खामोश तस्वीर
कक्षा 11 का समय था।
वेदांत एक साधारण-सा लड़का था—ना ज्यादा दोस्त, ना ज्यादा बातें। बस कोने की बेंच पर बैठकर ड्रॉइंग बनाना उसका शौक था।
दूसरी ओर थी रिया—कक्षा की सबसे चंचल लड़की। उसका स्वभाव ही ऐसा था कि हर कोई उसकी तरफ खिंच जाता।
रिया और वेदांत का कोई सीधा रिश्ता नहीं था। मगर वेदांत की कॉपी के हर पन्ने पर रिया की ही तस्वीरें बनी होतीं। उसका चेहरा, उसकी मुस्कान—सबकुछ वह अपनी पेंसिल से सजाता रहता।
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अनजानी नज़दीकियाँ
एक दिन रिया ने अचानक उसकी कॉपी देख ली।
"ये सब… मेरे चित्र?" — उसने हैरानी से पूछा।
वेदांत हड़बड़ा गया।
"माफ़ करना… मुझे बस तुम्हें देख कर चित्र बनाना अच्छा लगता है।"
रिया कुछ पल चुप रही, फिर हल्की मुस्कान दी—
"पता है, तुम्हारी नज़रों में मैं बहुत ख़ूबसूरत लगती हूँ। ये तुम्हारे चित्र ही बताते हैं।"
उस दिन के बाद दोनों के बीच अजीब-सी खामोशी और दूरी के बावजूद एक अदृश्य रिश्ता बन गया।
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मोड़
फरवरी का महीना था। स्कूल पिकनिक गई थी। बस में हंसी-ठिठोली चल रही थी।
रिया खिड़की पर बैठी थी और वेदांत उसके पास ही। अचानक रास्ते में बस का एक्सीडेंट हो गया। चीखें, टूटे शीशे, खून से सनी ज़मीन…
वेदांत बुरी तरह घायल हो गया।
मरने से पहले उसने कांपते हाथों से रिया की ओर देखा और बुदबुदाया—
"मेरी अधूरी तस्वीर… अब शायद कभी पूरी नहीं होगी।"
उसकी आँखें सदा के लिए बंद हो गईं।
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आख़िरी सच
रिया उस हादसे से बच गई, लेकिन उसके दिल पर हमेशा के लिए एक बोझ रह गया।
हर बार जब वह आईने में अपना चेहरा देखती, तो उसे वेदांत की बनाई तस्वीरें याद आ जातीं।
उसने उसकी अधूरी कॉपी अपने पास संभालकर रखी।
कभी-कभी वो पन्नों को देख कर रोती और कहती—
"काश मैंने तुझसे कह दिया होता कि तू मेरे लिए सिर्फ चित्रकार नहीं… मेरी कहानी भी था।"
अधूरा सफ़र
वेदांत के जाने के बाद…
पिकनिक के उस हादसे ने पूरे स्कूल को हिला दिया। हर कोई सदमे में था, मगर सबसे ज्यादा टूट चुकी थी रिया।
उसकी आँखों में हमेशा वो आख़िरी नज़ारा घूमता—खून से लथपथ वेदांत, और उसका डगमगाता आख़िरी वाक्य—
"मेरी अधूरी तस्वीर… अब शायद कभी पूरी नहीं होगी।"
उस दिन से रिया बदल गई।
वो जो हमेशा सबसे ज़्यादा हँसती थी, अब सबसे चुप हो गई। उसकी कॉपी, उसके नोट्स, यहाँ तक कि उसकी मुस्कान भी बिखर गई।
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कॉलेज का नया सफ़र
रिया अच्छे अंकों से पास होकर कॉलेज पहुँची। सबने सोचा अब वह संभल जाएगी।
मगर उसके बैग में हमेशा एक चीज़ रहती—वेदांत की ड्रॉइंग वाली अधूरी कॉपी।
कभी-कभी लाइब्रेरी में बैठकर वो धीरे-धीरे उन चित्रों को देखती और पन्नों पर गिरते आँसुओं से उन्हें गीला कर देती।
एक सहेली ने एक दिन पूछा—
"रिया, क्यों इतना अतीत से चिपकी रहती हो?"
रिया ने हल्की मुस्कान देकर कहा—
"जिसे भूलना हो, वो याद से मिटाया जाता है। पर जिसे दिल से जिया हो, उसे मिटाना ज़िन्दगी से हारना है।"
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सालों बाद…
रिया अब नौकरी करने लगी थी। घरवालों ने कई रिश्ते दिखाए, मगर हर बार उसने बहाना बना दिया।
क्योंकि जब भी कोई लड़का उसे देखता, उसे याद आता कि वेदांत ने कभी उसकी तरफ सीधे देखा भी नहीं था—फिर भी उसने उसे अमर बना दिया।
एक रात, अकेले कमरे में उसने वो कॉपी खोली।
पन्ने पीले पड़ चुके थे। आख़िरी पन्ने पर अधूरी स्केच थी—बस आधा चेहरा बना हुआ।
रिया ने अपनी आँखें बंद कीं और बुदबुदाई—
"तू चला गया… पर मैं आज भी उसी आधे चेहरे में अपना पूरा जीवन देख लेती हूँ।"
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अंतिम दृश्य
बरसों बाद जब रिया बूढ़ी हो गई थी, उसके घरवालों को उसकी डायरी और वो कॉपी मिली।
डायरी के आख़िरी पन्ने पर लिखा था—
"मेरे लिए प्यार कभी पूरा नहीं हुआ,
पर वेदांत ने मेरी ज़िन्दगी को तस्वीर बना दिया।
अब अगर मौत आएगी, तो मैं उसी अधूरी तस्वीर में समा जाऊँगी।"
और सचमुच… वो कॉपी उसकी चिता पर रखी गई।
आग की लपटों में वह अधूरी तस्वीर और रिया दोनों एक हो गए।
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💔
कभी-कभी ज़िन्दगी हमें पूरा प्यार नहीं देती।
वो बस अधूरी यादें देकर चली जाती है—और वही यादें किसी का पूरा जीवन बन जाती हैं।