१. लकी का किस्मत
कहते हैं कि दिल्ली दिलबरों की है , दिलजलों की है। कहते तो ये भी हैं कि दिल्ली दिल्फ़रेबों की भी है, और लकी यानि की लक्ष्मण लाल अग्रवाल में ये सारे गुण मौजूद थे। लोग उसकी शक़्ल को देखकर ही कह देते थे कि दिल्ली से हो क्या? लकी वैसे दिखने में स्मार्ट और अट्रैक्टिव था, पर जेब से खस्ता हाल होने कि वजह से रहता सिंपल तरीके से था ।
शर्ट का रंग उड़ा हुआ और पैंट से पैबंद जुड़ा हुआ। कहने को तो उसकी उमर के लकड़े दिल्ली की सड़कों पर रात को मोटरबाइक दौड़ाते थे, लेकिन लकी उर्फ़ लक्ष्मण लाल अग्रवाल सिर्फ़ कमरे से कॉलेज, कॉलेज में पढ़ाई और गर्लफ्रेंड डिंपल के साथ थोड़ा वक़्त बिताना, फिर कॉलेज से दुकान, दूकान से जब होम डिलेवरी आये तो वहां और फिर घर चला जाता था। हाँ कभी-कभी जब वो किसी लड़के को खाली सड़क पर मोटरबाइक दनदनाते हुए देखता तो कहता-
‘एक दिन! एक दिन अपना टाइम आएगा! जब मैं चश्मा लगाकर बैठूँगा, और मेरे पीछे डिम्पल को बैठाऊँगा ! देखना, जब वो मेरी कमर में अपना हाथ कसेगी और मैं तेज़ी से मोटरसाइकिल को इंडिया गेट के आसपास दौड़ाऊँगा, तो सारे दिल्ली का दिल हम दोनों को देखकर जल जाएगा। दुकान में रखा हुआ बर्नोल भी काम नहीं आएगा।’ लकी ने कहा और अपने हाथ में बर्नोल की क्रीम को दबा दिया। जैसे ही उसने क्रीम को दबाया, उसका ढक्कन खुल गया और उसमें से सारी क्रीम बाहर आ गयी।
‘अबे गधे क्या कर रहा है! वो कोई स्पंज की गेंद है क्या, जो उसे दबा रहा है?’ - दुकान के मालिक ने उसे फटकारते हुए कहा और उसके माथे में एक चपत लगा दी।
‘सॉरी! सॉरी सर जी सॉरी!’ लकी ने अपना सिर बचाते हुए कहा । वो क़रोल बाग़ में स्थित एक छोटी सी मेडिकल स्टोर पर काम करता था। उसकी दुकान का नाम था चमन मेडिकल स्टोर और उसके ओनर का नाम था चमन लाल।
लकी पिछले 5 सालों से इन्हीं की दुकान पर काम कर रहा था। यहाँ इस छोटी शॉप पर काम करना उसकी मज़बूरी थी। लाइफ में कंगाली की वजह से उसे कॉलेज में पढ़ाई पूरी करने के लिए पार्ट टाइम जॉब करना जरुरी था, उसने कई अच्छी जगह, अच्छी तनख्वाह की नौकरी ढूंढ़ी, पर नहीं मिली। और वो इस मेडिकल पर ही अटक कर रह गया।
‘गधे! अब इसके पैसे कौन तेरा बाप भरेगा? कटेगा! इसका पैसा भी तेरी तनख़्वाह से कटेगा और एम आर पी से डबल कटेगा !’ - चमन ने अपने दांतों को किचमिचाते हुए कहा। ग़ुस्से की वजह से उसकी नाक फूल गयी थी और लकी की साँसे।
उसने घबराते हुए owner से पूछा-‘एम आर पी से डबल क्यूँ सर जी?’
