपना किसीभी ताने से बड़ा होता है।”

 

साल दर साल बीतते गए।

मैंने रातों को जागकर पढ़ाई की,

दिनों को मेहनत की रौशनी में बदल दिया।

किताबों के पन्ने मेरे सबसे करीबी दोस्त बन गए।

 

भाई ने कभी अपने सपनों को नहीं देखा,

उसने सिर्फ़ मेरे सपनों को जिया।

वो कहता—

“Angel,तू ही मेरी पहचान है।

तेरी कामयाबी ही मेरी जीत होगी।”

धीरे-धीरे भाई ने भी छोटे-मोटे काम से शुरुआत कीऔर मेहनत के दम पर अपना कारोबार खड़ा कर लिया।

आज उसके पास वो सब था

जो जहान के परिवार ने हमें खोने पर शान से दिखाया था—

घर, ज़मीन, दौलत…

पर उससे भी बड़ी चीज़—इज़्ज़त।

अब हम किसी से कम नहीं थे।

पर मेरे दिल में अब भी वही सवाल था—

“जहान… तू कहाँ है?

क्या तू जानता है कि अब मैं वो Angel नहीं,

बल्कि अपने भाई का गर्व हूँ?”

समय बदल चुका था।

Angel अब एक बड़ी अधिकारीबन गई थी।

भाई का कारोबार दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की कररहा था।

लोग अब हमारे नाम से मिसाल देते थे।

कई साल बीत गए।

एंजल का भाई शहर में पढ़ाई और काम में डूबा रहा।

उसने अपनी बहन को पढ़ाया, खुद रात-दिन मेहनत की, और धीरे-धीरे गरीबी से बाहर निकलने लगा।


वो गाँव से दूर हो गया था, क्योंकि वहाँ के ताने,

अपमान और ज़हन के परिवार की बेरहमी उसके दिल में जहर बन चुके थे।

ओर जब मेरी पढ़ाई पूरी हुई और भाई का करो बार सफल हुआ ।

तब हमने फिर से उस गांव में कदम रखा ।

जो लोग कभी हमे बेइज्जत करते थे ।

वो आज हमारा सम्मान कर रहे थे।

लोग अब मेरे भाई के सामने सिर झुकर खड़े थे ।

ओर जो लोग कभी मुझे अनाथ , बदचलन कहते थे , वे अब मेरा गुणगान कर रहे थे।

भाई जब गांव पुराने लोगों से मिला ।

तब किसी ने उसे बताया ।


“अरे, तुम्हें नहीं पता है।

ज़हन वह मुखिया का बेटा , अब पागलखाने में है।”

“वो हादसे के बाद से कभी ठीक ही नहीं हुआ।”

“अब तो बस दीवारों से बातें करता है। 

जब उसको पागलखाने भेजा गया।

तब से उसकी कोई खबर नहीं आई

एक आदमी बोला पागल होने के बाद किसी को उसकी प्रभाव नहीं थी।

ओर कौन एक पागल को संभालेगा।

मुखिया के लिए अपनी सान सबसे ऊपर थी।

उसे अपने छोटे बेटे पर बहुत घमंड था।

जब उसका बेटा पागल हुआ उसने उसे पागलखाने भेजा दिया ।

उसके बाद किसीने भी उसकी खबर नहीं ली।

क्या पता वो अब जिन्दा है ,या कब का मर गया।

जब भाई ने उनकी बात सुनी, तब 

भाई का दिल दहल गया।

उसके पाँव जैसे वहीं जम गए।

आँखों के सामने अचानक अतीत के सारे दृश्य घूम गए—

वो खेतों में खेलते बचपन के दिन,

एंजल का मासूम हँसना,

ज़हन का छुप-छुपकर उसे देखना,

और फिर वो रात… जब सब बिखर गया।

उसकी 

आँसू आँखों से टपक पड़े।

भाई ने आसमान की तरफ देखा और धीमे स्वर में कहा—

“हे भगवान… क्या सचमुच ज़हन की ये हालत  है।

क्या यह मेरी बजा से है।

अगर मैं अपनी बहन और उसे बचा पाता, तो शायद

आज वो पागलखाने की दीवारों में कैद न होता।”

उसके भीतर अपराधबोध की आँधी उठी।

और उसी पल उसने तय किया—

“अब मैं उसे अकेला नहीं छोड़ूँगा।

चाहे पूरी ज़िंदगी लग जाए, मैं ज़हन को फिर से इंसान बनाऊँगा।”

भाई को जब पहली बार जहान की हालत का पता चला…

तो उसकी आँखें भर आईं।

वो चुपचाप देर तक बैठा रहा,

फिर धीमी आवाज़ में बोला—

 ये सब मेरी गलती है ।

“ये लड़का… मेरी वजह से टूटा है।

अगर मैंने तुझे (Angel) रोका न होता,

तो आज ये इस हालत में न होता।

मैंने अपनी बहन को बचाने की कोशिश में,

किसी और की ज़िंदगी छीन ली।”

