Swayamvadhu - 62 in Hindi Fiction Stories by Sayant books and stories PDF | स्वयंवधू - 62

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स्वयंवधू - 62

62. कान्हा का त्याग और दुर्घटना

वह दिन वृषाली के लिए सबसे खुशी और दर्द से भरा दिन था। अचानक माँ बनना और अब उसे माँ बनाने वाले को त्यागना। उसे कल अपना अंश त्यागना होगा। पर यही उसे सुरक्षित रखने का एकमात्र तरीका था।
कमरे में दोंनो माँ-बेटे अकेले थे। वृषाली कहो या मीरा, इस वक्त एक माँ अपने बच्चे के साथ कुछ आखिरी पल बना रही थी। उसे हँसा रही थी, खिला रही थी, पुचकार रही थी, सँवार रही थी, उसपर अपना हर एक पल, हर एक क्षण का प्रेम लुटा रही थी। खेलते-खेलते थककर कान्हा उसकी गोद में ही सो गया।
आखिर में उसने आशा भरे, प्यार भरे स्वर में कहा, "अगर राहुल कभी गलती से भी मेरा ज़िक्र करे... तो मुझे उम्मीद है कि ये उसके लिए एक अच्छी याद होगी। मुझे माँ बनाने के लिए शुक्रिया कान्हा। मैं हमेशा तुमसे प्यार करूँगी मेरी छोटे से फरिश्ते।", उसने सोते हुए कान्हा के कान में फुसफुसाया।
उसके आँखो में पानी भर आया।
राहुल थका हुआ सा अंदर आया और बोला, "कल समीर आ रहा है।",
उसने जल्दी से अपनी आँखे पोंछ दी।
"तुम थके हुए लग रहे हो।", उसने चिंता में कहा,
"बस एक लंबा दिन था।", उसने सोने के लिए तैयार होने हेतु बाथरूम की ओर जाते हुए कहा,
(तैयारी में व्यस्त होंगे। मुझे भी वृषा को संदेश भेजना चाहिए।) सोच उसने कवच द्वारा पहले दिए गए फोन को निकाला और मैसेज किया, "कल बारिश होने वाली है चिड़िया (राहुल), चूज़ा (कान्हा) और घडिय़ाल (समीर) तीनों तैयार है।"
फिर उसने सिम कार्ड निकाला और मोबाइल खिड़की से बाहर सुनसान बगीचे में फेंक दिया।
राहुल बाहर आया और बिस्तर में चढ़ते हुए पूछा, "तुम्हारी गर्दन का दर्द कैसा है?",
"ठीक है। आप सो, मैं अभी बाथरूम जाकर आई।", कह सिम को अपनी मुठ्ठी में छिपाकर उठी,
"पानी गर्म है, उसी का इस्तेमाल करना।", उसने कान्हा को सोने के पहले संवारते हुए कहा,
"जी। गुड नाइट।", कह वो बाथरूम गयी।

नीचे, वृषा को जैसे ही संदेश मिला वह बगीचे में गया, मोबाइल फोन उठाया और अपने साथ ले गया।
बाथरूम में उसने सिम कार्ड को फ्लश कर दिया।

जब वह बाहर आई तो राहुल सो चुका था। वह फिर कान्हा के बगल उसने ध्यान से गले लगा आँखे बँद कर ली।
कुछ देर बाद बिस्तर की दाहिने तरफ तेज़ हलचल होने लगी। राहुल अपनी जगह में हिला। वृषाली के कान में उँगली की ताकि यह सुनिश्चित करे सके कि वह गहरी नींद में हो। मीरा नहीं हिली। एक चोर की तरह राहुल उठा और उसने कान्हा के लिए डायपर, बेबी फूड, खिलौने, दवाईयों से युक्त एक अलग बैग तैयार किया और उसे अलमारी के अंदर हैंडबैग में छिपा दिया। वो भी कल के लिए तैयार था। बिस्तर पर लेटे-लेटे उसने सब कुछ देखा। उसकी आँखें आँसुओं से भर गईं, हृदय अपराधबोध और दुःख से भर गया। राहुल ने भी उसकी ओर अपराधबोध से देखा, "माफ करना मीरा पर यह एक बाप की मज़बूरी है।",
दिल में उसने कहा, "समझती हूँ राहुल जन्म ना देने के बावजूद बहुत अच्छे से समझती हूँ। कहा कभी ना होगा पर आपके साथ जो भी वक्त मैंने बिताया, उसकी के कारण पागल नहीं हुई। दिल से आपका धन्यवाद।",
उसने कान्हा को कसकर गले लगाया और एक माँ के रूप में आखिरी बार सोने की कोशिश की यही उम्मीद में कि अगली सुबह कभी ना आए।
राहुल अगली सुबह के इंतज़ार में कान्हा के एक्के-दुक्के बालों को सहलाकर सोने गया और कान्हा, अपनी माता-पिता के छांव में बेसुध मुस्कान लिए सो रहा था।

