Love's Ashes - 1 in Hindi Love Stories by Baalak lakhani books and stories PDF | Love's Ashes - 1

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Love's Ashes - 1

अध्याय 1:पहली मुलाक़ात 

सुबह की ठंडी हवा, कॉलेज कैंपस की हलचल और पेड़ों पर बैठे परिंदों की चहचहाहट—सब मिलकर उस दिन को जैसे खास बना रहे थे। प्रेम हमेशा की तरह अपनी किताबें थामे, थोड़ा संकोच और थोड़ा आत्मविश्वास लिए कक्षा की ओर बढ़ रहा था। वह एक साधारण परिवार से था, जो छोटे शहर से निकलकर बड़े सपनों को पूरा करने आया था। उसका चेहरा भले ही सीधा-सादा था, लेकिन आँखों में चमक थी—कुछ कर दिखाने की।   

     बड़ी-बड़ी इमारतों और हरे-भरे लॉन के बीच चलते-चलते अचानक उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी। वो लड़की बाकी सबसे अलग लग रही थी। उसके हाथों में मोटी किताबें थीं, बाल हल्की हवा में उड़ रहे थे और चेहरे पर एक सादगी भरी मुस्कान थी।


   उसका नाम अनन्या था।प्रेम की धड़कन जैसे थोड़ी रुक गई। किताबों में डूबे रहने वाला लड़का पहली बार किसी लड़की को इतने ध्यान से देख रहा था। उसने सोचा—"क्या मुझे उससे बात करनी चाहिए?" मगर हिम्मत नहीं हुई।कहते हैं किस्मत खेल खेलती है।


   उसी दिन कक्षा में प्रोफ़ेसर ने एक नए प्रोजेक्ट की घोषणा की और छात्रों को जोड़ी में बाँट दिया। प्रेम को जब अपना नाम अनन्या के साथ सुनाई दिया, तो उसे यकीन ही नहीं हुआ।अनन्या उसकी ओर बढ़ी और मुस्कुराकर बोली—“तो अब हम पार्टनर हैं! उम्मीद है कि आप मेहनत करेंगे, क्योंकि मैं काम आधा-अधूरा नहीं कर पाती।”प्रेम हल्की मुस्कान के साथ बोला—“जी, मैं भी पूरी कोशिश करूँगा।”यही शुरूआत थी।

   आने वाले दिनों में दोनों को साथ समय बिताना पड़ा। लाइब्रेरी के कोनों में, कैंपस कैफे की मेज़ों पर, या क्लास के बाद बेंच पर बैठकर दोनों प्रोजेक्ट की बातें करते। चर्चाओं के बीच कभी-कभी अनन्या खिलखिलाकर हँस पड़ती और प्रेम उसे चुपचाप देखता रहता। उसके लिए अनन्या की हँसी किसी संगीत से कम नहीं थी। 


  धीरे-धीरे दो अजनबी दोस्त बन गए। दोस्ती की ये डोर इतनी मज़बूत हुई कि उनकी बातें प्रोजेक्ट से आगे बढ़कर ज़िंदगी और सपनों तक पहुँच गईं।


   अनन्या ने एक दिन पूछा—“प्रेम, तुम्हें सबसे ज़्यादा डर किस चीज़ से लगता है?”प्रेम ने थोड़ी देर सोचकर कहा—“शायद हारने से…मैं अपनी मेहनत से सब पाना चाहता हूँ। लेकिन डर हमेशा रहता है कि कहीं सब छिन न जाए।”अनन्या ने हल्की मुस्कान दी और बोली—“तुम्हें हारने से नहीं, कोशिश न करने से डरना चाहिए। सपने देखने वाले वही जीतते हैं जो हार से घबराते नहीं।”उस दिन प्रेम को लगा जैसे अनन्या ने उसके भीतर हिम्मत का एक नया बीज बो दिया हो।

     दिन महीने में बदलते चले गए। प्रोजेक्ट सफल हुआ, और दोनों की दोस्ती और भी गहरी। अब न तो प्रेम उसके बिना अपनी बातें पूरी कर पाता था, न ही अनन्या बिना उसे मिले बिना चैन महसूस करती थी।लेकिन प्रेम अभी भी अपने दिल की बात कहने से डरता था। वो जानता था कि मोहब्बत आसान नहीं होती, खासकर उसकी जैसी पृष्ठभूमि वाले लड़के के लिए।