‘ताकि अगली बार से ऐसी कोई हरकत करने से पहले तू डबल बार सोचे!’- चमन ने कहा और उसके हाथ से ट्यूब छीन ली। उसका जी तो चाह रहा था कि वो लकी की खोपड़ी पर और एक बार अपना हाथ साफ़ कर ले ,लेकिन उससे पहले ही दुकान का फ़ोन बजने लगा। फ़ोन की घंटी बजते ही लकी को वहाँ से निकलने का मौक़ा मिल गया और वो भागते हुए फ़ोन उठाने के लिए चला गया।
‘हेलो जी क़रोल बाग़ के बेस्ट मेडिकल चमन मेडिकल से बोल रहा हूँ! बताईए क्या काम था?’ ये लकी की पेटेंट लाइन थी। चाहे कहीं से भी फ़ोन आए, लेकिन उसे फ़ोन पर बस यही बोलना था। जैसे ही इधर से लकी ने अपनी बात कही, उधर से उसे जवाब आया-
‘मैं ब्लूमिं नाइट्स होटल के कमरा नम्बर 303 से बात कर रहा हूँ। एक छोटा सा ऑर्डर है, नोट करो और जल्दी से होटल पर डिलिवर करवा दो।’ - वो एक लड़के की आवाज़ थी। उसकी आवाज़ में काफ़ी भारीपन और एक अजीब सी जल्दबाज़ी थी। जैसे ही लकी ने वो आवाज़ सुनी, पता नहीं क्यूँ लेकिन उसे वो आवाज़ जानी पहचानी सी लगी।
‘जी बताइए सर आपका क्या ऑर्डर है!’
‘हाँ तो लिखो, हार्डप्ले के दो पैकेट और एक पैकेट टिशू !’ लकी जोकि अपना पेन लेकर तैयार खड़ा था, सेफ़प्ले का नाम सुनते ही झिझक गया था। असल में हार्डप्ले नाम का एक कंडोम आता था और इसलिए उसका नाम सुनते ही लकी शर्मा गया था। इतने साल से भी मेडिकल की दुकान पर काम करने के बाद भी उसे इन चीज़ों का नाम सुनने में शर्म आती थी।
‘हेलो! भाई लिखा कि नहीं लिखा?’ - उस आदमी ने फिर से लकी से पूछा।
‘जी! जी सर लिख लिया सर!’ - लकी ने खिसियाकर हँसते हुए कहा।
‘लिख लिया तो फिर लेकर निकल!’ उस लड़के ने कहा।
उसकी आवाज़ सुनकर ही ना जाने क्यूँ ऐसा लग रहा था कि वो कोई बहुत बड़ा आदमी था।
‘जी! जी सर मैं-सर लेकिन बाहर तो बारिश हो रही है।’ - लकी ने कहा उसने देखा की बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी। उनकी दुकान के सामने पानी भर गया था और तेज हवाओं की वजह से चमन मेडिकल स्टोर का बोर्ड भी गिर गया था।
लकी को लग रहा था कि वो इतनी तेज बारिश में अभी एकदम से तो वो नहीं निकल पायेगा।
तो उसने उस लड़के को समझते हुए कहा- "सर मैं आपका आर्डर ले तो आऊंगा, पर थोड़ा टाइम लगेगा, बारिश थोड़ी थम जाये। आप--" इससे पहले वो कुछ आगे बोल पाता फ़ोन पर लड़का बोल पड़ा-
‘तुम्हारे मालिक को पता है कि तुम मल्होत्रा जी के लड़के को मना कर रहे हो! बहस मत करो। हाँ पता है बारिश हो रही है! इसलिए सारा सामान अच्छे से थैली में पैक करके लाना। और लेट नहीं होना चाहिए समझे।’ - उस लड़के ने कहा और इससे पहले की लकी आगे कुछ कह पाता, उसने फ़ोन काट दिया था।
उधर से लकी के दुकान का owner उसे घूरकर देखे जा रहा था। लकी के हाथ में पेन और पेपर देखकर ही वो समझ गया था की उसके पास कोई ऑर्डर आया था। आज वैसे भी इतनी बरसात होने की वजह से सुबह से इक्का दुक्का ग्राहक ही दुकान पर आए थे, ऐसे में उसकी दुकान का मालिक एक भी ऑर्डर को छोड़ना नहीं चाहता था। वो लकी को देख रहा था और लकी बारिश की ओर देख रहा था।
‘बारिश का बहाना नहीं चलेगा! जाना पड़ेगा!’ - चमन लाल ने कहा।
