sanskrti ka pthik - 5 in Hindi Travel stories by Deepak Bundela Arymoulik books and stories PDF | संस्कृति का पथिक - 5

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संस्कृति का पथिक - 5

संस्कृति का पथिक
भाग-5

उज्जैन में बिताई रात की शांति और महाकालेश्वर के दर्शन का अनुभव अभी भी मेरे मन में गूँज रहा था, जब सूर्योदय की पहली किरणों ने उज्जैन के आसमान को सुनहरी चादर की तरह ढक दिया मैंने अपने बैग पैक किए, कार में बैठा और अपनी यात्रा को आगे बढ़ाया.

आज की मंज़िल थी ओंकारेश्वर, मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित नर्मदा नदी के किनारे एक ऐसा पवित्र स्थल, जहाँ शिव की उपासना और नदी की गहराई का अद्भुत संगम होता है।

यहां से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ओंकारेश्वर तक पहुँचने के लिए रास्ते विंध्य की पहाड़ियों, घने जंगलों और छोटे-छोटे गांवों से होकर गुजरते हैं. जैसे-जैसे कार आगे बढ़ रही थी, मन में एक अजीब-सा उत्साह और आनंद का मिश्रण था. हर मोड़ पर नर्मदा की मधुर ध्वनि, पहाड़ियों से उठती ठंडी हवा और पक्षियों की चहचहाहट मुझे यह अनुभव करा रही थी कि यह यात्रा केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा भी है.

नर्मदा नदी के तट पर पहुँचते ही मैंने देखा 
एक विशाल शिवलिंग, जिसे "ओंकारेश्वर” कहा जाता है, शांति और भक्ति के प्रतीक के रूप में नदी के किनारे स्थित था. यह शिवलिंग न केवल आकार में विशाल था, बल्कि उसकी उपस्थिति इतनी अद्भुत थी कि मन अपने आप उसमें समा गया पानी में उसका प्रतिबिंब, नदी का बहता जल और आसपास के हरियाले पर्वत सब मिलकर एक दिव्य दृश्य बना रहे थे.
मैंने तट पर कदम रखा और नर्मदा के ठंडे पानी के पास जाकर अंजुली में जल लेकर माँ नर्मदा को प्रणाम किया यह साधारण कार्य नहीं था बल्कि एक प्रतीकात्मक क्रिया थी, जैसे नदी और शिव का स्पर्श मुझे भीतर से शुद्ध कर रहा हो. इस अनुभव को शब्दों में बयाँ करना मेरे लिए कठिन हैं, लेकिन हर श्वास में नर्मदा का प्रवाह और शिव की उपस्थिति मुझे भीतर से जोड़ रही थी.

यहां ओंकारेश्वर में कई छोटे मंदिर और घाट हैं, जहाँ श्रद्धालु आरती कर रहे हैं मैंने भी घाट की ओर बढ़कर ध्यान करने का निर्णय लिया.
नर्मदा की मधुर ध्वनि और मंदिर की घंटियों का स्वर, दोनों मिलकर एक ऐसा संगीत बना रहे हैं जिसे केवल मन ही सुन सकता हैं
मैंने ध्यान में बैठकर भीतर देखा भोजपुर का शिवलिंग, सांची का स्तूप, उज्जैन का महाकालेश्वर सब अनुभव जैसे मेरी आत्मा में एक संगम बन गए थे. और अब ओंकारेश्वर की नर्मदा तट पर यह संगम और भी गहरा हो रहा था.
ध्यान करते हुए, मुझे यह महसूस हुआ कि यात्रा का सार केवल दर्शन और स्थल नहीं है.
यह मन, आत्मा और प्रकृति के बीच संवाद का अनुभव है. नर्मदा की धारा, शिवलिंग की स्थिरता और घाट की शांति सब मिलकर यह संदेश दे रहे थे.
"भक्ति केवल शब्दों में नहीं, अनुभव से है.
जहाँ मन शांत होता है, वहीं भक्ति साकार होती है।”

