Raat ka Raja - 3 in Hindi Health by Raj Phulware books and stories PDF | रात का राजा - भाग 3

Featured Books
  • Horror House

    शहेर  लगभग पाँच किलोमीटर दूर एक पुराना, जर्जर मकान था।लोग उस...

  • वरदान - 2

    दिन ढल रहा था और महल की ओर जाने वाले मार्ग पर हल्की धूप बिखर...

  • राघवी से रागिनी (भाग 5)

     बाहर लगे सार्वजनिक हेण्डपम्प से पानी भरकर लौटने के बाद मंजी...

  • कुछ तो कमी थी

    तुम चाहते थे मैं दूर चली जाऊं ।जा रही हूं कभी न वापस आने के...

  • धुन इश्क़ की... पर दर्द भरी - 53

    साहिल देखता है कि पूरा कमरा मोमबत्तियों की रोशनी से जगमगा रह...

Categories
Share

रात का राजा - भाग 3

रात का राजा भाग 3

लेखक: राज फुलवरे




अध्याय पाँच — उपहास और चुनौती



सूरज डूब चुका था.

महल की ऊँची मीनारों पर कबूतर लौट चुके थे और दीपों की पंक्तियाँ जलने लगी थीं.

चाँदनी धीरे- धीरे आँगन में फैल रही थी, और जैसे- जैसे रात गहराती जा रही थी, राजा वीरेंद्र सिंह की आँखों में भी रोशनी लौट रही थी.



दरबार में उस रात फिर सभा बुलाई गई थी.

राजा ने घोषणा की थी —



>“ आज से आरव, इस राज्य के अतिथि के रूप में मेरे उपचार का उत्तरदायित्व संभालेगा।







जैसे ही यह बात फैली, दरबारियों में कानाफूसी शुरू हो गई.



>“ सत्रह साल का लडका राजा का इलाज करेगा?

इतने बडे वैद्य असफल रहे, अब कोई गाँव का छोकरा चमत्कार करेगा क्या?

राजा का भरोसा भी अजीब है, रात में आँखें खुलती हैं और अब किसी बच्चे पर विश्वास.







राजवैद्य चतुर्भुज ने भी ताना मारा —



>“ महाराज, जडी- बूटी का ज्ञान किताबों में नहीं, अनुभव में होता है.

और यह बालक अभी अनुभव की उम्र तक पहुँचा भी नहीं।







राजा ने शांत स्वर में कहा —



>“ चतुर्भुज, अनुभव कभी- कभी उम्र से नहीं, दृष्टि से आता है.

मैंने इस बालक की आँखों में विश्वास देखा है.

आज उसे मौका मिलेगा — अगर असफल रहा, तो दोष मेरा होगा।







दरबार में सन्नाटा छा गया.









आरव की तैयारी



आरव को राजमहल के अंदर के बगीचे में एक छोटा कमरा दिया गया था.

कमरे के बाहर नीम, तुलसी और अपराजिता के पौधे लगे थे.

उस रात वह अपनी झोली में से कुछ सूखी पत्तियाँ, कुछ जडें और एक पुराना लकडी का बक्सा निकालकर बैठा.



वह खुद से बुदबुदा रहा था —



>“ ये बीमारी आँखों की नहीं, प्रकाश की है.

सूरज में कुछ ऐसा है जिससे उनका मन डरता है.

या शायद उनके भीतर कोई ऐसा अंधकार है जिसे वे खुद नहीं देखना चाहते।







उसने एक छोटी सी मिट्टी की हांडी में पानी गरम किया, उसमें जडी- बूटियाँ डालीं, और धीरे- धीरे उसका रंग हरे से सुनहरा होने लगा.

वह उसे ध्यान से देखता रहा.



>“ प्रकृति में हर दवा धैर्य मांगती है, उसने मुस्कुराते हुए कहा.







तभी दरवाजा खटखटाया.

अंदर आने की अनुमति मिलते ही सैनिक कप्तान रणजीत भीतर आया.



>“ आरव, राजा ने कहा है कि वे आधी रात को तुम्हें बुलाएँगे. तैयार रहना।







>“ धन्यवाद, रणजीत भैया, आरव ने उत्तर दिया.

लेकिन मुझे एक बात बताओ — क्या राजा कभी सूरज को बिना डर के देख पाते हैं?







>“ नहीं, रणजीत ने गंभीर चेहरा बनाते हुए कहा.

जैसे ही सूरज की पहली किरण उनके चेहरे पर पडती है, वे कुछ भी नहीं देख पाते.

आँखें बंद कर लेते हैं और कमरे में अंधेरा कर देते हैं.

उनकी पीडा. हमसे देखी नहीं जाती।







>“ तो इसका मतलब यह बीमारी सिर्फ आँखों की नहीं, आत्मा की भी है, आरव ने कहा.

कुछ अंदर का प्रकाश ही उनसे छिप गया है।







रणजीत उसकी बातों से चकित था.



>“ तू तो किसी रिषि की तरह बोलता है, बालक।







आरव मुस्कुरा दिया.



>“ मेरे गुरु कहते हैं — जब तक किसी के दुख को महसूस न करो, उसकी दवा मत ढूँढो।













राजदरबार की रात



आधी रात का समय हुआ.

दरबार में दीये जल रहे थे, और राजा वीरेंद्र सिंह अपने सिंहासन पर विराजमान थे.