‘मैं बहाना नहीं कर रहा, थोड़ी बारिश धीमी हो जाये तो मैं चला जाऊंगा। अभी आप खुद ही देखिये कितनी तेज बारिश है। वो पता नहीं कोई मिस्टर मल्होत्रा का बेटा कुछ ज्यादा ही जल्दी में था सर जी, मैं साइकल से तो पहुँच ही नहीं पाऊँगा इतनी जल्दी!’ लकी ने उनकी ओर देखते हुए कहा।
'क्या कहा, मिस्टर मल्होत्रा का बेटा, तू मेरी दूकान बंद करवाएगा क्या, अभी के अभी निकल उनका आर्डर लेके। वो हमारे बहुत पुराने कस्टमर हैं। चमन ने कहा ।
'पर-' लकी ने कहा ही था की चमन बोला ।
‘पर- वर कुछ नहीं, तू मेरी मोटर्सायकल ले जा!’ उन्होंने गुस्से में कहा।
‘अर्रे सर जी, 200 के ऑर्डर में मुश्किल से 40 रुपए बचेंगे, इससे तीन गुना का तो पेट्रोल ही लग जाएगा, और अगर गाड़ी रास्ते में बंद हो गयी तो और ख़र्चा!’ -
लकी ने समझाते हुए कहा । वो जानता था कि उसका मालिक इन सब बातों पर ध्यान नहीं देने वाला था ।
चमन लाल बोला- ‘कोई बात नहीं! तू जा! चाहे जो हो जाए, ग्राहक नाराज़ नहीं होना चाहिए! और वो तो मल्होत्रा जी का बेटा है।’
चमन लाल ने मोटरसाइकिल की चाबी लकी की ओर उछालते हुए कहा। लकी ने चाबी ली, उसे देख कर उसके अंदर मिक्स फीलिंग्स आयीं, एक तो वो खुश हुआ कि बड़े दिनों बाद बाइक चलाने मिलेगी, पर वहीं दूसरी तरफ दुखी इसलिए हुआ कि बाइक मिली भी तो ऐसी तेज बारिश में, अगर ख़राब हो गयी तो इसकी चपत भी उसके सर ही पड़ेगी। वो मुँह लटकाकर रेनकोट और हेलमेट पहनते हुए वहाँ से निकल गया। बाहर आके बाइक को देख के लकी ने मन में सोचा- 'चलो ठीक है, जो होगा देखा जायेगा, कम से कम बाइक चलाने मिल रही है।"
दरअसल लकी इतने साल काम करने के बाद भी अपने लिए एक मोटरसाइकल भी नहीं ख़रीद पाया था। लकी की तनख़्वाह ही इतनी भर थी कि सिर्फ़ उसके कमरे का किराया, उसकी साइकल में डालने वाली हवा का खर्चा, बिजली-पानी का बिल और डिम्पल के साथ महीने में एक-दो बार बाहर खाने का खर्चा ही निकल पाता था। उसे डिम्पल की कही बात अक़्सर याद आती थी।
‘लकी! अगर अगले दो महीने में बाइक नहीं ख़रीदी ना, तो मैं तेरे से ब्रेकऊप कर लूँगी देखना।’
असल में डिम्पल को लकी के साथ बाइक पर घूमने की बड़ी तमन्ना थी। लकी की इस उजाड़ ज़िंदगी में वही तो एक थी, जिसके लिए ज़िंदा रहने को उसका जी चाहता था। जब भी वो उससे बाइक की बात करती, तो लकी डिम्पल की इस बात को हँसकर टाल देता था। वो अपने मन में इस बात को अच्छे से जानता था कि डिम्पल उससे बहुत प्यार करती थी और वो उसे कभी छोड़कर नहीं जा सकती थी। वो दोनों एक दूसरे में ऐसे घुले-मिले थे, जैसे बादल में बरसात घुल जाती थी। लकी को डिम्पल बहुत पसंद थी और वो उसके लिए दुनिया जहां की ख़ुशियाँ ख़रीदकर ला देना चाहता था। वो चाहता था कि एक दिन वो डिम्पल को प्लेन में बैठाए! लेकिन उसके ये सब ख़्वाब इस कम तनख्वाह की नौकरी की वजह से तो कभी पूरे नहीं होने वाले थे।
पर आज उसके पास मौक़ा था। वो डिम्पल को अपने साथ इस बारिश में राजपथ घुमाना चाहता था। वो उसे दिल्ली दिखाना चाहता था। चमन लाल को देने के लिए उसने पहले से बहाना सोच रखा था। बस जल्दी से वो ये डिलेवरी देकर सीधे डिम्पल के पी जी पर ही जाने वाला था।
उसने होटल ब्लूमिं नाइट्स के बाहर मोटरबाइक पार्क की और सीधा होटल के अंदर चला गया। लकी ने रिसेप्शन पर पहुंच कर नमस्ते करते हुए रिसेप्शनिस्ट को बोला-
