रवि नाम का एक साधारण लड़का था, जो एक छोटे से गाँव में रहता था। उसके पिता किसान थे और घर की हालत भी बहुत अच्छी नहीं थी। पढ़ाई में रवि हमेशा अच्छा था, लेकिन उसके मन में एक डर हमेशा बना रहता था – “अगर मैं असफल हो गया तो? लोग हँसेंगे, माता-पिता निराश होंगे और मेरी मेहनत बेकार जाएगी।” यही डर उसके कदमों को रोकता था।
रवि की सबसे बड़ी इच्छा थी कि वह आईएएस अधिकारी बने और गाँव का नाम रोशन करे। परंतु जैसे ही वह किताब खोलता, मन में नकारात्मक विचार आने लगते – “इतना बड़ा सपना पूरा करना मेरे बस की बात नहीं… इतनी मेहनत और प्रतियोगिता का सामना कैसे करूंगा?”
गाँव के ही एक बुज़ुर्ग शिक्षक ने एक दिन रवि से कहा –
“बेटा, डर हर किसी को लगता है। पर फर्क इस बात से पड़ता है कि तुम डर को अपने ऊपर हावी करते हो या उससे लड़कर आगे बढ़ते हो। याद रख, डर केवल दिमाग का बनाया हुआ जाल है। अगर इसे तोड़ दोगे, तो तुम्हें कोई नहीं रोक सकता।”
उनकी बातें रवि के दिल को छू गईं। उसने ठान लिया कि अब चाहे जितनी भी मुश्किलें आएं, वह डर से भागेगा नहीं, उसका सामना करेगा।
रवि ने अपनी तैयारी शुरू की। सुबह 4 बजे उठकर पढ़ाई करना, दिनभर मेहनत करना और रात तक किताबों में डूबे रहना उसकी दिनचर्या बन गई। गाँव के लोग अक्सर कहते – “इतना मत पढ़, ये तेरे बस का नहीं है।” लेकिन रवि हर बार अपने आप से कहता –
“कभी ना डर तू, तू कर सकता है।”
समय बीता, और रवि ने परीक्षा दी। पहले प्रयास में वह असफल हो गया। मन टूट गया, आँखों से आँसू भी आए। लेकिन उसने हार नहीं मानी। खुद को समझाया –
“असफलता इस बात का प्रमाण है कि मैंने कोशिश की। अगली बार और अच्छा करूंगा।”
दूसरे प्रयास में भी सफलता हाथ नहीं लगी। गाँव के लोग अब उसका मज़ाक उड़ाने लगे – “देखा, हमने कहा था न… ये सब बेकार है।”
पर रवि ने फिर भी अपने डर और निराशा को खुद पर हावी नहीं होने दिया। उसने माता-पिता की मेहनत और अपने सपनों को याद किया और और भी अधिक लगन से पढ़ाई शुरू की।
आखिरकार तीसरे प्रयास में उसने न सिर्फ़ परीक्षा पास की बल्कि टॉप रैंक भी हासिल की। जिस गाँव के लोग कभी उस पर हँसा करते थे, वही लोग आज उसकी तारीफ़ करने लगे। माता-पिता की आँखों में गर्व के आँसू थे।
रवि ने उस दिन मंच से गाँव के युवाओं को संबोधित करते हुए कहा –
“डर हमें रोकने के लिए आता है। अगर हम डर से भागेंगे तो सपने कभी पूरे नहीं होंगे। लेकिन अगर हम डर का सामना करेंगे, तो वही डर हमारी ताकत बन जाएगा। इसलिए मैं बस इतना कहना चाहता हूँ –
कभी ना डर तू। डर के आगे ही जीत है।”
रवि की कहानी ने गाँव के कई बच्चों को प्रेरित किया। अब हर बच्चा बड़े सपने देखने और मेहनत करने से पीछे नहीं हटता था।
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सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि डर केवल हमारे मन की एक रुकावट है। अगर हम उससे भागे बिना उसका सामना करें, तो असंभव भी संभव हो जाता है। सफलता उन्हीं को मिलती है जो कहते हैं –
“कभी ना डर तू, आगे बढ़ तू।”