 

मैंने भाई का हाथ पकड़ा—

“भाई, ये तुम्हारी गलती नहीं… हालात की गलती थी।”

 

पर भाई मानने को तैयार ही नहीं था।

उसने कहा—

“नहीं Angel, अब जहान मेरा ज़िम्मा है।

जैसे मैंने तुझे पाला, तुझे पढ़ाया,

वैसे ही अब इसे भी सँभालूँगा।

ये लड़का बुरा नहीं था…

बस हालात ने इसे तोड़ दिया।”

जब भाई पागलखाने से 

 जहान को अपने घर ले आया।

जहान बिखरी हालत में था।

जो चेहरा कभी चांद सा चमकता था,अब उस पर अंधेरी की परत थी।

जिन आंखों में कभी सारा जहां बसता था।

आज उनमें सुना पान  था ।

एक खालीपन ,

वि कभी हँसता, कभी रोता,

कभी अचानक मेरा नाम पुकार उठता—

“Angel… कभी दीवार पर अपना सिर पटकता।

उसकी ये हालत देख कर 

 मेरे दिल में काँटे चुभते,

पर मैं खुद को सँभालती।

भाई हर रोज़ उसे दवा देता,

खाना खिलाता,

और उसके पास बैठकर कहानियाँ सुनाता।

 

कभी-कभी मैं देखती—

भाई जहान के बाल सहलाता और कहता—

 

“बेटा, उठ… तेरा भी भविष्य है।

तू अकेला नहीं है।

अब तू मेरा छोटा भाई है।”

 

जहान शायद सब समझ नहीं पाता था,

पर उसकी आँखों में कभी-कभी शांति झलक जाती।

 

भाई की ये इंसानियत देखकर मेरा दिल और भर आता।

वो इंसान जिसने अपनी जवानी मेरी ख़ातिर कुर्बानकर दी,

आज उसी ने मेरे अतीत को भी अपने साए में लेलिया।

 

भाई ने जहान को अपनी ज़िम्मेदारी मान लिया।

वो दिन-रात उसकी देखभाल करता—

जैसे कोई माँ अपने बच्चे को संभालती है।

 

जहान की हालत बहुत नाज़ुक थी।

कभी अचानक हँस पड़ता,

तो कभी फूट-फूटकर रोने लगता।

कभी ज़मीन पर बैठकर मिट्टी में कुछ लिखने  की कोशिश करता।

भाई पास बैठ जाता, उसके काँपते हाथ पकड़ लेता,

धीरे से उसके सिर पर हाथ फेरता और कहता—

 

“बेटा… अब सब ठीक हो जाएगा।

मैं हूँ तेरे साथ।

तू अकेला नहीं है।”

 

वो जहान को समय पर दवा देता,

खुद उसे अपने हाथों से खाना खिलाता।

अगर जहान रात में चीखते हुए उठ जाता,

तो भाई तुरंत दौड़कर उसके पास बैठ जाता।

धीमे-धीमे  उसे फिर से सुलाता 

 

“सो जा… सब ठीक है… Angel खुश है, तू भी खुशहो जा।”

कभी जहान गुस्से में चीखता,

तो भाई उसे बच्चे की तरह सीने से चिपका लेता।

कभी जहान मासूमियत से पूछ बैठता—

 

“भाई… Angel कब आएगी?”

 

तो भाई आँसू रोकते हुए कहता—

“जल्दी आएगी बेटा, पहले तू अच्छा तो हो जा।”

 

भाई ने जहान के लिए वही प्यार दिखाया

जो उसने बचपन से मुझे दिया था।

वो जहान को अपने साथ खेतों पर ले जाता,

उसे छोटे-छोटे काम सिखाता,

ताकि उसका मन बहल सके।

 

धीरे-धीरे जहान की आँखों की वीरानी कम होने लगी।

उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान लौटने लगी।

हालाँकि वो पूरी तरह ठीक नहीं था,

पर भाई की ममता और लगन ने

उसकी टूटी हुई आत्मा को फिर से जोड़ना शुरू करदिया।

 

कभी-कभी मैं दूर खड़ी होकर देखती…

जहान मेरे भाई की गोदी में सिर रखकर सो जाता,

और भाई उसे बच्चे की तरह थपकी देकर सुलाता।

 

उस पल मुझे एहसास हुआ—

सच्चा इंसान वही है

जो नफ़रत और बदले की जगह

दूसरों के दर्द को अपनाता है।

 _______&&&______&_

भाई ने जहान को जैसे अपने जीवन का मक़सद बना लियाथा।

हर 

सुबह उसका का पहला काम उसका हाल पूछना,

दवा देना,

और मुस्कुराकर कहना—

“आज हम दोनों का नया दिन है बेटा।”

 

