bhootiya haveli in Hindi Detective stories by Meenakshi Gupta mini books and stories PDF | भूतिया हवेली

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भूतिया हवेली

भूतिया हवेली 
रामगढ़। नाम सुनकर जेहन में किसी शांत, सुकून भरे गाँव की तस्वीर उभरती है, जहाँ चारों ओर हरियाली और पक्षियों का कलरव हो। दिल्ली की भागदौड़ भरी ज़िंदगी से दूर, ऐसा ही कुछ था रामगढ़ – हरे-भरे खेतों के बीच बसा एक खूबसूरत गाँव, जिसकी सुंदरता की चर्चा दूर-दूर तक फैली थी। लेकिन इस सुरम्य परिदृश्य के केंद्र में एक गहरा रहस्य भी छिपा था: राघवेंद्र प्रताप सिंह जी की विशाल हवेली, जो गाँव के एक छोर पर, समय के थपेड़ों को सहती हुई, सदियों पुरानी कहानियों को अपने अंदर समेटे खड़ी थी।
शहर की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी और ब्रेकिंग न्यूज़ के शोर से दूर, आकाश को हमेशा से रहस्यमयी और अनसुनी कहानियों में दिलचस्पी रही थी। वह एक युवा और महत्वाकांक्षी पत्रकार था, जिसकी पैनी नज़र हमेशा ऐसी कहानियों पर रहती थी जो सुर्खियाँ तो बटोरें ही, साथ ही कुछ गहरा सच भी उजागर करें। हाल ही में उसे अपने अख़बार के लिए एक फीचर स्टोरी पर काम करने को कहा गया था – "भारत के रहस्यमय गाँव"। रिसर्च के दौरान ही उसकी नज़र रामगढ़ और उसकी भूतिया हवेली पर पड़ी। इंटरनेट पर बिखरे गाँव वालों के किस्से, उसे खींच रहे थे। अफवाहें थीं कि हवेली में अजीबोगरीब आत्माएँ भटकती हैं, रात में चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें आती हैं, और जो भी उसके करीब गया, वह या तो गायब हो गया या फिर रहस्यमय परिस्थितियों में उसकी मौत हो गई।
आकाश ने एक बैग पैक किया, अपना कैमरा और रिकॉर्डर लिया, और रामगढ़ के लिए निकल पड़ा। दिल्ली की तपती गर्मी से निकलकर जब वह रामगढ़ पहुँचा, तो ठंडी हवा और मिट्टी की सोंधी खुशबू ने उसका स्वागत किया। गाँव की संकरी गलियों में चलते हुए, उसे लगा जैसे वह समय में पीछे चला गया हो। लोग सीधे-सादे और मेहमाननवाज थे, लेकिन जैसे ही हवेली का ज़िक्र आता, उनकी आँखों में डर और होठों पर चुप्पी छा जाती।
उसने गाँव के चौराहे पर बनी एक छोटी सी चाय की दुकान पर रुक कर चाय पी। वहाँ एक बूढ़ा आदमी, जिसकी झुर्रियों वाली आँखों में पुरानी कहानियों की चमक थी, उसे घूर रहा था। आकाश ने हिम्मत करके पूछा, "बाबा, क्या आप मुझे राघवेंद्र प्रताप सिंह जी की हवेली के बारे में कुछ बता सकते हैं?"
