shapit painting in Hindi Horror Stories by Meenakshi Mini books and stories PDF | शापित पेंटिंग

Featured Books
  • नेहरू फाइल्स - भूल-59

    [ 5. आंतरिक सुरक्षा ] भूल-59 असम में समस्याओं को बढ़ाना पूर्व...

  • 99 का धर्म — 1 का भ्रम

    ९९ का धर्म — १ का भ्रमविज्ञान और वेदांत का संगम — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎...

  • Whispers In The Dark - 2

    शहर में दिन का उजाला था, लेकिन अजीब-सी खामोशी फैली हुई थी। अ...

  • Last Benchers - 3

    कुछ साल बीत चुके थे। राहुल अब अपने ऑफिस के काम में व्यस्त था...

  • सपनों का सौदा

    --- सपनों का सौदा (लेखक – विजय शर्मा एरी)रात का सन्नाटा पूरे...

Categories
Share

शापित पेंटिंग


शहर से कोसों दूर, जहाँ सूरज की रोशनी भी डरी-डरी सी झाँकती थी, खड़ा था 'कालगढ़' का प्राचीन किला। लोग कहते थे कि सदियों पहले यहाँ एक क्रूर तांत्रिक तप करता था, जिसने जीवित और मृत्य लोक के बीच एक अदृश्य द्वार खोलने का दुस्साहस किया था। पर एक रात, वह तांत्रिक अचानक कहीं गायब हो गया, और किले को 'शापित' घोषित कर दिया गया। किसी में हिम्मत न थी कि उस वीरान किले के पास भी फटके।
एक दिन, सरकार ने उस किले में खुदाई का काम शुरू करवाया। गहरे नीचे, पुरातत्वविदों को एक सदियों पुराना संदूक मिला। उसके भीतर एक लोहे की छोटी डिब्बी थी, और उस डिब्बी में था—एक पुराना, धूल भरा लकड़ी का कैनवस, एक साधारण दिखने वाला ब्रश और कुछ जली हुई, स्याही से रंगी चिट्ठियाँ। खुदाई दल को ये चीज़ें कुछ खास नहीं लगीं, इसलिए उन्हें सामान्य पुरातत्व वस्तुओं की तरह संग्रहालय भेज दिया गया।
खुदाई दल में रवि भी था, जो कभी फाइन आर्ट्स का छात्र था और देश के सबसे चर्चित पेंटर विराज का गहरा दोस्त। रवि जानता था कि विराज इन दिनों एक ऐसे मास्टरपीस की तलाश में था, जो उसे मोनालिसा की तरह अमर कर दे। जब रवि विराज से मिलने गया, तो मज़ाक में वो पुराना ब्रश और कैनवस उसे भेंट कर गया। "तेरे जैसा महान कलाकार तो इस लकड़ी के टुकड़े में भी जान डाल देगा," उसने हँसते हुए कहा।
विराज ने जब पहली बार उस ब्रश को उठाया, उसकी हथेली में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई, जैसे किसी ठंडे, अदृश्य प्रवाह ने उसे छू लिया हो। उसने इसे थकान समझ कर नज़रअंदाज़ कर दिया।
अगले कुछ दिनों में, विराज जैसे किसी गहरे ट्रान्स में चला गया। वह ना सोता, ना खाता। उसकी आँखें पेंटिंग पर जमी रहतीं, और उसके हाथ अपने आप चलते जाते। कैनवस पर जो उभर रहा था, वह कोई सामान्य चित्र नहीं था—वह एक भयानक, काला गहरा द्वार था… एक ऐसा रास्ता जो किसी और दुनिया में खुलता प्रतीत हो रहा था। जैसे-जैसे वह रंग गहरा करता, वह द्वार और अधिक जीवित, अधिक वास्तविक लगने लगता। कभी-कभी विराज को पेंटिंग से एक धीमी, फुसफुसाहट वाली आवाज़ सुनाई देती, जो उसके भीतर कुछ गहरा खींचती हुई लगती थी।
एक रात, विराज जब पूरे जुनून में पेंटिंग को अंतिम रूप दे रहा था, अचानक उसके हाथ में ब्रश इतनी ज़ोर से चुभा कि उसकी उंगली से खून की एक बूँद टपक कर सीधे कैनवस पर, उस काले द्वार के ठीक केंद्र में जा गिरी। उस पल, पेंटिंग एक पल के लिए भयानक लालिमा से चमकी, और विराज को लगा जैसे द्वार में कुछ हिल रहा हो, कोई गहरी साँस ले रहा हो।
अगली सुबह, विराज की लाश उसके स्टूडियो में, अपनी अधूरी पेंटिंग के ठीक सामने पड़ी मिली। उसके चेहरे पर भयानक भय की ऐसी अभिव्यक्ति थी, जैसे उसने मौत को नहीं, कुछ 'उसके पार' देख लिया हो। फर्श पर और कैनवस के निचले किनारे पर खून के सूखे छींटे थे, मानो उसका अंतिम रक्त ही उस भयावह चित्र का भोजन बन गया हो।

