tea shop in Hindi Biography by Narendra Garuwa books and stories PDF | चाय की दुकान

Featured Books
Categories
Share

चाय की दुकान

बात कुछ साल पहले की है।
सावन का महीना था। रात भर झमाझम बारिश हुई थी और सुबह जैसे धरती ने नया चोला पहन लिया था। गाँव की पगडंडी पर हल्की धूप सुनहरी चादर की तरह बिखरी हुई थी। हवा में ओस की नमी, खेतों की मिट्टी की महक, और दूर कहीं से आती कोयल की कूक — सब मिलकर उस सुबह को जादुई बना रहे थे।

गाँव छोटा था, लेकिन जीवन से भरा हुआ। नाम था “भोरपुरा” — और वहाँ की हर सुबह जैसे किसी नई कहानी की शुरुआत होती थी।

गाँव के कोने पर एक पुराना नीम का पेड़ था, जिसकी छाँव में रामू की चाय की दुकान थी।
एक मिट्टी की झोपड़ी, टीन की छत, लकड़ी की बेंचें, और दीवारों पर फीके पड़ चुके पुराने फिल्मी पोस्टर — यही उसका संसार था। लेकिन उस छोटे से ठिकाने में पूरे गाँव की धड़कन बसती थी।

रामू सुबह-सुबह अपनी दुकान खोलता, चूल्हा जलाता, और जब ताज़ी चाय की भाप उठती तो उसकी खुशबू पूरे नुक्कड़ में फैल जाती।
बुजुर्ग वहाँ बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाते, किसान अपनी दिनभर की योजनाओं पर चर्चा करते, और बच्चे उसकी दुकान के सामने पतंग उड़ाते।

उस दिन सुबह कुछ अलग थी।
रामू के चेहरे पर अजीब सी चमक थी। वह अपने कपड़े झाड़कर दुकान सजा रहा था।
उसने सोच रखा था कि आज दुकान की सफाई करेगा, क्योंकि कल रात उसे सपना आया था — मीना लौट आई है!
वही मीना, गाँव के मास्टर जी की बेटी, जिसके साथ वह बचपन में खेला करता था।

वह सपना तो था, पर जब हकीकत में मीना उसके सामने आई, तो रामू के हाथों से गिलास गिरते-गिरते बचा।

हल्के गुलाबी सलवार-कमीज़ में, गालों पर बारिश की बूँदों जैसी चमक, और आँखों में शहर की रौनक — वही मीना थी।
वो मुस्कुराई, और बोली —
“रामू भैया, अदरक वाली चाय मिलेगी?”

रामू के दिल की घंटियाँ बज उठीं।
“हाँ हाँ, क्यों नहीं, मीना जी! आप तो पहचान में ही नहीं आईं!”
“इतने साल बाद आई हूँ भैया, पहचानोगे भी कैसे?”

दोनों हँस पड़े।
लेकिन रामू के दिल में कहीं अंदर से एक हल्की सी टीस उठी — बचपन की यादें, अधूरी बातें, और वो दिनों की मासूमियत।


---

🌼 गाँव की हलचल

सूरज अब आसमान में ऊपर चढ़ चुका था।
हर घर से धुएँ की पतली लकीरें उठ रही थीं।
औरतें आँगन में झाड़ू लगाकर तुलसी को जल चढ़ा रहीं थीं।
बच्चे स्कूल की ड्रेस में भागते हुए नहर की ओर जा रहे थे।

नहर का पानी अभी भी बारिश से भरा था, और बच्चे उसमें कूद-कूदकर मस्ती कर रहे थे।
रामू का छोटा भाई गोपाल भी उन्हीं में से एक था — शरारती, पर समझदार।
नहाकर आता और फिर दुकान पर बैठकर लोगों को चाय देता।
वो बोलता — “भैया, मीना दीदी तो बहुत सुंदर लग रही हैं ना?”
रामू मुस्कुरा देता — “अरे पगले, तुझे सब सुंदर लगते हैं।”
पर मन ही मन वह भी यही सोच रहा था।


---

☕ मीना और रामू की यादें

मीना जब छोटी थी, तो चाय की दुकान के पीछे वाले आम के पेड़ के नीचे रामू के साथ खेलती थी।
कभी गोबर के दीपक बनाना, कभी मिट्टी के खिलौने — यही उनका बचपन था।
मीना हमेशा कहती —
“रामू, एक दिन तू बड़ी दुकान खोलेगा, और मैं वहाँ पढ़ने वाले बच्चों को पढ़ाऊँगी।”

समय बीत गया। मीना शहर चली गई।
रामू ने पढ़ाई छोड़ी और दुकान संभाल ली।
हर दिन वही सिलसिला — सुबह की चाय, दिन की धूप, और रात की थकान।
लेकिन उसके अंदर कहीं वह सपना अब भी जल रहा था — कुछ बड़ा करने का, कुछ ऐसा जो गाँव को जोड़ दे।


