🛕 दृश्य 1: "महापालकी की चर्चा"
स्थान: गांव का चौपाल
समय: शाम ढलने का वक्त
बड़ा पीपल का पेड़ झूम रहा है। कुछ बुज़ुर्ग और नौजवान बैठे हैं। महिलाएं थोड़ी दूरी से सुन रही हैं। बच्चे खेलते-खेलते धीरे-धीरे पास आ रहे हैं। ठंडी हवा बह रही है, पक्षियों की आवाज़ें धीरे-धीरे कम हो रही हैं, धुंध-सी फैल रही है।
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[बुजुर्ग रामलाल (हुक्का गुड़गुड़ाते हुए)]
"अरे सुना है महापालकी कल से निकले वाली है... सौ साल में एक बार चलती है... और पूरा एक महीना चलेगी।"
[शिवू (गांव का मज़ाकिया नौजवान)]
"सौ साल में एक बार? मतलब भगवान भी रिटायरमेंट के बाद ड्यूटी पर लौटते हैं!" (सब हँसते हैं)
[दादी सोमवती (गंभीरता से)]
"मज़ाक मत कर शिवू। वो भगवान-स्थान है… वहां भगवान खुद रहते हैं… इंसानों के साथ, एकदम इंसान जैसे। पर वहां कोई आम आदमी नहीं जा सकता।"
[छोटा बच्चा (जिज्ञासु होकर)]
"दादी, भगवान भी खाना खाते हैं क्या? जैसे हम खाते हैं?"
[बुजुर्ग रामलाल (मुस्कुराते हुए)]
"कहते हैं भगवान बच्चों को सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं… इसलिए सिर्फ़ जिनके बच्चे होते हैं, वही वहां जा सकते हैं।"
[शिवू फिर बोलता है, मजाक में]
"तो मेरे जैसे कुंवारे का क्या होगा? भगवान बोलेगा — ‘चल भाग बेटा, पहले शादी कर!’"
[दूसरा युवक (गंभीर लहजे में)]
"पर ये सिर्फ़ मज़ाक की बात नहीं है… भगवान-स्थान में कोई अपने मन से नहीं जाता। गांव खुद बुलाता है। और सिर्फ़ महापालकी के समय ही वो दरवाज़ा खुलता है। बाकी वक़्त तो वो जगह जैसे अदृश्य हो जाती है।"
[एक बुज़ुर्ग औरत (धीरे से, थोड़ा डरते हुए)]
"मेरी नानी कहती थी… जिसने भगवान को अपनी आँखों से देखा… उसकी आँखों में ताजिंदगी एक अलग सी रौशनी रहती है… पर वो कभी बता नहीं पाते कि उन्होंने क्या देखा था।"
[एक छोटी लड़की (धीरे से अपने भाई से)]
"भैया, हम चलेंगे ना? भगवान से मिलेंगे?"
[भाई (स्नेह से)]
"चलेंगे… अगर भगवान ने बुलाया, तो ज़रूर चलेंगे।"
(धीरे-धीरे कैमरा ऊपर उठता है… चौपाल पर बैठे लोग, पीपल के पत्ते, और पीछे सूर्यास्त का नज़ारा fade हो जाता है…)
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🎬 दृश्य 2: "भगवान-स्थान – Amar का घर"
स्थान: भगवान-स्थान का किनारा, एक छोटी-सी लकड़ी की झोपड़ी। पीछे एक सुंदर मैदान है — जहां फूल खिले हैं और धूप सुनहरी चादर जैसी बिछी है।
Amar और उसकी 12 साल की बेटी Aru हँसते हुए गेंद से खेल रहे हैं।
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[Amar (गेंद पकड़ते हुए, मुस्कुराकर)]
"अब मेरी बारी! देख Aru, इस बार सीधा six जाएगा!"
[Aru (हँसते हुए)]
"नहीं पापा! इस बार मैं पकड़ लूंगी। मैं भगवान से भी तेज़ दौड़ सकती हूँ!"
