Gomti Tum Bahati Rahna - 18 in Hindi Biography by Prafulla Kumar Tripathi books and stories PDF | गोमती तुम बहती रहना - 18

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गोमती तुम बहती रहना - 18

                           चला वाही देस  ! कुछ लोगों के परामर्श पर वर्ष 2012 की शुरुआत में मैंने अपनी कुछ जमापूँजी और पी. एफ. के पार्ट विदड्राल से लखनऊ के मलहौर इलाके के लौलाई गाँव की  माधव ग्रीन कालोनी में 2713 स्क्वायर फिट की आवासीय भूमि क्रय की जो उन दिनों पाँच सौ रुपये प्रति स्क्वायर फिट मिली | साथ में मेरे साले अनुपम मिश्रा ,मित्र डा. अजय शंकर त्रिपाठी और सढुआईन ममता त्रिपाठी ने भी प्लॉट लिए | सम्मिलित खर्चे पर बाउंड्री वाल बन गई  और अब उसका मूल्य बढ़ता ही चला जा रहा है|इसे आपातकालीन खर्च से निपटने के लिए छोड़ रखा गया है|वैसे मुझसे ज्यादा लक्ष्मी जी की कृपा मेरी पत्नी और बहू पर बरस रही है क्योंकि उनके नाम से किराए पर चल रहे मकान हैं| वर्ष 2007 से वर्ष 2013 अर्थात मेरे रिटायरमेंट तक की ज़िंदगी में अस्थिरता ,दुख,चिंताओं की बाढ़ सी आती रही |बेटे लेफ्टिनेंट कर्नल दिव्य आदित्य और बहू अनामिका की शादी वर्ष 2007 में हुई थी और अब उनसे धीरे धीरे अपना मेच्योर दाम्पत्य  जीवन बिताने की उम्मीद पाले रहता हूँ| लेकिन कभी - कभी उनके जीवन में किसी पक्ष द्वारा (ज्यादातर बहू  द्वारा ) ऐसी चिंगारी भड़क उठती है कि लगता है परिवार अब बिखरा कि तब बिखरा |ग्यारहवीं में कला विषयों को लेकर पढ़ रहे पौत्र दर्श आदित्य बहुत शरारती निकल रहे हैं लेकिन पौत्री अविषा  उतनी ही शांत और मृदुभाषी है जो तीसरी क्लास में है | चिंता की बात यह है कि  दिन प्रतिदिन के जीवन में वैचारिक मतभेद की चिंगारी शोले बनकर जीवन की अंतिम अवस्था की ओर अग्रसर हम पति पत्नी के जीवन को भी विचलित कर उठती है | वर्ष 2007 में एक दुर्घटना में शहीद हुए  छोटे बेटे लेफ्टिनेंट यश आदित्य के  शोक ने पत्नी को मानसिक रुप से बीमार कर दिया है और वे सामान्य व्यवहार करने में लगभग असमर्थ होती जा रही हैं | जब तक केन्द्रीय विद्यालय की सेवा में रहीं कुछ सामान्य थीं लेकिन अब रिटायरमेंट के बाद उनका दुख उनका डिप्रेशन दिनोंदिन उन पर हावी होता  जा रहा है | हालांकि यह मेरी धारणा है ,कुछ डाक्टरों का  ऑन रिकार्ड परामर्श है लेकिन उनकी अपनी नहीं | उल्टे वे ही  मुझे मानसिक रोगी बताती चली आ रही   हैं | ढेर सारी असहमतियों के साथ अपना जीवन चल रहा है और शायद आगे भी चलता  रहेगा |  अन्य लोगों की तरह ही  अपना भी सेवाकाल 60 वर्ष की आयु में पूर्ण हुआ | अपनी अस्थि संबंधी बीमारी के चलते  मेरे लिए यह एक आश्चर्य से कम नहीं रहा कि मैं नौकरी पूरी करते हुए पेंशन का भी उपभोग करता चला आ रहा हूँ | इसके कारण मेरे आराध्य श्री श्री आनंदमूर्ति जी हैं जिन्होंने सुख-दुख दिए ,उसको सहने की ताकत दी , आराम,मस्ती और परेशानियाँ दीं  तो सुख और सौहार्द भी दिए हैं |                                     

