जिंदगीनामा – शुरुआत
यह मैं हूँ… और यह ‘मैं’ शब्द यहाँ अहंकार का प्रतीक है। अहंकार वह शक्ति है जो खुद से लड़ने, खुद को चुनौती देने और किस्मत को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह अहंकार है एक ऐसे लड़के का, जो अपने सपनों से हार नहीं मानता, अपनों के विरोध और कठिनाइयों के बावजूद अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाता है।
यह कहानी है 17 साल के अर्जुन की, जो अभी बड़ा हो रहा है। अर्जुन का नाम ही यश, कीर्ति और वैभव का प्रतीक है। लेकिन उसका जीवन इन शब्दों के विपरीत संघर्षों और कठिनाइयों से भरा है।
अर्जुन एक मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुआ। उसके पिता छोटे से गांव में दवा की दुकान चलाते हैं और उसकी मां एक सभ्य गृहणी हैं। अर्जुन का एक छोटा भाई भी है, जो अभी दसवीं में है। सुनने में यह परिवार साधारण और खुशहाल लगता है, लेकिन उनकी जिंदगी में चुनौतियाँ कभी खत्म नहीं होतीं।
अर्जुन, परिवार का बड़ा बेटा होने के कारण, जिम्मेदारियों के बोझ तले धीरे-धीरे दबता गया। जब वह पांच साल का था, घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उसके पिता उसे पढ़ाई के लिए अपने बड़े भाई के पास भेज देते हैं। बड़े भाई की मदद से अर्जुन को पहले एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल में दाखिला मिला, लेकिन फीस की वजह से एक साल बाद उसे हिंदी माध्यम स्कूल में स्थानांतरित कर दिया गया।
हिंदी माध्यम स्कूल अर्जुन के जीवन का कठिन समय साबित हुआ। वहाँ का वातावरण और पढ़ाई के तरीके उसे चुनौती देते थे। हर नया विषय और हर नया शिक्षक उसे अपने आत्मविश्वास पर सवाल उठाने पर मजबूर करते। लेकिन अर्जुन अकेला नहीं था। उसके स्कूल में उसका सबसे अच्छा मित्र अयान था। अयान हमेशा उसके साथ खड़ा रहता, उसे हिम्मत देता और कभी हार मानने नहीं देता। अयान कहता, "दोस्त, मुश्किलें आएंगी, मगर हमारी कोशिशों का कोई जवाब नहीं।"
अर्जुन और अयान दोनों ही सपनों के शिखर पर पहुँचने की चाह रखते थे, लेकिन रास्ते मुश्किल और कठिन थे। कई बार लोग उनकी कोशिशों का मज़ाक उड़ाते, कहते कि तुम वहाँ तक नहीं पहुँच सकते। लेकिन अर्जुन का अहंकार और अयान का विश्वास उसे निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते।
अर्जुन का जीवन छोटे-छोटे संघर्षों और जिम्मेदारियों से भरा था – घर का खर्च, पढ़ाई, और छोटे भाई की देखभाल। फिर भी उसकी आँखों में उम्मीद की झलक थी। वह जानता था कि सफलता सिर्फ किस्मत का खेल नहीं, मेहनत और साहस का नाम है। अर्जुन रोज़ अपने सपनों को महसूस करता, हर छोटी जीत पर मुस्कुराता और हर असफलता से सीख लेता।
यह कहानी सिर्फ अर्जुन की नहीं, बल्कि हर उस लड़के की है जो अपने अहंकार, संघर्ष और मित्रता के दम पर कठिनाइयों को पार करता है। अयान और अर्जुन की दोस्ती साबित करती है कि "दोस्ती और उम्मीद के बिना कोई भी मंज़िल हासिल नहीं की जा सकती"।
क्या अर्जुन और अयान अपने सपनों तक पहुँच पाएँगे? हिंदी माध्यम स्कूल की चुनौतियाँ उन्हें तोड़ पाएँगी या उनकी दोस्ती और मेहनत उन्हें ऊँचाइयों तक ले जाएगी?
‘जिंदगीनामा’ के सफर में हमारे साथ जुड़े रहिए…
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