पुलिस को कुछ समझ नहीं आया। मौत का कारण हार्ट अटैक बताकर केस बंद कर दिया गया, लेकिन विराज की असामयिक मौत ने उसके चाहने वालों को भीतर तक तोड़ दिया।
उसकी आखिरी पेंटिंग, जो उस रात अधूरी थी, अब रहस्यमयी रूप से 'पूर्ण' हो चुकी थी। उस पर एक अजीब, गहरी, और पहले से कहीं ज़्यादा रहस्यमयी चमक थी। उस काले द्वार का चित्र अब इतना वास्तविक लग रहा था, मानो उसे छूते ही कोई अनजानी दुनिया में खिंच जाए।
कुछ समय बाद, वह पेंटिंग आर्ट गैलरी को दे दी गई। वहाँ श्रीकांत नामक एक धनी व्यक्ति आया, जो पुराने और अनोखे आर्टवर्क का शौकीन था। उसे वह पेंटिंग अत्यंत आकर्षक लगी, उसकी गहरी चमक और भयावहता ने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया। वह उसे खरीदकर अपने घर ले गया और बेडरूम की मुख्य दीवार पर टांग दिया।
तीसरे दिन सुबह, उसकी पत्नी की चीखों से पूरा घर गूँज उठा। श्रीकांत की लाश बेडरूम में, ठीक उस शापित पेंटिंग के नीचे पड़ी थी। उसका चेहरा नीला पड़ चुका था, और आँखें डर से बाहर निकलती सी लग रही थीं। कमरे में किसी के भी दाख़िल होने का कोई निशान नहीं था, लेकिन दीवार पर और पेंटिंग के निचले हिस्से पर खून के ताज़े, गहरे छींटे थे, जैसे किसी ने जानबूझकर वहाँ खून उछाला हो, पर वहाँ कोई नहीं था। पेंटिंग की रहस्यमयी चमक इस घटना के बाद और भी गहरी हो चुकी थी, मानो उसने श्रीकांत के जीवन का रंग चूस लिया हो। पुलिस इसे भी हार्ट फेलियर मानकर आगे बढ़ गई।
कुछ महीने बाद, वही पेंटिंग एक आर्ट नीलामी में फिर से सामने आई। इस बार उसे अंजलि नामक एक युवा लड़की ने खरीदा, जो आधुनिक और रहस्यमयी कला की दीवानी थी। उसने गर्व से वह पेंटिंग अपने बेडरूम में लगाई। वह अक्सर अपनी सहेलियों से कहती, "उस पेंटिंग की आँखें मुझे देखती हैं... उनमें एक अजीब गहराई है।" धीरे-धीरे, अंजलि को पेंटिंग से एक धीमी फुसफुसाहट सुनाई देने लगी, जैसे कोई उसे अपने पास बुला रहा हो। उसे लगता था कि रात में पेंटिंग से कोई अदृश्य शक्ति उसे अपनी ओर खींच रही है।
एक दिन, अंजलि अपने घर की सीढ़ियों से गिर गई। उसकी मौत हो गई। मगर अंतिम पलों में, गवाहों ने उसे यह कहते सुना, "वो मुझे बुला रहा है… मुझे खींच रहा है…।" उसकी लाश सीढ़ियों पर थी, लेकिन उसके हाथ पर एक गहरा, ताजा घाव था, जिससे रिसता खून पेंटिंग की ओर एक पतली लकीर बना रहा था, मानो अदृश्य रूप से पेंटिंग उसे अपनी ओर खींच रही हो और खून से खुद को तृप्त कर रही हो। उसकी मृत्यु के बाद, पेंटिंग पर चमक और गहराई दोनों बढ़ गई थीं।


