Bramhdaitya - 3 in Hindi Horror Stories by mayur pokale books and stories PDF | ब्रम्हदैत्य - 3

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ब्रम्हदैत्य - 3

भाग 3_ मूल्य-अमूल्य


सुबह की हल्की धूप फैल रही थी।

रिया, अपनी मां और छोटे भाई आयुष के साथ, राहुल को बाय कहकर घर की ओर बढ़ रही थी।


उनके कदम थक चुके थे लेकिन मन थोड़ा हल्का लग रहा था – जैसे किसी बोझ से छुटकारा मिला हो।


घर अब कुछ ही दूरी पर था।

रिया की मां, सुनीता, चलते-चलते अचानक ठिठक गईं।

उनकी नज़र अपने घर पर पड़ी —

मुख्य दरवाज़ा... पूरी तरह खुला हुआ था।


"रिया," सुनीता की आवाज़ में घबराहट थी,

"तूने घर लॉक तो किया था न?"


रिया थोड़ी सकपका गई, उसकी आंखें दरवाज़े की ओर टिक गईं।

"हां मॉम, मैंने ठीक से लॉक किया था," उसने धीमे से कहा।


एक अनकही बेचैनी तीनों के चेहरों पर उतर आई।


रिया के मन में कई दृश्य एक साथ कौंधने लगे।

वो रात... वो खटखटाहट... वो परछाई...

वो सब एक-एक कर वापस ज़हन में आने लगे।


वो बिना कुछ कहे तेज़ी से घर की ओर दौड़ पड़ी।



---


जैसे ही रिया अंदर पहुंची, उसका पहला ध्यान गया उस मोबाइल पर जो उसने दरवाज़े के पीछे धागे से बांधा था।


उसने धड़कते दिल से फोन उतारा...

लेकिन फोन बंद था।


रिया ने झटपट उसे चार्जिंग पर लगाया।

इतने में सुनीता और आयुष भी अंदर आ गए।


"दीदी, सब ठीक है?" आयुष ने थोड़ा हांफते हुए पूछा।


रिया ने एक गहरी सांस ली,

दोनों को ड्रॉइंग रूम में बिठाया और खुद पास आकर बैठ गई।


"अब वक्त आ गया है सब बताने का।"



---


"परसों रात जब आप दोनों शर्मा अंकल के फंक्शन में गए थे, मैं पढ़ाई कर रही थी...

रात के करीब 12 बजे थे।

जैसे ही मैं सोने जाने लगी, दरवाज़े पर धीमी खटखटाहट हुई।


मैंने दरवाज़ा खोला...

कोई नहीं था।


थोड़ी घबराई, पर सोचा शायद वहम होगा।


तभी... फिर से वही आवाज़।

इस बार ज़ोर से... और बार-बार।


मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।

मैं डरकर अलमारी में छिप गई।

वहीं से एक छोटे से छेद से देखने लगी।"



---


"दरवाज़ा... अपने आप खुल गया।


और अंदर दाखिल हुई...

एक लंबी, डरावनी आकृति।

उसके घने, बिखरे हुए बाल... आधा सड़ा हुआ चेहरा... लाल आंखें... और नाखून जैसे किसी जानवर के।


वो मेरे कमरे में... धीरे-धीरे चल रही थी।

हर कोना छान रही थी... जैसे मुझे तलाश रही हो।


मैं डर से कांप रही थी, सांस रोक ली थी।

फिर शायद कुछ देर बाद वो चली गई।

और मैं वहीं बेहोश हो गई।

फिर... आप लोग आए और मुझे अस्पताल ले गए।"



---


इतना कहकर रिया चुप हो गई।

कमरे में गहरी खामोशी छा गई थी।


सुनीता का चेहरा पीला पड़ गया था।

उसके माथे पर चिंता की गहरी रेखाएं बन गई थीं... जैसे उसे कुछ याद आ गया हो।



---


आयुष ने चुप्पी तोड़ी —

"पर दीदी, आपने तो कहा था कि अलमारी में चूहा देख कर छिप गई थीं?"


रिया ने सिर झुकाकर कहा,

"झूठ कहा था।

मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था कि जो देखा वो असल था या मेरा वहम।

पर अब मेरे पास प्रूफ है।

मैंने जाने से पहले मोबाइल ऑन करके दरवाज़े पर बांध दिया था।

जैसे ही फोन ऑन होगा... हम सब कुछ जान लेंगे।"



---


रिया के शब्द खत्म भी नहीं हुए थे कि सुनीता अचानक खड़ी हो गईं।


"हम अभी कहीं जाएंगे," उन्होंने सख्त लहजे में कहा।


रिया और आयुष दोनों चौंक गए।

"कहां मम्मी?"


सुनीता उन्हें ले जा रही थीं – शहर के सबसे बड़े तांत्रिक, "चंडालेश्वर" के पास।



---


📍 दूसरी ओर...


दिल्ली से लगभग 100 किलोमीटर दूर,

रामपुर नाम के एक शांत गांव में,

25 वर्षीय अजय सिंह राठौड़, अपने दो दोस्तों चंदू और कबीर (कब्बू) के साथ एक पुराने खंडहर में खुदाई कर रहा था।


अजय बचपन से ही साहसी, थोड़ा खुराफाती, और चीजों की तह में जाने वाला लड़का था।

गांव में लोग उसे "इंजीनियर बाबू" कहते थे – क्योंकि वह इकलौता था जो शहर जाकर पढ़ाई पूरी करके लौटा था।



---


"अज्जू, सुबह से पसीना बहा रहे हैं, आखिर बताओ तो सही, यहां ढूंढ क्या रहे हो?" चंदू ने थककर कहा।


अजय मुस्कराया –

"जो मिलेगा... देखकर चौंक मत जाना।"


कबीर ने चुटकी ली,

"अरे चौंकना तो चंदू का काम है!"


तीनों हँस पड़े।

लेकिन उनकी मेहनत गंभीर थी – वे कई दिनों से इस खंडहर के नीचे खुदाई कर रहे थे।



---


आज, अचानक कबीर का फावड़ा किसी सख्त चीज़ से टकराया।

एक कंपन सी महसूस हुई।


"अजय! जल्दी आ!" — कबीर चिल्लाया।


तीनों ने उस जगह को मिलकर खोदा।

धीरे-धीरे... मिट्टी हटती गई...


और तब, एक पुराना, धातु से जड़ा संदूक नजर आया।


अजय की आंखों में चमक आ गई।

जैसे किसी बहुमूल्य रहस्य को उजागर कर लिया हो।

............जानिए क्या होगा आगे? बने रहे हमारे साथ अगले भाग तक!

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                                                        लेखक_मयूर