61. प्लानिंग 
उधर महाशक्ति ने कवच की गर्दन पर धारदार कैंची रखी थी, "वापस आ जाते नहीं तो मैं खुद सब अपने हाथों में ले लूँगी। और पता है फिर क्या होगा।", और इधर दो मर्द एक दूसरे पर रोमांटिक रूप से गिरे पड़े थे।
अहम! गला साफ करते हूए।
तो पिछले अध्याय में हमने पढ़ा और अपनी कल्पना का उपयोग करे हुए देखा कि राहुल ने होटल के कर्मचारी, गगन को सामान्य 'चलो बैठकर बात करते है' कहा था और वह राहुल के सामने अपनी शर्ट को आधा खोल घुटनों के बल डरते हुए बैठ गया।
गलतफहमी को समझते हुए राहुल उसे रोकने के लिए झपटा लेकिन सफ़ेद फर वाली कालीन पर पैर अटककर उसके ऊपर गिर पड़ा। अब आगे...
"आ-आउच...", दोनों आदमी एक दूसरे के ऊपर दर्द से कराह रहे थे,
"ऐसा नहीं है।", राहुल ने करहाते हुए कहा। गगन की आँखें चौड़ी हो गईं, "मेरा यह मतलब नहीं था। मुझे नहीं पता था कि कोड बदल गया है। मैं जानता हूँ कि तुम किस दर्द से गुज़र रहे हो।"
राहुल के नीचे लेटे गगन ने अचानक उसे गले लगा लिया। राहुल अचंभित रह गया। गगन रोने लगा, "मुझे इससे नफ़रत है। मुझे अपने शरीर बेचने से नफ़रत है।", गगन पागलों की तरह रो रहा था। राहुल हैरान था लेकिन घृणित नहीं। उसने गगन को गले लगा लिया और उसके दिल का सारा भार बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगा।
वो लगभग बीस मिनट तक रोया।
"सब ठीक है। अगर तुम मेरी मदद करोगे तो कोई भी तुम्हें अपना शरीर बेचने के लिए मज़बूर नहीं करेगा। अगर तुम मेरी मदद करोगे तो।"
राहुल खड़ा हो रहा था तभी गगन ने झटके से अविश्वास में उठने की कोशिश की और उसका सिर राहुल की ठोड़ी से टकराया और दोनों फिर से गिर पड़े।
राहुल ने दर्द से अपनी ठोड़ी को रगड़ते हुए गगन से पूछा, "क्या तुम बँद दिमाग के साथ काम करते हो?! आह! अचानक क्यों उठे?",
"सॉरी सर। पहली बार इस नर्क से निकलने का ऑफर मिला है पर मैं किसी का खून नहीं कर सकता चाहे आप जैसे दस मुशतंड़ो से मुझे पीटवा ले।",
वे दोनों ठीक से उठ खड़े हुए।
(यह लड़का भी उसके जैसा ही है। डरा हुआ, फिर भी खुद से भरा हुआ। उफ्फ....)
