एपिसोड 38 — “रूहों का पुनर्जन्म”
(कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)
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🌙 1. नीले धुंध की वापसी
दरभंगा की हवेली में सुबह के बाद फिर से एक अजीब-सी धुंध उतर आई थी।
नीली, ठंडी और सिहरन भरी — जैसे किसी अधूरे वादे की परछाईं लौट आई हो।
रूहाना बालकनी पर खड़ी थी, उसकी आँखों में अब सुकून नहीं था, बल्कि एक बेचैनी थी।
“अर्जुन,” उसने धीरे से कहा, “क्या तुम्हें लगता है… हमारी कहानी अब पूरी हो गई है?”
अर्जुन ने उसकी ओर देखा, “कहानी कभी पूरी नहीं होती, रूहाना।
हर बार जब रूह इश्क़ में साँस लेती है, कोई नया जन्म शुरू होता है।”
हवा में नीले पराग तैरने लगे — और हवेली की दीवारों पर पुरानी लकीरें फिर उभर आईं।
दीवार पर लिखा था —
> “रूहें लौटती नहीं, वो याद बनकर ज़िंदा रहती हैं।”
रूहाना ने धीरे से दीवार छुई —
और उसकी उंगलियों से रोशनी की लहर निकली।
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🌘 2. दरभंगा का तालाब
दोनों हवेली से निकलकर पुराने तालाब की ओर बढ़े।
वो तालाब जहाँ पहले नीली लौ दिखाई दी थी।
आज उसका पानी बिल्कुल स्थिर था —
जैसे वो किसी रहस्य को अपने भीतर छुपाए बैठा हो।
अर्जुन ने कहा,
“याद है, रूहान और रुमी ने भी इसी पानी में अपना वादा छोड़ा था…”
रूहाना ने आँखे मूँद लीं,
और तालाब की सतह पर अपना हाथ रखा।
अचानक पानी के नीचे से एक नीला गोला उभरा —
जिसमें वही दो नाम चमक रहे थे — रूहान – रुमी।
रूहाना की साँसें तेज़ हो गईं,
“देखो अर्जुन, ये वही ऊर्जा है जो हमें जोड़ती है।”
अर्जुन ने गोले को हाथों में लिया,
उस पल आसमान में नीली बिजली कौंधी,
और उनके चारों ओर रूहों की परछाईं घूमने लगी।
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🌕 3. ब्रह्मांड की प्रतिध्वनि
वो पल ऐसा था जैसे समय थम गया हो।
हर चीज़ — हवा, आसमान, और धरती — बस एक धुन पर सांस ले रहे थे।
रूहाना की आवाज़ काँपी,
“क्या ये वही है जिसे रूहों का मिलन कहा जाता है?”
अर्जुन मुस्कराया,
“नहीं… ये वो पल है जब प्रेम अपनी सच्चाई पहचानता है।”
तालाब की लहरें उठीं —
और नीली रोशनी के बीच दोनों रूहें एकाकार हो गईं।
एक पल को अर्जुन और रूहाना के चारों ओर सब गायब हो गया —
सिर्फ़ ब्रह्मांड का नीला शून्य बाकी रहा।
> “हर जन्म में वही रूह मिलती है, जो इश्क़ से बंधी हो।”
धीरे-धीरे दोनों के शरीर फिर से ज़मीन पर लौटे।
लेकिन अब उनके भीतर कुछ बदल चुका था —
जैसे आत्मा को अपना घर मिल गया हो।
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🌒 4. नई सुबह, नई पहचान
सुबह के पहले उजाले के साथ रूहाना ने अपनी डायरी खोली।
उसमें अब एक नया नाम लिखा था —
“रूहान – रुमी → अर्जुन – रूहाना”
वो मुस्कराई,
“हमारा वादा पूरा हुआ, अर्जुन… अब शायद हवेली हमें जाने दे।”
अर्जुन ने कहा,
“या शायद… हवेली अब हमें अपने इतिहास का हिस्सा बना ले।”
नीले फूल हवेली के आँगन में झरने लगे।
हवा में रूहों की गूँज सुनाई दी —
“इश्क़ अमर है, जब तक रूह ज़िंदा है।”
रूहाना ने धीरे से कहा,
“इस बार मैं रुमी नहीं, रूहाना हूँ…
लेकिन मेरा इश्क़ वही है — जो रूह से लिखा गया था।”
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🌠 5. अंत की शुरुआत
रात फिर उतरी, मगर इस बार हवेली में कोई डर नहीं था —
बस एक नर्म सुकून, एक अनकही मुस्कान थी।
अर्जुन और रूहाना बरामदे में बैठे आसमान देख रहे थे।
नीले तारे एक बार फिर चमकने लगे —
जैसे वो दोनों रूहों को पहचान गए हों।
रूहाना ने अर्जुन की हथेली थामी और कहा —
> “अगर अगले जन्म में फिर से मिलना हो,
तो मैं वही नीला दीया बनूँगी जो तुम्हारे रास्ते को रोशन करे।”
अर्जुन ने मुस्कराते हुए जवाब दिया —
> “और मैं वही स्याही बनूँगा,
जिससे तुम्हारा नाम हर बार लिखा जाए।”
हवा में हल्की गूँज उठी —
“रूहों का इश्क़ कभी ख़त्म नहीं होता,
वो बस रूप बदलता है…”
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💫 एपिसोड 37 — हुक लाइन:
> “जब रूहें वादा निभाती हैं, तो जन्म नहीं — ब्रह्मांड भी नया हो जाता है…”