अब उस पेंटिंग को तीसरी बार राहुल ने खरीदा था, जो एक मेट्रो सिटी में अपनी गर्लफ्रेंड नेहा के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहता था। नेहा को पेंटिंग की अनोखी चमक थोड़ी अजीब लगी, एक असहजता सी महसूस हुई, लेकिन राहुल को वो बेहद खास लगी। "ऐसा लगता है जैसे इसमें कोई गहरा रहस्य छुपा हो," राहुल ने उत्साह से कहा और पेंटिंग को घर के लिविंग रूम में, सबसे प्रमुख जगह पर लगा दिया।
धीरे-धीरे, राहुल के स्वभाव में भयानक बदलाव आने लगा। वह चिड़चिड़ा हो गया था, रात को डरकर उठता और हाँफने लगता। उसकी नींद में भयानक फुसफुसाहट और डरावने दृश्य आते। "कोई मुझे देख रहा है…," वह नेहा से कांपते हुए कहता, "उस द्वार से कुछ निकल रहा है... वह मुझे खींच रहा है।" नेहा ने उसे डॉक्टर को दिखाने की कोशिश की, लेकिन राहुल मना करता रहा।
एक रात, नेहा की नींद राहुल की भयानक चीखों से टूटी। उसने देखा—राहुल जमीन पर तड़प रहा था, उसका शरीर अकड़ा हुआ था और मुँह से खून बह रहा था। वह मर चुका था। पुलिस आई, लेकिन कोई ज़हर, कोई चोट, कोई सुराग नहीं मिला। बस, उसकी आँखें भी वैसे ही खुली थीं… भय से बाहर निकलती सी… ठीक वैसे ही जैसे विराज और श्रीकांत की थीं। और उसका शरीर पेंटिंग के ठीक सामने पड़ा था, उसके मुँह से निकला खून फर्श पर एक छोटे से तालाब की तरह जम गया था, जो सीधे पेंटिंग के निचले किनारे तक फैल रहा था। उस रात पेंटिंग की चमक इतनी तीव्र थी कि नेहा को लगा जैसे वह चमक नहीं, बल्कि एक डरावनी, लाल आभा हो।


नेहा टूट चुकी थी। राहुल की मौत ने उसे अंदर तक झकझोर दिया था, पर अजीब बात यह थी कि उसने वो पेंटिंग घर से नहीं हटाई। "ये राहुल की आखिरी पसंद थी… मुझे लगता है इसमें उसकी कुछ याद बची है," उसने अपनी एक दोस्त से कहा, पर शायद अवचेतन रूप से वह भी अब पेंटिंग के अदृश्य प्रभाव में आ चुकी थी।
पर धीरे-धीरे, घर में अजीब और खौफनाक घटनाएँ होने लगीं। पेंटिंग कभी ज़्यादा चमकती, कभी उसमें कोई धुँधली, काली आकृति हिलती हुई दिखती। रात को राहुल की दर्दनाक आवाज़ गूंजती — "नेहा… भागो… यह तुम्हें भी निगल जाएगा…।" कभी ठंडी हवा का एक झोंका आता, और घर का तापमान अचानक गिर जाता। नेहा को लगता कि पेंटिंग से कोई उसे लगातार देख रहा है, उसकी हर चाल पर नज़र रख रहा है।
एक रात, नेहा रसोई में पानी लेने गई। अचानक, उसके हाथ में खुद-ब-खुद एक तेज कट लग गया। उसे यकीन नहीं हुआ, मगर खून की एक बड़ी बूँद सीधे पेंटिंग पर, उस काले द्वार के केंद्र पर जा गिरी। जैसे ही खून पेंटिंग में समाया, एक भयानक ऊर्जा पूरे कमरे में फैल गई। पेंटिंग और भी प्रचंड चमकने लगी, और उसका काला द्वार एक पल के लिए इतना गहरा और वास्तविक प्रतीत हुआ, मानो सचमुच कोई गहरा, जीवित जीव साँस ले रहा हो। नेहा को महसूस हुआ, जैसे उसकी अपनी ऊर्जा भी उस पेंटिंग में खींची जा रही हो। उसे अब पूरी तरह से यकीन हो गया — ये कोई आम पेंटिंग नहीं, ये जीवित है और खून से पोषण पाती है।


