Pahli Baar..... Tum - Part 1 in Hindi Love Stories by Priyam books and stories PDF | Pahli Baar..... Tum - Part 1

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Pahli Baar..... Tum - Part 1





लाइब्रेरी हमेशा से उसकी पनाहगाह थी—एक ऐसी जगह जहाँ किताबों की ख़ामोशी में उसे अपनी धड़कनों की आवाज़ भी धीमी लगने लगती थी, और जहाँ वो अपने डर, अपनी हिचक, और अपनी छोटी-छोटी कमियों को दुनिया से छुपाकर कुछ देर के लिए भूल सकती थी।
लेकिन उस दिन… उसकी ये ख़ामोशी अचानक टूट गई।

वो ऊपर वाली शेल्फ से अपने नोट्स निकालने की कोशिश कर रही थी।
उंगलियाँ पहले ही घबराहट से थरथरा रही थीं, और पन्नों के किनारे उसके हाथों की कंपकंपी को जैसे चुपचाप देख रहे थे।
और फिर—

धड़ाम…!

उसके हाथ से सारी किताबें फिसलकर ज़मीन पर गिर पड़ीं।
पूरी लाइब्रेरी में एक पल के लिए हलचल सी दौड़ गई,
पर उसके अंदर एक तूफ़ान उठ गया था।
गाल गर्म होने लगे, आँखें डबडबा गईं, और दिल इतनी तेज धड़क रहा था कि उसे खुद अपनी साँसें तक सुनाई नहीं दे रहीं थीं।

वो झट से नीचे बैठकर किताबें उठाने लगी,
लेकिन उसकी उंगलियाँ तो जैसे उस वक्त उसकी ही बात नहीं मान रहीं थीं—
हर किताब उठती, फिर फिसलकर वापस गिर जाती।
किसी को क्या पता कि उसके भीतर कितना डर छुपा हुआ था…

तभी अचानक उसके पास भी कोई झुक गया।
एक हल्की-सी खुशबू, बहुत faint सी… शायद किसी perfume की…
और फिर एक आवाज़—
इतनी मुलायम, इतनी सुकून देने वाली कि जैसे किसी ने उसके हंगामे भरे दिल पर हाथ रखकर कहा हो—“Shhh… sab theek hai।”

“Tumhare haath kaamp rahe hain… itna ghabraati kyun ho?”

वो ठिठक गई।
उसने कभी उम्मीद नहीं की थी कि कोई उसके इतने छोटे-से डर को भी notice करेगा…
और समझेगा भी।

धीरे, बहुत धीरे उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया।
और सामने… वो था।

एक शांत सा चेहरा,
गहरी आँखें जिनमें अजीब-सी गर्माहट थी,
और एक मुस्कान…
जो किसी को भी एक सेकंड में यकीन दिला दे कि “सब सच में ठीक हो जाएगा।”

वो जल्दी से नज़रें नीचे कर लेती है।
दिल अब पहले से भी ज़्यादा जोर से धड़कने लगा था—
जैसे कोई उसके सीने के अंदर छोटे-छोटे ढोल बजा रहा हो।

लड़का धीरे से मुस्कुराता है,
किताबें उठाकर उसकी तरफ बढ़ा देता है,
और उतनी ही हल्की आवाज़ में कहता है—

“Tum apne aap ko jitna samajhti ho… usse kahin zyada ho.”

लड़की की साँस जैसे कुछ पल के लिए थम गई।
कभी किसी ने उसके बारे में ऐसी बात नहीं कही थी।
कभी किसी ने उसे इतना ध्यान से देखा भी नहीं था।

वो सिर हिलाकर किताबें ले लेती है,
और लड़का जैसे बिना कोई तमाशा बनाए,
बिना कुछ और कहे,
सीधे आगे बढ़ जाता है।

लेकिन उसका एक वाक्य…
उसकी एक मुस्कान…
और उसका उसे देखने का वो तरीका…
लड़की के दिल में कहीं गहराई तक छप गया।



अगले कुछ दिनों में—

कॉरिडोर में चलते-चलते,
canteen में line में खड़े होते हुए,
या library में अपनी seat ढूंढते हुए—

उसकी आँखें अनजाने में उसी को ढूंढने लगतीं।
और अजीब बात?
वो हर बार जैसे पहले से ही उसकी ओर देख रहा होता…
जैसे उसे पहले से पता हो कि वो आएगी।

उनके बीच कोई बात नहीं होती,
कोई confession नहीं…
बस एक खामोश connection,
जो हर गुजरते दिन के साथ थोड़ा और गहरा होता जाता।

कभी उसकी निगाहें देर तक टिक जातीं,
कभी वो देखते ही तुरंत नज़रें झुका लेती,
कभी उसका मुस्कुराना उसे घंटों याद रह जाता…

धीरे-धीरे कुछ ऐसा होने लगा था
जो शायद दोनों में से किसी ने सोचा भी नहीं था।

और उसी एहसास को शब्द मिलते हैं—

“Woh kuch bolta nahi,
Main kuch kehti nahi…
Par hamari dhadkanein,
Roz ek hi baat keh jaati hain—
Shayad… pyaar ho raha hai.”

—End of Part 1—