‘जी मैं चमन मेडिकल स्टोर से आया हूँ, रूम नम्बर 303 का ऑर्डर था।’ रिसेप्शन पर खड़ा आदमी उसके हाथ में काली थैली को देखकर ही समझ गया था कि उसमें क्या था और वो मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोला-
‘थर्ड फ़्लोर पर है। लिफ़्ट से चले जाओ। रैनकोट यहीं उतार देना।’ - जैसा उस आदमी ने कहा, लकी ने वैसा ही किया और लिफ़्ट में चढ़ने के कुछ ही देर के बाद वो तीसरे माले पर पहुँच गया था। वो रूम नम्बर 303 के बाहर पहुंचा और उसने डोरबेल बजाई। जैसे ही दरवाज़ा खुला, लकी ने थैली आगे बढ़ाते हुए कहा-
‘नमस्ते मैं चमन मेडिकल स्टोर से लकी, ये आपका-‘ इससे पहले की लकी आगे कुछ कह पता, उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी थीं। उसने अपने सामने जो देखा, उसके बाद उसे ऐसा लगा की बंद छत के नीचे भी उसके ऊपर आसमान से आकर एक ज़ोरदार बिजली गिर गयी थी। उसके सामने एक लड़की खड़ी थी। वो लड़की और कोई नहीं बल्कि उसकी गर्लफ्रेंड डिम्पल ही थी। उसने एक पर्पल कलर का नाईट गाउन पहना हुआ था। उसके काले घने बाल गीले थे और उसने उन्हें अपने कंधों पर फैला रखा था। उसकी ख़ुशबू से ही ये चीज़ साफ़ पता चल रही थी की वो अभी-अभी नहाकर आयी थी।
‘डिम्पल! डिम्पल त- तुम यहाँ क्या कर रही हो !’ लकी को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उसने दो बार अपनी पलकें झपकाकर देखा, लेकिन दोनों बार उसे अपने सामने डिम्पल ही नज़र आयी।
‘तुम यहाँ क्या मेरा पीछा करते हुए आए हो?’ - डिम्पल ने उल्टा उसी के ऊपर पलटवार करते हुए कहा। लकी को देखकर उसके दिल की धड़कन भी तेज हो गई थी। उसे उम्मीद नहीं थी कि लकी यहाँ आ जाएगा। उसने ना तो सुबह से उसे फ़ोन किया था और ना ही उसके मेसेज का कोई जवाब दिया था। वो अपने मन में सोचकर बैठी थी कि वो अगले दिन खुद ही उससे मिलकर बोल देगी कि उसकी तबियत ख़राब थी।
‘डिम्पल बेबी क्या हो गया ? किससे बात कर रही हो ?’ - अचानक से एक गबरू जवान सा लड़का दरवाज़े के पास आकर खड़ा हो गया था। उसने बनियान और चड्ढा पहना हुआ था। लकी उसे पहचान गया था।
‘साले राहुल के बच्चे! तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी डिम्पल को हाथ लगाने की-‘ लकी ने जैसे ही राहुल को देखा, उसके तन बदन में मानो आग लग गयी थी। वो उसे इस वक्त इतना बुरा मारना चाहता था, इतना बुरा पीटना चाहता था जिसकी कोई हद नहीं थी।
लकी जिस कॉलेज में पढ़ता था, राहुल और डिंपल भी उसी में पढ़ते थे, और वो कॉलेज राहुल के फादर का ही था। डिम्पल ने राहुल के पिता की एक कम्पनी में जॉब पकड़ ली थी और राहुल उस पर बहुत लाइन मारता था। लकी ने एक दो बार डिम्पल को उससे दूर रहने के लिए भी कहा था, लेकिन डिम्पल ने उसे ये कहकर टाल दिया था कि वो सिर्फ़ अच्छे दोस्त थे। आज भी इससे पहले कि वो आगे बढ़ता, डिम्पल उन दोनों के बीच में आ गयी थी।
‘रुक जाओ!’ डिम्पल ने गुस्से में कहा और लकी के सीने पर हाथ रखकर उसे रोक दिया। लकी लम्बी साँसें ले रहा था और कुछ ही साँसों के बाद उसका ग़ुस्सा शांत हो गया था। अब डिम्पल के पास भी छुपाने के लिए कुछ नहीं रह गया था, इसलिए उसने लकी से कहा-
‘लकी! आज से तुम्हारा मेरा ब्रेकअप!’