डर के मारे नेहा रात में ही घर से भाग गई। सड़क पर वह दौड़ती रही, रोती रही, चीखती रही, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसका पीछा कर रही हो। सुबह 4 बजे के आस-पास, उसे एक प्राचीन मंदिर की सीढ़ियाँ दिखीं। वह वहीं, बेहोश होकर गिर पड़ी।
सुबह हुई। मंदिर के पंडितों ने उसे देखा और पानी पिलाकर होश में लाए। जब बुज़ुर्ग पंडित जी ने नेहा की आपबीती सुनी, तो उनका चेहरा सख़्त हो गया। उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई।
"वो पेंटिंग नहीं, बेटी… वो एक 'द्वार' है," उन्होंने गंभीर आवाज़ में कहा। "और उसे बनाने वाला ब्रश और कैनवस शुद्ध नहीं थे। वे एक ऐसे तांत्रिक द्वारा अभिशप्त किए गए थे, जिसने अपने काले जादू से दूसरी दुनिया का द्वार खोलने का प्रयास किया था।"
नेहा सन्न रह गई।
पंडित जी ने अपनी आँखें बंद कर कुछ देर ध्यान किया, फिर बोले, "सदियों पहले, एक दुष्ट तांत्रिक ने जीवित और मृत्य लोक के बीच का परदा हटाने की कोशिश की थी। वह 'माया द्वार' बनाना चाहता था। जब वह लगभग सफल हो गया था, तब कुछ सिद्ध साधुओं ने उसे मार दिया। लेकिन उसकी आत्मा और उसकी अधूरी कामना उस ब्रश और कैनवस में कैद हो गई। जो कोई भी उस ब्रश से चित्र बनाएगा, वो द्वार फिर से खुलने लगेगा। और उस द्वार को पूरी तरह से खोलने के लिए, तांत्रिक को 100 निर्दोष आत्माओं का रक्त चाहिए। यह पेंटिंग हर उस आत्मा का खून चूसती है जो इसके पास मरती है, ताकि इसका द्वार पूरी तरह से खुल सके और तांत्रिक की आत्मा मुक्त हो सके।"


पंडित जी ने दृढ़ निश्चय किया — इस अनिष्ट को रोकना ही होगा। मंदिर में नौ रात्रियों का एक विशेष, शक्तिशाली यज्ञ शुरू हुआ। पेंटिंग को मंदिर के गर्भगृह में, लाल कपड़े से कसकर ढककर रखा गया।
हर रात, यज्ञ के दौरान अजीब घटनाएँ होतीं। कभी तेज़ हवा चलती, कभी मंदिर के भीतर से भयानक फुसफुसाहट सुनाई देती, कभी कोई अदृश्य शक्ति साधुओं को धक्का देती या उन पर हमला करती। कोई न कोई साधु घायल हो जाता, लेकिन वे सभी अपनी जान की परवाह किए बिना डटे रहे, मंत्रों का पाठ करते रहे।
अंतिम दिन, जब यज्ञ की पूर्णाहुति का समय आया, अचानक वातावरण में एक भयानक तनाव फैल गया। हवा इतनी तेज़ हुई कि मंदिर की खिड़कियाँ और दरवाज़े कड़कड़ाने लगे। आकाश में बिजली कड़की, और एक ही झटके में, गर्भगृह में ढका लाल कपड़ा हवा में उड़ गया।
पेंटिंग अब अपने सबसे विकराल रूप में थी। उस काले द्वार से घना, काला धुआँ निकलने लगा, और तांत्रिक की डरावनी, अट्टहास करती हँसी पूरे मंदिर में गूँज उठी — "मेरा द्वार खुल रहा है… कोई नहीं बच सकता…।"
एक युवा साधु पेंटिंग की ओर खिंचने लगा, जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे अपनी ओर खींच रहा हो। बाकी सब पंडित जी के साथ मिलकर अपनी पूरी शक्ति से मंत्रों का पाठ कर रहे थे, ताकि उस शक्ति को रोक सकें। पंडित जी ने एक नज़र नेहा की तरफ देखा, उनकी आँखों में एक अलग ही भाव था ।
नेहा ने एक पल भी नहीं सोचा। राहुल की दर्दनाक मौत, अपनी आँखों के सामने घटित हुईं भयावह घटनाएँ, और पंडित जी के शब्द — सब उसके दिमाग में घूम गए। वह अपनी जान की परवाह किए बिना दौड़ी, और अपने हाथों से काँपती हुई उस भयावह पेंटिंग को उठाया। पेंटिंग ठंडी और जीवित महसूस हुई, जैसे कोई उसे वापस खींच रहा हो। लेकिन नेहा ने अपनी सारी शक्ति लगाई और उसे उठाकर सीधे यज्ञ की प्रज्वलित अग्नि में फेंक दिया।
पेंटिंग एक भयानक चीख के साथ तड़प उठी। उसकी आग नीली हो गई, और पूरे मंदिर में एक जोरदार भूकंप सा आ गया। तांत्रिक की हँसी चीख में बदल गई और फिर शांत हो गई। उसी पल, मंदिर के भीतर एक तेज़, ठंडी हवा का झोंका आया। उस हवा के साथ ही, विराज, श्रीकांत, अंजलि और राहुल सहित उन सभी पीड़ितों की धुँधली, पारदर्शी आकृतियाँ दिखाई दीं, जो एक पल के लिए नेहा और पंडित जी की ओर कृतज्ञता से देखीं, और फिर धीरे-धीरे, शांति से हवा में विलीन हो गईं।
और फिर… एक गहरी, पवित्र शांति छा गई।