बूढ़े बाबा ने गहरी साँस ली और धीरे से सिर हिलाया। "बेटा, वो हवेली मनहूस है। उसे शैतानों ने कब्ज़ा कर लिया है। सूरज ढलने के बाद कोई उसकी तरफ देखता भी नहीं। जिसने भी कोशिश की, वो कभी लौटकर नहीं आया।" उनकी आवाज़ में एक अजीब सी खड़खड़ाहट थी, जैसे वो डर से काँप रहे हों।
आकाश ने उनके डर को समझा, लेकिन एक पत्रकार के रूप में उसका काम तथ्यों को खोजना था, न कि अंधविश्वास पर आँखें मूंद लेना। उसे लगा कि इन सब अफवाहों के पीछे कोई और ही कहानी छिपी है, कुछ ऐसा जो तार्किक हो सकता है।
अगले कुछ दिनों तक, आकाश ने गाँव में रहकर जानकारी इकट्ठा की। उसने कई लोगों से बात की, जिनमें से हर कोई हवेली से जुड़ी कोई न कोई डरावनी घटना सुनाता। कुछ ने बताया कि उन्होंने रात में हवेली की खिड़कियों से अजीब सी रोशनी देखी थी, तो कुछ ने कहा कि उन्होंने अंदर से किसी के रोने की आवाज़ें सुनी थीं। एक औरत ने बताया कि कैसे उसका भाई कुछ साल पहले हवेली के पास गया था और फिर कभी वापस नहीं लौटा। गाँव के थाने में भी उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज थी, लेकिन पुलिस ने इसे बस एक और रहस्यमय गायब होने का मामला मानकर बंद कर दिया था।
आकाश ने उन सभी घटनाओं को अपनी डायरी में नोट किया। उसे लगा कि इन सब घटनाओं में एक पैटर्न है। जो भी रहस्यमय मौत या गायब होने की घटनाएँ हुई थीं, वे सभी हवेली के बहुत करीब हुई थीं, और अक्सर अँधेरा होने के बाद। क्या यह सिर्फ़ संयोग था?
एक शाम, जब सूरज ढल रहा था और आकाश में नारंगी रंग बिखर रहा था, आकाश ने दूर से हवेली को देखा। वह एक विशाल, पुरानी इमारत थी, जिसके ऊपर चढ़ी बेलें उसे और भी भयावह बना रही थीं। खिड़कियों के टूटे हुए शीशे ऐसे लग रहे थे जैसे वो उसे घूर रहे हों। उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी हुई, लेकिन पत्रकार का जुनून उसे आगे बढ़ने पर मजबूर कर रहा था।
उसने निश्चय किया कि वह रात में हवेली के करीब जाएगा और खुद देखेगा कि वहाँ क्या होता है। यह एक खतरनाक कदम था, लेकिन अगर उसे इस रहस्य को सुलझाना था, तो उसे यह जोखिम उठाना ही पड़ेगा। उसे यह भी पता था कि गाँव वाले उसे ऐसा करने से रोकेंगे, इसलिए उसने चुपचाप जाने का फैसला किया।
हवेली की खामोशी में सुराग
आधी रात का समय था। चाँद की हल्की रोशनी में रामगढ़ का गाँव सोया हुआ था। आकाश ने टार्च और अपने कैमरे के साथ, दबे पाँव हवेली की ओर चलना शुरू किया। जैसे-जैसे वह हवेली के करीब पहुँचता गया, ठंडी हवा के साथ एक अजीब सी खामोशी उसे घेरती गई, जो गाँव की आम रातों से बिल्कुल अलग थी। हवेली के पास पहुँचते ही उसे एक अजीब सी बदबू महसूस हुई – जैसे कुछ सड़ा हुआ हो, या शायद कुछ केमिकल जैसी। यह बदबू भूतिया तो बिल्कुल नहीं थी।
वह हवेली की जर्जर चारदीवारी के पास पहुँचा। काँटेदार झाड़ियाँ और ऊँची-ऊँची घास इतनी बढ़ गई थी कि मुख्य दरवाज़ा लगभग ढँक चुका था। आकाश ने दीवार में एक छोटी सी दरार देखी और सावधानी से उसके अंदर झाँका। अंदर अँधेरा इतना घना था कि टार्च की रोशनी भी रास्ता नहीं बना पा रही थी।
