Great Bell of Dhammazedi - 5 in Hindi Adventure Stories by Naina Khan books and stories PDF | Great Bell of Dhammazedi ध्वनि जो डूबी नहीं - 5

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Great Bell of Dhammazedi ध्वनि जो डूबी नहीं - 5

 

📖 अध्याय ११: अंतिम गोता

यांगून की सुबह कुछ अलग थी। आसमान में बादल थे, लेकिन हवा में एक अजीब सी स्थिरता थी—जैसे प्रकृति भी साँस रोककर किसी क्षण की प्रतीक्षा कर रही हो।

आरव ने घंटी को सतह तक लाने की योजना तैयार की थी। एक विशेष क्रेन, हाइड्रोलिक बैलून, और एक अनुभवी गोताखोर टीम तैयार थी। लेकिन इस बार, आरव ने तय किया कि वह खुद नीचे जाएगा—अंतिम बार।

माया ने उसे रोका, "तुम्हें नहीं जाना चाहिए। तुम पहले ही बहुत कुछ झेल चुके हो।"

आरव मुस्कराया। "यह सिर्फ़ एक घंटी नहीं है, माया। यह मेरे पिता की आत्मा है, मेरी पहचान है। अगर मैं अब पीछे हटा, तो मैं कभी खुद को माफ़ नहीं कर पाऊँगा।"

नदी की गहराई में उतरते हुए, आरव को हर पल घंटी की गूंज सुनाई दे रही थी। लेकिन इस बार वह डरावनी नहीं थी—वह आमंत्रण थी।

घंटी के पास पहुँचकर उसने बैलून बाँधे, संकेत दिया, और फिर एक क्षण के लिए आँखें बंद कीं।

> "क्या तुम तैयार हो, आरव सेन?"

"हाँ," उसने कहा। "मैं तैयार हूँ।"

घंटी धीरे-धीरे ऊपर उठने लगी। पानी में कंपन हुआ, जैसे सदियों की नींद टूट रही हो। सतह पर खड़े लोग चौंक गए—पानी में से एक विशाल, कांसे की घंटी उभर रही थी, धूप में चमकती हुई, जैसे समय को चीरकर लौटी हो।

लोगों की आँखों में आँसू थे। कुछ ने सिर झुका लिया, कुछ ने ताली बजाई। माया ने बस एक शब्द कहा— "अविस्मरणीय।"

आरव घंटी के पास खड़ा था। वह जानता था, उसने सिर्फ़ एक ख़ज़ाना नहीं खोजा—उसने एक आत्मा को मुक्त किया, और खुद को भी।


 

📖 अध्याय १२: नया अध्याय

घंटी अब सतह पर थी—300 टन कांसे की वह महान घंटी, जो सदियों तक नदी की गहराई में सोई रही थी। जैसे ही उसे किनारे लाया गया, यांगून में हलचल मच गई। पत्रकार, इतिहासकार, वैज्ञानिक, और साधु—हर कोई वहाँ था। लेकिन सबसे ज़्यादा ध्यान था उस व्यक्ति पर जिसने इसे खोजा था— आरव सेन ।

माया ने प्रेस को बताया, "यह सिर्फ़ एक खोज नहीं थी। यह एक आत्मा की यात्रा थी।"

घंटी को एक विशेष मंच पर रखा गया, और जैसे ही पहली बार उसे बजाया गया, उसकी गूंज पूरे शहर में फैल गई। लेकिन यह कोई सामान्य ध्वनि नहीं थी—यह एक कंपन था, जो लोगों के भीतर उतरता चला गया। कुछ ने कहा उन्होंने अपने अतीत को देखा, कुछ ने कहा उन्हें शांति मिली।

आरव ने एक भाषण दिया:
> "यह घंटी सिर्फ़ इतिहास नहीं है। यह वह ध्वनि है जो हमें खुद से जोड़ती है। यह हमें याद दिलाती है कि सच्ची खोज बाहर नहीं, भीतर होती है।"

बावर्ची, जो अब चुपचाप भीड़ में खड़ा था, मुस्कराया। उसने माया से कहा, "अब यह घंटी फिर से बोल रही है। और इस बार, दुनिया सुन रही है।"

आरव ने एक संग्रहालय की स्थापना की— "नाद संग्रह", जहाँ घंटी को रखा गया, और उसकी कहानी को दुनिया तक पहुँचाया गया। वहाँ एक दीवार पर लिखा था:

> "ध्वनि जो डूबी नहीं—क्योंकि वह आत्मा में गूंजती है।"

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📖 अध्याय १३: उत्तराधिकारी

घंटी अब संग्रहालय में थी, लेकिन उसकी गूंज थमी नहीं थी। हर दिन सैकड़ों लोग उसे देखने आते, लेकिन कुछ ही थे जो उसकी ध्वनि को महसूस कर पाते थे।

आरव अब एक लेखक और वक्ता बन चुका था। उसने अपनी यात्रा पर एक किताब लिखी— "नाद की पुकार" —जो दुनिया भर में चर्चित हुई। लेकिन उसके भीतर एक सवाल अब भी गूंजता था:
> "क्या घंटी फिर किसी को बुलाएगी?"

एक दिन, एक छोटी बच्ची— अनया, जो अपने माता-पिता के साथ संग्रहालय आई थी—घंटी के सामने खड़ी होकर बोली, "यह मुझसे बात कर रही है।"

लोग हँसे, लेकिन आरव चुप रहा। उसने देखा कि अनया घंटी के पास बैठ गई, आँखें बंद कीं, और कुछ बुदबुदाने लगी। उसकी माँ ने बताया कि वह रातों को घंटी के बारे में सपने देखती है—एक नदी, एक आवाज़, और एक पुकार।

आरव ने घंटी को देखा। उसकी सतह पर हल्की सी कंपन थी—जैसे वह फिर से जाग रही हो।

बावर्ची, जो अब वृद्ध हो चुका था, आरव से बोला, "घंटी की गूंज कभी नहीं रुकती। वह सिर्फ़ प्रतीक्षा करती है। और अब उसने फिर से किसी को चुना है।"

आरव मुस्कराया। "तो यह अंत नहीं, एक नई शुरुआत है।"

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🌟 समापन विचार (Epilogue):

> "कुछ ध्वनियाँ समय से परे होती हैं। वे आत्मा में गूंजती हैं, और जब कोई उन्हें सुनने को तैयार होता है—वे बोलती हैं। Great Bell of Dhammazedi अब सिर्फ़ एक घंटी नहीं, एक चेतना है। और उसकी कहानी... अभी भी लिखी जा रही है।"