सुबह उम्मीद से पहले आ गई।
राहुल तैयार था।
वह तैयार थी, फिर भी तैयार नहीं थी।
कान्हा को तैयार करना था।
भारी मन से वह उठी, कान्हा को खूब प्रेम से मालिश किया, नहलाया, उनके पूरे शरीर पर पाउडर लगाया, उनकी आँखों, गालों, पैर के तलवों, माथे पर काजल लगाया, उसने अपने बेटे को राजकुमार की तरह तैयार किया। दिशा उसकी मदद के लिए आई पर उसने उसे बाहर भेज दिया। वो आखिरी कुछ पल अपने बेटे के साथ अकेले रहने चाहती थी।
बिस्तर पर लेटा कान्हा, "मम्मा...मम्मा...", किलकारियाँ मार रहा था। वह सुबह से पूरे दिल से हँस रहा था यह ना जानते हुए कि उसकी यह माँ आज उसे छोड़कर जाने वाली थी।
राहुल अंदर आया।
"तुम सच में खाना नहीं चाहती? दवाईयों का क्या?", राहुल ने पूछा,
अपनी आवाज़ स्थिर कर, "एक बार दवा ना खाने से कोई मर नहीं जाता।"
राहुल लॉज का बिल देने नीचे गया।
कमरे में अकेले उसकी आँखों में आँसू आ गए लेकिन उसने अपने आँसू नियंत्रित कर लिए।
"पापियों से दूर अपना सर्वश्रेष्ठ जीवन जियो मेरे लाल... मुझसे दूर। मम्मा के लिए अच्छी और उज्ज्वल ज़िंदगी जीना मेरे बच्चे।", उसने उसे एक बार फिर कसकर गले लगा लिया।

'खट-खट'

उवह कान्हा को छोड़ना नहीं चाहती थी, लेकिन उठकर भारी कदमों के साथ दरवाज़ा खोला।
दरवाज़े पर राहुल और समीर थे।
अपने आँखों में आँसू लिए उसने अपने होठों को भींचा। वह गुस्से से रो पड़ी जिसे वह दिखा नहीं सकती थी। अधीर और ज़ंजीर भी वहाँ थे।
उसने ज़हर निगला, "मुझे माफ़ कर दो... तुम सही थे। मैं सिर्फ़ तुम्हारे साथ सुरक्षित रहूँगी। बस मुझे यहाँ से ले चलो समीर। मैंने पहले ही राहुल से विनती कर दी है। मुझे पुलिस में कोई शिकायत नहीं करनी, बस मुझे ले चलो समीर। मुझे अपने साथ ले जाओ।",
समीर जो वहाँ भावशून्य खड़ा था, उसने उसके सिर पर थपथपाया, "चलो चलते हैं।"
समीर के आदमियों ने सारा सामान लिया।
"यह हैंडबैग राहुल को दे दो। इसमें कान्हा के लिए खाना है।", राहुल ने बैग ले लिया।
समीर, राहुल, कान्हा, वृषाली जीवन द्वारा संचालित एक कार में थे। दूसरी कार में अधीर, जंजीर, दिशा और नीलम भाई पिटे हुए उनके पीछे थी।
समीर बिना बात किए आगे वाली पैसेंजर सीट पर बैठ गया, राहुल और वृषाली, पीछे खिड़की की तरफ बैठे थे। हमेशा की तरह वृषाली ने कान्हा को गोद में नहीं रखा था। इस बार कान्हा राहुल की गोद में था।
समीर की नज़रें उन पर और अपने फ़ोन पर टिकी थीं। वह लगातार अपने फ़ोन पर मैसेज कर रहा था।
दस मिनट के ड्राइव के बाद वे लोग लॉज से दूर थे और हाई-वे से भी लगभग चालीस मिनट के दूरी पर थे।

