Jhaggu Journalist (Satire Series) in Hindi Comedy stories by Deepak Bundela Arymoulik books and stories PDF | झग्गू पत्रकार (व्यंग सीरीज)

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झग्गू पत्रकार (व्यंग सीरीज)

नमस्कार, आदाव 

आजकल की खबरें कोई खबरें हैं जो दिन भर शब्दों के हेर फेर करके ब्रेकग न्यूज़ के नाम पर पब्लिक को धमकाते और डराते रहते हैं जीके लिए ज्ञानी अज्ञानी और बुद्धिजीवी की एक पूरी की पूरी फौज धन के आभाव में तन-मन से लगी रहती हैं. वैसे मेरे ख्याल से जब भारत के पत्रकार को देश का चौथे स्थम्ब से नवाज़ा था तब शायद उस दौर के पत्रकारों ने सावित किया होगा की सही में हमारी कौम भारत का चौथा स्थम्ब ही हैं... लेकिन गुजरते समय के साथ साथ ये चौथा स्थम्ब कितना बदल गया हैं ये हम आज के दौर में बखूबी देख ही रहें हैं.. इन्ही की फौज से नकारे गए हमारे मोहल्ले के झग्गू चाचा जी हैं जो पैदाइसी पत्रकार हैं ऐसा उनके हाव भाव और रहन सहन से ही नहीं बातों के लहजे से उनकी पत्रकारिता के कीड़े को मजबूती से प्रदान करता हैं. ये पत्रकारिता का कीड़ा झग्गू भाई को गॉड गिफ्टेड हैं इसीलिए तो वो हमेशा कहते हैं मियां हम जन्मजात पत्रकार हैं...कोई भी उनकी इस महारथ में आए-बाए और 10 फिट ऊपर निचे कोई नहीं फटाक सकता हैं वैसे इस दौर में कई प्रकार के पत्रकार मिलेंगे जैसे गौरैया पत्रकार– जहाँ भी हल्की-सी खबर गिरी, तुरंत चहचहाने पहुँच जाते हैं। असल मुद्दा दिखे या न दिखे, ट्वीट ज़रूर करेंगे, तोता पत्रकार– सत्ता हो या विपक्ष, जो भी मालिक दाना डालेगा, वही रटेंगे। "तोता वही बोलेगा जो मालिक सिखाएगा।"
बाघ पत्रकार– बड़े मुद्दों पर दहाड़ते हैं, लेकिन मालिक का इशारा मिलते ही दूध पीते बिल्ली बन जाते हैं, मोमबत्ती पत्रकार–भावनाओं में ऐसे जलते हैं कि हर घटना को Breaking News बनाकर आँसुओं में डूबो देते हैं, दूरबीन पत्रकार– गली का गड्ढा नहीं दिखता, लेकिन अमेरिका-चीन की नीतियों पर लंबा ज्ञान परोसते हैं, सेल्फी पत्रकार – खबर से ज़्यादा खुद को दिखाना ज़रूरी। "देखिए मैं घटना स्थल पर मौजूद हूँ… बैकग्राउंड बाद में जोड़ लेंगे।", टीआरपी पत्रकार– खबर वही है जिसमें मसाला हो। असली मुद्दे कचरे के ढेर में दबे रह जाते हैं और समाधान पत्रकार– खुद ही सवाल पूछते हैं, खुद ही जवाब दे देते हैं और खुद ही जनता के दुखों का इलाज बता देते हैं—बस जनता को इलाज कभी नहीं मिलता झग्गू जी इस नस्ल के तो कतई नहीं हैं अब मैं आपको दूसरे दर्जे के पत्रकारों से भी अवगत करा देता हूं भौंकू पत्रकार– ये वही हैं जो चैनल पर दिन-रात भौंकते रहते हैं। सवाल आपसे पूछेंगे, जवाब खुद ही देंगे और आखिर में आपको ही दोषी ठहरा देंगे, पलटू पत्रकार– सत्ता बदली नहीं कि इनके सुर भी बदल जाते हैं। कल तक जो "महान नेता" था, आज वही नेता इनकी नजरों में "देशद्रोही" बन जाता है, चाटू पत्रकार– इनकी कलम में स्याही नहीं, चटनी भरी होती है। मालिक की थाली में जो परोसा गया, वही जनता को परोस देंगे, रोतले पत्रकार– इन्हें खबर नहीं, सिर्फ ड्रामा चाहिए। एंकरिंग करते-करते ऐसे सिसकेंगे जैसे पूरे देश का दर्द इनके ही कलेज़े को चीर रहा हो, माइकवीर पत्रकार – जनता की भीड़ में सिर्फ माइक घुसा देंगे। सवाल पूछेंगे ही नहीं, बस माइक झुलाते रहेंगे और बाद में स्टूडियो में बैठकर बहस पका देंगे, कट-पेस्ट पत्रकार– रिसर्च इनकी डिक्शनरी में ही नहीं है। गूगल से कॉपी किया, थोड़ा इधर-उधर किया और बना दी 'एक्सक्लूसिव रिपोर्ट', फ्री-की-चाय वाले पत्रकार– जो खबर ढूँढने कम, और नेताओं की मीटिंग में मुफ्त की चाय-समोसा खाने ज़्यादा जाते हैं लेकिन झग्गू मियां इन पत्रकारों की केटेगरी में कही दिखाई नहीं देते बस ये तो स्वयंभू पत्रकार हैं.

“स्वयंभू पत्रकार”

न खबर पढ़ी, न खबर लिखी,
पर बन गये झाग्गूजी पत्रकार

मोबाइल पकड़ा, गले में कार्ड,
सोचते है खुद को मीडिया का स्टार्ड।

सवाल न ढंग के, न कोई तर्क,
बस करते है अफ़वाहों का मर्क।

जनता बोले—“ये कैसा अख़बार?”
मैं बोला—“भाई, ये है फेसबुक के पत्रकार!”

क्रमशः-