Great Bell of Dhammazedi - 3 in Hindi Adventure Stories by Naina Khan books and stories PDF | Great Bell of Dhammazedi ध्वनि जो डूबी नहीं - 3

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Great Bell of Dhammazedi ध्वनि जो डूबी नहीं - 3

 

📖 अध्याय ५: श्रापित स्वर

रात गहराती जा रही थी। यांगून नदी की सतह शांत थी, लेकिन आरव के भीतर एक तूफ़ान चल रहा था। घंटी की छाया को देखने के बाद से उसकी सोच बदलने लगी थी—जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसके विचारों को छू रही हो।

माया ने उसे चेताया, "घंटी की आत्मा सिर्फ़ ध्वनि नहीं, एक चेतना है। वह परखती है, चुनती है, और कभी-कभी... श्राप देती है।"

आरव ने फिर से डायरी खोली। एक पन्ने पर उसके पिता ने लिखा था:
> "मैंने घंटी को सुना। वह मुझसे बोली। लेकिन उसकी आवाज़ में सिर्फ़ ज्ञान नहीं था—वह दर्द भी था।"

अगली सुबह, आरव अकेले नाव लेकर उस स्थान पर गया जहाँ घंटी की आकृति मिली थी। उसने खुद को पानी में उतारा, और घंटी के पास पहुँचते ही एक गूंज उसके भीतर गूंजने लगी।

> "तुम क्यों आए हो?"

आरव ने आँखें बंद कीं।
"मैं तुम्हारी कहानी को दुनिया तक पहुँचाना चाहता हूँ।"

> "कहानी?" घंटी की आवाज़ गहरी थी। "मैं कोई वस्तु नहीं। मैं वह हूँ जो समय से परे है। मैं वह हूँ जिसे लोग भूल गए, लेकिन जिसने उन्हें कभी छोड़ा नहीं।"

आरव ने पूछा, "क्या तुम श्रापित हो?"

> "नहीं। मैं श्राप नहीं, परीक्षा हूँ। जो मुझे पाने की चाह रखता है, उसे खुद को खोना पड़ता है।"

अचानक पानी में हलचल हुई। आरव को एक दृश्य दिखा—1608 का यांगून, पुर्तगाली लुटेरे कैप्टन डि सिल्वा घंटी को चुराने की कोशिश कर रहा था। लेकिन जैसे ही वह घंटी को छूता है, उसकी आँखें बदल जाती हैं। वह पागल हो जाता है, और घंटी नदी में गिर जाती है।

घंटी की आवाज़ फिर गूंजी:
> "मैंने उसे नहीं गिराया। उसने खुद को गिरा दिया।"

आरव ऊपर आया, काँपता हुआ, लेकिन उसकी आँखों में अब डर नहीं था—बल्कि एक समझ थी।
घंटी सिर्फ़ इतिहास नहीं थी। वह एक जीवित चेतना थी, जो सही उत्तराधिकारी की प्रतीक्षा कर रही थी।

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📖 अध्याय ६: बावर्ची और भविष्यवक्ता

यांगून की एक पुरानी गली में, माया आरव को एक व्यक्ति से मिलवाने ले जाती है—एक साधु जिसे लोग बावर्ची कहते हैं। नाम अजीब है, लेकिन उसकी आँखों में एक गहराई है जो आरव को तुरंत खींच लेती है।

बावर्ची एक छोटी सी झोपड़ी में रहता है, जहाँ दीवारों पर घंटियों की आकृतियाँ बनी हैं। वह आरव को देखता है और बिना परिचय के कहता है:
> "तुमने उसे छू लिया है। अब वह तुम्हें छोड़ेगी नहीं।"

आरव चौंकता है। "आपको कैसे पता?"

बावर्ची मुस्कराता है। "घंटी सिर्फ़ धातु नहीं है। वह एक जीवित चेतना है। वह समय से परे है। वह उन आत्माओं को चुनती है जो खुद को खोने को तैयार होती हैं।"

माया पूछती है, "क्या यह श्राप है?"

बावर्ची गंभीर हो जाता है। "नहीं। यह एक परीक्षा है। लेकिन जो असत्य लेकर आता है, उसके लिए यह श्राप बन जाती है।"

वह एक पुरानी पांडुलिपि निकालता है, जिसमें लिखा है:
> "ध्वनि वह है जो आत्मा को जगाती है। घंटी वह है जो आत्मा को परखती है।"

आरव को समझ आता है कि घंटी की खोज सिर्फ़ ऐतिहासिक नहीं, आध्यात्मिक भी है। उसे न सिर्फ़ घंटी को खोज निकालना है, बल्कि खुद को भी।

बावर्ची उसे एक आख़िरी चेतावनी देता है:
> "जब तुम अगली बार घंटी के पास जाओ, वह तुमसे एक सवाल पूछेगी। उसका उत्तर तुम्हारे भीतर होगा, लेकिन अगर तुम झूठ बोलोगे... तुम खो जाओगे।"

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