What should I say honestly..??? in Hindi Love Stories by Manshi K books and stories PDF | क्या कहूं सच..???

Featured Books
Categories
Share

क्या कहूं सच..???



**** कड़वा सच है ये एक वफादार औरत को एक मर्द संभाल नहीं सकता है ****
उसका ख्याल रखना, उसकी फिक्र करना , छोटी छोटी बातों पर जिद करना , और तो और बहुत लड़ाई करना ।
रिश्ते को टॉक्सिक साबित कर देता है लड़कों की नजरों में।

क्यों मेरी वफादारी तुम्हें बोझ लगी या यूं कहूं लगती है?"
तुम्हें पता है?
आज बहुत देर तक सोचती रही... आखिर क्यों, जब मैं पूरे दिल से तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं , तुम्हारे हर सुख-दुख में, हर लड़ाई में, हर उम्मीद में सिर्फ तुम्हारा हाथ थाम कर तेरे साथ खड़ी  रहना चाहती हूं। फिर भी तुम्हें मेरी वफादारी बोझ जैसी क्यों लगने लगी?
जब भी हमारे रिश्ते में मुश्किलें आईं, मैं सवालों के बीच भी गुमसुम तुम्हारे साथ रहती हूं वो बात अलग है जो लड़ने के बाद हद से ज्यादा बोल जाती हूं। कभी अपनी खुशी, अपनी हँसी, अपनी छोटी-छोटी जिदें तक कुर्बान कर देती हूं, पर तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ना चाहती हूं।
पर शायद तुम्हे कभी समझ नहीं आई ।
मैं दिन प्रति दिन क्यों बदलती जा रही हूं ।
मेरा वफादार होना तुम्हे गुनाह लगता क्या ....???

मुझे अक्सर यही सुनने को मिलता है, जल्द ही तेरे जुबा पर यह शब्द भी पंक्तियां बन कर तैरेंगे।
"तुम बहुत बदल गई हो।"
"तुम्हारी वजह से रिश्ता बोझ बन गया है।" तुम मेरी रिस्पेक्ट करती नहीं हो ,
"तुम मुझे समझ नहीं पाती।"
पर क्या तुमने सच जानने की कोशिश की , मेरे गुस्से को मुस्कान देने की कोशिश की , कभी एहसास होने दिया मुझे तुम्हारी नजरों में थोड़ी अहमियत है । ऐसा कुछ हुआ ही नहीं लॉयल लड़कियां, झूठी ही लगती हैं ।
पर सच बताऊँ? मेरी खामोशी में भी तुम्हारा नाम होता है, मेरा गुस्सा भी सिर्फ तुम्हारे प्यार की वजह से ही था।
तुम्हारे लिए मैंने रिश्ते में इतना दिया, कि कभी-कभी खुद को खो देने का डर भी सताने लगा है। मगर फिर भी, तुम्हें मेरी वफादारी ठीक से समझ नहीं आई। खुद को समेट कर भी तेरे साथ खड़ी रहना चाही । 

याद है?
कई बार जब तुमने छोटी-छोटी बातों पर मुझसे दूरियां बनाईं, मेरा इंतज़ार लंबा कर दिया, या मेरा दर्द समझे बिना आगे बढ़ गए, तब भी मेरी निगाहें दरवाजे पर लगी रहती थीं… सोचती थी, शायद आज तुम पुराने वाले कोई शब्दों से बुलाओगे, शायद एक बार पूछोगे कि जो लड़ाई हुई, उसके पीछे मेरा डर, मेरा प्यार, मेरा अपना दर्द क्या था।
तुमने कभी मेरा दिल पूरी तरह से पढ़ने की कोशिश की ही नहीं।
क्या ही समझ पाओगे मुझे ????

