🌌 एपिसोड 47 — “दरभंगा की हवेली में लौटती रूहें”
(कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)
---
🌙 1. नीली सुबह और पुरानी हवेली
दरभंगा की हवेली फिर से ज़िंदा थी।
रात की नमी अब सुबह की हल्की ठंडक में बदल चुकी थी।
आँगन के बीच रखे पुराने दीये अब भी जल रहे थे —
मानो किसी ने रात भर पहरा दिया हो।
आर्या राठौर खिड़की के पास बैठी थी।
बारिश की बूँदें खिड़की के शीशे पर गिरकर
अंदर कमरे में नीली रोशनी का जाल बुन रही थीं।
उसने अपनी हथेली खोली —
वही नीली कलम अब भी वहाँ थी,
जिसकी निब से हल्की स्याही टपक रही थी।
“आज भी इसमें गर्मी है…”
आर्या ने खुद से कहा,
“या फिर किसी की साँस अब भी इसमें कैद है?”
कमरे के कोने से किसी ने बहुत धीमे स्वर में कहा —
> “हर इश्क़ का एक दूसरा जन्म होता है…”
आर्या झटके से पीछे मुड़ी —
कोई नहीं था, सिर्फ़ हवा का झोंका था।
लेकिन हवा के साथ वो खुशबू भी थी —
जिसे वो पहचानती थी,
वो अर्जुन की थी।
---
💫 2. हवेली की यादें
उसने दरवाज़े के बाहर कदम रखा।
हवेली की दीवारों पर उभर आए पुराने निशान
अब चमकने लगे थे।
दीवार पर एक चित्र बना था —
दो अधूरी रूहें,
जो हाथों में हाथ डाले हवा में घुल रही थीं।
आर्या के होंठ काँपे —
“ये तो वही चित्र है… जो रूहाना ने आख़िरी बार लिखा था।”
वो दीवार के पास गई।
चित्र के कोने में एक अक्षर उभरा —
‘A’ — अर्जुन का पहला अक्षर।
“तुम अब भी यहाँ हो?”
उसकी आवाज़ काँपी।
दीवार ने जवाब दिया —
> “जहाँ कलम है, वहाँ मैं हूँ।”
आर्या की आँखों से आँसू टपके,
और उसी पल दीवार के उस अक्षर से हल्की रोशनी निकली।
नीली — फिर सुनहरी — फिर पारदर्शी।
जैसे हवेली अब भी उनकी अधूरी कहानी को जिंदा रखे हुए हो।
---
🌙 3. एक अनजान मेहमान
दरवाज़े की घंटी बजी।
आर्या ने खिड़की से झाँका —
दरवाज़े पर एक अजनबी खड़ा था,
लंबा, शांत, गहरी आँखों वाला।
उसने बारिश से भीगा कोट उतारा और मुस्कराया।
“आप आर्या राठौर हैं?” उसने पूछा।
“हाँ, लेकिन आप कौन?”
“मैं अर्जुन मेहरा…”
वो नाम सुनते ही आर्या के हाथ से कलम गिर गई।
दिल की धड़कनें जैसे रुक गईं।
“अर्जुन…?” वो फुसफुसाई,
“तुम…?”
वो हल्का मुस्कराया,
“शायद तुम मुझे पहले से जानती हो,
क्योंकि मैं कई रातों से तुम्हारे सपनों में हूँ।”
आर्या पीछे हट गई।
“तुम ये कैसे जानते हो?”
अर्जुन ने बस इतना कहा —
“क्योंकि तुम्हारे सपनों को मैं ही लिख रहा हूँ।”
---
🔥 4. नीली स्याही का जागना
वो धीरे-धीरे कमरे में आया।
टेबल पर पड़ी नीली कलम को देखा और बोला,
“ये वही है न… जो कभी किसी और की थी?”