रास्ता सुनसान था। दूर-दूर तक एक गाड़ी नज़र में नहीं थी।
वृषाली को समझ आ गया कि किसी भी वक्त कुछ भी होने वाला था। उसने समीर की ओर देखा, वो अपने फोन में बिज़ी था। राहुल बाहर देख रहा था और कान्हा, राहुल की गोद में सुबह-सुबह नहाने की वजह से थककर सो रहा था। उसकी आँखो में दर्द और डर था। जीवन सामने देख गाड़ी चला रहा था। उसकी नज़रे सामने गयी। सामने से सफेद रंग की एसयूवी अनियंत्रित उनकी तरफ आ रही थी। उसने कार के पीछे वृषा को देखा।
उसने पीछे देखा— अधीर और ज़ंजीर की कार गायब थी।
स्पीड को देखकर उसे समझ आ गया कि क्या होने वाला था।
उसने बगल देखा– राहुल ने सीट बेल्ट नहीं पहना था। अनहोनी के डर से, "सीट बेल्ट अच्छे से पहनो राहुल, कान्हा हिल रहा है।", उसने धीरे से राहुल को कहकर समीर की ओर देखा।
समीर अपने फोन पर था।
राहुल ने प्रश्नचिन्ह भाव से उसे देख सीट बेल्ट पहनी और कान्हा को भी कसकर पकड़ा। उसका चित्त कही और ही था।
जीवन की भौं ऊपर हो गई।
उसने अपनी गति धीमे से बढ़ाई।
(वक्त आ गया।) जीवन और वृषाली ने सोचा।
जीवन का अर्थ था समीर बिजलानी को टपकना और वृषाली का अर्थ था– बिखरी रायते को समेटने का वक्त आ गया था।
उसने कान्हा की ओर देखा, (बाय, मम्मा के लिए ज़िंदा और स्वस्थ रहना।)
वृषा की कार पागल स्पीड से करीब आती जा रही थी और इस कार की गति भी बढ़ रही थी।

वृषाली ने उनकी सुरक्षा के लिए हाथ जोड़कर भगवान जी से प्रार्थना की। बस कुछ ही सेकंड में............. धम!! धाम!! धमाका!!

सफ़ेद एसयूवी बिजली की तेज़ी से आई और कार के कोने से टकराने के लिए मुड़ी, जिससे समीर की तरफ से जीवन का संतुलन बिगड़ जाए, लेकिन जीवन ने पहिया बाईं ओर मोड़ दिया और दुर्घटना का झटका पूरे समीर की तरफ लगा दिया।
दुर्घटना का प्रभाव वृषा की अपेक्षा से कहीं अधिक खतरनाक थी। वह लड़खड़ाते हुए चकनाचूर एसयूवी से बाहर निकला।
सब कुछ अस्त-व्यस्त था। दोनों कारें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं। हेडलाइट्स, बाहरी बॉडी, प्लास्टिक, स्टील, ग्लास सड़क पर फैल गए। कार के दरवाज़े और शीशे भी बुरी तरह चकनाचूर हो गए।
माफिया के कार में मौजूद सभी लोग पूरे थे, सिवाय समीर के, वह बुरी तरह डैशबोर्ड और कार की सीट के बीच पिस चुका था। डैशबोर्ड ने एयरबैग को चीर समीर को बुरी तरह से चिपक गया। समीर खून से नहाया हुआ था। वृषा समीर को इस तरह देखकर हैरान रह गया।
उसने इसकी उम्मीद नहीं की थी।

