मैं जोधपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा था। वहां में हाई कोर्ट रोड पर मुरलीधर जोशी भवन में एक कमरा किराए पर लेकर रहता था।यह बात 1969 की है।उस जगह से यूनिवर्सिटी का रास्ता पैदल ही था।पपपिता के देहांत के बाद मैं फिर जोधपुर नही गया।एक सिपाही गया था जो कमरा खाली करके आया और वहाँ से मेरा सामान लेकर आया।
मेरी ट्रेनिंग ढाई महीने की थी जो दस अप्रैल1970 से शुरू हुई। मैजब आबूरोड से चला तब मुझे आर पी एफ स्टाफ ने ट्रेन में बैठाया।वह ट्रेन मारवाड़ मुझे छोड़नी थी।मारवाड़ जंक्शन पर आर पी एफ के एक सैनिक ने मुझे उदयपुर जाने वालीT ट्रेन में बैठाया।यह काम्बली घाट वाला रेल खण्ड वाक्यई में अच्छी इंजिनयरिंग की मिसाल है। पहाड़ियों में रेल उस समय यह मीटर गेज थी।और इतना घुमाव की इंजन और गार्ड एक जगह आमने सामने होते थे।और मै रात को उदयपुर पहुंचा।एक आर पी एफ के सैनिक ने मुझे उतारकर रात को वेटिंग रूम में ठहराया।उन दिनों रात में सवारी मिलना मुश्किल था।उस समय तांगे चलते थे।सुबह मुझे तांगे से ट्रेनिंग सेंटर भेजा।वहा पर मौजूद आर पी एफ स्टाफ ने वहाँ की प्रक्रिया पूरी कराई।वहा पर होस्टल के 6 ब्लॉक थे। हम 5 लड़को को एक रूम मिला था।
उन दिनों उदयपुर को बसे ज्यादा समय नही हुआ था या यों कहें शहर का निर्माण हो रहा था।
उदयपुर ट्रेनिंग सेंटर में ही इंस्ट्रक्टर और कुछ रेल स्टाफ के भी क्वार्टर थे।
मेरे पिताजी ने धर्म बहन बनाई थी।अपने देहांत से पहले उनके पति श्री एच एल चौधरी का ट्रांसफर आबूरोड से उदयपुर हो गया था।मेरी मुलाकात उनसे आबूरोड।में नही हुई क्योंकि मैं जोधपुर में रहता था।पहली बार तब मिले जब दोनों पिता के देहांत के बाद आये।पर उनके दोनों बेटी और बेटे से नही।
मैने ट्रेनिंग में आने और अपने पोस्टिंग की सूचना उन्हें दे दी थी।मेरे फूफाजी उदयपुर मे हेल्थ इंस्पेक्टर थे।
और मै शाम को उनके क्वाटर का पता करके गया।उस समय बुआजी औऱ फूफाजी घर पर नही थे।दोनों बहनें गुड़िया और सीमा थी।मेरे पहुचने पर गुड़िया ने पूछा,
किससे मिलेना है?
"आपकी मम्मी से
और वह दोनों बहनें मेरी बातों से मुझे पहचान गयी और बोली,,आप भैया है
गुड़िया यानी प्रवीना मेरे से उम्र में करीब तीन साल छोटी थी और फिर वे मुझसे पहली बार मिलकर ही मुझसे घुल मिल गयी।
फिर बुआजी भी आ गई और फूफाजी भी
ट्रेनिंग मे हमे सुबह जल्दी उठना पड़ता।सुबह ग्राउंड में पीटी के लिये जाना पड़ता।और वहां से आने के बाद हम लोग कैंटीन में जाते जहाँ हमे चाय व नाश्ता मिलता। और आठ बजे से क्लास शुरू होती।जो दोपहर में 12 बजे तक चलती थी। 12 से डेढ़ बजे तक लंच ब्रेक रहता।इस समय मे कैंटीन में खाना खाने क़े लिए जाना पड़ता।कुछ समय हमें आराम करने को भी मिल जाता।फिर डेढ़ बजे से फिर क्लास शुरू हो जाती जो शाम चार बजे तक चलती।
चार से पांच के बीच टी ब्रेक होता।इस समय हम कैंटीन जाते और हमे चाय और नाश्ता मिलता।फिर शाम को 5 बजे ग्राउंड में जाना पड़ता।इस समय खेल होते थे।यह छह बजे तक रहता।
उसके बाद मे फूफाजी के क्वाटर पर चला जाता।और रात का खाना अक्सर वहीं खाता।