लेखक का दृष्टिकोण
अर्जुन की अलार्म घड़ी की तेज़ घंटी ने पूरे अपार्टमेंट में गूंज पैदा कर दी।
वह कराहते हुए अपनी आंखें मलने लगा, रात की अधूरी थकान अब भी उसके शरीर पर बोझ बनी हुई थी।
ऊपर पंखा आलस भरे अंदाज़ में घूम रहा था, जबकि अर्जुन खुद को घसीटते हुए बिस्तर से बाहर निकला।
आज का दिन बाकी दिनों से कहीं ज़्यादा भारी लग रहा था।
शायद मेज़ पर रखा अधूरा गाना इसकी वजह था — जो उसे ऐसे चिढ़ा रहा था, जैसे कोई अधूरी कसम।
जैसे ही उसने अपने फ़ोन की ओर हाथ बढ़ाया, स्क्रीन जगमगा उठी — इनकमिंग कॉल: माँ।
उसके होंठों पर हल्की मुस्कान उभर आई।
अर्जुन की माँ: “अर्जुन, तू उठ गया?”
उसकी माँ की गर्मजोशी भरी आवाज़ स्पीकर से गूंजी।
अर्जुन: “हूँ, माँ।” उसने धीमे स्वर में कहा।
वह नहीं चाहता था कि उसकी माँ उसके भीतर उठ रहे तूफ़ान को महसूस करे।
अर्जुन की माँ: “अपना खयाल रखता है ना?
तुम्हें बॉम्बे सूट कर रहा है?”
अर्जुन कुछ पल चुप रहा, फिर बोला,
“सब ठीक है, माँ। तुम चिंता मत करो। सब बिल्कुल ठीक है।”
कुछ क्षण का सन्नाटा छा गया।
उसकी माँ ने उसके पिता का ज़िक्र नहीं किया।
वह कभी नहीं करती।
लेकिन अर्जुन उस खामोशी में छिपे अनकहे शब्दों का बोझ महसूस कर सकता था — भारी और दर्दनाक।
खामोशी को तोड़ते हुए, उसकी माँ की आवाज़ फिर गूंजी — कोमल और भरोसे से भरी।
अर्जुन की माँ:
“बेटा, मैं जानती हूँ... एक दिन तुम्हारा सपना ज़रूर पूरा होगा।
बस हिम्मत मत हारना।”
अर्जुन: “मैं कभी हार नहीं मानूँगा, माँ,” उसने फुसफुसाकर कहा।
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कॉफ़ी शॉप में
जैसे ही मैं दुकान के अंदर गया, ताज़ा भुनी हुई कॉफ़ी बीन्स की खुशबू ने मुझे घेर लिया।
गर्माहट भरी। सुकून देने वाली।
लगभग इतनी कि मेरे सीने में जमी ठंडक को भुला दे।
लगभग...
मैंने एप्रन बांधा और काउंटर के पीछे खड़ा हो गया।
मेरे हाथ खुद-ब-खुद चलने लगे — एस्प्रेसो मशीन साफ़ करना, कप सजाना, बीन्स पीसना।
एक और शिफ्ट।
एक और दिन... यह दिखावा करने का कि यह सब मुझे काफी है।
लेकिन यह मेरा सपना नहीं था।
यह नौकरी मुझे घर से दूर रखती थी... उससे दूर — मेरे पिता से।
और बस, यही वजह इसे सहने लायक बनाती थी।
दरवाज़े के ऊपर लगी घंटी झनझनाई — तेज़ और खुशमिज़ाज।
मैंने नज़र ऊपर उठाई।
सुबह के ग्राहक अंदर आते गए — ऑफिस वाले, कॉलेज के विद्यार्थी।
उनके लिए यह बस एक कॉफ़ी शॉप थी।
मेरे लिए, यह एक मंच था जहाँ मैं कॉफ़ी बेचने वाला बनकर अभिनय करता था।
जबकि मेरा असली रूप — गायक, कलाकार — भीतर कहीं बंद पड़ा था।
मैंने चेहरे पर नकली मुस्कान चिपकाई और ऑर्डर लेने लगा।
“नमस्ते! आपके लिए क्या बनाऊँ?”