दिन गुज़रते गए…

जहान के टूटे दिल पर भाई की ममता 

असर होने लगा।

मेरा भाई जो हम से 5,6 साल बड़ा था ।

आज वो दो उसके बराबर लोगो का, माता पिता बन गया था।

 

मैं अपने सपनों की उड़ान में जुटी थी।

रात-रात भर पढ़ाई करती,

इम्तिहान देती,

और खुद से कहती—

“मुझे सिर्फ अपने लिए नहीं,

अपने भाई और जहान के लिए भी जीतना है।”

 

वक़्त ने करवट ली…

मैंने अपने सपनों की मंज़िल पा ली।

मैं एक बड़ी अफ़सर बनी।

जिस दिन मैंने अपनी वर्दी पहनी,

उस दिन भाई की आँखों में

गौरव के साथ आँसू भी थे।

उसने मेरे सिर पर हाथ रखकर कहा—

 

“अब मेरी बहन ही मेरा अभिमान है।”

 

इधर मेरी सफलता,

उधर भाई की लगन—

दोनों मिलकर जहान की टूटी हुई आत्मा को जोड़ रहे थे।

 

जहान अब धीरे-धीरे समझने लगा था।

उसकी आँखों में फिर से चमक लौट रही थी।

वो खेतों में काम करता,

बच्चों के साथ खेलता,

कभी मेरे ऑफिस के बाहर खड़ा होकर मुस्कुराता।

 

एक दिन उसने धीरे से भाई का हाथ पकड़ा और कहा—

“भाई… 

आपने मुझे नया जीवन दिया है।”

 

भाई रो पड़ा।

उसने जहान को गले से लगा लिया।

उस पल ऐसा लगा

मानो जहान अब ,उसका अपना बच्चा है।

वह अब हमारे छोटे से परिवार का हिस्सा बन चुका हो।

 

मैं दूर खड़ी सब देख रही थी।

मेरे दिल ने कहा—

“जहाँ नफ़रत बोई जाती है,

वहाँ इंसानियत का पौधा ही

सबसे गहरी जड़ें पकड़ता है।”


भाई ने ठान लिया था—

जहान सिर्फ जीयेगा ही नहीं,

बल्कि नये सिरे से जीवन बनाएगा।

 

वो रोज़ सुबह जहान को अपने साथ ले जाता।

खेतों में मेहनत करवाता,

अनाज तौलना सिखाता,

हिसाब-किताब समझाता।

पहले-पहल जहान हिचकिचाता,

पर भाई मुस्कुराकर कहता—

 

“बेटा, हाथ से किया हुआ काम ही दिल को सुकून देता है।

तू कोशिश कर, मैं तेरे साथ हूँ।”

 

धीरे-धीरे जहान काम में रमने लगा।

उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की झलक लौट आई।

 

पर भाई  का कम अभी अधूरा था।

वो यहीं नहीं रुका।

एक दिन उसने जहान से कहा—

“तूने पढ़ाई अधूरी छोड़ दी थी न?

अब वक्त है उसे पूरा करने का।”

 

जहान ने हैरानी से भाई की ओर देखा।

उसकी आँखें भर आईं—

“भाई… अब मुझसे नहीं होगा।

दिमाग साथ नहीं देता।”

 

भाई ने उसका कंधा थामा—

“तू बच्चे जैसा है, और बच्चे को सीखने में वक्तलगता है।

हम दोनों मिलकर पढ़ेंगे।

अगर गिरा, तो उठाऊँगा…

अगर भूल गया, तो दोबारा समझाऊँगा।”

 

उस दिन से भाई खुद जहान को किताबें पढ़कर सुनाता।

उसका हाथ पकड़ कर लिखवाता।

कभी गलती होने पर जहान घबरा जाता,

तो भाई हँसकर कहता—

“गलती नहीं होगी तो सीख कैसे बनेगी?”

 

में अपने ऑफिस से लौटकर

जब भाई और जहान को साथ पढ़ते देखती,

तो मेरा दिल भर आता।

में  सोचती— क्या कोई इंसान इतना नेक दिल हो सकता है।

क्या सच में मेरा भाई इंसान है ।

या फिर वो कोई फरिश्ता है ।

जिसे भगवान ने हमारी जिंदगी संवारने भेजा था।


“मेरे भाई ने सच में जहान को

नई जिंदगी देने की ठानी थी”

 

धीरे-धीरे जहान पढ़ाई में अच्छा होने लगा।

वो छोटे बच्चों को भी पढ़ाने लगा,

जिससे उसे आत्मसम्मान मिलने लगा।

अब वो सिर्फ भाई की गोद में रोने वाला बच्चा नहीं,

बल्कि अपने भविष्य का निर्माण करने वाला इंसान बन रहा था।

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 अब क्या होगा क्या ज़हन ठीक हो पाएगा 

क्या वो अंगे बाद पाएगा