💫 एपिसोड 35 — “इश्क़ की स्याही से लिखा वादा”
(कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)
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🌙 1. हवेली की दीवारों में नई साँसें
दरभंगा की हवेली अब पहले जैसी नहीं रही थी।
जहाँ कभी सन्नाटा पसरा था, अब वहाँ हर सुबह कोई नया एहसास जागता था।
बरामदे की दीवारों पर नीली लकीरें चमक उठतीं,
और हर शाम सुनहरी धूप दीवारों से फिसलकर भीतर चली आती —
जैसे हवेली खुद कह रही हो, “अब मैं अधूरी नहीं रही।”
अर्जुन खिड़की के पास बैठा था,
रूहाना उसके सामने, अपनी नई डायरी में कुछ लिख रही थी।
> “रूहाना,” अर्जुन बोला,
“क्या लिखती हो इतना देर तक?”
रूहाना ने मुस्कुरा कर जवाब दिया —
> “आपसे मिली स्याही से हर शब्द रूह में उतर जाता है।”
अर्जुन ठहर गया —
उसकी आँखों में वही चमक थी जो कभी रुमी की आँखों में देखी थी।
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🌕 2. रूहों का पुराना गीत
उस रात हवेली में अचानक पवन तेज़ चलने लगी।
दीयों की लौ एक साथ कांपी, और हवेली की सबसे ऊपरी मंज़िल से एक पुरानी सरगम सुनाई दी —
> “रूहों का गीत अधूरा नहीं, बस बदलता है रूप…”
रूहाना सीढ़ियाँ चढ़ने लगी,
अर्जुन पीछे-पीछे।
ऊपर पहुँचकर दोनों ने देखा —
दीवार पर अब पेंटिंग नहीं थी, बल्कि उसके स्थान पर एक सुनहरी आकृति उभर रही थी —
रुमी और रूहान के चेहरे एक-दूसरे में घुलते जा रहे थे,
और बीच में एक तीसरा चेहरा आकार ले रहा था — रूहाना का।
> “देखा अर्जुन जी…” रूहाना ने कहा,
“अब मैं सिर्फ उनकी बेटी नहीं, उनकी रूह की निरंतरता हूँ।”
अर्जुन ने उसकी ओर देखा —
> “और मैं वह कहानी हूँ, जिसे तुम्हारे हाथों पूरा होना था।”
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🌘 3. नीली स्याही का राज़
अगली सुबह रूहाना ने अर्जुन को एक ख़त दिया।
नीली स्याही में लिखा था —
> “हर जन्म में रूहें मिलेंगी,
क्योंकि इश्क़ कभी खत्म नहीं होता —
वो बस एक नया नाम ले लेता है।”
अर्जुन ने पूछा —
> “ये तुमने लिखा?”
रूहाना मुस्कुराई —
> “नहीं… ये शब्द मैंने नहीं लिखे।
रात को मेरी डायरी अपने आप खुल गई थी… और सुबह ये लिखा मिला।”
हवा ने परदों को हिलाया —
और नीली स्याही की खुशबू कमरे में फैल गई।
अर्जुन की आँखें नम हो गईं —
> “रुमी… तुम अब भी यहाँ हो।”
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🌒 4. हवेली का नया नाम
शाम होते ही रमाकांत पंडित ने दरवाज़े पर एक नई तख़्ती लगाई —
> 🕊️ “रूहों का निवास — इश्क़ की हवेली”
लोग कहते हैं, जो भी इस हवेली के भीतर आता है,
वो अपने किसी अधूरे एहसास से ज़रूर मिल जाता है।
रूहाना ने अर्जुन का हाथ थामा और बोली —
> “अब जब रूहानियत और रुमानियत एक हो चुकी है,
क्या आपको डर नहीं लगता… कि यह सफ़र यहीं थम जाएगा?”
अर्जुन मुस्कुराया —
> “नहीं, रूहाना।
इश्क़ थमता नहीं… वो बस नई रूह में सांस लेना शुरू कर देता है।”
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🌠 5. अंत या अगला जन्म?
रात में आसमान फिर नीला हुआ।
एक दीया हवेली की छत से उड़कर हवा में तैर गया।
रूहाना ने देखा —
दीए की लौ में दो परछाइयाँ झिलमिला रही थीं,
और तीसरी परछाई धीरे-धीरे उनमें घुल रही थी।
> “क्या यह हम हैं?” उसने पूछा।
“या कोई और कहानी शुरू हो रही है?”
अर्जुन ने धीमे से कहा —
> “हर इश्क़ एक कहानी नहीं होता रूहाना…
कुछ इश्क़, कायनात के लिखे वादे होते हैं।” ❤️🔥
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💫 एपिसोड 34 — हुक लाइन:
> “जब रूह स्याही बन जाए और मोहब्बत कलम,
तो किस्मत भी वही लिखती है जो इश्क़ चाहता है…” 🌙