राहुल मुस्कुराया, "कुछ नहीं, बस फर्जी आई.डी के साथ तीन टिकट बुक करो। तुम, मैं और यह बच्चा।", कान्हा को दिखाकर कहा।
"वह मैम?", उसने पूछा, "वह अजीब घायल मैम और वह डरावना ठग? मेरा मतलब था आपकी पत्नी।",
" 'ठग'? 'पत्नी'? हा, हा, हा। क्या निम्न वर्णन है दोंनो का।", राहुल ने कड़वी हँसी हँसकर खुद से कहा।
"वह अपना रास्ता निकाल लेगी। यदि तुम बचना चाहते हैं तो जैसा मैं कहता हूँ वैसा करो।
वै--से इससे भी बुरी चीज़ें अभी आनी बाकी हैं।
अभी तक तुमने सिर्फ खुद को बेचा है, कल तुम्हें ज़िंदा रहने के लिए अपने जैसे को ढूँढना पड़ेगा। मज़बूर! बेसहारा! अगर नहीं कर सके तो... तुम्हारी कोई दोस्त है? पुरुष, स्त्री कोई भी?", राहुल बोलते-बोलते पूछा,
"ज-जी?", उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह नुकीली सौ पिन निगल रहा हो,
"क्या तुम्हें लगता है कि तुम इसे संभाल सकते हो? यदि हाँ, तो मैं कौन होता हूँ तुम्हें खुद को मुक्त करने से रोकने वाला। मैंने सोचा कि तुम अपने दोस्तों को टुकड़ों में काटकर कचरे में नहीं फेंकना चाहेंगे या अपने दोस्तों को जानवरों को नहीं खिलाना चाहोगे— या वो तुम्हारी गर्लफ्रेंड भी हो सकती है अभी नहीं तो कभी। तुम कहाँ जाना वाले हो? चुनाव तुम्हारा है।",
आज उसने सुनी सारी अफवाहें सच साबित हुई। गगन ने अपने हाथ कसकर भींच लिए मानो वह राहुल को मुक्का मारने की सोच रहा हो। फिर उसने अपने हाथ ढीले छोड़ दिए, "मैं तैयार हूँ। बस एक प्रश्न के बाद।",
"यही कि मुझे यह सब कैसे पता है?", वह बिस्तर पर बैठ गया और कान्हा के सिर पर हाथ फेरने लगा, "कैसे...", इतने सारे सवालों के बीच उसके मुंह से बस एक ही शब्द निकला।
राहुल मुस्कुराया, "तुम में मुझे अपनी बच्चन वाली परछाई दिखाई दे रही है। वही तड़प! वही बेसहारापन! और वही मजबूरी!"।
"मतलब?", उसने डरकर पूछा,
"मतलब, खून करना, लाशों को छोटे-छोटे बारीक टुकड़ो में काटना और उन्हें जंगली जानवरों को खिलाना या जलाकर, पकाकर ठिकाने लगाना। यह सब मैंने किया है।",
गगन के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी।
"तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा? मेरे पास सबूत है।",
उसने खुद का एक पुराना धुंधला वीडियो दिखाया जिसमें वह एक आदमी से खुशी-खुशी बात कर रहा था और दूसरे ही पल किशोर राहुल उस लड़के का सिर और पूरा शरीर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट रहा था। आगे और भी था पर गगन से सहा नहीं गया। वो उल्टी की आवाज़ निकाल सीधा बाथरूम की ओर भागा।
"लगता है मैंने ज़्यादा कर दिया।", वो अपने में हँसा।
यह वीडियो समीर द्वारा दिया गया था जब उसने वीडियो में उस लड़के को काम पर रखा था, यानी किशोर राहुल।
कान्हा को शोरगुल की आदत थी। वह इन सब प्रकरण में आराम से सो रहा था।
कुछ मिनट बाद गगन पसीने से लथपथ बाहर आया, शायद सोच रहा होगा कि बिना दर्द के कैसे मरूँ। राहुल ने उसे एक दुष्ट मुस्कान दी।
गगन के रोंगटे खड़े हो गए।
"क्या सिर्फ़ एक वीडियो ही आपको उल्टी करवाने के लिए काफ़ी है?" राहुल ने चेहरे पर तंस भरी मुस्कुराहट के साथ पूछा,
गगन चिढ़ गया, "क्या तुम इंसान भी हो?",
"हम्मम, इसलिए मैं तुम्हारी मदद माँग रहा हूँ गगन। मौत या खून?", राहुल ने सीरियस होकर पूछा,
"तीसरा चुनाव। हाँ!", गगन तैयार था।
राहुल ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, "स्मार्ट चॉइस! बस अपने आप पर विश्वास रखना। यदि आगे मुसीबत में फँसो तो पहले खुद को बचाना, फिर दूसरों को। यदि तुम सुरक्षित रहोगे तभी दूसरों को बचा सकोगे। शारीरिक और मानसिक, दोनों रूप से। समझे?",