अचानक, उसे हवेली के अंदर से एक हल्की सी खड़खड़ाहट की आवाज़ सुनाई दी। कोई धातु की चीज़ किसी और धातु से टकरा रही थी। ये आवाज़ें भूत की नहीं हो सकती थीं। आकाश का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने अपनी टार्च को और ध्यान से चमकाया और एक पुरानी, बंद खिड़की पर रोशनी डाली। खिड़की के नीचे ज़मीन पर मिट्टी खुदी हुई थी, और ताज़ी मिट्टी के ढेर दिख रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे हाल ही में किसी ने कुछ खोदा हो।
आकाश ने अपनी जेब से एक जोड़ी दस्ताने निकाले और दीवार फाँदकर अंदर कूद गया। अंदर का माहौल और भी डरावना था। हवा में बदबू तेज़ हो गई थी। वह टूटी हुई खिड़की के पास गया और ध्यान से देखा। मिट्टी के साथ-साथ, उसे कुछ छोटी, चमकीली चीज़ें भी दिखीं – धातु के टुकड़े या शायद पुराने सिक्के।
तभी, उसे एक और आवाज़ सुनाई दी। इस बार यह किसी की फुसफुसाहट थी, जो पास के कमरे से आ रही थी। आकाश ने साँस रोकी और धीरे-धीरे उस आवाज़ की दिशा में बढ़ा। कमरा पूरी तरह से अँधेरे में था, लेकिन एक कोने से हल्की रोशनी छनकर आ रही थी। उसने सावधानी से कमरे के दरवाजे से झाँका।
जो उसने देखा, उससे उसकी रीढ़ में सिहरन दौड़ गई। कमरे के बीच में एक बड़ा सा गड्ढा खुदा हुआ था। गड्ढे के पास दो लोग थे। एक मोटा-सा आदमी था जिसके हाथ में कुदाल थी और दूसरा पतला-सा आदमी था जो ज़मीन पर बिखरे कुछ पत्थरों को साफ कर रहा था। उनकी हल्की टार्च की रोशनी में आकाश ने देखा कि वह पतला आदमी मंगल था, जो राघवेंद्र प्रताप सिंह का पुराना और वफादार नौकर हुआ करता था। लेकिन अब उसकी आँखों में वफादारी नहीं, बल्कि लालच की चमक थी।
"जल्दी कर मंगल! हमें यह काम सूरज उगने से पहले खत्म करना है," मोटे आदमी ने फुसफुसाते हुए कहा। "अगर गाँव वालों को पता चल गया कि हम क्या कर रहे हैं, तो सब गड़बड़ हो जाएगा।"
"चिंता मत करो, विनय," मंगल ने जवाब दिया। "गाँव वाले तो पहले से ही डर के मारे हवेली के पास नहीं आते। उन्हें लगता है यहाँ भूत हैं। और रही बात उन लोगों की, जो पास आने की हिम्मत कर रहे थे... उन्हें हमने खुद ही ठिकाने लगा दिया। कोई नहीं आएगा।"
आकाश का दिमाग तेज़ी से घूमने लगा। विनय! यह नाम उसने गाँव के बुजुर्गों से सुना था। विनय प्रताप सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह का एक दूर का और महत्वहीन रिश्तेदार, जो कभी गाँव आता-जाता नहीं था, लेकिन पिछले कुछ महीनों से अचानक गाँव में रहने लगा था। गाँव वालों ने सोचा था कि वह अपनी जड़ों से जुड़ने आया है, लेकिन असलियत तो कुछ और ही थी।
आकाश को समझ आ गया। हवेली में कोई भूत नहीं था। ये दोनों ही थे जो लोगों को डरा रहे थे, उन्हें मार रहे थे, ताकि खजाना ढूंढने में कोई रुकावट न आए। उन अजीब आवाज़ों के पीछे शायद इनकी खुदाई की आवाज़ें थीं, और गायब होने वाले लोग इन्हीं के शिकार थे। उस बदबू का कारण भी शायद कोई केमिकल था जिसका इस्तेमाल ये करते थे, या फिर उन लोगों के शव, जिन्हें इन्होंने ठिकाने लगाया था।