(Amar खिलखिला कर हँसते हैं। तभी पीछे से Amrita आती है – सफेद और हल्के नीले वस्त्रों में, चेहरा शांत लेकिन आंखों में हल्की उदासी।)
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✨ भावनात्मक संवाद:
[Amrita (धीरे से)]
"Amar… कल से महापालकी शुरू हो रही है। एक महीना… बहुत लंबा वक्त होता है।"
[Amar (हल्की मुस्कान के साथ, आँखें झुकाकर)]
"पता है… और ये भी कि गाँव वाले नहीं चाहते कि मैं उसमें दिखूं…"
[Amrita (पास आकर, नरम आवाज़ में)]
"क्योंकि तुम भगवान में विश्वास नहीं करते… और वो सोचते हैं कि तुम उनके जैसे नहीं हो।"
[Amar (शांत भाव में)]
"मैं आँखें बंद कर किसी को नहीं पूजता, Amrita… और शायद इसी लिए मैं इस गाँव के लिए हमेशा ‘अलग’ रहूंगा।"
[Amrita (गंभीर होकर)]
"क्या तुम 30 दिन तक घर में रह सकते हो? किसी आयोजन में मत जाना… मेरे लिए… और Aru के लिए। अगर तुम बाहर दिखे… तो शायद गाँव वाले तुम्हें यहाँ से निकाल दें।"
[Amar (उसकी आँखों में देखकर)]
"तुम्हारे लिए… और अपनी Aru के लिए… मैं कुछ भी कर सकता हूँ। तुम्हें छोड़ नहीं सकता।"
(Amrita Amar को धीरे से गले लगा लेती है। उसका चेहरा Amar के कंधे पर टिक जाता है। उसके चेहरे पर गहरी उदासी है।)
[Amar (धीरे से)]
"मैं नहीं जाऊँगा उस महापालकी में। Aru के साथ यहीं रहूँगा… उसे हँसाऊँगा, खेलूँगा… हर दिन।"
[Aru (खुश होकर)]
"मैं भी नहीं जाऊँगी! मैं पापा के साथ रहूँगी! हर रोज़! हर खेल!"
[Amrita (हँसते हुए, लेकिन आँखें गीली हैं)]
"ठीक है… तुम दोनों एक साथ रहो… पर मुझे जाना होगा। मेरी जिम्मेदारी है…"
[Amar (सहज स्वर में)]
"तुम भगवानों की भक्त हो… और गाँव वालों की रक्षक भी।"
[Amrita (धीरे से मुस्कुराते हुए)]
"तुम हमेशा से मुझे सबसे अच्छे से समझते हो, Amar।"
[Amar (हाथ पकड़ते हुए)]
"हम 30 दिन बाद मिलेंगे… ठीक वैसे ही, जैसे अभी हैं।"
[Aru (मासूम मुस्कान के साथ)]
"Bye mom! जल्दी आना… Promise!"
(Amrita झुकती है, Aru को गले लगाकर माथा चूमती है। Amar सिर्फ देखता है, उसकी आँखों में चमक और पीड़ा साथ-साथ है।)
[Amrita (धीरे से, पलटते हुए)]
"ख़्याल रखना उसका… और अपना भी।"
[Amar (धीरे से)]
"हम तुमसे प्यार करते हैं।"
(Amrita पीछे मुड़कर देखती है, एक आख़िरी मुस्कान देती है… और फिर धीरे-धीरे उस मैदान से बाहर चली जाती है। Amar और Aru खामोशी से उसे जाते हुए देखते हैं…)
📖 दृश्य 3: महापालकी का आगमन – चमत्कार, अंधविश्वास और अंतहीन दर्द
⏳ समय: दोपहर की बेला
📍 स्थान: गाँव का मुख्य चौराहा – मंदिर मार्ग
🌦️ माहौल: सजी हुई गलियाँ, भीड़ की उत्तेजना और एक रहस्यमयी शांति
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[EXT. गाँव – दोपहर का समय]
सूरज सिर पर था, फिर भी एक अजीब-सी रोशनी आकाश से धीरे-धीरे उतर रही थी।
वो रोशनी इतनी चमकीली थी कि उसकी सफ़ेदी में सूरज की गर्मी तक मद्धम पड़ गई।
उस रोशनी में तीन पालकियाँ ज़मीन पर उतरीं।
हर पालकी में एक दिव्य आकृति विराजमान थी — इंसानों जैसी, मगर कुछ और ही थीं।
उनके चेहरे पर ऐसी सुंदरता, जैसे समय ने भी रुककर उन्हें तराशा हो।
एक हल्की सी मुस्कान — इतनी कोमल कि देख भर लेने से दुःख पिघल जाए।
भीड़ में फुसफुसाहटें उठीं:
> "देखो... हमारे भगवान आ गए..."
