The biggest truth of life is that no one is yours except your mother. in Hindi Classic Stories by Varsha writer books and stories PDF | जिन्दगी का सबसे बड़ा सच-मां के सिवा कोई अपना नहीं

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जिन्दगी का सबसे बड़ा सच-मां के सिवा कोई अपना नहीं

आन्या की दुनिया हमेशा से सांवली रोशनी में नहाई रहती थी — घर भर की हल्की-हल्की भीड़, माँ की चुपके से मुस्कान, और सुबह की चाय की खुशबू। पिताजी ने न मुँह खोला था न दिल; माँ ही थीं जिनकी हँसी ने उनके छोटे से घर को घर बनाया था। आन्या बचपन से ही निडर थी, पर जीवन ने उसे जल्दी-जल्दी सिखा दिया कि भरोसा हर किसी पर नहीं किया जाता।


स्कूल के दिनों में आन्या की दोस्ती रिया से हुई। रिया चमकीली, खुशमिज़ाज और लोगों में लोकप्रिय थी। आन्या को रिया की दोस्ती में अपना आशियाना मिला — साथ पढ़ना, साथ हँसना, एक-दूसरे के बैग में चॉकलेट छुपा देना। पर जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, रिश्तों के रंग बदलने लगे। कॉलेज में रिया को अच्छी जॉब मिल गई और वह शहर के चमक-दमक में खो गई; आन्या अपने शहर में रहकर पढ़ाई पूरी करने के बाद एक छोटे से ऑफिस में नौकरी करने लगी। रिया के लिए छोटी-छोटी बातों का कोई मतलब नहीं रहा — जन्मदिन पर न फोन, छोटी सफलताओं पर न बधाई। आन्या ने अन्दर ही अन्दर महसूस किया कि कुछ रिश्ते दिखावे के मोती हैं — चमकते तो हैं, पर सौम्यता नहीं रखते।


एक दिन उस ऑफिस में अरविंद आया — स्मार्ट, बातों में रस, और सपनों का व्यापारी। उसने आन्या को किया-सा समझा दिया कि उसकी दुनिया अब उसके इर्द-गिर्द ही घूमेगी। आन्या का दिल बचपन की मासूमियत से तैयार था, और अरविंद ने उस मासूमियत को प्यार की तरह चुभो दिया। माँ ने हमेशा कहा था, “दुनिया में बहुत लोग मिलते हैं, पर दिल देने से पहले सोच रखना।” पर प्रेम ने कानों में माधुर्य भर दिया और माँ की चेतावनियाँ दूर की आवाज लगीं। थोड़े ही दिनों में अरविंद ने घर-घर जाकर अपनी किस्मत चमकानी शुरू कर दी — महंगे अफसरों के साथ तस्वीरें, बड़े दफ्तर, और वादों का सुहावना जाल।


आन्या ने माँ से कहा, “माँ, अब सब ठीक हो जाएगा। अरविंद मेरे साथ है।” माँ ने तेज़ आवाज में कुछ नहीं कहा; बस आँच की तरह धीरे-धीरे उसने अपनी आँखों में समेट रखा था। उसकी साँसों में एक तरह की चिंता थी, जैसे पहले से ही वो जानती हो कि ज़माना ऐसा है — कहने को बहुत दोस्त, पर आख़िर में कुछ भी नहीं।


समय ने वही सिखाया जो माँ पहले से समझ चुकी थीं। अरविंद की चमक फीकी न पड़ने वाली नहीं थी — एक दिन अचानक उसकी फोन बंद हो गई। कुछ महीने बाद खबर मिली कि वह किसी और शहर में किसी और के साथ है। आन्या का भरोसा टूट गया; उसका आत्मविश्वास चूर-चूर हो गया। उसने अपनी गलती सबसे ज्यादा अपनी माँ को बताई — और माँ ने आँसू बहाए बिना उसे गले लगाया। उस रात माँ ने चावल पकाए, कमल की तरह ठंडी थाली पर रखी और बिना किसी नारे, बस आँचल में चुप चुप रोते हुए कहा, “बेटी, ज़िन्दगी में लोग आते-जाते रहते हैं। कुछ रिश्ते टिकते हैं, पर माँ का प्यार वह छत है जो तूझे बारिश से बचाए रखता है।”


