बच्चों के लिए वे छोटी-छोटी बचत करते हैं। यहीं बचत आने वाले समय में बड़े काम आती है।धीरे-धीरे वे बड़े होने लगते हैं। नियत समय पर पढ़ाई व खेलकूद व छोटे-छोटे घर के कार्य में भी हाथ बंटाते हैं। अनुशासन के साथ कार्य करने से जीवन सही दिशा में व प्रगति पथ पर अग्रसर होता है।सही समय पर उठना, सुबह के कार्य से निवृत्त होना ,समय पर भोजन समय पर पढ़ाई और समय पर सोना इत्यादि कार्य से जीवन में सुकून रहता है।मेहनत का अपना महत्व होता है। बचपन से ही छोटे-छोटे कार्य निपटाने की मेहनत करना चाहिए।पढ़ाई व खेलकूद के साथ -साथ।
वे दोनों दसवीं व बारहवीं की परीक्षा देने वाले थे।सब बहुत उत्साहित थे।सुबह समय पर उठकर पढ़ने बैठ जाते थे और नियत समय पर पेपर देने चले जाते थे। जीवन रहता है तो जीवन में कुछ कठिनाइयां भी आती है उचित मार्गदर्शन में चलते जाना होता है। खुशियों के साथ मुसीबतों से भी सामना होता है जिसका साहस से सामना करना होता है। हिम्मत से काम लेना होता है निराश नहीं होना चाहिए और प्रतिदिन सुधार करते जाना चाहिए।कमियों को ठीक करते जाना चाहिए।
किशोरावस्था चल रही थी बच्चों की।बहुत ध्यान रखना होता है इन दिनों में।बुरी आदतों से दूर रहना होता है। बच्चों को उचित शिक्षा देनी होती है। जिससे वे सही पथ पर चल सके।इसी क्रम में बच्चों के प्रश्न पत्र भी हो जाते हैं।बेटा बारहवीं की परीक्षा देता है और बेटी दसवीं की परीक्षा देती है।बेटे का कामर्स विषय होता है और बेटी दसवीं के पश्चात विषय लेने को थी।वह कला संकाय लेने वाली थी।दोनों बच्चों का परिणाम घोषित हो जाता है दोनों के परिणाम अच्छे आते हैं।सब खुश होते हैं। धीरे-धीरे बेटा सीए की तैयारी करके उसमें चयनित हो जाता है।बेटी का भी रूचि अनुसार नृत्य में एम ए हो जाता है।उनके विवाह की तैयारियां होने लगती है जो बचत उन्होंने तब की थी वह अब काम आ रही थी।एक एक पैसा जो जोड़ कर रखा था वह बच्चों के विवाह में और शिक्षा में काम आ जाता है।बेटी का विवाह हो जाता है और वह ससुराल चली जाती है बेटे का विवाह होता है और बहू घर में आ जाती है। माता-पिता अनामिका और अनम अब धीरे-धीरे घर की जिम्मेदारी से मुक्त हो रहे थे।धीरे-धीरे वे दादा- दादी व नाना -नानी भी बन जाते हैं । धीरे-धीरे वे घर परिवार की जिम्मेदारी से मुक्त हो रहे थे।उनका ज्यादा समय भजन भक्ति में व्यतीत होता था। धीरे-धीरे वे तीर्थ यात्रा पर निकलने लगते हैं।माता-पिता सुकून महसूस करते हैं।कि जीवन को व्यवस्थित बीता पाएं। भारतीय जीवन जीने की एक पद्धति होती है। हिंदू धर्म में सोलह संस्कार होते हैं।जिनका निर्वाह करते हुए जीवन जीना चाहिए।प्राचीन समय में जीवन को सौ वर्षों में विभाजित किया गया था।ब्रहाचर्य , गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास इससे समाज में व धर्म में एक व्यवस्था होती थी।समय के साथ-साथ इसमें परिवर्तन होता गया।आज देखें तो इंसानों की आयु कम होती जा रही है और कुछ संस्कार भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं है।जिससे सामाजिक व्यवस्था को क्षति पहुंचती है व्यक्ति की तो होती ही है उनसे जुड़े लोग भी प्रभावित होते हैं। एक-दूसरे के सुख-दुख में सम्मिलित होते हुए जीवन पथ पर अग्रसर होना चाहिए। आत्मनिर्भर तो सभी है ।जीवन में यही सुकून है ,कि सही पथ पर आगे बढ़ते चलें।