तट पर कुछ समय बिताने के बाद, मैंने नदी के किनारे बैठकर नर्मदा की लहरों को महसूस किया पानी की सतह पर सूर्य की किरणें झिलमिला रही थीं, और दूर-पड़ोस के छोटे घाटों पर भक्त अपने-अपने कर्म कर रहे थे.
यह दृश्य केवल देखने का नहीं था, बल्कि अनुभव करने का था. हर लहर जैसे मेरे भीतर की अशांति को बहाकर ले जा रही थी. मैंने महसूस किया कि ओंकारेश्वर में शांति और शक्ति दोनों का अद्भुत मेल है.
मैंने कुछ देर ध्यान में बैठकर नदी और शिवलिंग का दर्शन किया हर सांस में मुझे यह अनुभव हो रहा था कि जीवन का प्रत्येक पल, चाहे सुख का हो या दुख का, नदी की तरह निरंतर बहता रहता है. शिव की स्थिरता और नर्मदा की धारा यह दो विरोधी तत्व मुझे यह सिखा रहे थे कि सच्ची भक्ति और संतुलनता भीतर से ही आती है.

दोपहर और शाम के बीच, जैसे ही सूर्य ढलने लगा, नर्मदा की धारा और घाट का वातावरण मुझे और भी मंत्रमुग्ध करने लगा सूर्यास्त की सुनहरी किरणें शिवलिंग और नदी दोनों पर पड़ रही थीं, और घाट पर उपस्थित भक्तों की छाया धीरे-धीरे लंबी होती जा रही थी.

मैंने खड़े होकर सूर्यास्त देखा और महसूस किया कि यह दृश्य केवल आँखों के लिए नहीं, बल्कि मन और आत्मा के लिए था. यह अनुभव मुझे यह याद दिला रहा था कि यात्रा केवल स्थानों का संग्रह नहीं है, बल्कि अनुभव और आत्मा की गहराई तक उतरने का प्रयास है.
रात होते ही ओंकारेश्वर की घाटियाँ सन्नाटे में डूब गईं थी मैंने घाट के पास स्थित लॉज में ठहरने का निर्णय लिया रात के समय, नर्मदा की बहती धारा और दूर से आती हल्की घंटियों की आवाज़ें एक अद्भुत संगीत बना रही थीं.
मैं खिड़की खोलकर बाहर झाँका अंधेरे में नर्मदा की चमक, शिवलिंग की छाया और चारों ओर फैला शांति का वातावरण, मेरे भीतर की अशांति को धीरे-धीरे शांत कर रहा था. मैंने गहरी साँस ली और महसूस किया कि आज की सुबह से लेकर इस रात तक, ओंकारेश्वर ने मुझे केवल बाहरी दर्शन नहीं कराया यह स्थान मुझे आत्मा, भक्ति और समय के अद्भुत संतुलन का अनुभव दे रहा था. यह रात मेरी यात्रा का केवल एक पड़ाव नहीं थी, बल्कि भीतर की खोज और आत्मा की शांति का अनुभव बन गई थी.
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ओंकारेश्वर की रात और नर्मदा तट पर बिताए अनुभव से मेरी आत्मा अभी भी शांत और ऊर्जा से भरी हुई थी. सुबह की पहली रोशनी में, मैंने अपनी यात्रा को महेश्वर की ओर मोड़ा

महेश्वर, जो नर्मदा नदी के किनारे बसा है, केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश की संस्कृति, इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम है. यहाँ की घाटियाँ, किले और प्राचीन मंदिर मुझे पहले से ही एक अलग समय और अनुभव की ओर ले जा रहे थे. यहां से महेश्वर तक का रास्ता लगभग 70 किलोमीटर लंबा हैं. जैसे-जैसे कार सड़क पर दौड़ रही थी, नर्मदा की धारा बार-बार मेरे मन में दिख रही थी.