एक रात हॉस्टल की खिड़की से आसमान देखते हुए उसने खुद से कहा—“क्या मैं अनन्या से सच में प्यार करने लगा हूँ?”उस सवाल का जवाब वो खुद जानता था, 

कॉलेज का जीवन नई-नई परछाइयों, भीड़ और सपनों की हलचल से भरा था।

  प्रेम और अनन्या अब करीब थे—इतने कि दोनों के दिन की शुरुआत और अंत एक-दूसरे की बातों से होती थी। सुबह की क्लास हो या लाइब्रेरी में प्रोजेक्ट की मीटिंग, उनकी हँसी-ठिठोली कैंपस की हवा में घुल गई थी।

वे दोनों कॉलेज के लॉन में बैठकर घंटों बातें करते; कभी जिंदगी के डर, कभी परिवार की बातें—और कभी-कभी बेवजह की चुहल।  एक दिन, बारिश की हल्की फुहार में, दोनों लाइब्रेरी से निकलते वक्त भीग गए। अनन्या ने जोर से हँसकर कहा,  "देखो प्रेम, जितना पढ़ो उतना भीगो! देखना, यादें कितनी गहरी होंगी।"

प्रेम मुस्कुराया, पर मन में कहीं उसकी धडकनों ने कुछ और कहाशायद यह पल आदतन नहीं, खास है।

धीरे-धीरे दोनो के दोस्तों को भी ये बदलाव महसूस हुआ। दोस्त छेड़खानी करने लगे—  "क्या बात है, प्रेम! अब तो तुम्हारी लाइब्रेरी वाली दोस्त के बिना चाय भी नहीं जमती?"

अनन्या भी शर्मा जाती, और प्रेम बस मुस्कराकर रह जाता।  इन चिढ़ाने में, वह प्यार की वो मासूमियत थी, जिसे कोई शब्द नहीं दे सकता।

एक दिन, किसी छोटे से प्रोजेक्ट के मुद्दे पर दोनों की बहस हो गई।  अनन्या, जो आमतौर पर चुप न बैठती थी, उस दिन गुस्से में आगे बढ़ गई। प्रेम परेशान हो गया—  वो पहली बार महसूस कर रहा था कि अनन्या की एक छोटी सी नाराज़गी भी उसका दिल दुखा सकती है।

शाम को, कॉमन रूम में थोड़ी दूरी से दोनों बैठ गए। प्रेम ने पहल की—  "सॉरी, अनन्या। शायद मैं ज़्यादा ही बोल गया।"

अनन्या ने सिर झुकाया और धीमे से बोली—  "नहीं प्रेम, ये कोई बड़ी बात नहीं। पर तुम्हारे बिना बात अधूरी सी लगती है।"

यह एक छोटी सी सुलह के साथ उनके रिश्ते में नजदीकी और गहरी हो गई।

अब दोनों खुलकर अपने-अपने सपनों की, डर की और भविष्य की बातें करने लगे।  अनन्या ने एक दिन पूछा—  "क्या सोचते हो, जीवन में सबसे बड़ी खुशी क्या है?"  प्रेम ने बिना कुछ सोचे जवाब दिया—  "शायद किसी को सच्चे मन से चाह पाना।"

उस पल दोनों की आँखें मिलीं, और मानो दिल ने कही अनकही बात को समझ लिया।

एक सांझ, कॉलेज के गार्डन के कोने में दोनों चुप बैठे थे।  अचानक, प्रेम ने हिम्मत जुटाकर कहा—  "अनन्या, अगर मैं कहूँ कि मैं…"

अनन्या ने उसकी बात बीच में काट दी,  "मैं जानती हूँ, प्रेम। शायद मैं भी वहीं महसूस करती हूँ, जो तुम।"

उस दिन, पहली बार दोनों ने अपना दिल खोलकर रख दिया।  हाँ, सब कुछ बदल गया था और साथ ही कुछ भी नहीं बदला था।  अब वे एक-दूसरे के लिए थोड़े और जरूरी, थोड़े और अपने हो चुके थे।