Sach ka Aaina - 2 in Hindi Thriller by Mohd Ibrar books and stories PDF | सच का आईना - 2

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सच का आईना - 2

यह कहानी केवल सामाजिक सच्चाई को दर्शाने के लिए लिखी गई है। इसका मक़सद किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है।



गाँव की एक यह भी सच्चाई है — अगर किसी को नीचा या ज़लील न किया जाए तो वह कुछ कर ही नहीं पाएगा।

गाँव में एक लड़का था, सीधा-सादा, मेहनती, अपनी दुनिया में मग्न। वह हमेशा सबकी मदद करता, सबका सम्मान करता और खुद अपने सपनों को लेकर बहुत गंभीर था। लेकिन गाँव के कुछ लोग हमेशा उसे नीचा दिखाते, उसके कामों का मज़ाक उड़ाते और उसके आत्मसम्मान को चोट पहुँचाते।

वो कहावत है न — “जब तक इंसान के अंदर आग नहीं लगती, तब तक वह कामयाब हो ही नहीं सकता।”
उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

हर दिन उसे ताने मिलते — “तू क्या करेगा?”, “तेरे बस का नहीं है!”, “तेरा कोई साथ नहीं देगा।”
ये ताने धीरे-धीरे उसके अंदर एक चिंगारी पैदा कर रहे थे।
एक ऐसी आग जो या तो उसे खत्म कर सकती थी या उसे कुछ बड़ा बना सकती थी।

हर माँ को अपने बच्चे से प्यार होता है, लेकिन कुछ लोगों के दुर्व्यवहार से वह गलत रास्ते पर निकल पड़ती है,
जिसके कारण वह एक अपराधी भी बन सकती है।
यह कहानी सिर्फ उस लड़के की नहीं है, यह कहानी उस माँ की भी है जिसने अपने बच्चे को अच्छे संस्कार दिए, लेकिन समाज की ज़हर भरी बातें उसके सपनों को तोड़ने लगीं।

इसलिए, अगर आप किसी का भला नहीं कर सकते तो उसका बुरा भी मत करो।

समाज का यही रवैया उस लड़के को दोराहे पर लाकर खड़ा करता है।
यही कारण है कि कोई सीधे रास्ते पर निकल जाता है, तो कोई गलत रास्ते पर।

कुछ लोग ज़हर पीकर तपस्वी बन जाते हैं,
और कुछ लोग उसी ज़हर को अपने अंदर पालते हैं और विलेन बन जाते हैं।

समाज ही है जो हीरो और विलेन को बनाता है।

हीरो वही बनता है जो अपमान, संघर्ष और नफ़रत को सहते हुए भी इंसानियत की राह नहीं छोड़ता।
लेकिन जो टूट जाता है, वह उस अंधेरे रास्ते पर चला जाता है जहाँ से लौटना आसान नहीं होता।

विलेन के अंदर कभी न कभी यह ख़्याल आता है कि मुझे इस रास्ते पर पहुँचाने वाला यह समाज ही तो है —
उनके ताने, उनका तिरस्कार, उनका मज़ाक... यह सब मेरे अंदर धीरे-धीरे ज़हर बनकर जमा होता गया।

लेकिन जब वह समाज से सवाल करता है, तब जवाब में उसे सिर्फ एक चीज़ मिलती है — सज़ा।

सज़ा मुझे अकेले को ही मिलेगी, ऐसा क्यों?

सज़ा दोनों को मिलनी चाहिए —
मुझे भी और उन लोगों को भी जिन्होंने मुझे इस राह पर धकेला।

लेकिन यहाँ सज़ा का हकदार सिर्फ एक ही है — विलेन।

वह समाज, जो हर बार किसी को नीचे गिराने में सबसे आगे होता है,
वह खुद को हमेशा सही मानता है।
हीरो की जीत पर तालियाँ बजती हैं,
लेकिन विलेन की हार पर कभी कोई यह नहीं सोचता कि वह बना कैसे?

“सच का आईना” यही तो दिखाता है —
जो दिखता है वह पूरा सच नहीं होता,
और जो छुपा होता है, वो किसी की बर्बादी की जड़ हो सकता है।




यह कहानी सिर्फ कल्पना है इसमें कितनी सच्चाई है नहीं मालूम क्योंकि क्योंकि जो भी क्राइम पे मूवी बनती है उसके हिसाब से ये कहानी है