         रिटायरमेंट के आसपास कार्यालय के कुछ दुष्ट लोगों की दुर्भावनाओं के चलते मुझे परेशानियाँ भी उठानी पड़ीं |एक प्रशासनिक अधिकारी ने मेरे सेवा पंजिका में लगभग 11 साल पहले की रह गई एक फारमेलिटी को लेकर तूफान खड़ा कर दिया तो उनके एक उत्तराधिकारी चमचे ने  चेन्नई में काराये गए ऑपरेशन में एक मेडिकल एडवांस का मामला उछाल कर दो तीन महीने मुझको छकाया |मेरी पेंशन तक रोक लेने की मुझे धमकी दी गई जिसके लिए  मुझे लिखा पढ़ी करनी पड़ी| आत्मकथा के पिछले पन्नों में कहीं मैने जिक्र भी किया है कि उन दिनों रेडियो के तीनों विंग (प्रशासन,अभियंत्रण और कार्यक्रम )में इस बात को लेकर रस्साकसी चला करती  थी कि कौन सा विंग ताकतवर है ? उस अंधे शक्ति प्रदर्शन में ऊर्जा और समय नष्ट होता रहता था |मुझ जैसे कुछ निरीह या मुँहफट लोग फंस भी जाया करते थे |मैं भी एकाधिक बार इसी तरह फंसा जिसकी रोचक दास्तान है लेकिन चूंकि  इस आत्मकथा लेखन को अब विराम देने की मंशा बनती जा रही है इसलिए उसे उधार लगाता चल रहा हूँ| यदि जीवित और स्वस्थ चित्त रहा  तो वे रोचक प्रसंग भी आपको पढ़ने को मिलेंगे | पारिवारिक जीवन की एक कड़वी सच्चाई यह बताना चाहूँगा कि पूर्वाञ्चल का अपना तथाकथित अत्यंत प्रतिष्ठित संयुक्त परिवार ( जिसमें अब वृद्ध बुआ जयंती पांडे सहित सगे भाई बहन रह गए हैं) अब पूर्णत: बिखर चुका है |बड़े भाई गोरखपुर विषविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस.सी.त्रिपाठी ऋषिकेश में सेटिल हो गए हैं|उनका बेटा विपुल आदित्य (सॉफ्टवेयर इंजीनियर) अपने परिवार के साथ अमेरिका में स्थापित हो चला है और डाक्टर बेटी-दामाद  ऋषिकेश में  हैं |छोटे भाई  दिनेश चंद्र त्रिपाठी बैंक मैनेजर पद  से रिटायर होकर बेतियाहाता गोरखपुर के पैतृक मकान के एक हिस्से में नवनिर्माण करवा कर रह रहे हैं |उनका एक बेटा सपरिवार अमेरिका रहता है और दूसरा महराजगंज में कार्यरत है और परिवार के साथ गोरखपुर आता जाता रहता है |चूंकि गाँव की खेती, घर- बार,संपदा  का अभी आपस में बंटवारा नहीं हो सका है इसलिए बस उतने तक ही  अपने भाइयों के ताल्लुकात रह गए हैं |मैं गोरखपुर का अपना मकान (जो किराए पर उठा है ) को बेंचने के लिए हाथ पाँव मार रहा हूँ ,हफ्तों वहाँ जाकर रहता भी हूँ लेकिन दुर्भाग्यवश बगल में निवास कर रहे छोटे भाई से मिलना नहीं हो पाता है,खान पान का तो प्रश्न ही नहीं उठता है |जिस तरह मेरे परिवार के