गगन ने चुपचाप अपना चेहरा रूमाल से पोंछते हुए सिर हिलाया, "अब क्यों? मैं ही क्यों?",
राहुल ने बस अपना सिर हल्के से हिलाया, "बहुत देर से कदम उठ रहे है... मैं फिर से वही गलतियाँ नहीं दोहराना चाहता। मैं दुनिया नहीं बदल सकता, लेकिन मैं किसी की दुनिया बदल सकता हूँ और वह तुम हो।",
"लेकिन मैं ही क्यों?", उसने पहले से अधिक उत्सुकता से फिर पूछा,
"कोई कारण नहीं।", उसने उसे एक सैटेलाइट फोन दिया, "इसे अपने बिस्तर या अलमारी में नहीं, बल्कि किसी खुले स्थान पर फेंककर रखो, जहाँ तुम आमतौर पर इसके बारे में सोचते भी नहीं। ठीक? शुभ रात्रि। मुझे अब अपनी तथाकथित पत्नी और तुम्हारे आदरणीय माफिया दुःस्वप्न के पास जाना होगा।",
तीनों एक-एक करके कमरे से बाहर निकले।
जब कान्हा और राहुल दोनों को कमरे के अंदर ने किसी भी तरह की आवाज़ नहीं आई। किसी अनहोनी की आशंका से अंदर भागे।
वहाँ वृषाली अपने बाय हाथ में पहने रत्न को गुम आँखो से देखे जा रही थी।
"वृषा कहाँ है?", राहुल ने पूछा, उसकी साँसें तेज़ थीं।
"वह कुछ मिनट पहले ही चले गए। उन्होंने कहा कि वह एक बार में यह सब ठीक करने के लिए वापस आ रहे हैं। और उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें वास्तविकता का एहसास दिलाने के लिए धन्यवाद। वो आपके कृतज्ञ है।", वह मुस्कुराई।
कान्हा उसकी गोद में जाने के लिए उछल रहा था, "म! मा!",
"मैं चाहती हूँ कि आप और कान्हा कहीं ऐसे स्थान पर पहुँच जाएँ जहाँ समीर ना पहुँच सके और मैं वृषा की मदद कर सकूँ।", उसने कान्हा को गोद में लिया, उसे गर्मजोशी से अपनी बाहों में भर लिया और अपने कम्बल से ढक दिया, "क्या पापा ने तुम्हें बिना कम्बल के सोने के लिए मज़बूर किया? बहुत बुरी बात है। मम्मा के पास आओ।", वह राहुल को ताना मार रही थी,
"ओये! मैंने उसे खाना खिलाया और उसे अच्छी तरह से कम्बल ओढ़ाया।",
वह उदास आँखों से धीरे से मुस्कुराई और कान्हा को हल्का सहलाते, गुदगुदाते हुए अपना चेहरा कान्हा के पेट पर दबाकर कहा, "काश तुम और तुम्हारे पापा अपनी असली माँ को ढूँढ़कर कहीं सुरक्षित जगह गायब हो जाते जहाँ समीर की परछाई भी तुम तक ना पहुँच पाए।", कान्हा इन सबके अर्थ से अनजान अपनी माँ के गोद में बेखौफ और मधुरता से हँस रहा था।
राहुल ने उसके कंधे पर थपथपाया और कुछ कहने कि कोशिश की लेकिन उसका मुँह नहीं हिला पाया। वे दोनों चुपचाप रहे।
अगले दिन सब सामान्य था, मेहमानों और कर्मचारियों के बीच वही सामान्य बातचीत चल रही थी। लॉज के रेस्तरां व्यस्त थे, व्यवसायी छुट्टियों में अपने व्यापार पर चर्चा कर रहे थे, जोड़े रोमैंटिक होकर बगीचे में टहल रहे थे, कर्मचारी हमेशा की तरह मेहमानों को सर्व कर रहे थे, उनके अनुरोधों, आदेशों और इच्छाओं कि पूर्ति कर रहे थे। गगन हमेशा की तरह मेहमानों की सेवा कर रहा था और राहुल भी अपने कमरे में अपने तथाकथित परिवार की देखभाल में व्यस्त था।
सभी व्यस्त थे पर सभी की निगाहे कपाड़िया को ढूँढ़ रही थी।
जिज्ञासा और डर का मेल।
सुबह, सबसे पहले उन्होंने अधीर को फोन करके सारी बात बताई कि कैसे किसी ने उनके खाने में नींद की गोलियाँ मिला दी थीं और उस पर हमला करने कि कोशिश की थी, लेकिन एक अजनबी ने उसे बचा लिया। बात करते समय उसने अपनी आवाज़ डरी हुई रखी थी, "अगर राहुल ने मेरे लिए लॉज सिर पर नहीं उठते तो पता नहीं क्या होता।",
सामने से अधीर के बजाए समीर ने पूछा, "कौन थे वे लोग? कुछ याद है?",
वह उससे कहीं अधिक जिज्ञासू था जितना उसने सोचा था, जैसा कि वृषा ने कहा था।
कल रात जब राहुल भागने की योजना बना रहा था तब ये दोंनो....