🌼 
नेहा कई दिनों तक अचेत रही, जैसे उसकी आत्मा ने भी उस भयावह अनुभव से उबरने के लिए समय लिया हो। जब उसे होश आया, तो उसने खुद को मंदिर के शांत और सुगंधित वातावरण में पाया। पंडित जी उसके पास बैठे थे, उनके चेहरे पर गहरी शांति और कृतज्ञता का भाव था।
उन्होंने नेहा को देखा और एक हल्की, सुकून भरी मुस्कान के साथ कहा, "तुमने सबको बचा लिया बेटी। वह द्वार अब कभी नहीं खुलेगा। तांत्रिक की आत्मा हमेशा के लिए शांत हो गई।"
नेहा ने धीरे से पलकें खोलीं। पहली बार, उसे अपने भीतर एक अजीब सी शांति महसूस हुई। उसके कंधों पर से वर्षों का नहीं, बल्कि युगों का भार उतर गया था। उसने उठकर मंदिर के बड़े द्वार से आसमान की ओर देखा। सूरज की सुनहरी, जीवनदायिनी रोशनी मंदिर के आँगन में फैल रही थी। उसने एक गहरी, सुकून भरी साँस ली, और उसकी आँखों से खुशी और राहत के कुछ आँसू बह निकले।
उसे राहुल का चेहरा याद आया, उसका प्यार और उसकी दर्दनाक मौत। लेकिन अब, उन यादों के साथ भय नहीं था, बल्कि एक अजीब सी मुक्ति का एहसास था। उसे लगा जैसे राहुल की आत्मा ने भी उसे धन्यवाद दिया हो। उसने उन सभी अज्ञात चेहरों को याद किया जो उस शापित पेंटिंग का शिकार बने थे—विराज की भयभीत आँखें, श्रीकांत का नीला चेहरा । अब उन्हें शांति मिल गई थी, और इस विचार ने उसके हृदय को एक अनूठी तृप्ति से भर दिया।
उसने पंडित जी की ओर मुड़कर देखा, उनके शांत और ज्ञानी चेहरे पर एक अटूट विश्वास झलक रहा था। नेहा ने महसूस किया कि इस दुनिया में ऐसी अदृश्य शक्तियाँ भी हैं जिनके बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी, और पंडित जी जैसे लोग ही उनका सामना करने का ज्ञान रखते हैं। एक गहरे निश्चय के साथ, उसने पंडित जी से कहा, "पंडित जी, क्या आप मुझे सिखाएंगे? मैं भी इन शक्तियों को समझना चाहती हूँ, ताकि कोई और मेरे जैसी स्थिति में न फँसे। मैं जानना चाहती हूँ, सीखना चाहती हूँ।"
पंडित जी ने स्नेह भरी दृष्टि से नेहा को देखा और धीरे से सिर हिलाया। "तुम्हारा साहस और तुम्हारी भावना सराहनीय है, बेटी। अवश्य।"

"एक पेंटिंग जो निर्दोषों के खून से पल रही थी, वह अब सदा के लिए ख़त्म हो चुकी थी, और उसके साथ ही, उस शापित द्वार का भय भी।" वह जानती थी कि यह घाव भरने में समय लगेगा, पर आज से वह आज़ाद थी। उसने एक नई ज़िंदगी की शुरुआत की थी, उस भयानक अतीत से मुक्त, और भविष्य की ओर एक हल्की सी मुस्कान के साथ देखा, अब एक नए उद्देश्य के साथ।
समाप्त