‘ब्रेकअप!’ लकी के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी थी। उसकी ऑंखें नम हो गयीं। लकी को उसकी बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उसने डिम्पल की ओर देखा और बोला-
‘डिम्पल हम पिछले एक साल से एक दूसरे के साथ हैं और तुम हो कि मुझसे ब्रेकअप करना चाहती हो! अरे मैं तो तुम्हारे लिए नयी बाइक भी लेने वाला था!’
‘चल रहने दे! आज ही याद आ रही है तुमको बाइक की! अरे तेरे पास मुझे बाहर घुमाने के, खिलाने पिलाने के पैसे तो हैं नहीं, तू कहाँ से लेगा बाइक और अगर ले भी लेगा, तो उसमें पेट्रोल कहाँ से डलवाएगा! तेरी 8000 रुपए महीने की नौकरी से ये सब नहीं होने वाला है समझे! लोग हँसते हैं मेरे ऊपर जब मैं सरोजिनी में तेरे साथ घूमती हूँ! मैं ऐसी लाइफ़ नहीं जीना चाहती लकी! मैं तेरी तरह गरीब नहीं रहना चाहती! तूने मुझे फँसाया था, उल्लू बनाया तूने मुझे! इसलिए मैंने राहुल से मैच अप कर लिया है! आज से यही है मेरा बोयफ़्रेंड!’ डिम्पल ने ग़ुस्से में कहा।
‘अच्छा! तो बेबी यही है तुम्हारा वो बेकार सा एक्स बॉयफ्रेंड?’ राहुल ने पूछा और डिम्पल के बग़ल में आकर खड़ा हो गया। फिर उसने लकी के हाथ से थैली उठाई और उसमें से हार्डप्ले का पैकेट निकालकर उसे चिढ़ाने के लिए उसे हवा में लहराने लगा।
‘बाप रे! इससे बदकिस्मत इंसान इस दुनिया में और कौन होगा!’ राहुल ने उसकी टांग खींचते हुए कहा। लकी के पास उसकी बात का कोई जवाब नहीं था। उसने ग़ुस्से से डिम्पल को देखा, और अपनी हाथों की मुट्ठी भींच ली, फिर वहाँ से निकल गया।
‘अबे पैसे तो लेजा! सब कुछ फ़्री ही दे जाएगा क्या!’ राहुल ने ज़ोर से ठहाका लगाते हुए कहा, लेकिन लकी बिना उसकी बात सुनते हुए ही निकल गया। उसके दिमाग़ में डिम्पल के कहे शब्द गूँज रहे थे।
उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि डिम्पल उसके साथ ऐसा भी कुछ कर सकती थी। जिस इंसान के लिए वो इतना कुछ करना चाह रहा था, उसे उसकी कोई क़दर ही नहीं थी। लकी इतना हताश हो गया था कि बूरी तरह से रोने लगा था। इस बार वो लिफ़्ट से नहीं बल्कि सीढ़ियों से नीचे उतरा और एक-एक सीढ़ी उतरने के साथ उसके आंसू आँखों से छलकते जा रहे थे। जब उसकी आवाज़ सुनकर कुछ लोग अपने कमरे से बाहर आए, तो लकी ने तुरंत अपने आँसू पोंछे और तेजी वहाँ से भाग गया। उसे ज़िंदगी में पहली बार प्यार हुआ था और पैसों की कमी की वजह से ना सिर्फ़ उसका प्यार बल्कि उसकी पूरी ज़िंदगी बर्बाद हो गयी थी।