"समीर को बहुत उत्सुकता होगी जब उसे पता चलेगा कि उसके क्षेत्र में तुम पर हमला हुआ है।", वृषा ने विश्वास के साथ कहा,
"लेकिन क्यों? उसे कभी परवाह ही नहीं रही।", उसने सवाल किया,
वृषा और वृषाली आमने-सामने बैठे थे।
"क्योंकि तुम उसकी हो। उसकी आँखें हमेशा तुमपर हई रही, तुम जानो या ना जानो। लेकिन इस तरह... उसके क्षेत्र में उसके शिकार पर हमला करना... यह उसे सीधी चुनौती लगेगी।", उसने सारी गणित कर कहा।
"तो, हम किसकी बलि देंगे?", उसने घबराते हुए पूछा,
"भोला तो नहीं होगा। धृति इमैजिनेशन का सबसे छोटा बेटा।", कवच ने मतलबी मुस्कान के साथ कहा,
"कौन? कद काठी?", वृषाली को ये सब ठीक नहीं लग रहा था,
"एक आदमी, बीस साल का है। उसका नाम ऋत्विक नीलम है। ड्रग्स और लड़कियों के नशे में धुत ना जाने कितने मासूमों को जिन्दगियों को ना-ना प्रकार से तबह कर दिया है। मझला बेटा नितेश नीलम अपने छोटे भाई की प्यास बुझाने आया है। बस इतना कहो कि तुम्हें यह धुंधला याद है, चील का टैटू।",
वृषा का मुँह उस वक्त गुस्से से काँप रहा था, यह सोचकर कि उसके अलावा कोई और वृषाली को छू रहा था।
"क्या यह काम करेगा?", उसने उसकी योजना के बारे में अनिश्चित होकर पूछा,
"मुझ पर विश्वास करो। मैं उसे खून से जानता हूँ। वह अपने सपने को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है।", उसने पूरे विश्वास के साथ कहा जिससे उसने उससे सवाल करना बँद कर दिया। "और एक बात। अपने प्रवास को एक दिन के लिए टाल दो। मुझे पड़ोसियों को भगाने के लिए कुछ युक्ति लगानी होगी। राहुल के साथ मुझे यह सुनिश्चित करना होगा कि कान्हा भी सुरक्षित रहें और वह बच्चा भी। मुझे लगता है कि मैंने उसे कुछ ज़्यादा ही डरा दिया है?", कवच ने थोड़ा शर्माकर कहा,
"आपने क्या किया?", वृषाली ने उत्सुकता से पूछा,
"कुछ नहीं... बस सामान्य से थोड़ा कठोर था।", उसने कड़वी हँसी के साथ कहा।
"आप दिखते तो थोड़े खड़ूस। बेचारे का कसूर नहीं।", वह हँसी।
वे अब एक दूसरे से अधिक सहजता से बात कर रहे थे। अब उसने आसानी से संवाद करना सीख लिया था।
अभी.....