खौफ में वह तुरंत पीछे की सीट से बाहर भागा।
सबसे पहले वृषाली को देखा फिर राहुल के गोद में पड़े कान्हा को देखा। राहुल ने खुद को कवच बनाकर कान्हा को सुरक्षित रखा। उन्हें कम नुकसान हुआ था। अचानक हुई दुर्घटना से भयभीत कान्हा फूट-फूट कर रो रहा था जबकि वृषाली अचंभित थी। वह होश में थी पर जमी हुई। उसकी गर्दन की दाहिने ओर से काला खून निकल रहा था।
कवच के खुद के बाएं हाथ पर गंभीर चोट लगी थी। फिर भी उसने एक झटके में कार के अटके दरवाज़े को खींचकर उखाड़ कर फेंका और कान्हा को लेकर चिल्लाया, "वृषाली, बच्चे को लो। कान्हा रो रहा है।", जब उसने कान्हा की आवाज़ सुनी तो वह पीछे हटी और रोते हुए कान्हा को अपनी बाहों में ले लिया, "कोई बात नहीं मम्मा यहाँ हैं। हम्म...हम्म", उसने कान्हा के शरीर को केंद्रित हाथ से धीरे से छुआ। उसने तुरंत रोना बँद कर दिया और शांत हो गया।
"थोड़ा इंतज़ार करो पापा तुम्हें जल्द ही यहाँ से ले जाएँगे। हम्म!", वह फुसफुसाई।
कवच राहुल को जगाने की कोशिश कर रहा था लेकिन वह जवाब नहीं दे रहा था। वृषाली ने कान्हा को कवच को देकर राहुल की बगल में सरक कर पास में पड़े काँच से अपना अँगूठा काटा और अपना अंगूठा उसके मुँह में अंदर तक डाला, जिससे वह खून निगलने लगे।
महाशक्ति के रक्त में औषधीय गुण होती है जो मरने वाले को भी जीवित कर दे। सिवाय खुद के। बिना कवच के वो कभी ठीक नहीं हो सकती।
कुछ ही सेकंड में उसे होश आने लगा।
वृषाली ने कवच को आदेश दिया, "लेट जाइए, दिखाओ कि आप बेहोश हो और उसे जाने दो।", कवच तुरंत वृषाली को कान्हा दे सड़क पर लेट गया और मृत या बेहोश होने का नाटक करने लगा। वृषाली ने भी कान्हा को गोद में ले बेहोश होने का नाटक किया।
राहुल करहा कर उठा और अपनी सीट बेल्ट खोली।
कान्हा को देखा फिर मीरा को। कान्हा उसकी गोद से मीरा के पास कैसे गया? वो सोचा पर पहले दोंनो को देखा। दोंनो ठीक दिखे। फिर उसकी नज़र पूरे तबाही पर गयी।
भयानक एक्सिडेंट, लोग जख्मी, वृषा बिजलानी बेहोश या मृत, समीर बिजलानी अधमरा।
उसके लिए इससे अच्छा मौका क्या हो सकता था।
उसने किसी को फोन किया, वह गगन हो सकता जो होटल का कर्मचारी था।
पाँच मिनट के भीतर एक काली कार वैसे ही पागल गति से आई।
ड्राइवर ने काला मास्क और काली हुडी पहना था।
राहुल कान्हा को शांत देख हैरान था। झटके से कही कुछ हो तो नहीं गया वही सोच रहा था और मीरा की गर्दन को सिर से खून निकल रहा था। राहुल, सही-गलत, परिवार की सुरक्षा या घायलों की मदद के बीच फँस गया। परिवार या नैतिकता— इनके बीच वो उलझ गया।
उसे देख गाड़ी का चालक चिल्लाया, "पुराने तालाब के वहाँ इन्हीं की दूसरी गाड़ी क्षतिग्रस्त है। पुलिस कभी भी आ सकती है जल्दी करो!"
एक झटके में उसने अपना मन पक्का कर लिया। उसने तुरंत कान्हा और बैग लिया जो उसने कल पैक किया था और उस कार में चढ़कर वहाँ से भाग गया। जाने से पहले उसने वृषाली के कान में फुसफुसाया, "धन्यवाद मीरा। वृषा पर भरोसा रखना।"
कार उसी पागल गति से चली गयी।
वृषाली कहो या मीरा फिलहाल वो एक माँ थी जिसने कान्हा को जन्मा नहीं था, जिसने उसे पाला, बढ़ा नहीं किया, फिर भी कुछ ही हफ़्तों में वो उसकी माँ बन गयी और उसे बचाने के लिए मरने के लिए भी तैयार थी।
उसने रोकर नहीं बल्कि सख्त होकर उसकी सुरक्षित और स्वस्थ रहने की कामना की, "भगवान जी मेरे बच्चे की रक्षा करना और उसे उसकी असली माँ से मिला देना।", उसने अपने भावना को काबू कर प्रार्थना की।
कवच उसे लाचारी से देख रहा था।
कवच के लिए हर एक गुज़रते पल के साथ लड़ने का और डटे रहने का कारण मिल रहा था। वह उठकर समीर को देखने गया। कही वो ज़िंदा है कि नहीं। समीर की साँसे धीमी-धीमी चल रही थी। वो ज़िंदा था पर ज़्यादा वक्त के लिए नहीं।
वृषाली भी नीचे उतरी। नीचे उतरते ही उसे चप्पल में कुछ चिपचिपा लगा। उसकी नज़र ज़मीन पर गयी। गाड़ी से तेल रिस रहा था।
"वृषा गाड़ी से तेल रिस रहा है!", वो चिल्लाई।
कवच ने देखा। एक्सिडेंट के कारण कार से अचानक तेल रिसना शुरू हो गया था। आग कभी भी लग सकती थी। धमाका कभी भी हो सकता था।
वो चाहता तो था कि समीर को इसी तेल में डुबो-डुबोकर, तड़पा-तड़पाकर, तिल-तिलकर जलाकर दर्दनाक मौत दे।
कवच ने महाशक्ति का हाथ थामा और वहाँ से जाने लगा।
उसके हाथ में लाइटर थी। उसकी लौ काल लग रही थी।
ऐसा लग रहा था कि समीर की अंत निश्चित और उसके पापों का भी।

पर सवाल यही था क्या यही अंत है?
समीर की अनगिनत गुनाह और अत्याचार का हिसाब-किताब इतना साधारण?
ड्रग्स तस्कर, देह व्यापारी, भू-माफिया, दावा माफिया, राजनीतिक माफिया, कॉरपोरेट माफिया का अंत? इतना सादा? उन्हें कुछ ही अपराध इन्हें पता है, बाकी का हिसाब?