फाइनल और लास्ट पार्ट आ चुका है।
समय ऐसे ही गुजरता गया।
दिन हँसी में बदल गए,
रातें बातें करने में,
और कैमरे के फ़्रेमों में अब सिर्फ रेशमा ही बस गई थी।
प्रेम के स्टूडियो की दीवार पर एक खास फोटो थी —
रेशमा की वो तस्वीर जो उसने पहली बार क्लिक की थी,
जब वो बालकनी में खड़ी थी।
वो फोटो उसके लिए लकी बन चुकी थी।
हर नए प्रोजेक्ट से पहले वो उसे देखता और मुस्कुराता।
रेशमा भी अब उसके जीवन का हिस्सा बन चुकी थी।
वो दोनों एक-दूसरे से कुछ भी नहीं छिपाते थे।
पर ज़िंदगी हमेशा आसान नहीं होती —
कभी-कभी सबसे खूबसूरत तस्वीरों में भी
एक छोटी सी दरार सब कुछ बदल देती है।
एक दिन रेशमा ने कहा,
“प्रेम, अब हमें अपने घरवालों को बताना चाहिए।
कितना समय हो गया… मैं नहीं चाहती कि हमारा रिश्ता छुपा रहे।”
प्रेम ने थोड़ा सोचा,
उसने कहा,
“मुझे कोई दिक्कत नहीं,
मेरे घरवाले तुम्हें ज़रूर अपनाएँगे।
पर क्या तुम्हारे घरवाले… मान जाएंगे?”
रेशमा ने धीमे से कहा,
“शायद नहीं,
पर मैं कोशिश करना चाहती हूँ।”
रेशमा का परिवार बहुत परंपरागत था।
उसके पिता शहर के जाने-माने बिज़नेसमैन थे,
और उनकी सोच में “क्लास” सब कुछ था।
उनके लिए प्यार कभी भी “ज़ात” या “स्टेटस” से ऊपर नहीं था।
रेशमा जानती थी कि प्रेम एक मिडिल क्लास फोटोग्राफर है,
पर उसे फर्क नहीं पड़ता था।
क्योंकि उसने हमेशा देखा था
कि प्रेम अपने हर फ्रेम में सच्चाई और इज्जत कैद करता है।
वो जानती थी कि जिस आदमी का दिल इतना साफ है,
वो कभी उसे दुःख नहीं देगा।
रेशमा ने हिम्मत जुटाई।
एक दिन उसने अपने पिता से कहा,
“पापा… मैं किसी से प्यार करती हूँ।”
पिता ने अखबार से नज़र उठाई,
और सख्त आवाज़ में पूछा,
“कौन?”
रेशमा ने धीमे से कहा,
“प्रेम… वो एक फोटोग्राफर हैं।”
सन्नाटा छा गया।
पिता की आँखों में हैरानी, गुस्सा, और निराशा एक साथ थी।
“एक फोटोग्राफर?”
“जिसका काम दूसरों की शादियों की फोटो खींचना है?
और तुम उस लड़के से शादी करना चाहती हो?”
रेशमा की आँखें भर आईं।
“वो बहुत अच्छा इंसान है पापा।
वो सिर्फ फोटोग्राफर नहीं, वो सपने बनाता है।”
“सपने से पेट नहीं भरता, ,”
“तुम हमारे खानदान का नाम मिट्टी में नहीं मिलाओगी।”रेशमा
रेशमा रोने लगी।
“पापा, प्यार पैसे से नहीं होता…”
लेकिन उस दिन घर में बस खामोशी और ताने थे।
दूसरी ओर प्रेम अपने घर में बात करता है।
उसकी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा,
“बेटा, अगर वो तुझे खुश रखे,
तो हमें कौन-सा स्टेटस चाहिए?”
प्रेम के पिता ने कहा,
“बेटा, रिश्ता दो दिलों का होता है,
अगर लड़की समझदार है,
तो हमें कोई ऐतराज नहीं।”
प्रेम को उम्मीद की एक किरण मिली।
“माँ, बस अब दुआ करना कि रेशमा के घरवाले भी मान जाएँ।”
पर उसे नहीं पता था कि रेशमा के घर में तूफान चल रहा है।
रेशमा के पिता ने उसे घर से बाहर निकलने तक का मना कर दिया।
फोन छीन लिया गया,
दोस्तों से मिलना बंद करवा दिया गया।
वो बस अपने कमरे की खिड़की से आसमान देखती रहती —
जहाँ कभी प्रेम से बातें करती थी।
एक रात, छत पर खड़े होकर उसने तारों की तरफ देखा
और धीरे से कहा,
“प्रेम, तुम सुन रहे हो ना…?
मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है।”
प्रेम को उसकी कोई खबर नहीं मिल रही थी।
उसके कॉल्स ब्लॉक, मैसेज डिलीवर नहीं होते।
वो बेचैन रहने लगा।
काम में मन नहीं लगता।
वो रोज़ वही फोटो देखता —
रेशमा की मुस्कान —
और खुद से कहता,
“बस एक बार, एक बार उससे बात हो जाए…”
एक दिन अचानक उसे रेशमा की सहेली का कॉल आया।
“प्रेम भाई, रेशमा ठीक नहीं है…
वो रोते-रोते बीमार हो गई है।”
“घर में… और अंकल-आंटी बहुत नाराज़ हैं।”
प्रेम ने उसी रात जबलपुर जाने का फैसला किया।
वो चुपचाप उनके घर के बाहर पहुँचा।
खिड़की के पास बैठी रेशमा को देखा —
वो पहले जैसी नहीं रही थी।
आँखों में नींद नहीं, होंठों पर मुस्कान नहीं।
प्रेम ने बस हल्के से कहा,
“रेशमा…”
वो चौंक गई।
आँखों से आँसू बहने लगे।
“प्रेम, तुम यहाँ?”
“मुझे तुम्हारी हालत की खबर मिली…
मैं तुम्हें ऐसे नहीं देख सकता।”
रेशमा बोली,
“मेरे पापा कभी नहीं मानेंगे, प्रेम।”
प्रेम ने कहा,
“तो फिर मैं तुम्हें लेकर जाऊँगा।”
रेशमा की आँखें भीग गईं।
“क्या तुम सच में मुझसे इतना प्यार करते हो?”
प्रेम ने कहा,
“रेशमा, मैं वो इंसान हूँ
जो तस्वीर खींचते वक्त पल नहीं भूलता।
और तुम वो पल हो… जिसे मैं छोड़ नहीं सकता।”
उस रात दोनों ने एक फैसला किया।
दोनों जानते थे कि अब परिवार की रज़ामंदी मिलना आसान नहीं,
पर अलग रहना उससे भी मुश्किल था।
रेशमा ने कहा,
“अगर हमने भागकर शादी की,
तो लोग बहुत कुछ कहेंगे…”
प्रेम ने मुस्कुराते हुए कहा,
“लोग तो तब भी कुछ कहते हैं जब हम कुछ नहीं करते।
कम से कम इस बार कुछ अच्छा करेंगे।”
रात का वक्त था।
जबलपुर की गलियों में हल्की बारिश हो रही थी।
आसमान में बादल गरज रहे थे,
और सड़क की लाइट्स पानी में झिलमिला रही थीं।
रेशमा ने खिड़की से बाहर देखा —
वो आज़ादी जो उसने हमेशा चाही थी,
बस कुछ कदमों की दूरी पर थी।
उसके हाथ काँप रहे थे,
पर दिल में हिम्मत थी।
उसने हल्के से दरवाज़ा खोला,
सामने वही चेहरा — प्रेम।
वो उसे देखकर मुस्कुरा गया।
“तैयार हो?”