---

🌻 मुलाकातें और बदलाव

अगले कुछ दिनों में मीना रोज़ दुकान आने लगी।
कभी किताब लेकर, कभी डायरी, कभी बस यूँ ही।
वो वहाँ बैठकर गाँव के लोगों से बातें करती, बच्चों को कहानी सुनाती, और रामू की चाय की तारीफ करती।

एक दिन उसने अपनी डायरी रामू को दिखाई —
उसमें हाथ से बनाई एक तस्वीर थी —
नीम के पेड़ के नीचे चाय की दुकान और नीचे अंग्रेज़ी में लिखा था —
“The Heart of the Village — Ramu’s Tea Stall”

रामू की आँखें चमक उठीं।
“मीना जी, ये तो बहुत सुंदर है। लेकिन आप तो शहर की पढ़ी-लिखी हैं, वहाँ तो बड़े-बड़े कैफ़े होते होंगे, ये तो बस एक झोपड़ी है।”

मीना मुस्कुराई —
“रामू भैया, शहर में जगहें होती हैं, पर अपनापन नहीं।
यहाँ जो एक कप चाय में दिल का स्वाद है, वो Starbucks में भी नहीं मिलेगा।”

यह सुनकर रामू के दिल में जैसे घंटियाँ बज उठीं।
उसे पहली बार महसूस हुआ कि उसकी दुकान सिर्फ रोज़ी-रोटी नहीं, बल्कि गाँव की आत्मा है।


---

🌅 शाम की चहल-पहल

शाम होते ही दुकान पर फिर रौनक बढ़ गई।
खेतों से लौटते किसान, स्कूल से आते बच्चे, और चूल्हे जलाती औरतें — सब रामू की चाय की खुशबू से खिंच आए।
मीना ने सुझाव दिया —
“भैया, दुकान के पास एक कोना खाली है, वहाँ किताबें रख देते हैं। गाँव में लोग पढ़ेंगे, सीखेंगे।”

रामू को यह विचार पसंद आया।
कुछ दिनों में वहाँ एक छोटी “गाँव की लाइब्रेरी” बन गई।
पुरानी किताबें, अख़बार, और बच्चों की कॉमिक्स रखी गईं।
अब रामू की दुकान सिर्फ चाय की जगह नहीं, सीखने और मिलने-जुलने का ठिकाना बन गई थी।


---

🎉 मेला और नई शुरुआत

कुछ महीने बाद गाँव में वार्षिक मेला लगा।
रामू ने अपनी दुकान को खूब सजाया — केले के पत्तों से, नींबू-मिर्च की मालाओं से, और रंग-बिरंगी झंडियों से।
बच्चों के लिए मुफ्त चाय और बिस्कुट रखे, और गोपाल ने ढोल बजाया।

मीना ने उस दिन मंच पर सबके सामने रामू को एक बोर्ड भेंट किया —
जिस पर लिखा था —
“रामू की चाय — दिल से, गाँव के लिए”

सारा गाँव तालियाँ बजाने लगा।
रामू के आँसू निकल आए। उसने सोचा,
“शायद यही सफलता है — जब लोग तुम्हारे काम में अपना दिल देखें।”


---

🌺 आगे की कहानी

मेले के कुछ दिन बाद मीना ने गाँव में एक “ग्रामीण विकास केंद्र” शुरू किया।
वहाँ बच्चों को पढ़ाया जाने लगा, महिलाओं को सिलाई, कंप्यूटर और हस्तकला सिखाई जाने लगी।
रामू को वहाँ की कैंटीन की ज़िम्मेदारी मिली।
उसकी चाय अब “गाँव की खुशबू” नाम से मशहूर हो चुकी थी।

पास के कस्बों में लोग कहते —
“अगर असली चाय पीनी हो, तो भोरपुरा चलो, रामू की दुकान पर।”

रामू ने दुकान के बाहर एक छोटा सा बोर्ड लगवाया —

> “यहाँ सिर्फ चाय नहीं, कहानियाँ भी बनती हैं।”



अब उसकी दुकान गाँव की पहचान थी — जहाँ खुशियाँ बंटती थीं, रिश्ते बनते थे, और दिलों को सुकून मिलता था।


---

🌄 एक नई सुबह

कई साल बाद, जब मीना को शहर में नौकरी मिली, तो जाते समय उसने रामू से कहा —
“भैया, ये दुकान कभी बंद मत करना। यह सिर्फ दुकान नहीं, हमारे गाँव की आत्मा है।”
रामू ने मुस्कुराकर कहा —
“नहीं मीना जी, ये दुकान नहीं, हमारा मंदिर है।”

मीना चली गई, पर उसकी याद वहीं रह गई।
हर सुबह जब सूरज निकलता, तो उसकी किरणें सीधे रामू की दुकान पर पड़तीं — जैसे आसमान भी उसे आशीर्वाद दे रहा हो।

अब गाँव के बच्चे उसे “रामू भैया” नहीं, “रामू सर” कहते — क्योंकि वह सिर्फ चाय नहीं देता, बल्कि उन्हें जीवन की बातें सिखाता था।