शीर्षक : बिटिया — शक्ति, सृष्टि और समाज का आत्मबोध
खंड 1 : बिटिया और पिता — जीवन की ऊर्जा
थकान भरे दिन के बाद जब कोई पिता घर लौटता है और अपनी बिटिया का मुस्कुराता चेहरा देखता है, तो जीवन की सारी परेशानियाँ मानो क्षणभर में विलीन हो जाती हैं। वह मुस्कान केवल स्नेह नहीं, बल्कि जीवन की ऊर्जा होती है। रोज़ी-रोटी की चिंता, सामाजिक दबाव और दिनभर के प्रश्न उस निश्छल हँसी में कहीं गुम हो जाते हैं। उस क्षण पिता स्वयं को स्वर्ग से भी अधिक सुख में डूबा हुआ पाता है।
बचपन में बिटिया के साथ बिताए गए पल—कंधों पर बैठाकर मेले घुमाना, खुले आकाश में उछालना, परियों की कहानियाँ सुनाना—जीवन की सबसे पवित्र स्मृतियाँ बन जाते हैं। जैसे-जैसे बिटिया बड़ी होती है, पिता का व्यवहार बदलता है। मर्यादा और संस्कार के नाम पर कभी डाँटने के बाद जब मन भीतर ही भीतर दुखी हो उठता है, तब एहसास होता है कि सीख केवल संतान नहीं लेती—पिता भी अपनी बिटिया से बहुत कुछ सीखता है। कई बार तो ऐसा लगता है कि वही घर की सबसे समझदार सदस्य है।
खंड 2 : भारतीय संस्कृति में बिटिया — शक्ति का स्वरूप
भारतीय संस्कृति में बिटिया को केवल संतान नहीं, बल्कि शक्ति का सजीव रूप माना गया है। दुर्गा, काली, चंडी, सरस्वती और लक्ष्मी—ये सभी नारी शक्ति के विविध आयाम हैं। कन्या पूजन के बिना नवरात्रि का अनुष्ठान पूर्ण नहीं माना जाता। यह परंपरा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि इस सत्य की स्वीकृति है कि सृष्टि का संतुलन नारी के बिना संभव नहीं।
बिटिया को इसी सांस्कृतिक चेतना से प्रेरणा लेकर निडर, निर्भय और आत्मविश्वासी बनना होगा। उसे अपनी ममता और संवेदना से संसार को सुंदर बनाना है, लेकिन साथ ही यह भी समझना है कि आकर्षक नारों, खोखले वादों और साज़िशपूर्ण अलंकरणों से सतर्क रहना आवश्यक है। इतिहास साक्षी है कि साधु का भेष भी कभी-कभी छल का माध्यम बन जाता है।
खंड 3 : श्रम, संघर्ष और शोषण — बिटिया की अनकही शक्ति
दुर्भाग्यवश सदियों से बिटिया को केवल सौंदर्य और कोमलता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया, जबकि उसके श्रम, साहस और संघर्ष को अनदेखा किया गया। वही बिटिया पचास डिग्री ताप में रोटी बनाकर परिवार का पेट भरती है, खेतों में हल चलाती है, जंगलों से लकड़ियाँ लाती है और ईंट-पत्थर ढोकर दूसरों के लिए घर बनाती है।
आज वही बिटिया रिक्शा, रेल, विमान और अंतरिक्ष तक अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। यह शक्ति किसी जुमले या योजना की देन नहीं, बल्कि उसकी अंतर्निहित क्षमता का प्रमाण है। अब आवश्यकता है कि वह स्वयं इस शक्ति को पहचाने और किसी कृत्रिम सहारे की प्रतीक्षा न करे।
खंड 4 : समाज, सत्ता और प्रतिरोध — नई उड़ान की आवश्यकता
वर्तमान समय में सबसे बड़ा संकट तब उत्पन्न होता है जब सत्ता और पूँजी की लालसा इंसान को संवेदनहीन बना देती है। हाथरस, उन्नाव और निर्भया जैसी घटनाएँ केवल अपराध नहीं हैं, बल्कि हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था के चरित्र पर गंभीर प्रश्नचिह्न हैं। जब सत्ता मौन साध लेती है या अपराधियों का कवच बन जाती है, तब स्थिति और भी भयावह हो जाती है।
ऐसे समय में बिटिया को साहस के साथ अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना होगा। उसे यह स्पष्ट कहना होगा कि वह किसी राजनीतिक खेल की मोहरा नहीं है। उसे दुनिया की तमाम बेटियों को एकजुट कर उन जंजीरों को तोड़ना होगा जो सदियों से उसके पंख बाँधती आई हैं। उसे कहना होगा—हमें उड़ने दो, खुले आकाश में, और बनाने दो एक नया इंद्रधनुष।
गणेश कछवाहा
“काशीधाम”
रायगढ़, छत्तीसगढ़।