"इतनी रोशनी... मेरी तो आँखें भर आईं..."
चार-चार गाँव के सशक्त लोग उन पालकियों को उठाए चल रहे थे — गर्व से, मगर सिर झुकाए।
चारों ओर रक्षक — भाले, तलवारें, ढाल लिए — एक जीवित कवच की तरह चल रहे थे।
कोई भी आम व्यक्ति इन भगवानों के पास पहुँच न पाए — यही उनका धर्म था।
भीड़ में दूर-दराज़ से आए लोग — कुछ घुटनों पर, कुछ आँसुओं में हाथ जोड़े।
एक ही अभिलाषा — एक दृष्टि, एक छूआ, एक कृपा।
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तभी...
तीनों में से एक भगवान ने हाथ उठाया।
शोर थम गया। भीड़, पत्तियाँ, हवा — सब रुक गया।
एक ऐसा सन्नाटा, जैसे समय खुद सुनना चाहता हो।
उनकी दृष्टि भीड़ में किसी पर रुकी।
एक कांपता ग्रामीण — काँधे पर बेहोश बच्चा।
> ग्रामीण (काँपते हुए, टूटी आवाज़ में):
"हे भगवान... मेरा इकलौता बेटा है... बहुत बीमार है... खून की उल्टी करता है... वैद्य ने कह दिया है – महीने भर से ज़्यादा नहीं बचेगा।
मैं इसे बहुत दूर से लाया हूँ...
आपकी एक कृपा… मेरी जान ले लो, बस इसे बचा लो..."
वो ज़मीन पर सिर पटकता है — खून बहने लगता है।
भगवान धीरे से मुस्कुराते हैं।
अपने हाथ से एक फूल निकालते हैं — और बच्चे की ओर फेंकते हैं।
फूल छूते ही बच्चा हड़बड़ा कर उठ बैठता है — बिल्कुल ठीक, बिल्कुल सहज।
भीड़ एक स्वर में चिल्ला उठती है:
> "जय हो!
जय महापालकी के देवों की!"
"भगवान ने चमत्कार कर दिया!"
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[CAMERA SLOW ZOOM – Amrita का चेहरा]
वो शांत खड़ी है। उसकी आँखों में विस्मय नहीं — बस एक ठहरी हुई समझ।
मानो ये सब उसने पहले देखा हो।
मानो ये चमत्कार… अब चौंकाते नहीं।
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तभी…
आसमान बदलने लगता है।
नीला रंग स्याह होता है। हवाएँ गरजने लगती हैं। पेड़ झुकते हैं।
रक्षक चिल्लाते हैं:
> "दानव आ रहे हैं!"
"भगवान की पालकी को गाँव से बाहर ले चलो!"
Amrita चुप नहीं रहती —
> Amrita (स्पष्ट):
"पहले गाँववालों की रक्षा करो।
भगवान बाद में भी निकल सकते हैं।"
हड़कंप मचता है। लोग एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते भागते हैं।
और तभी...
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भीड़ को चीरता हुआ एक युवक आता है।
उसकी आँखें लाल हैं — हाथ में तलवार।
वो Aman है।
Amrita फटी आँखों से देखती है —
> "Aman…?"
गाँववाले चीखते हैं:
> "तुझे मना किया था आने से!"