उसने तुरंत अपने कैमरे का 'वीडियो रिकॉर्डिंग' बटन दबाया। यह सबूत था। उसे इन दोनों को रंगे हाथों पकड़ना था। लेकिन तभी, मंगल की नज़र दरवाजे पर पड़ी। आकाश की टार्च की हल्की चमक ने उसे धोखे से उजागर कर दिया था।
"कोई है!" मंगल चिल्लाया।
विनय ने तुरंत अपनी कुदाल उठाई और आकाश की ओर लपका। आकाश ने फुर्ती से खुद को पीछे खींच लिया और अंधेरे गलियारे में भागने लगा। हवेली का माहौल अब और भी खतरनाक हो गया था। पीछे से विनय और मंगल के कदमों की आवाज़ें आ रही थीं।
आकाश को पता था कि अगर वे उसे पकड़ लेते हैं, तो वह भी उन गायब हुए लोगों की तरह एक और रहस्य बन जाएगा। उसे बाहर निकलना था और पुलिस को बुलाना था। लेकिन हवेली भूलभुलैया जैसी थी, और अंधेरे में रास्ता ढूंढना मुश्किल हो रहा था। उसे लगा जैसे हवेली की दीवारें उसे निगलने को तैयार हैं।
वह एक बड़े से हॉल में पहुँचा जहाँ टूटे हुए फर्नीचर बिखरे पड़े थे। पीछे से विनय और मंगल अब और करीब आ गए थे। आकाश को लगा कि उसकी सांसे अटक जाएंगी। तभी, उसकी नज़र एक पुराने, टूटे हुए दरवाज़े पर पड़ी, जो बाहर की तरफ खुलता लग रहा था। उसने पूरी ताकत से दरवाज़े को धक्का दिया और बाहर खुली हवा में आ गया।
वह तेज़ी से भागा, बिना रुके, गाँव की ओर। पीछे से उसे कुछ आवाज़ें सुनाई दीं, शायद विनय और मंगल की निराशा भरी चीखें। जब वह गाँव के पहले घर के पास पहुँचा, तो उसने हाँफते हुए अपनी जेब से फोन निकाला और पुलिस को डायल किया।
"सर, मैं पत्रकार आकाश बोल रहा हूँ। रामगढ़ की हवेली में खजाने के लिए हत्याएँ हो रही हैं। मैंने अपराधियों को रंगे हाथों पकड़ा है, और मेरे पास सबूत भी है।" उसकी आवाज़ में डर के साथ-साथ एक अजीब सी जीत की खुशी थी।
पुलिस तुरंत हरकत में आई। कुछ ही देर में पुलिस की गाड़ियाँ रामगढ़ पहुँच गईं। आकाश ने उन्हें हवेली का रास्ता दिखाया और पूरी बात बताई। पुलिस ने हवेली की घेराबंदी कर दी और विनय तथा मंगल को, जो अभी भी खजाने की खोज में लगे थे, गिरफ्तार कर लिया।
हवेली के अंदर से खजाना बरामद हुआ – सोने के सिक्के, कीमती गहने और प्राचीन कलाकृतियाँ। यह खजाना राघवेंद्र प्रताप सिंह जी के पूर्वजों ने सदियों पहले छिपाया था, जिसे उनके लालची रिश्तेदार और नौकर अपनी निजी संपत्ति बनाना चाहते थे।
यह खबर पूरे देश में फैल गई। आकाश की रिपोर्ट ने उसे एक प्रसिद्ध पत्रकार बना दिया। रामगढ़ गाँव अब भूतों की कहानियों के लिए नहीं, बल्कि एक ऐसे रहस्य के लिए जाना जाने लगा था जिसका पर्दाफाश एक युवा पत्रकार ने किया था। गाँव वालों का डर खत्म हो गया था, और हवेली अब एक ऐतिहासिक स्थल बन गई थी, जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते थे। आकाश ने रामगढ़ को उसका खोया हुआ सम्मान लौटा दिया था, और उसी के साथ, उस हवेली को भी, जिसने इतने सालों तक एक खौफनाक रहस्य को अपने अंदर छिपा रखा था।