🌺 एपिसोड 3 — “वो दिन… जब सपने विदाई में खो गए”
"कभी सोचा था, शादी सिर्फ एक रिश्ता नहीं… बल्कि एक नए घर की ओर पुल होती है।
पर किसे पता, उस पुल के दूसरे छोर पर काँटे भी हो सकते हैं…”
वो दिन आ ही गया था।
आँगन में हल्दी की खुशबू इस तरह फैली हुई थी, जैसे हर दीवार, हर कोना निधि की नई शुरुआत का गीत गा रहा हो। उधर, दूर खड़ा सुधांशु अपने दोस्तों के बीच हँसता, खिलखिलाता बारात की तैयारी कर रहा था।
निधि के मन में एक अजीब-सी हलचल थी…
जैसे कोई अनदेखा भविष्य धीरे-धीरे उसके कान में कह रहा हो—
"सब कुछ वैसा नहीं होगा जैसा तुमने सोचा है…”
🌼 बारात का स्वागत
घर के बाहर ढोल-नगाड़ों की थाप गूंज उठी।
रौशनी, संगीत, और खुशियों की भीड़… हर तरफ़ उत्साह ही उत्साह था।
लाल जोड़े में सजी निधि सचमुच किसी चित्र की सबसे खूबसूरत पेंटिंग लग रही थी।
माथे की बिंदिया, झुमके, मेंहदी की खुशबू…
और उन आँखों में एक सपनों का समंदर—
"अब ये मेरा घर होगा… हमेशा के लिए।”
वरमाला के मंच पर भीड़ जमा थी।
कैमरों की फ्लैशें, फूलों की महक, हँसी की आवाजें—
और उस भीड़ के बीच खड़े थे सुधांशु और निधि।
किसी ने धीरे से फुसफुसाया—
“वाह! कितनी जोड़ेदार लग रही है ये जोड़ी…”
निधि शर्मा गई—
क्योंकि उस एक पल में उसे सचमुच लग रहा था कि उसकी किस्मत मुस्कुरा रही है।
उसे कहाँ पता था…
किस्मत की मुस्कान कभी-कभी सिर्फ़ धोखा भी होती है।
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🌙 विदाई — वो लम्हा जिसने सब बदल दिया
रस्मों के बाद वो समय आ गया जिसका हर लड़की नाम तो जानती है, दर्द नहीं।
माँ के गले लगते ही निधि ऐसे टूटकर रोई, जैसे उसका बचपन, उसके सपने, उसका पूरा संसार उसी आँगन में छूट रहा हो।
चाची, मौसी, फूफा—सबकी आँखें भर आईं।
जो घर कल तक हँसी से भर जाता था,
आज वही आँगन आँसुओं से भर गया था।
गाड़ी के दरवाज़े पर बैठते हुए उसने पीछे मुड़कर आखिरी बार घर देखा—
"अब ये मेरा घर नहीं रहा…
पर मैं अपने नए घर को भी अपना बनाने की पूरी कोशिश करूँगी…”
उसे नहीं दिखा कि उसी पल सुधांशु अपने दोस्तों के साथ मोबाइल में किसी चैट पर हल्की-सी मुस्कान दे रहा था।
वो मुस्कान… जो निधि के लिए नहीं थी।
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🪔 नए घर की दहलीज़
ससुराल का दरवाज़ा फूलों से सजा था।
दीपक की लौ, रंगोली की खुशबू, आरती की थाली…
सबकुछ परफेक्ट।
पर सास के चेहरे की मुस्कान—
वो बस औपचारिक थी।
और ससुर की आँखों में उत्सुकता—
वो बस एक नए चेहरे को परखने की थी।
निधि ने दहलीज़ पार करते हुए मन ही मन कहा—
"इस घर में मेरी वजह से कभी किसी को कोई शिकायत नहीं होगी।
मैं सबका दिल जीत लूँगी…”
वो ठान चुकी थी—
सास–ससुर की सेवा,
पति का सुख–दुःख,
हर रिश्ता…
वो निभाएगी।
और इस निभाने में वो अपना सब कुछ लगा देगी।
पर उसे ये नहीं पता था—
यही उसका सब कुछ देना
एक दिन उसकी सबसे बड़ी कमी बन जाएगा।
जिस घर को उसने अपना मानकर थाम लिया था,
उसी घर की कुछ दीवारें
धीरे-धीरे…
उसे तोड़ने की तैयारी कर रही थीं।
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💔 और यही वो मोड़ था…
कहते हैं—
“शादी के बाद असली कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ लोगों को लगता है सब ख़त्म हो गया।”
निधि के लिए भी उसकी असली कहानी
अब शुरू होने वाली थी।
एक ऐसी कहानी…
जहाँ त्याग का कोई मूल्य नहीं था,
प्यार की कोई कद्र नहीं थी,
और सच्चाई…
सबके सामने होते हुए भी सबकी आँखों से ओझल थी।
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🌺 अगर आप पहली बार कहानी पढ़ रहे हैं—
तो एपिसोड 1 और एपिसोड 2 ज़रूर पढ़ें,
तभी निधि की दुनिया और उसकी टूटती उम्मीदों को ठीक से महसूस कर पाएँगे।
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🌙 अगले एपिसोड (4) में पढ़िए—
👉 क्या सुधांशु का बदलता व्यवहार
👉 निधि की पहली रात की खड़ी हुई कड़वी सच्चाई
👉 और वो मोड़, जहाँ से उसकी ज़िंदगी दूसरी दिशा पकड़ लेती है…