"जा वरना निकाल देंगे तुझे इस गाँव से!"
> Aman (गंभीर और स्थिर):
"हटो मेरे रास्ते से... नहीं तो मार दूँगा।"
Amrita चिल्लाती है —
> "वो मेरा पति है!
मुझे जाने दो!"
कोई नहीं सुनता।
रक्षक तलवारें उठाते हैं — तभी भगवान हाथ उठाकर रोकते हैं।
> भगवान:
"रहने दो। आने दो उसे।"
Aman उनके सामने आता है।
> भगवान:
"कहो Aman… क्या चाहते हो?"
Aman कुछ नहीं कहता।
बस तलवार उठाता है — और भगवान के पेट में घुसा देता है।
भीड़ एक साथ चिल्ला उठती है।
> Amrita (भागते हुए):
"Aman!!"
वो उसे खींचती है — लेकिन देर हो चुकी है।
> भीड़ (क्रोधित):
"भगवान को मार दिया!"
"ये पापी अब बचेगा नहीं!"
भगवानों के चेहरे पर मुस्कान लौटती है।
एक साथ तीनों तेज़ चमक के साथ बोलते हैं —
> "मूर्ख… तू हमें मार सकता है?"
"हम भगवान हैं — तू तो अभी भी अंधा है!"
और फिर —
वो तीनों तेज़ रोशनी में गायब हो जाते हैं।
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बारिश शुरू हो जाती है।
Amrita भीड़ से घिरी खड़ी है — Aman के पास, जो अब कांप रहा है।
> Amrita (गाँववालों से):
"ये इसका पागलपन था… इसे माफ कर दो…
ये गाँव छोड़ देगा।"
भीड़ गालियाँ देती है।
> Amrita (Aman से):
"माफ़ी माँगो... कुछ तो बोलो…"
Aman की आँखों में आँसू हैं — पर होठ बंद।
Amrita उसके पास बैठती है, उसका चेहरा पकड़ती है।
> Amrita (धीरे):
"Aman… कुछ तो कहो…"
Aman की आँखें अमृता में डूबती हैं।
डबडबाई हुईं, चुप मगर भारी।
> Aman (धीरे मुस्कुराकर):
"...सच... देखूँ?"
और ठीक उसी क्षण…
छपाक!
एक तलवार पीछे से आती है —
रक्षक ने ईश्वर की “मर्यादा की रक्षा” में वार किया है।
अमन की गर्दन कट जाती है।
उसका सिर — अमृता के हाथों में।
उसका शरीर — मिट्टी पर।
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उस पल तेज़ बारिश शुरू हो जाती है।
जैसे आसमान भी शोक मना रहा हो।
लोग इधर-उधर भागते हैं — डर, अफरातफरी, बारिश।
पर उस बीच…
अमृता बिल्कुल स्थिर खड़ी है।
उसके हाथों में अमन का सिर है।
उसका चेहरा — शांत। उसकी मुस्कान — अधूरी।
उसकी आँखें — अब भी कुछ कहने की कोशिश करती हुईं।
अमृता उसे देखती रहती है।
ना आँसू, ना चिल्लाहट — बस एक गहरा सन्नाटा।
जैसे उसके भीतर का शोर अब हमेशा के लिए थम गया हो।
अमन का रक्त मिट्टी में घुल रहा है —
जैसे धरती खुद उसकी आख़िरी कथा सुन रही हो।
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बैकग्राउंड:
बिजली गरजती है।
कहीं कोई औरत चिल्ला रही है, कोई मंदिर की ओर भाग रहा है।
कोई अमृता की ओर नहीं आता।
बच्चे सहमे हुए अपनी माँओं की गोद में छुप गए हैं।
और कहीं दूर —
मंदिर का घंटा धीमे-धीमे बज रहा है…
जैसे अमन की आत्मा को अंतिम विदाई दे रहा हो।
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🎬 दृश्य ने आपको छू लिया?
अगर Amrita और Aman की ये कहानी आपके दिल में कहीं हलचल पैदा कर गई हो...
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