आदर्श धार्मिक संगठन आनंद मार्ग का मूल उद्देश्य “ एक चौका, एक चूल्हा, एक हो मानव समाज “सिर्फ़ नारा बनकर रह गया है ठीक उसी प्रकार मेरा परिवार बिखरता जा रहा है|इसे रोक पाना अब संभव नहीं | बिल्कुल नहीं | यह बात अब एक गहरी चुभन  बनकर मुझे शेष जीवन के लिए चुभती रहेगी | रिटायरमेंट के बाद की ऊर्जा का प्रतिफल मेरे लेखन के रुप में समाज को मिल रहा है|बावजूद तमाम विपरीत स्थितियों के मैं ज़िंदगी से कतई हारा नहीं, थका भी नहीं हूँ | उसके सानिध्य से मिले अनुभवों को अब साहित्य के रुप में बाँट रहा हूँ | मेरा हर दिन एक नया दिन होता  है बीते हुए कल से एकदम अलग  भी |आने वाले कल की कौन कहे आने वाले पल की मैं नहीं सोचता हूँ | हाँ, मेरी कविताओं, कहानियों और उपन्यास के पात्र मेरे इर्द गिर्द रहकर मुझे कुरेदते रहते हैं कि मैं उनको अपनी विषय वस्तु बनाऊँ और उनको प्रेत योनि से मुक्ति दिलाऊँ | इसके अलावे मेरी रचनाओं के काल्पनिक चरित्र भी कभी -कभी साकार हो उठते हैं और जब सामने मिलते हैं तो मैं चमत्कृत हो उठता हूँ | मेरे लोकप्रिय उपन्यास “उजड़ा हुआ दयार “ के एक खलनायक चरित्र नरेंदर के साथ ऐसा ही हुआ है |उसने उपन्यास की नायिका मीरा के घर उजाड़ने की अपनी साज़िश को स्वीकार करते हुए खेद व्यक्त कर डाला है |लेकिन क्या इतिहास उसे माफ कर सकेगा ? सितंबर , वर्ष 2025 - उम्र के 72 + दौर में हूँ | संगी साथी एक- एक कर साथ छोड़ते चले जा रहे हैं |अपना भी जाने कब बुलावा आ जाएगा  | इसलिए मैं मनसा,वाचा कर्मणा तैयार बैठा हूँ |गोरखपुर के दक्षिणांचल की माँ आमी नदी ने मुझे जन्म दिया था  तो अब जीवन के अंतिम सोपान पर मैं लखनऊ में बह रही गंगा माँ की सहोदर नदी गोमती माँ की गोद में बैठ कर अपनी कर्म विपाक कर चुकि आत्मा को इस शरीर से मुक्ति देने के लिए उद्यत हूँ |मैंने अपनी समस्त लौकिक जिम्मेदारियों को पूरा कर लिया है और जहां तक मुझे याद  है कि अपने पाठकों से मिले प्यार के अलावा मुझ पर कोई देनदारी भी नहीं रह गई है जिसे लेकर मैं जाने को लालायित  हूँ |                         श्रीमद भगवतगीता (2 . 20 ) में कहा गया है – “न जायते म्रियते वा कदाचिन्नयं  भूत्वा भविता वा न भूय:| अजो नित्य: शाश्वतोअयं पुराणों न  हन्यते  हन्यमाने शरीरे || “अर्थात आत्मा के लिए किसी भी काल में ना तो जन्म है ना मृत्यु वह न तो कभी जन्मी है और न जन्म लेगी |वह तो अजन्मा , नित्य ,शाश्वत तथा पुरातन है|शरीर के मरने या मारे जाने पर वह मरती या मारी नहीं जाती |“चला वाही देस प्रीतम पावाँ चला वाही देस  !कहो तो कुसुमल साड़ी रंगावा ,कहो  तो भगवा भेष ||कहो तो मोतियन मांग भरावाँ ,कहो छिरकावां केस |मीरा के प्रभु गिरधर नागर ,सुण  गयो बिड़द  नरेस ||”