Ganga Nirmali Karan - 1 in Hindi Spiritual Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | गंगा निर्मली करण (कारण और निवारण ) भाग - 1

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गंगा निर्मली करण (कारण और निवारण ) भाग - 1

आर्यावर्त के भारतीय उप महाद्वीप में सनातन बहुसंख्यक मतावलम्बीय है सनातन धर्म में सृष्टि में शायद कोई ऐसा हो जिसको नहीं पूजा जाता हो ऐसा इसलिए भी है कि सनातन मे नदी झरना झील सागर अर्थात जल श्रोत जो जीवन के प्रमुख  पंच महाभूतों तत्वों में महत्वपूर्ण जल श्रोत है बृक्ष ऑक्सीजन छोड़ते है एवं वायु को स्वच्छ करते है जिससे प्राणियों को सांस चलती है वायु प्रमुख पंच महाभूतों में दूसरा प्रमुख तत्व है सनातन में बृक्षों के विधि विधान पूजन के तीज त्योहार एवं विधि विधान है!प्राणियों में लगभग सभी जीव जीवन जानवरो के वंदन पूजन का विधान है!गाय, बैल, हाथी, सांप, शेर, उल्लू, हँस, कुत्ता, गधा, भैसा, गरुण, चूहा, मोर, हँस, आदि अनादि आदि अनंत सनातन सत्य में पूज्जनीय है सनातन में लगभग सभी जीव पशु पक्षीयो को किसी न किसी देवता के वाहन के रूप निरुपित किया गया है और उन्हें उसी देवता के सापेक्ष पूजा भी जाता है!बहुत से जीव कि काया में सनातन में ब्रह्माड के नियंता पर ब्रह्म ने पृथ्वी पर युग कल्याण के लिए काया का वरण किया है जैसे मत्स्य, बाराह,(सूअर ), कच्छप, नरसिंह अर्थात स्पष्ट है कि सनातन में नारायण के अवतरो कि अवधारणा में प्रथम तीन प्रकृति के अंतर्मन कि अवधारणा एवं अस्तित्व को प्रमाणित करते है चौथा अवतार प्रकृति प्राणी का सयुंक्त है पांचवा अवतार मानव रूप में वामन का वर्णन है अर्थात सनातन के सिद्धांत मान्यताओं के अनुसार ब्रह्माड कि परम् सत्ता पर ब्रह्म ने पहले प्राणी के सदभावना सम्बन्धो को स्वंय धारण किया एवं उसके महत्व को परिभाषित किया सबसे अंत में मानव का प्रदुर्भाव सृष्टि में सृष्टि कि रक्षा संवर्धन संरक्षण संरक्षक के रूप में हुआ!प्राणी प्राण का सृजन जल से ही है इसे विज्ञान भी इनालीड़ा से मानता है जिसकी उत्पत्ति जलीय काई से हुई जिसके धीरे धीरे विकास कायन्तरण से उभयचर एवं स्तनधारी आदि प्राणियों के बिभिन्न वर्गो का सृस्टिगत अभ्युदय मना जाता हैसभी दर्शन धर्मों का भी प्राणी प्राण कि उत्पत्ति का श्रोत जल ही मानते है सनातन में नारायण का एक अर्थ जल भी है महाप्रलय के समय मत्स्य रूप में जलीय जीव के रूप में नारायण अवतरित हुए एवं सृष्टि को संरक्षित किया[21/08, 18:44] nandlalmanitripathi: काया के प्रमुख पंच महाभुत तत्वों में जल सबसे अधिक महत्व पूर्ण है आहार बिना जीवन संभावित है लेकिन जल बिहीन असंभव है सनातन मता व्लम्बियो कि बहूलता के आर्यब्रत भारत में सनातन ही सामाजिक संस्कृति संस्कार का आधार सिद्धांत है जिसमे प्राणी प्राण एवं परमेश्वर के त्रिगुनात्मक समन्वय को ही स्वीकार किया गया है जिसमे प्रत्येक जीव का महत्व एवं व्यख्या वंदन है गोवर्धन पहाड़ भी वंदनीय है अर्थात सभी को महत्व देता है सनातन एवं आदर सम्मान करता उसे पूजता है वास्तव में सभी जीव, जंन्तु,नदी,झरना, पहाड़  आदि का सृष्टि कि दृष्टि में महत्व है एवं महत्वपूर्ण है यही वर्तमान विज्ञान का वैज्ञानिक शोध भी सत्य है!