हर मोड़ पर नदी की हल्की ध्वनि, पेड़ों की हरियाली और दूर-दूर तक फैली पहाड़ियाँ मन को मंत्रमुग्ध कर रही थीं. मुझे ऐसा लग रहा था कि यह यात्रा केवल स्थलों तक सीमित नहीं है यह मेरे भीतर की गहराई तक उतर रही है.
महेश्वर पहुँचते ही सबसे पहले मेरी नजर पड़ी महेश्वर का प्राचीन किला और मंदिरों की श्रृंखला पर, किला न केवल इतिहास का प्रतीक हैं, बल्कि यह दर्शा रहा था कि यहाँ समय ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है. मंदिरों में शांति और श्रद्धा का अद्भुत मिश्रण था.

मैंने घाटों पर कदम रखा और नर्मदा की ओर देखा नदी की हर लहर मानो मुझे यह संदेश दे रही थी कि जीवन और मृत्यु, शक्ति और शांति, इतिहास और वर्तमान सब एक निरंतर प्रवाह में हैं.

महेश्वर के घाट, जिन्हें अहिल्या घाट और अन्य प्राचीन घाटों के नाम से जाना जाता है, मुझे नर्मदा के प्रवाह में आत्मा की शांति का अनुभव करा रहे थे. मैंने घाट के पास बैठकर पानी में हाथ डाला और गहरी साँस ली यह मेरे लिए केवल शारीरिक स्पर्श नहीं था, यह आध्यात्मिक और मानसिक शुद्धि का अनुभव था. यहाँ हर भक्त, हर नाविक और हर पर्यटक जैसे नदी और मंदिर दोनों के माध्यम से अपनी आत्मा का अनुभव कर रहा था.

रंग-बिरंगे कपड़े पहने स्थानीय लोग, मंदिरों की घंटियाँ और घाटों पर जलते दीपक सब मिलकर मुझ में रोमांचित पैदा कर रहे थे और एक जीवंत अनुभव बना रहे थे. मैंने महसूस किया कि महेश्वर केवल देखने का नहीं, बल्कि भीतर की शांति और भक्ति को महसूस करने का अहम् स्थान है.

घाटों पर बैठकर मैंने कुछ समय ध्यान किया
नर्मदा की शांत धारा, हल्की हवा और दूर से आती मंदिर की घंटियों की आवाज़ सब मिलकर एक ऐसा संगीत बना रहे थे जिसे केवल मन ही सुन सकता था. मैंने अपने भीतर देखा ओंकारेश्वर की स्थिरता, उज्जैन का महाकालेश्वर, सलकनपुर की प्राकृतिक शन्ति
सब अनुभव मेरे मन और आत्मा में मिलकर एक गहन संगम बना रहे थे.

जैसे ही सूर्य ढलने लगा, महेश्वर के घाट और नर्मदा की धारा सुनहरी रोशनी में नहाने लगी.
मैंने घाट पर खड़े होकर सूर्यास्त देखा सूर्य की किरणें नदी पर चमक रही थीं और मंदिरों की छायाएँ धीरे-धीरे लंबी होती जा रही थीं यह दृश्य केवल आँखों के लिए नहीं, बल्कि मन और आत्मा के लिए था हर पल मुझे यह एहसास करा रहा था कि जीवन का हर अनुभव, चाहे सुख का हो या दुःख का, नदी की तरह निरंतर बहता रहता है।

रात के समय, मैं घाट के पास बने लॉज में ठहरने का निर्णय किया.