“टॉल लाटे, एक्स्ट्रा फोम? ज़रूर।”
काम के ये सारे स्टेप्स बहुत आसान, बहुत दोहराए हुए थे।
जैसे ही मैंने एक लाटे काउंटर पर रखा, मेरी जेब में रखा फ़ोन वाइब्रेट हुआ।
मैं उसे चेक नहीं कर सका।
पिता…
उन्होंने उस रात के बाद मुझसे बात नहीं की।
मेरी अवॉर्ड ट्रॉफ़ी के टुकड़ों का ज़मीन पर बिखरना आज भी ताज़ा ज़ख्म की तरह चुभता है।
उनकी नज़र में संगीत कोई करियर नहीं था।
उनके लिए यह विद्रोह था। शर्म। परिवार के नाम पर दाग़।
“अगर यहां रहना है, तो नौकरी करो।
वरना मेरे बेटे कहलाने का हक़ नहीं है।”
तो… मैं यहाँ हूँ।
नौकरी कर रहा हूँ। ज़िंदगी काट रहा हूँ।
लेकिन उस घर में वापस नहीं जाऊँगा जहाँ मेरे सपनों की कोई इज़्ज़त नहीं।
मैंने कड़वी यादों को झटका और वर्तमान पर ध्यान दिया।
दूध के उबलते फेन की आवाज़ और दालचीनी की खुशबू ने दुकान भर दी।
कोने की मेज़ पर कुछ कॉलेज स्टूडेंट्स ठहाके मार रहे थे — बेफ़िक्र और आज़ाद।
उनकी हँसी मेरे अंदर कहीं गहराई तक खिंच गई।
मंच की यादें... रोशनी... तालियाँ।
वो वक़्त जब गाना सिर्फ़ सपना नहीं था, बल्कि मेरी धड़कन का हिस्सा था।
कुछ पलों के लिए मुझे अपनी आवाज़ सुनाई दी — साफ़, दमदार।
फिर किसी ने चिल्लाया,
“कैरेमल कोल्ड ब्रू, एक्स्ट्रा शॉट!”
और वह जादू टूट गया।
“अभी लाया,” मैंने सपाट स्वर में कहा और कप सरका दिया।
भीड़ छटने लगी तो दुकान शांत हो गई।
तभी मैंने उसे देखा।
वह आदमी, खिड़की के पास अकेला बैठा था।
इनडोर भी चश्मा लगाए हुए।
हल्की सी मुस्कान के साथ कॉफ़ी हिलाते हुए… मुझे घूरता हुआ।
उसके बारे में कुछ अजीब लगा — जैसे कहीं देखा हो, लेकिन याद न आ रहा हो।
मैंने नज़रें हटा लीं।
शायद कोई आम ग्राहक होगा।
लेकिन जब मैंने दोबारा देखा, वह गायब था।
ना कप।
ना कोई निशान कि वह कभी वहाँ बैठा था।
मेरे माथे पर शिकन आई।
अजीब था।
मैंने सिर झटका और काउंटर साफ़ करने लगा।
बिल खुद नहीं भरते।
और सपने खुद नहीं पीछा करते।
अभी के लिए, मैं काम करता रहूँगा।
लेकिन भीतर गहराई में, मैंने खुद से वादा किया —
एक दिन, मेरी आवाज़ इस शोर से ऊपर उठेगी।
लोग मुझे सुनेंगे। सच में सुनेंगे।
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ग्राहक:
“अरे! एक कप एस्प्रेसो प्लीज़... रुको! अर्जुन तुम...”
मेरे ख़्यालों की कड़ी किसी आवाज़ ने तोड़ दी।
मैंने सिर उठाया — और उसे देखा।
मेरा पुराना प्रतिद्वंद्वी। तत्वा।
तत्वा:
“क्या हुआ, सिंगर जी...
गाना छोड़कर ठेले वाले की तरह चाय-कॉफी कब से बेचने लगे?”
अर्जुन:
“पहली बात, यह मेरी पार्ट-टाइम जॉब है, असली नौकरी नहीं।
दूसरी बात, अंधे! तुझे दिखता नहीं कि यह ठेला नहीं, दुकान है।” 🤡
तत्वा:
“अरे, मैं तो...” 😶
अर्जुन:
“सॉरी सर, लेकिन अब दुकान बंद करने का समय है।
तो कृपया बाहर निकल लीजिए।” 🙂
उसके कुछ कहने से पहले ही मैंने उसे बाहर धकेला और दरवाज़ा बंद कर दिया।
मैं सीढ़ियों की ओर बढ़ ही रहा था कि ज़ोरदार धमाके की आवाज़ आई।
तत्वा (चीखते हुए):
“ऐसे बर्ताव करता है अपने कस्टमर से, अर्जुन!
हूँह! यह सब मैं तुम्हारे पापा को बताऊँगा।”
मैं ठिठक गया, उसकी ओर मुड़ा।
“तू जा रहा है या पुलिस को बुलाऊँ?”
इसके बाद वह गुस्से में चला गया और मैंने दुकान को ताला लगाया।
“हा! क्या ही थकाऊ दिन था।”
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✨ लेखक की टिप्पणी ✨
तो, आपको क्या लगता है — वह चश्मे वाला आदमी कौन था?
क्या उसके इरादे आकाश के लिए खतरनाक हैं? ☠️
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यह कहानी द जेन-ज़ेड कलाकार मेरी खुद की मौलिक रचना है।
हर अध्याय, दृश्य, और संवाद मेरे अपने शब्दों में लिखे गए हैं।
कृपया मेरी मेहनत का सम्मान करें और बिना अनुमति इसे कॉपी, रीपोस्ट या अनुवाद न करें।