जैसे ही लकी बाहर आया तो उसने देखा की बाहर अंधेरा हो गया था। आसमान में तेज बिजली कड़की, और बारिश जो थोड़ी थमी थी एकाएक फिर झमाझम बरसने लगी, ये देख लकी के थमे हुए आंसू एक बार फिर छलक गए। उसका दिल बूरी तरह टूट चुका था, लेकिन उसे इस बात की ख़ुशी भी हो रही थी। आख़िर आज उसे डिम्पल का असली चेहरा नज़र आ गया था। वो तो उसके साथ घर बसाने की सोच रहा था, लेकिन अच्छा हुआ कि उसने पहले ही उसका घर बर्बाद होने से बचा लिया। लकी को दुख तो बहुत हो रहा था, पर उसे ये भी लग रहा था कि आगे चलकर यही दुख उसे ख़ुशी देने वाला था।
लेकिन और एक चीज़ थी जो लकी को परेशान कर रही थी। वो थी उसकी माली हालत। उसकी जेब इतनी तंग थी कि उसे फटी हुई जेब की पेंट पहनकर घूमना पड़ता था। कभी-कभी तो लकी सिर्फ़ रोटी खाकर दिन काट देता था। वो कबसे कोशिश कर रहा था कि कोई अच्छा काम पकड़ सके, लेकिन उसे कहीं कोई काम देने को राजी नहीं था। उसने टूटे हुए दिल को दिलासा देते हुए मन में सोचा कि डिम्पल पर होने वाले खर्चे बच जाने से शायद उसके हालात कुछ सुधर जाएँगे, पर फिर भी वो रातोंरात रईस नहीं हो जाने वाला था। उसने ऊपर आसमान की ओर देखा और जोर से चिल्लाया-
‘अगर इतना ही unlucky बनाना था, तो फिर नाम लकी क्यूँ रखा भगवान!’ वो जितनी ज़ोर से चिला सकता था, उतनी ज़ोर से चिल्लाया। उसकी आवाज़ से आसपास खड़े लोग एक बार को डर गए थे। लकी ऊपर ही देख रहा था और उसके आंसू बारिश के पानी के साथ मिल गए थे। जैसे ही वो फूटकर रोने को था, तभी उसके फ़ोन पर एक मैसेज आया। जैसे ही लकी ने अपना फ़ोन निकालकर उस मेसेज को पढ़ना शुरू किया, उसकी तो आँखें चमक गयीं। अचानक से उसके आंसू हँसी में बदल गए और वो ज़ोर-ज़ोर से वहीं सड़क पर नाचने लगा था।
उस मेसेज में लिखा था-
‘परिवार की रिसर्च और परिवार के निर्णय के हिसाब से, अग्रवाल परिवार का वारिस , लक्ष्मण लाल अग्रवाल उर्फ़ लकी ने ग़रीबी अभ्यास की परीक्षा को पास कर लिया है और आज से ही वो उस ज़मीन और उस जायदाद का मालिक हो जाएगा, जो परिवार ने उसके नाम कर रखी थी।
२ .लकी का बैंक अकाउंट
उस मेसेज को पढ़ने के बाद भर बरसात में भी उसका चेहरा सूरज की तरह खिल उठा था । लकी ने इस मेसेज को पढ़कर ख़त्म किया ही था की उसके फ़ोन पर बारिश की बूँदें जमा होने लगी थी । लकी ने थोड़ी देर की ख़ुशी मनाने के बाद याद किया की वो सच में गरीब नहीं था । असल में उसके परिवार ने उसे एक परीक्षा में डाल दिया था, जिसका नाम था ग़रीबी अभ्यास परीक्षा । इस परीक्षा के तहत लकी को अग्रवाल ख़ानदान में उसके नाम की ज़मीन और जायदाद पर तब तक हक़ नहीं मिलने वाला था जब तक की वो इस परीक्षा को पास नहीं कर लेता । अचानक से उसे याद आया की वो गरीब नहीं था बल्कि गरीब होने की परीक्षा दे रहा था । हालाँकि परीक्षा देते- देते उसे आठ साल हो गए थे, इसलिए उसे ऐसा एहसास हो रहा था कि वो कभी परीक्षा को पास नहीं कर पाएगा और हमेशा- हमेशा के लिए गरीब ही रह जाएगा ।