महेश्वर की यह रात मेरे लिए केवल विश्राम का समय नहीं थी यह रात मेरे भीतर की यात्रा और आत्मा की खोज का अनुभव थी. नर्मदा की धारा, मंदिरों की शांति, और घाटों पर फैली भक्ति मन को मोह रही थी.
मैंने अपने डायरी में लिखा:-
"महेश्वर ने मुझे यह सिखाया कि जीवन का हर क्षण भक्ति और शांति का अवसर है. जहाँ मन स्थिर होता है, वहाँ भक्ति और अनुभव साकार होता हैं. यह न केवल यात्रा का एक पड़ाव है, बल्कि मेरे जीवन की आत्मिक यात्रा का एक अमूल्य हिस्सा बन गया है।”

रात के सन्नाटे में, नर्मदा की धारा और महेश्वर के मंदिरों की छाया ने मेरी आत्मा में स्थायी शांति छोड़ रही थी मैं जानता था कि यह अनुभव मेरे भीतर लंबे समय तक गूँजता रहेगा.

महेश्वर की शांत नर्मदा घाटियों और प्राचीन मंदिरों से भरी यात्रा के बाद, मैं इंदौर की ओर बढ़ा शहर पहुँचते-पहुँचते काफ़ी रात हो चुकी थी. इंदौर, मध्य प्रदेश का वह जीवंत और आधुनिक शहर, अपने बाजारों, रेस्टोरेंट्स और चहल पहल के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन मैं इसे रात्रि विश्राम और मन की शांति के लिए चुन रहा था.

होटल में प्रवेश करते ही वातावरण ने मेरा स्वागत किया कमरे की खिड़की से बाहर शहर की हल्की रोशनी, दूर से आती हल्की गाड़ियों की आवाज़ और कहीं-कहीं रात के बाजारों की हल्की हलचल सब कुछ मिलकर एक अनोखा दृश्य मोहित कर रहा था जो आधुनिकता और शांति का संगम था बिलकुल उसी तरह जैसे मेरी यात्रा में ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों का संगम रहा.शहर की हलचल और मन की शांति का मिलन सुकून से बैठ कर अनुभव करने का मन कर रहा था कमरे में बैठते ही मैंने बाहर की हलचल का आनंद लिया. तभी मन में एक विचार आया कैसे यात्रा केवल मंदिरों, घाटों और पहाड़ियों तक सीमित नहीं होती.
यह हर स्थान, हर वातावरण और हर क्षण से मन और आत्मा को जोड़ने का एक अनुभव होता है. मैं कुछ पल खिड़की से बाहर झाँकाता रहा और शहर की रोशनी और अँधेरों के बीच के संतुलन को देखाता रहा. हर रोशनी जैसे जीवन के उजाले की तरह, और अँधेरा मन की शांति और विचारों का प्रतीक लग रही थी.

रात के समय मैंने कमरे में बैठकर थोड़ी देर ध्यान किया. महेश्वर और ओंकारेश्वर के अनुभव, नर्मदा की शांत धारा, उज्जैन के महाकालेश्वर के दर्शन सब अनुभव मेरे मन और आत्मा में घूम रहे थे.

इंदौर की यह रात मुझे यह याद दिला रही थी कि भले ही स्थान आधुनिक और व्यस्त हों,
मन की शांति और ध्यान की अनुभूति कहीं भी अनुभव की जा सकती है.रात गहरी हो चुकी थी. मैं खिड़की पर बैठा रहा, बाहर की हल्की रोशनी और शहर की ध्वनियों के बीच अपने भीतर उतरता रहा हर श्वास के साथ मुझे यह अनुभव हो रहा था कि यात्रा का सार स्थलों या दूरी में नहीं, बल्कि मन और आत्मा के अनुभव में है.
मैंने डायरी खोली और लिखा:-
"इंदौर की यह रात केवल विश्राम की नहीं थी।
यह रात मेरे भीतर की यात्रा का हिस्सा थी जहां आधुनिकता और शांति, हलचल और निस्तब्धता एक अद्भुत संतुलन में मौजूद थे.
रात के सन्नाटे में, इंदौर की चमकती रोशनी और खिड़की से दिखती शहर की छाया ने मेरे मन में स्थायी छबि बना दी थी.

क्रमशः-