क्या रिश्ता सिर्फ इसलिए बोझिल हो जाता है क्योंकि उसमें एक इंसान पूरे दिल से जुड़ जाता है? क्या अपनी परवाह जताना, हर बात में तुम्हें प्राथमिकता देना, तुम्हारी खामोशियों को भी शब्दों में महसूस कर लेना गलत है?
मुझे याद है, जब तुम बहुत उदास होते हो या टूटा-टूटा सा महसूस करते हो, मैं अपनी हँसी छोड़कर तुम्हारी उदासी बांटना चाहती हूं। तुम्हारे ख्यालों को पढ़ती रहती हूं, यकीन मानो मेरा दूर रह कर भी मैं जान लेती हूं किसी बात से तुम परेशान हो ।
तुम्हारे सवालों के जवाब साँसों में ढूँढती रही मैं। पर शायद यह सब तुम्हें बोझ ही लगा।

क्या गलती मेरी थी? या अब भी है 
या फिर तुम्हें कभी मेरी जगह पर खुद को रख कर देखने का वक़्त नहीं मिला?
मुझे कई बार ऐसा लगा, जैसे मैं जितना सच्चा और गहरा प्यार करती रही, उतना ही अपने आप को खोती गई 
और तुम्हारे लिए यह सब कभी मायने ही नहीं रखता था।
मेरी दुनिया में जब सब कुछ तुम्हीं से था, तब तुम्हारे लिए मैं कभी ‘ enough ’ क्यों नहीं हो सकी?

मेरी ख्वाहिशें, मेरा इंतज़ार सब झूठा तो नहीं है ।
कभी सोचा है, जब तुम देर रात तक लौटते हो घर ...सुन कर कितना दिल घबराता है, तब मैं दरवाजे के पास कितनी देर यूँ ही बैठी रह जाती ऐसा दूर होकर भी सोचती हूं? 
कभी महसूस किया है, जिस मुस्कान को तुम ‘usual’ समझते हो, वो लाख जतन करने के बाद आती है, ताकि तुम्हारा थकान भरा दिन हल्का लगे? काश ऐसा मैं कर पाती कुछ इस तरह से सोचती हूं।
कभी खुद से पूछा है, कि जब मैं तकलीफ़ में होती हूँ, तब भी तुम्हारी फिक्र सबसे ज़्यादा करती हूँ?
पर अफसोस…! मेरी सारी कोशिशें, सारा समर्पण भी अक्सर तुम्हारी नज़र में गिर जाता है ,कभी  possessive ’, कभी ‘ insecure ’, कभी ‘ needy ’ या किसी बार ‘तंग करने वाली’ बन जाती हूँ।
शायद तुम सोचते भी होगे , इसे कोई और काम होता नहीं है क्या ?? तुम्हे लापरवाह नजर आती हूं ।

सच यह है…
मैंने अपने हर रिश्ते की तरह तुम्हें भी खुल कर चाहा, टूट कर चाहा। शायद गलत यही थी कि मैंने खुद से ज़्यादा तुम्हारे सपनों और तुम्हारी खुशियों को अपने अंदर जगह दी।
मगर रिश्ता सिर्फ ताली बजाने जैसा है एक हाथ से कभी बजता नहीं। जब तक दोनों तरफ प्यार, अपनापन, सम्मान और सही मायनों में विश्वास नहीं होगा, तब तक किसी एक की वफ़ा अक्सर गलत ही लगने लगेगी।

शायद मैं भी अपनी किस्मत की तरह गलत बन गई ।।।

मेरी वफा को समझना
अगर कभी फुर्सत मिले, तो बस एक बार मेरी खामोशी पढ़ लेना। मेरी छोटी-छोटी नाराजगियों का प्यार पढ़ लेना।
कभी सोचना कि किसी की पूरी वफादारी को समझने में कितना वक्त लगता है ,क्योंकि आज तक तुम मेरा दर्द नहीं समझ पाए, और मैं सालों से समझाने की जिद में लगी रही हूं।

आखिर में
हर रिश्ता सुंदर हो सकता है, अगर एक दूसरे की फ़ीलिंग्स, उम्मीदों और वफ़ा की कद्र करना सीख लें।
कभी खुद से पूछना सिर्फ तुम ही थके हुए नहीं थे, मैंने भी जाने कितनी रातें अपने आंसुओं से गुजारी हैं…
पर आज भी, कहीं दिल के कोने में उम्मीद बाँध लेती हूं शायद एक दिन तुम्हें अहसास होगा, कि एक सच्ची, वफादार प्रेमिका को संभालना आसान नहीं, पर अगर उसका साथ मिल जाये इससे खूबसूरत तोहफा फिर कहीं और नहीं मिलेगा।



" मेरा लॉयल होना मेरी खामियां है तो मंजूर है मुझे 
पर मैं तुम्हारी होकर किसी दूसरे की ओर देखूं तो गुनाह लगता है मुझे "


Thanks for reading,,,,💐