‘अच्छा हुआ चली गयी! अब मिलना कभी!’ लकी ने होटल की तीसरी मंज़िल के ओर देखा और पानी के अंदर ही अपना पैर पटक दिया । वो डिम्पल को कोस रहा था । उसने अपनी मोटरसाइकल उठाई और फिर से चमन मेडिक स्टोर जाने के लिए मुड़ने लगा ।
अगले दिन जब लकी की आँख खुली तो वो सीधा उठा और तैयार हो शहर के सबसे बड़े बैंक न्यू सिटी बैंक पोंछा । न्यू सिटी बैंक ना सिर्फ़ शहर का सबसे बड़ा बैंक था, बल्कि वो सबसे अमीर बैंक भी था । वहाँ पर शहर के सबसे अमीर लोगों के ही पैसे जमा किए जाते थे । लकी वाहां पैसे को निकलवाने के लिए जा रहा था । न्यू सिटी बैंक साउथ दिल्ली में बसा हुआ था और उसके दरवाज़े के बाहर महँगी से महँगी गाड़ी खड़ी हुई थी ।
‘भाई अब इसमें से कौनसी गाड़ी लेगा?’ लकी ने मन ही मन सोचा । उसे यक़ीन नहीं हो रहा था की कल तक वो एक मोटरसाइकल तक नहीं ख़रीद पा रहा था और आज वो एक कार और वो भी इतनी महँगी कार ख़रीदने की सोच रहा था । फिर उसने अपनी नज़र गाड़ी पर से हटाई और बैंक के अंदर जाने लगा । उसने देखा कि बाहर बहुत भीड़ थी और महँगे से महँगे कपड़े पहने हुए लोग बैंक के अंदर जा रहे थे ।
‘कहाँ दवाओं की बदबू और कहाँ यह ख़ुशबू!’ - उसने एक बहुत ही गहरी साँस के अंदर ज़्यादा से जयाद ख़ुशबू को समेटने की कोशिश करते हुए अपने मन में सोचा । लेकिन अगले ही पल उसके मन में संकोच पैदा हो गया था । रातोंरात लकी की क़िस्मत तो बदल गयी थी, लेकिन रातोंरात वो अपने कपड़े नहीं बदल पाया था । इतने बड़े बैंक में वो वही कपड़े पहनकर आ गया था जो वो अक्सर अपने काम पर पहनकर जाता था ।
‘पैसे लेते ही सबसे पहले नए कपड़े ख़रीदने है ।’ - लकी ने अपने आप से कहा और फिर बैंक के अंदर दाखिल होने लगा । जैसे ही उसने दरवाज़े को धक्का दिया, उसे आवाज़ आयी,
‘आउच!’ लकी थोड़ा सा हड़बड़ी में दिखाई दे रहा था और इस जल्दबाज़ी के चक्कर में वो एक लम्बे बाल वाली लड़की से जा टकराया था, जोकि उसके बग़ल में ही चल रही थी ।
‘माफ़ करना मैं आपको देख नहीं पाया ।’ - लकी ने तुरंत उससे हाथ जोड़कर माफ़ी माँगते हुए कहा । उस लड़की ने इतने अच्छे कपड़े पहन रखे थे की उसे देखकर ही लग रहा था की वो किसी अमीर घराने की लड़की थी । इसलिए सॉरी बोलते वक़्त ना चाहते हुए भी लकी के हाथ उसके सामने जुड़ गए थे ।
लेकिन जब उस लड़की ने लकी के कपड़ों और उसके हुलिये को देखा तो उसने अपनी नाक बोंह सिकोड़ ली । वो लगभग हर रोज़ इस बैंक में आया और ज़ाया करती थी । लेकिन उसने आजतक इस बैंक के अंदर लकी जैसे फटीचर आदमी को घुसते हुए नहीं देखा था । उसके बालों में से आँवले के तेल की गंध आ रही थी । उसने ग़ुस्से भरी नज़रों से लकी को देखा और बोली,
‘क्यूँ नहीं देख पाए? मैं क्या ट्रैन्स्पेरेंट हूँ? तुम्हें इतनी बड़ी लड़की दिखाई नहीं देती?’