भारत में नदियों को माँ के स्वरूप में निरुपित किया गया है जैसे जननी जन्म भूमिच स्वर्ग दपी गरीयसी के अर्थात जन्म भूमि को माँ का दर्जा प्राप्त है तो नदियों को भी माँ का ही दर्जा प्राप्त है भारत में गंगा, यमुना, सरजू, कृष्णा कावेरी, गोदावरी, नर्मदा, ताप्ती, नारायणी, कुल 200 से अधिक नदिया है जिन्हे चार समूहों में वर्गीकरण किया गया है -1- हिमालायी नदियां --जो नदिया हिमालय से निकलती है एवं पूरे वर्ष बहती है जैसे गंगा, यमुना, सिंधु, ब्राह्मपुत्र, सतलज आदि!!2-प्रायःद्वीप नदिया --जो नदियां प्रायःद्वीप पाठर से निकलती है और मौसमी होती है वर्षात में इनमे अधिक जल बहाव एवं गर्मियों में लगभग सुख जाती है इसमें गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा, ताप्ती एवं महा नदी जैसी नदिया सम्मिलित है!!3- तटीय नदिया - ऐ नदिया पश्चिमी एवं पूर्वी तटों पर बहती है और छोटी होती है इनमे शरावती, पेरियार,और कावेरी जैसी नदिया शामिल है!4- अंतरदेशिय नदियां --इस प्रकार कि नदिया किसी नदी या सागर में नहीं मिलती ऐ किसी झील या मैदान में ही समा जाती है इसमें लूनी एवं घघर जैसी नदिया सम्मिलित है! गंगा --- प्रमुख हिमालयी नदी है जिसका उद्घगम देवभूमि उत्तराखंड के गंगोत्री से है गंगोत्री सनातन के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थानों में प्रमुख है!गंगा कि कुल लम्बाई एवं किनारे के प्रमुख शहर ---गंगा उत्तराखंड खंड के उत्तर काशी जिले मे लगभग 7010 मीटर ऊँचाई पर हिमालय गंगोत्री गलेशीयर से भगीरथी के रूप में निकलती है और भागीरथी हुगली के मुख्य मार्ग से होकर बंगाल कि खाड़ी में गिरने तक कुल 2525 किलोमीटर कि यत्रा पूर्ण करती है!गंगा किनारे प्रमुख शहर --गंगा किनारे ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, इलहाबाद,वाराणसी मिर्ज़ापुर, गाज़ीपुर, बलिया, पटना,भागलपुर, बहराम पुर साथ ही साथ झारखण्ड के साहब गंज को स्पर्श करती कोलकता से सागर मे 150, किलोमीटर आगे सागर में बिलिंन हो जाती है!गंगा उदगम कि पौराणिक मान्यता -- सूर्यवंशी राजा सगर ने  राजसुय यज्ञ का संकल्प लिया और राजसुय यज्ञ का घोड़ा छोड़ा गया जिसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया सगर के साठ हज़ार पुत्र घोड़े को खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे और देखा कि अश्वमेघ का घोड़ा वहाँ बधा है तब उन्होंने ध्यान मग्न कपिल मुनि का ध्यान तोड़ने के लिए उन्हें ललकरा सगर पुत्रो के बहुत कोशिश के बाद कपिल मुनि का ध्यान टुटा उन्होंने क्रोध से ज्यो ही सगर पुत्रो को देखा तत्काल वे जलकर भस्म हो गए राजा सगर के बहुत अनुनय विनय करने के बाद कपिल मुनि का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने सगर पुत्रो के मोक्ष के लिए गंगा का पृथ्वी पर आना अनिवार्य बताया जिसके बाद सगर कि पीढ़ी के जाने कितने वंशजो ने गंगा को पृथ्वी पर लाने हेतु तपस्या किया किन्तु किसी को सफलता नहीं मिली भगीरथ द्वारा ब्रह्मा जी कि बहुत कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया गया किन्तु गंगा के प्रबल वेग को रोकने कि क्षमता पृथ्वी पर किसी के पास नहीं थी अतः फिर आदिदेव महादेव कि तपस्या कर महाराज भगीरथ ने उन्हें प्रसन्न कर गंगा के वेग को रोकने कि प्रार्थना कि जिसे स्वीकार करते हुए महादेव ने गंगा को अपनी जटाओ में धारण किया और वेग के नियत्रित होने के बाद गंगा को पृथ्वी पर जाने कि अनुमति प्रदान किया गंगा के पृथ्वी अवतरण के साथ सगर पुत्रो को कपिल मुनि के श्राप से मुक्ति मील गई और उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ!भारत के सनातन समाज में गंगा को माँ का स्थान तो प्राप्त है ही साथ ही साथ पतित पावनी मोक्ष दायनी का उच्च स्थान प्राप्त है गंगा के सानिध्य में सनातन में वर्णित चार कुम्भ में दो प्रयाग एवं हरिद्वार में आयोजित होते है गंगा के पावन तट पर ऋषिकेश, हरिद्वार, प्रयाग, वाराणसी, मिर्ज़ापुर, बलिया, गाज़ीपुर छोटे बड़े धार्मिक ऐतिहासिक महत्व के महत्वपूर्ण शहर माँ गंगा का परम् प्रताप है तो  साथ ही साथ कानपुर, पटना, कोलकाता, बहरामपुर, आदि शहर भरतीय आध्यात्मिक धार्मिक ऐतिहासिक राजनीतक महत्व के साथ साथ अद्योगिक एवं आधुनिक भारत के विकास कि धुरी के रूप में माँ गंगा का अभिमान है!