नमस्कार दोस्तों!
आपने कई बार उन सात चिरंजीवी अमर योद्धाओं के बारे में सुना होगा, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे कलियुग के अंत में भगवान विष्णु के दसवें अवतार भगवान कल्कि की सहायता करेंगे। और रावण से भी अधिक क्रूर बलशाली राक्षस कलि का वध करके पुनः धरती पर धर्म की स्थापना करेंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं? उन सात चिरंजीवी को अमर होने का वरदान किसने दिया और क्यों दिया, और वे किस प्रकार भगवान कल्कि की मदद करेंगे? तो चलिए जानते हैं उन सात चिरंजीवी के बारे में विस्तार से
1) हनुमान
• जब हनुमान जी ने अशोक वाटिका में माता सीता को श्रीराम की अंगूठी दी थी, तब सीता जी ने उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान दिया था।
• हनुमान जी ने वर माँगा था कि जब तक धरती पर श्रीराम कथा और राम नाम रहेगा, तब तक वे जीवित रहकर राम भक्तों की रक्षा करते रहें। इस पर भगवान राम ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया।
• हनुमान जी का शरीर तेज, वायु और शक्ति से बना है, इसलिए नष्ट नहीं हो सकता।
• माना जाता है कि वे आज भी उत्तराखंड के गंधमादन पर्वत, तिब्बत, नेपाल और लंका के पर्वतीय क्षेत्रों में विचरण करते हैं।
• हनुमान जी अपने बल, बुद्धि और दिव्य शक्तियों का उपयोग करके कल्कि भगवान के साथ मिलकर अधर्म का नाश करेंगे।
2) परशुराम
• परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, इसलिए वे दिव्य रूप से चिरंजीवी माने जाते हैं।
• कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अजेय शक्ति, दिव्य परशु और दीर्घायु होने का वरदान दिया था।
• परशुराम जी ने वर माँगा था कि वे युगों तक जीवित रहकर पृथ्वी पर धर्म की रक्षा करते रहें और अधर्म के विरुद्ध संघर्ष करते रहें।
• मान्यता है कि वे आज भी महेंद्रगिरी पर्वत पर घोर तपस्या कर रहे हैं। इसके अलावा हिमालय की तपोभूमि, और कर्णप्रयाग के आसपास के गुप्त स्थलों में तपस्या करते हुए विचरण करते हैं।
• कलियुग के अंत में परशुराम जी भगवान कल्कि के गुरु बनकर उन्हें दिव्य अस्त्र–शस्त्र देंगे और युद्धकला सिखाकर अधर्म के विनाश में उनकी सहायता करेंगे।
3) अश्वत्थामा
• अश्वत्थामा को उनकी क्रूर हरकतों के कारण अमरत्व का शाप मिला था। महाभारत युद्ध के अंतिम दिन, क्रोध और प्रतिशोध में अंधे होकर, उन्होंने पांडवों के पांचों पुत्रों का सोते समय वध कर दिया था, और बाद में अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के अजन्मे बच्चे (परीक्षित) को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, ताकि पांडवों का वंश समाप्त हो जाए।
• उनके इन अधार्मिक कृत्यों के लिए, भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें शाप दिया कि वह पृथ्वी पर तब तक भटकते रहेंगे जब तक कलियुग समाप्त नहीं हो जाता। यह अमरत्व उनके लिए वरदान नहीं, बल्कि एक भयानक दंड था, जिसके तहत: उनके माथे पर एक घाव हो गया, जहाँ से उनकी दिव्य मणि निकाली गई थी, जिससे हमेशा खून और मवाद बहता रहता है। वह भयानक बीमारियों और पीड़ा से ग्रस्त है।
• कहा जाता है कि अश्वत्थामा आज भी पृथ्वी पर भटकते हुए जंगलों, पहाड़ियों और सुनसान क्षेत्रों में रहते हैं और अपने घावों को ढोते रहते हैं।
• मान्यता है कि वे अक्सर भारत के मध्य प्रदेश, विंध्य-पर्वत क्षेत्र, और घने जंगलों में देखे जाने का दावा किया जाता है, लेकिन वे अदृश्य रूप में ही रहते है।
• कलियुग के अंत में अश्वत्थामा भगवान कल्कि को बताएंगे कि अधर्म के मुख्य स्रोत कौन हैं, और भगवान कल्कि को उनका अंत करने में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन देंगे, क्योंकि वे स्वयं हजारों वर्षों से पाप और अधर्म को करीब से देखते आ रहे है।
4) महाराजा बलि
• महाराजा बलि को भगवान विष्णु (वामन अवतार) ने चिरंजीवी होने का वरदान दिया था, क्योंकि वे अत्यंत दानी, सत्यवादी और असुर कुल होते हुए भी धर्मात्मा राजा थे।