आर्या ने सिर झुकाया,
“हाँ, रूहाना की…”
अर्जुन ने कलम उठाई।
उसके हाथों से नीली लकीर निकली
और हवा में एक शब्द बना —
‘लौटना।’
“देखा?” अर्जुन बोला,
“इस कलम ने मुझे बुलाया है।
शायद अब वक़्त हमें फिर मिलाने आया है।”
आर्या ने धीमे स्वर में कहा,
“लेकिन पिछले जन्म की अधूरी रूहें लौटें तो वक़्त टूट जाता है…”
“तो टूटने दो,” अर्जुन बोला,
“कभी-कभी वक़्त को भी महसूस होना चाहिए कि इश्क़ उससे बड़ा है।”
---
🌌 5. हवेली की आत्मा का रहस्य
रात गहरी हो चुकी थी।
हवेली की छतों से पानी टपक रहा था।
कमरे के भीतर अब एक रहस्यमयी नमी थी —
जो सिर्फ़ रूहों की उपस्थिति में महसूस होती है।
आर्या ने दीपक जलाया,
और देखा — दीवार पर वही चित्र अब बदल चुका था।
अब उसमें दो परछाइयाँ थीं —
जो बिल्कुल उसकी और अर्जुन की तरह दिख रही थीं।
“ये तो…”
“हम हैं,” अर्जुन ने कहा।
“शायद वक़्त ने हमें फिर से कहानी का हिस्सा बना दिया है।”
अचानक कलम खुद ब खुद हवा में उठी।
नीली रोशनी उसके चारों ओर घूमने लगी।
कागज़ पर कुछ शब्द उभरे —
> “जब रूह दोबारा जन्म लेती है,
तो हवेली उसकी पहली साँस बन जाती है।”
आर्या ने काँपते हुए कहा,
“तो ये हवेली… हमारी साँसों की शुरुआत है?”
अर्जुन ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा,
“या शायद हमारा अतीत, जो अब वर्तमान बन रहा है।”
---
🌙 6. अधूरी यादों की वापसी
अचानक बिजली चली गई।
हवेली अंधेरे में डूब गई।
सिर्फ़ नीली स्याही की चमक बाकी थी।
आर्या ने महसूस किया —
जैसे उसके भीतर कुछ बदल रहा हो।
उसके ज़ेहन में पुराने दृश्य लौटने लगे —
वो रूहाना थी,
और सामने अर्जुन,
वो पल जब उसने कहा था — “अगर तुम शब्दों में हो, तो मैं कहानी में आ जाऊँगी।”
वो चीख उठी,
“अर्जुन! मैं सब याद कर रही हूँ… हर शब्द, हर धड़कन!”
अर्जुन ने उसकी हथेलियाँ थामीं,
“तो अब वक़्त पूरा हुआ।
अब हम सिर्फ़ कहानी नहीं,
खुद अपनी किस्मत लिखेंगे।”
कलम उनके बीच चमकने लगी।
नीली स्याही हवा में घूमी और शब्द बने —
> “इस बार वक़्त उनका नहीं रहेगा,
बल्कि वो वक़्त के लेखक होंगे।”
---
💫 7. नई रूह की कसम
सुबह होते-होते हवेली में एक नया प्रकाश भर गया।
आर्या और अर्जुन अब पहले जैसे नहीं थे।
उनकी आँखों में समय का सच उतर आया था।
आर्या ने कलम को अपनी हथेली में रखा,
और कहा,
“अब मैं नहीं लिखूँगी, जब तक ये कलम खुद न चाहे।”
अर्जुन मुस्कराया,
“और जब ये चाहेगी,
तो हम फिर एक नई कहानी शुरू करेंगे —
जहाँ रूह और वक़्त बराबर होंगे।”
हवेली की दीवारों ने इस वचन को सुना,
और उसी पल एक मधुर आवाज़ गूँजी —
> “अब कहानी सिर्फ़ लिखी नहीं जाएगी,
जी भी जाएगी…”
---
🌌 एपिसोड 47 हुक लाइन:
> “जब रूहें लौटती हैं, तो वक़्त को भी नया अर्थ मिल जाता है —
क्योंकि कुछ प्रेम कहानियाँ सिर्फ़ जीने के लिए नहीं,
लौटने के लिए लिखी जाती हैं।” 💙
---
क्या आप चाहेंगी कि एपिसोड 48 में
आर्या और अर्जुन की “नई कहानी” की शुरुआत दिखाई जाए —
जहाँ हवेली अब जीवित पात्र बन जाती है
और कलम खुद उन्हें भविष्य दिखाने लगती है?