मीरा बात करते हुए एक पल के लिए रुकी और काँपती आवाज़ में उसने जवाब दिया, "मैंने उसका चेहरा नहीं देखा समीर। पर, पर मुझे एक पंछी? चिड़िया? आ! मैंने एक चील का टैटू देखा।",  उसने अपने सिर पर पूरा ज़ोर डालकर फिर सिसकते हुए बेहद धीमी आवाज़ में बोली जो समीर को लगे कि उसने मन में बोला और उसने पकड़ लिया, "क्या तुम आ सकते हो?", फिर सामान्य सिसक के साथ, "समीर मुझे माफ़ कर दो। क्या तुम मुझे माफ़ कर सकते हो? मेरे ज़िद के कारण तुमने मुझे राहुल के साथ रहने की आज्ञा दी और मैं- मेरे कारण आपके पोते की भी जान... सिसक... सिसक...", फिर उसने रोते हुए, सिसकते हुए फोन रख दिया।
समीर गंभीर सोच में था और वहाँ वृषाली मस्त कान्हा के साथ खेल रही थी।
राहुल उसे घूरे जा रहा था।
"क्या?", वृषाली ने कान्हा के मसूड़े को हल्के हाथ से मालिश करते हुए पूछा,
"तुम समीर बिजलनी के साथ खेल रही हो।", राहुल सोफे पर बैठ उसकी हरकतों से हैरान और भयभीत होकर पूछा,
कान्हा ने अपने दाँतविहीन मुँह से उसके गालों को काट रहा था और खिलखिला रहा था, "खेल कौन रहा है? इतना फ़ालतू वक्त किसके पास है? मैं बस वैसा जीवन जी रही हूँ जैसा समीर चाहता है कि मैं जीऊँ। अब बच्चे के सामने गंभीर मत हो, उनके ऊपर गल प्रभाव पड़ता है। क्यों है ना कान्हा?",
वृषाली के चेहरे पर गंभीर घातक भाव था कोमलता लिए हुए थे जो उसने कभी उसके चेहरे पर नहीं देखा था और वह पहले से कहीं अधिक स्वस्थ और उज्ज्वल दिख रही थी।
(उसकी त्वचा भी पहले से मुलायम और चमकदार दिख रही है।)
खेलते-खेलते वह हिल गई।
"राहुल...राहुल! कान्हा, कान्हा के मुँह से खून निकल रहा है!", वह चिल्लाई,
राहुल झटके में सोफे से उठा, "क्या!?"
कमरे से शोरगुल की आवाज़ सुनकर दिशा अंदर आई। उसने देखा कि वृषाली और राहुल कान्हा के मसूड़ों की गहराई से जाँच कर रहे थे।
उनकी डर को देख कान्हा पागलों की तरह रो रहा था।
"तुम दोनों वहीं रुक जाओ।", वह अंदर घुस आई, "तुम दोंनो की वजह से कान्हा भी डरकर रो रहा है।",
"लेकिन दिशा... कान्हा मुँह से खून निकल रहा है!", उस समय कान्हा से ज़्यादा वृषाली रो रही थी,
दिशा ने गहरी साँस ली।
वह उनकी ओर देखते हुए उस समय को कोस रही थी जब उसने उनका साथ देने को चुना।
"उसके दाँत निकल रहे हैं। वह पूरी तरह से ठीक है। ठंडे पैसिफायर से उसे मदद मिलेगी।",
उन दोनों राहत की साँस ली।
वृषाली ने कान्हा को उठाया, उसे पुचकारते हुए गले लगाकर रो रही थी।
वह अभी भी रो रही थी।
"कब तक रोने की योजना बना रही हो?", राहुल ने व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा,
हास्यपूर्ण आँसुओं के साथ, "मैं रोना बँद नहीं कर सकती। मैं खुश भी हूँ और दुखी भी। मेरा बच्चा दर्द में है, लेकिन इससे पता चलता है कि वह अच्छे से बढ़ रहा है। वाआआह!"
(मैं उससे अलग कैसे रह सकती हूँ? मैं उसकी माँ नहीं हूँ फिर भी वह मेरा बच्चा है। मैं तुम्हारा अन्नप्राशन भी नहीं कर पाँऊगी .... लेकिन तुम्हारी भलाई के लिए तुम्हें जाना होगा। मैं तुम्हें बहुत याद करूँगी मेरी जान।)
उसने उसे प्यार से गले लगा लिया और उसे जाने देना नहीं चाहती थी।
दिशा उसकी अति प्रतिक्रिया से ऊब गई थी लेकिन राहुल ने उसे छोड़ दिया।
(यह तुम्हारा आखिरी कुछ क्षण है। जल्द ही वह अपनी असली माँ के पास होगा।)
वह कमरे से बाहर निकला, उसके हाथ में सैटेलाइट फोन था।