• महाराजा बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य की चेतावनी के बावजूद, ब्राह्मण वेश में आए भगवान वामन को तीन पग भूमि दान करने का वचन निभाया। जब भगवान ने विराट रूप धारण कर दो पगों में पृथ्वी और स्वर्ग लोक को माप लिया, तो तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। उनकी इस अद्वितीय विनम्रता और दानशीलता से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान दिया।
• हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु ने उन्हें सुतल लोक (पाताल लोक का एक समृद्ध क्षेत्र) का शासक नियुक्त किया। जहाँ स्वयं भगवान विष्णु उनकी सुरक्षा के लिए पहरा देते हैं।
• यह भी मान्यता है कि वह अपनी प्रजा से मिलने के लिए हर साल पृथ्वी लोक पर आते हैं, जिसे केरल में ओणम त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
• कलियुग के अंत में महाराजा बलि भगवान कल्कि की सहायता करेंगे, क्योंकि वे दैत्यों के स्वामी होने के बावजूद धर्मप्रिय राजा हैं, और अधर्म का नाश करके पृथ्वी पर धर्म-युग की पुनः स्थापना में योगदान देंगे।
5) वेद व्यास
• वेद व्यास जी को भगवान विष्णु का अंशावतार माना जाता है, इसलिए उन्हें चिरंजीवी होने का दिव्य वरदान प्राप्त है। उन्होंने ही वेदों को चार भागों में विभाजित किया और अठारह पुराणों तथा महाभारत जैसे महान ग्रंथों की रचना की।
• वेद व्यास जी ने भगवान शंकर जी से वर माँगा था कि जब तक संसार में धर्म, ज्ञान और वेदों की परंपरा चलती रहे, वे जीवित रहकर मानवता को मार्गदर्शन देते रहें।
• भगवान ने उन्हें वर दिया कि वे हर युग में उपस्थित रहेंगे और जब भी धर्म संकट में होगा, वे अपने ज्ञान द्वारा उसका प्रकाश फैलाएँगे।
• मान्यता है कि वेद व्यास जी आज भी बद्रीकाश्रम (उत्तराखंड) की गुप्त गुफाओं में तपस्या कर रहे हैं और समय-समय पर दिव्य आत्माओं को दर्शन देते हैं।
• कलियुग के अंत में वेद व्यास जी भगवान कल्कि को धर्म, नीति और वेद-शास्त्रों का ज्ञान देंगे और अधर्म के नाश व धर्म की पुनः स्थापना में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन करेंगे।
6) विभीषण
• विभीषण को भगवान राम ने चिरंजीवी होने का वरदान दिया था, क्योंकि उन्होंने रावण जैसे भाई का साथ छोड़कर सत्य, धर्म और श्रीराम का पक्ष चुना था।
• युद्ध के अंत में भगवान राम ने कहा था कि जो व्यक्ति हर परिस्थिति में सत्य का साथ देता है, उसे कभी नष्ट नहीं किया जाएगा, इसलिए विभीषण को युगों तक जीवित रहने का वरदान मिला।
• विभीषण ने वर माँगा था कि वे हमेशा लंकापति के रूप में धर्म का शासन चलाएँ और बुराई को कभी सत्ता में न आने दें। श्री राम ने यह वर स्वीकार करते हुए उन्हें अमर रहने का आशीष दिया।
• मान्यता है कि विभीषण आज भी लंका में अदृश्य रूप से रहते हैं और लंका की सुरक्षा व धर्म की मर्यादा पर नज़र रखते हैं।
• कलियुग के अंत में विभीषण भगवान कल्कि को बताएँगे कि दुष्ट शक्तियाँ कहाँ छिपी हैं, और वे पृथ्वी पर धर्म की पुनः स्थापना में कल्कि की सहायता करेंगे, क्योंकि वे सदैव सत्य और धर्म के संरक्षक रहे हैं।
7) कृपाचार्य
• कृपाचार्य को भगवान कृष्ण ने चिरंजीवी होने का वरदान दिया था, क्योंकि वे निष्पक्ष, धर्मनिष्ठ और अद्वितीय गुरु थे जिन्होंने हर परिस्थिति में धर्म और गुरु-परंपरा को सुरक्षित रखा।
• महाभारत के अंत में भगवान कृष्ण ने कहा था कि जब तक पृथ्वी पर धर्म और शिक्षा बनी रहेगी, कृपाचार्य जी जीवित रहकर संसार को मार्गदर्शन देते रहेंगे।
• कृपाचार्य ने वर माँगा था कि वे युगों तक गुरु-परंपरा को आगे बढ़ाते हुए धर्म की सेवा करते रहें। इसीलिए वे चिरकाल तक जीवित रहने वाले सप्त-चिरंजीवियों में शामिल हैं।
• मान्यता है कि कृपाचार्य आज भी हिमालय की गुप्त तपोभूमि में रहते हैं और योगबल से अदृश्य रहकर तपस्या व ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।
• कलियुग के अंत में कृपाचार्य भगवान कल्कि के गुरु बनेंगे और उन्हें वेद, शास्त्र, नीति और युद्धशिक्षा का ज्ञान देकर अधर्म के संहार और धर्म की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।
नमस्कार, धन्यवाद, जय श्रीराम 🙏