जनता बोले—“ये कैसा अख़बार?”
मैं बोला—“भाई, ये है फेसबुक के पत्रकार!”
क्रमशः—
मोहल्ले की पत्रकारिता का सारा बोझ अगर किसी एक के कंधों पर है, तो वो हैं हमारे गॉड गिफ़्टेड झग्गु जी!
टीवी वाले दिखाएँ चाहे दुनिया का युद्ध, संसद का हंगामा या क्रिकेट का मैच, हमें उससे फर्क नहीं पड़ता।
हमारे लिए असली ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ वही है जो झग्गु जी अपने FB न्यूज़ चैनल और व्हाट्सऐप ग्रुप पर डालते हैं।
अब ज़रा सुनिए, कल की एक्सक्लूसिव ब्रेकिंग 👇
“सुबह ठीक 8 बजकर 42 मिनट पर शर्मा आंटी ने दूध वाला देखा।”
“दूध का पैकेट उठाते समय आंटी की सैंडल फिसली।”
“मकान नम्बर 12 के वर्मा जी ने मौके पर आंटी को संभाला…!”
“सूत्रों की मानें तो सैंडल का पट्टा टूटा हुआ था… फिलहाल झग्गू जी इस घटना पर पैनी नजर बनाए हुए हैं।”
बस इतना सुनते ही कॉलोनी के सारे ग्रुपों में चर्चा शुरू हो गई
“ओ माय गॉड!”
"कौन से वर्मा जी?”
“कौन सा पट्टा टूटा?”
जैसे सवालों की बाढ़ आ गई। मामला इतना बढ़ गया कि शाम तक कॉलोनी की पार्क में मीटिंग रखनी पड़ी। शर्मा जी बेचारे सफाई देने लगे—
“भाई, दूध वाला आया था, आंटी का पैर फिसल गया, मैंने बस पकड़ लिया… अब इसमें तूल क्या देना?”
लेकिन तूल तो वहीं मिलना था, क्योंकि झग्गु जी पहले ही “सीन ऑन लाइव” करके माहौल गरमा चुके थे।
और ये पहली बार नहीं है।
पिछले हफ़्ते भी झग्गू जी ने फ्लैश ब्रेकिंग दी थी—
“कॉलोनी की गली नम्बर 3 में कुत्ता भौंका।”
“रात 11:30 बजे का मामला, पूरे 3 मिनट लगातार भौंकता रहा।”
“सूत्रों के हवाले से ख़बर: कुत्ते ने मकान नम्बर 27 की बाइक देखकर शक जताया।”
“अभी तक यह साफ नहीं हो पाया कि बाइक वर्मा जी की थी या गुप्ता जी की।”
बस, सुबह तक इतना माहौल बना कि कॉलोनी के वॉचमैन को भी सफाई देनी पड़ी
“साहब, कुत्ता तो मेरा ही था, भूखा था इसलिए भौंक रहा था।”
लेकिन जनता बोली —“झग्गु जी बोले हैं तो कुछ तो होगा।”
और तो और, चुनाव जैसा माहौल तब बन गया जब उन्होंने एक दिन पोस्ट डाल दी—
“रमेश बाबू और मकान नम्बर 46 की मोहतरमा के बीच ‘मुस्कुराहट कांड’।
“दोनों की आंखें मिलीं, लेकिन मामला दबा दिया गया।”
“फिलहाल FB न्यूज़ इस पर बड़ी स्टोरी बना रहा है… इंतज़ार कीजिए।”
बस, फिर क्या था! पूरे 6 सेक्टरों में खलबली मच गई।
A ब्लॉक वाले बोले—“मोहतरमा हमारी तरफ़ की थीं।”
D ब्लॉक वाले बोले—“रमेश बाबू तो हमारे सेक्टर के हैं।”
बाकी ब्लॉकों के लोग तो वैसे ही मसाला लेकर बैठ गए।
शाम तक तीन ग्रुपों में झगड़ा, हो गया.
“रमेश बाबू इस्तीफ़ा दो” और एक ग्रुप में “मोहतरमा पर जांच आयोग बैठाओ” की माँग शुरू हो गई।
और इन सबके बीच झग्गु जी अगले दिन सुबह “फॉलो-अप रिपोर्ट” लेकर हाज़िर हो गए
“कॉलोनी की बड़ी खबर: रमेश बाबू क्लीन चिट पा गए।
मुस्कुराहट मोहतरमा की स्वाभाविक आदत थी।
लेकिन मोहतरमा ने अब तक चुप्पी साधी हुई है।
क्या ये चुप्पी किसी तूफान का इशारा है?
देखते रहिए FB न्यूज़, सच सबसे पहले!”
अब बताइए, ऐसे पत्रकार के रहते मोहल्ले में किसे अख़बार की ज़रूरत है?
में तो कहता हूं की टीवी चैनल वालों को तो झग्गु जी से इंटर्नशिप करनी चाहिए, तभी असली “ब्रेकिंग” समझ पाएँगे...
हालांकि मेरी नज़रो में झग्गू जी ऐसे पत्रकार हैं यदि उन्हें जासूस पत्रकार न समझे तो नाइंसाफी होंगी... क्योंकि हमारी कॉलोनी के बहुत से लोग हैं जो झग्गू जी की खबरों पर ही निर्भर हैं... यानि वे हमारे कॉलोनी के पेड़ पत्रकार वर्कर हैं...इसीलिए उनके सम्मान में मेरा मन कुछ इस तरह बया करने पर मजबूर हो गया.
झग्गू जी की न्यूज़ अनोखी,
हर गली में मचती धूम चौकी।
फेसबुक पर ब्रेकिंग छपती,
व्हाट्सऐप पे मिर्ची लगती।
“रमेश बाबू निकले बाहर,
मोहतरमा ने दी मुस्कान की झंकार!”
जनता बोली—“ये कैसा चमत्कार?”
मैं बोला—“भाई, ये है फेसबुक का अख़बार!”
“शर्मा आंटी फिसली सैंडल से,
वर्मा जी निकले मदद के मेंडल से।”
खबर बनी मानो भूचाल आया,
कमेंट में सबने झगड़ा फैलाया।
“कुत्ता भौंका, बिल्ली कूदी,
झग्गु बोले—ब्रेकिंग जुड़ी।”
चाय की प्याली छूट गई हाथ,
FB न्यूज़ ने कर दिया घात।
टीवी वाले हारे मैदान,
अख़बार भूले अपना ज्ञान।
मोहल्ले की जनता अब ये मानें,
झग्गु जी ही न्यूज़ के भगवान हैं।
“रुको ज़रा, सब्र करो… अगली ब्रेकिंग कुछ ही पलों में… बने रहिए झग्गु पत्रकार की FB न्यूज़ पर!”
क्रमशः