रेशमा की आँखों में डर और प्यार दोनों थे।
“मुझे डर लग रहा है…”
प्रेम ने उसका हाथ थाम लिया,
“ डरो मत, मैं हूँ ना।
दोनों बारिश में दौड़ते हुए उस गली से निकले।
बारिश की बूंदें उनके कपड़ों को भिगो रही थीं,
पर दोनों के चेहरे पर बस मुस्कान थी।
एक तरफ आसमान रो रहा था,
और दूसरी तरफ दो दिल हँस रहे थे।
जैसे खुद किस्मत कह रही हो —
अब ये मिलन तय है।
प्रेम ने बाइक स्टार्ट की,
रेशमा उसके पीछे बैठी —
वो पहली बार उसके इतने करीब थी।
हवा उनके चेहरे पर पड़ रही थी,
रेशमा ने आँखें बंद कीं और कहा,
“प्रेम, अगर ये सपना है,
तो मुझे कभी मत जगाना।”
दोनों सागर पहुँचे।
प्रेम की माँ ने दरवाज़ा खोला,
तो सामने भीगे हुए दो चेहरे थे।
“माँ…” प्रेम ने बस इतना कहा।
माँ ने बिना कुछ पूछे,
रेशमा को अंदर बुला लिया।
उसके कपड़े सुखाने के लिए दिए,
और कहा,
“बेटा, अगर दिल साफ़ है,
तो रिश्ता भी सच्चा होगा।”
रेशमा की आँखों से आँसू निकल आए।
“आंटी, मैंने अपने घरवालों की मर्ज़ी के खिलाफ़ आकर
आपके बेटे के साथ कदम रखा है…
मुझे माफ़ कर दीजिए।”
माँ ने उसके सिर पर हाथ रखा,
“बेटी, तू अगर मेरे बेटे की ज़िंदगी में मुस्कुराहट लाएगी,
तो माफ़ी नहीं, आशीर्वाद मिलेगा।”
अगले दिन दोनों ने मंदिर में जाकर शादी कर ली।
ना कोई बैंड, ना बारात,
सिर्फ़ दो दिल और कुछ साक्षी।
प्रेम ने उसकी माँग में सिंदूर भरा,
और कहा,
“अब ये तस्वीर पूरी हो गई।”
रेशमा की आँखें नम थीं,
पर उसमें शांति थी —
वो शांति जो सच्चे प्यार के मिलने से मिलती है।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।
रेशमा के पिता को जब यह खबर मिली,
तो वो गुस्से से भर उठे।
उन्होंने घर में किसी से बात तक नहीं की,
ना रेशमा का नाम लिया।
दिन, हफ़्ते, और फिर महीने बीत गए।
रेशमा ने कई बार उन्हें कॉल करने की कोशिश की,
पर हर बार जवाब वही — खामोशी।
प्रेम ने उसे हमेशा संभाला।
वो कहता,
“एक दिन सब ठीक हो जाएगा,
बस अपने प्यार पर भरोसा रखो।”
रेशमा कहती,
“प्यार ने मुझे तुम तक पहुँचाया,
अब वो हमें दुनिया से भी मिलाएगा।”
एक साल बाद,
प्रेम का Royalphoto Studio अब शहर में जाना-पहचाना नाम बन चुका था।
शहर के अखबार में उसकी एक फोटो छपी —
“सागर के युवा फोटोग्राफर ने जीता नेशनल वेडिंग अवॉर्ड”
उस फोटो में प्रेम के साथ खड़ी थी रेशमा,
हाथ में ट्रॉफी और चेहरे पर वही मुस्कान
जिसने उसे पहली बार लेंस के पार खींचा था।
वो अखबार रेशमा के पिता तक पहुँचा।
उन्होंने अखबार खोला,
और जैसे ही फोटो देखी —
वो कुछ देर तक चुप रहे।
पिता ने सिर झुका लिया।
उनके अंदर का अहंकार धीरे-धीरे पिघलने लगा।
कुछ दिन बाद,
एक सुबह रेशमा और प्रेम अपने स्टूडियो में बैठे थे।
तभी दरवाज़ा खुला।
रेशमा ने पीछे मुड़कर देखा —
उसके पिता खड़े थे।
वो काँपती आवाज़ में बोली,
“पापा…”
वो कुछ कदम आगे बढ़े,
रेशमा के सिर पर हाथ रखा और बोले,
“तुम खुश हो ना?”
रेशमा की आँखों से आँसू गिरने लगे।
पिता ने प्रेम की ओर देखा,
“बेटा, तूने मेरी बेटी को मुस्कुराना सिखाया है।
आज से मैं भी तुझे अपना बेटा मानता हूँ।”
उस दिन, जो तस्वीर अधूरी थी,
वो आखिरकार पूरी हो गई।
शाम को प्रेम ने अपना कैमरा उठाया,
रेशमा को स्टूडियो की दीवार के सामने खड़ा किया,
जहाँ उनकी पहली फोटो लगी थी।
वो बोला,
“देखो रेशमा, ये थी हमारी शुरुआत…
और अब देखो ये — हमारी कहानी।”
उसने कैमरा सेट किया,
रेशमा उसके पास आई,
और दोनों मुस्कुराए।
क्लिक! 📸
फ्लैश के साथ एक नई तस्वीर बन गई —
इस बार लेंस के पार नहीं,
बल्कि लेंस के भीतर से सीधा दिल तक।
✨ THE END ✨
— “लेंस के पार : एक तस्वीर प्यार की”
Story writer:-
........ Vikram kori