भारत में गंगा को जीवन रेखा के रूप में प्रमाणिकता प्राप्त है!गंगा भरतीय जनमानस कि आत्मा अस्तित्व से जुडी है पूजा पाठ आराधना में गंगा जल का महत्व एवं जीवन के अंतिम समय में भी गंगा जल मुँह में डाला जाता है साथ ही साथ मृत्यु के बाद भी अस्थिया हरिद्वार प्रयाग एवं वाराणसी विसर्जित कि जाती है!प्राणी को परमात्मा का सानिध्य देने वाली अर्थात मोक्ष दायनी गंगा अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है जिसका कारण भी वहीं तत्व है जिन्हे माँ गंगा मोक्ष दायनी  पतित पावनी लगती है उनके ही गंदगी से गंगा का आंचल मैला एवं दुर्गन्ध दे रहा है जिस आत्मा ईश्वर अस्तित्व कि आस्था है गंगा उन्ही के कारण प्रदूषित एवं मैली हो रही है!गंगा कि सौगंध और राम तेरी गंगा मैली राजकपूर ने वर्ष 1985 में राम तेरी गंगा मैली वैसे तो अपने बेटे को फ़िल्म उद्योग में स्थापित करने के उद्देश्य से बनाई थी लेकिन फ़िल्म कि थीम वास्तव में वर्तमान समस्याओं के शुभारम्भ के संकेत है राम तेरी गंगा मैली पश्चिम बंगाल का नवयुवक अपने कॉलेज टूर में गंगोत्री जाता है उद्देश्य गंगा जल का अध्ययन करना और उसे एक लड़की से प्रेम हो जाता है और वह माँ बनने वाली होती है नवयुवक कलकत्ता लौट जाता है लड़की कुछ दिन इंतज़ार के बाद उसे खोजने निकल पड़ती है ऋषिकेश तक वह निश्चित अविरल निर्मल चली आती है किन्तु हरिद्वार पहुंचते उसे अपनी लाज बचाने का सघर्ष शुरू होता है जो वाराणसी होते हुए कोलकाता तक चलता है ज़ब तक वह अपने प्रेम के सागर से नहीं मील जाती!इसी प्रकार दलित समाज कि उपेक्षा अपमान ग़रीब ग़रीबी अभिशाप के दंश से त्रस्त नायक सामाजिक समस्याओ को जड़ से समाप्त करने के लिए गंगा कि सौगंध लेकर निकल पड़ता है!दोनों फिल्मे,1985-, 1990 के मध्य कि है जो गंगा के महत्व और  भावी समस्याओ को इंगित करती है राम तेरी गंगा मैली में गंगा ऋषिकेश के बाद मैदानी क्षेत्र में प्रदूषित होने लगती है ज्यो ज्यो मैदानी क्षेत्रो में आगे बढ़ती है उसका प्रदूषित स्वरूप खतनाक होता जाता है इसी प्रकार गंगा कि सौगंध में गंगा कि शपथ लेकर समाज परिवर्तन का संकल्प है तो  बामपंथ से प्रभावित शसत्र क्रांति का आवाहन है किन्तु यहाँ गंगा सिर्फ संकल्प कि दृष्टि है स्पष्ट है कि गंगा में प्रदूषण कि शुरुआत अस्सी के दशक में हो चुकी थी गंगा प्रदूषण के कारण ---नदियों के प्रदूषण के कारण बहुत गंभीर है जिनका सरोकार धर्म समाज राजनीति एवं विकास के साथ साथ पर्यावरण से भी है भारत कि नदियों में गंगा प्रमुख नदी है जिसका भारतीय समाज में धार्मिक एवं आध्यात्मिक बहुत महत्व है दाह से लेकर अस्तियों के विसर्जन तक गंगा का महत्वपूर्ण स्थान है शव दाह के साथ श्मशान से अध जले शव एवं हड्डीया गंगा में ही प्रवाहित होते है इसके अतिरिक्त बहुत से मृत प्राणियों के शव एवं मनुष्य में सर्प दंश एवं बच्चो का जल प्रवाह  बहुत छोटे कारण है प्रमुख कारण है औद्योगिक कचरा एवं सामाजिक गंदगी जो गंगा में गिरते है अद्योगिक कचरा ---गंगा नदी के किनारे प्रमुख अद्योगिक नगर कानपुर को एक उदाहरण के रूप मे यदि देखा जाए तो कानपुर टेनरी उद्योग का केंद्र था जार्ज मऊ से तेनरी उद्योग का उत्सुर्जित कचरा के साथ साथ सामाजिक गंदगी का गंगा में निरंतर गिरना गंगा जल को प्रदूषित कर विषैला बनता है जिसका प्रभाव कानपुर ही नहीं वल्की आस पास के तटीय शहरों में स्पष्ट दीखता हैबढ़ती जनसंख्या --- बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्सार्जित कचरे एवं ट्रनेज प्रबंधन कि सुव्यवस्थित प्रमाणिक एवं विश्वसनीय व्यवस्था न होने के कारण गंगा में प्रदूषण बढ़ा है!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!