उनकी आँखों में चमक थी, लेकिन चेहरे पर चिंता की लकीरें अब भी थीं.

आरव को दरबार में बुलाया गया.



राजा ने पूछा —



>“ आरव, क्या तुम तैयार हो?







>“ हाँ, महाराज. लेकिन मुझे आपकी आँखों को नहीं, आपके हृदय को समझना होगा।







राजवैद्य चतुर्भुज फिर हँसा —



>“ वाह! अब तो इलाज दिल से होगा!

बेटा, तू राजा को दार्शनिकता सिखाने आया है या औषधि देने?







आरव ने आदरपूर्वक कहा —



>“ कभी- कभी औषधि शब्दों से भी बनती है, महाराज.

आँखें तब तक नहीं देख सकतीं, जब तक मन साफ न हो।







राजा ने हाथ उठाकर सभी को शांत किया.



>“ बोलो आरव, तुम्हें क्या चाहिए?







>“ मुझे कल सुबह सूर्योदय के समय आपसे अकेले में मिलना होगा.

जहाँ कोई और न हो — न वैद्य, न सैनिक.

सिर्फ आप, मैं और सूरज।







दरबार में हलचल मच गई.



>“ क्या? सूरज की रोशनी में राजा को ले जाएगा? यह तो पागलपन है!

महाराज, आपकी जान को खतरा हो सकता है!







राजा ने हाथ उठाकर सबको चुप कराया.

उनकी आँखों में दृढता थी.



>“ मुझे इस बालक पर विश्वास है.

मैं कल सूरज का सामना करूँगा — चाहे जो हो।







चतुर्भुज ने असंतोष में सिर हिलाया.



>“ जैसी आपकी इच्छा, महाराज. पर इतिहास गवाह रहेगा कि चतुर्भुज ने चेताया था।













अगले दिन की चुनौती



सुबह की पहली किरण महल की छत पर पडी.

राजमाता प्रार्थना कक्ष में दीप जला रही थीं.

आरव राजा के कमरे में पहुँचा.

वहाँ पर्दे लगे थे, सब खिडकियाँ बंद.

राजा अंधेरे में बैठे थे.



>“ राजा साहब, अब अंधकार को खोलिए, आरव ने धीरे से कहा.

जब तक सूरज की रौशनी अंदर नहीं आएगी, अंधकार बाहर नहीं जाएगा।







राजा का चेहरा डर से कठोर हो गया.



>“ तुम नहीं जानते आरव, जैसे ही मैं सूरज की ओर देखता हूँ, मेरी आँखों में आग सी जल उठती है.

जैसे कोई श्राप हो।







>“ तो आज हम उस श्राप को तोडेंगे, महाराज।







आरव ने खिडकी की ओर जाकर पर्दा हटाया.

एक सुनहरी किरण कमरे में दाखिल हुई —

राजा ने आँखें बंद कर लीं, वे कराह उठे.



>“ आरव. नहीं. ये जलन.







आरव ने तुरंत अपनी जडी- बूटी वाली ठंडी दवा उनकी पलकों पर लगाई.



>“ डर मतिए महाराज, यह जलन नहीं, उपचार की शुरुआत है.

आपकी आँखें सालों से रौशनी को भूल चुकी हैं।







धीरे- धीरे राजा की साँसें शांत होने लगीं.

आरव की आवाज स्थिर थी —



>“ अब बस, धीरे- धीरे अपनी आँखें खोलिए.

सूरज को देखिए — वह आपका दुश्मन नहीं, वही आपकी दृष्टि लौटाएगा।







राजा ने काँपते हुए पलके खोलीं.

पहली बार वर्षों बाद उन्होंने सुबह की सुनहरी रोशनी देखी.

आँखों से आँसू बह निकले — लेकिन यह आँसू पीडा के नहीं, पुनर्जन्म के थे.



>“ मैं. देख पा रहा हूँ.

मैं देख रहा हूँ, आरव! सूरज. मेरे राज्य. मेरे लोग.







आरव झुक गया.



>“ महाराज, ये प्रकृति की शक्ति है.

जब मन का भय मिटता है, तो अंधकार भी हार जाता है।













दरबार की प्रतिक्रिया



जब यह समाचार फैला, पूरा महल गूँज उठा.

राजमाता की आँखों में आँसू थे.

राजवैद्य चतुर्भुज हैरान रह गया.



>“ यह. यह कैसे संभव हुआ?







राजा ने दरबार में घोषणा की —



>“ आज से इस राज्य का नया प्रभात आरव के नाम से शुरू होगा.

यह बालक मेरे जीवन में प्रकाश बनकर आया है।







लोगों ने“ जय रात के राजा! और“ जय आरव! के नारे लगाए.

आरव ने सिर झुकाया —



>“ महाराज, मैंने सिर्फ वह किया जो प्रकृति ने सिखाया था।













रात को जब सब शांत हुआ, राजा अपने कक्ष में अकेले बैठे थे.

चाँदनी में उन्होंने अपनी हथेली देखी — उस पर सूरज की हल्की किरणों का प्रतिबिंब अब भी था.

वे मुस्कुराए —



>“ सालों बाद मैं सच में राजा बना हूँ. अपने अंधकार से आजाद।







और खिडकी के बाहर खडा आरव धीरे से बोला —



>“ अंधकार हमेशा बाहर नहीं होता, महाराज.

कई बार वह हमारे भीतर सोया रहता है — बस उसे पहचानना होता है।