आन्या ने काम बदल लिया, अपने दर्द को मेहनत में बदल दिया। धीरे-धीरे उसने एक छोटी-सी दुकान खोली और रात-दिन मेहनत कर के उसे बढ़ाया। लोगों ने उसे पहचानना शुरू कर दिया — उसकी ईमानदारी, उसकी सरलता, और सबसे बड़ी बात, उसकी माँ का साथ। हर सुबह माँ दुकान की खिड़की पर कुर्सी लगाकर बैठ जाती, चाय बनाती और ग्राहकों का हल्का-सा मुस्कराना देखती। उनके बीच न कहना-चना था, पर एक दूसरे की आँखों में समझ थी — यह समझ कि जीवन की सच्चाईयां अक्सर कठोर होती हैं, पर माँ का साथ सबसे सच्चा सहारा है।


समय के साथ एक मौका आया — शहर में एक बड़ा अवसर। आन्या को किसी बड़ी कंपनी ने स्थानीय प्रमुख कार्यक्रम के लिए बुलाया। वह जाने लगी, पर माँ ने कहा, “तू जा बेटा, पर याद रखना — सफलता पर भी लोग तुझे अपना-अपना ठहरा कर चल सकते हैं।” उस दिन आन्या ने माँ की बातों को अपने दिल के पास रखा और बाहर की दुनिया में अपना नाम बनाया। उसने सफलता पाई, पर साथ ही उसने यह भी देखा कि जितनी चमक उसने हासिल की, उतनी ही झूठी दोस्तियां भी उसके चारों ओर आ गईं। पुरस्कार समारोहों में लोग उसकी तारीफ करते दिखते, पर जब मुश्किल आई — किसी कानूनी झंझट में या दुकानों में नुकसान हुआ — तो वही लोग गायब हो गए। माँ ने फिर से वही सिखाया — “ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सच यह है कि माँ के सिवा कोई अपना नहीं।”


एक दिन घर के पुराने अलमारी से एक चिट्ठी मिली — पिताजी की वो पुरानी चिट्ठी जिसमें उन्होंने लिखा था कि माँ ने हमेशा परिवार का बोझ अपने कंधों पर उठाया। आन्या की आँखों में आँसू उठ आए। उसने समझा कि माँ ने कितनी कुर्बानियाँ दी — रातें जागकर कैसे उसने परिवार संभाला, कैसे उसने अपनी इच्छाएँ कुर्बान कर दीं। वह रो पड़ी, इस बात पर शर्म भी आई कि उसने माँ की बातें हल्के में ली थीं।


समाप्ति में, आन्या ने अपने जीवन का स्वरूप बदल दिया — उसने अपने रिश्तों को फिर से व्यवस्थित किया, बाहर की दुनिया में मजबूत कदम रखे, पर हर जीत पर उसने माँ को साथ रखा। उसकी दुकान का सबसे अच्छा कोना माँ का था — जहाँ माँ आराम करतीं, बच्चों की तरह कहानियाँ सुनातीं और किसी भी मुश्किल में सबसे पहले हाथ थाम लिया करती थीं। लोग उसे देखते और कहते, “वो तो अपनी माँ के लिए सब कुछ करती है।” आन्या मुस्कुराती और भीतर से सोचती — हाँ, यही सच्चाई है।


उसने आख़िर में अपने छोटे से नोटबुक पर एक लाइन लिखी: “जितना भी तू दुनिया से हासिल कर ले — दौलत, शोहरत, दोस्ती — पर माँ का हाथ थामे बिना सारे रास्ते सूने लगते हैं। ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सच यही है — माँ के सिवा

कोई अपना नहीं।”