इससे पहले की बात आगे बढ़ती, उस लड़की ने देखा की इस बैंक की मैनेजर यासमिन पटेल उन दोनों की ओर बड़ी चली आ रही थी । उसने भी लकी को देखकर वैसी ही शक़्ल बनाई थी जैसी शक़्ल उस लम्बी लड़की ने बनाई थी ।
‘I’am so sorry miss ! आपको कहीं लगी तो नहीं?’ - यासमिन ने उस लड़की से पूछा और फिर घिन्न भरी नज़रों से लकी की ओर देखने लगी ।
लकी तमतमाती आँखों से उन दोनों को देखे जा रहा था । वो जानता था कि उसने इतनी जोर से भी दरवाज़ा नहीं खोला था की उसे चोट लग जाएग । लेकिन असल में उसे यह नहीं मालूम था की वो लोग उसे नहीं बल्कि उसके कपड़ों को देख रहे थे । यासमिन ने लकी को ऊपर से नीचे तक देखा और ना जाने क्यूँ उसके मन में शक़ पैदा हो गया ।
‘क्या आप मुझे बता सकते है की आप यहाँ पर किस काम से आए है?’ - यासमिन ने बड़ी मुश्किल से अपने चहरे पर एक मुस्कान लाते हुए कहा । वो उसका हुलिया देखते ही समझ गयी थी की वो यहाँ का कस्टमर नहीं था । लकी ने अपने आपको सम्भाला और कहा,
‘हाँ मैं वो अपना पैसा निकालने के लिए आया था ।’
‘पैसा निकालने के लिए आए हो?’ - यासमिन ने लकी की ही बात को दोहराते हुए कहा ।
वैसे तो वो लकी की बात पर ज़ोर से हँसना चाहती थी, लेकिन उसने अपने आपको थोड़ा सा क़ाबू में कर लिया था । लकी की बात सुनकर उसे लग रहा था की वो कोई पागल था, जो यहाँ ज़बरदस्ती घुसा चला आया था ।
‘हाँ तो क्या आपके पास कार्ड है?’- यासमिन ने उससे आगे पूछा ।
न्यू सिटी बैंक का कार्ड हासिल करना एक बहुत ही मुश्किल काम था । अगर किसी को भी उस बैंक का कार्ड लेना था, तो सबसे पहले उस आदमी को अपने खाते में पाँच लाख रुपए पहले से जमा करवाकर रखने पड़ते थे, तब जाकर उसे कहीं कार्ड मिलता था । लेकिन लकी तो पहली ही बार यहाँ आ रहा था इसलिए उसके पास कार्ड होने की कोई सम्भावना नहीं थी । लकी जब यासमिन के सवाल का जवाब नहीं दे पाया तो यासमिन ने फिर से उससे पूछा,
‘मैं पूछ रही हूँ क्या आपके पास कार्ड है?’ - वो समझ गई थी की लकी पागल ही था, जो कहीं से भागकर सीधा उनके बैंक में आ गया था ।
‘नहीं!’ - लकी ने उसके सवाल का जवाब दिया और वो फिर से इधर-उधर देखने लगा ।
जैसे ही उस लम्बे बालों लड़की ने लकी का जवाब सुना तो वो खिलखिलाकर हँस पड़ी । यासमिन को तो सिर्फ़ लग रहा था की वो पागल है, लेकिन वो लड़की तो अपने मन में मान ही चुकी थी यह लड़का कोई पागल है, जो कहीं झोपडपट्टी से यहाँ आ गया है । इससे पहले की आगे कोई कुछ कह पाता, उस लम्बे बालों वाली लड़की के पिता वहाँ आए और बोले,
‘चलो बेटी ।’ - उनके हाथ में कुछ काग़ज़ात थे । लकी ने देखा की उन्होंने महँगा सा सूट पहन रखा था । उस लड़की ने यासमिन के दोनों हाथों को पकड़ा और बोली,
‘यासमिन देखो, अगर इस तरह के सड़कछाप लोग तुम्हारे बैंक में ऐसे ही घुसे चले आने लगे और बाक़ी के कस्टमर्ज़ को परेशान करने लगे तो इससे तुम्हारे बैंक की इमेज और उसके शेयर को काफ़ी नुक़सान होगा । एक मैनेजर होने के नाते तुम्हें इन सब चीजों का ध्यान रखना चाहिए । मुझे उम्मीद है की आगे मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा ।’ - उस लड़की ने कहा और अपने पिता के साथ बैंक से बाहर निकल गयी ।
‘अपना ध्यान रखना कोयल मैडम!’ - मैनेजर ने उसे उसकी गाड़ी तक छोड़ने के लिए आते हुए कहा ।
आज तो वो बाल-बाल बच गयी थी । कोयल और उसके पिता इस बैंक के सबसे पुराने और सबसे वफ़ादार कस्टमर थे । अगर आज यासमिन उन्हें नाराज़ कर देती और वो उसके बैंक स