यार पापा लेखक दिव्य प्रकाश दुबे
ये कहानी है रिश्तों की , दोस्ती की ,प्यार की, गलतफहमियों और महत्वकांक्षाओं की कई बार जीवन में हम सब कुछ पा लेने की जिद में अपनो को अपने रिश्तों को नजर अंदाज कर बैठते है और हमें पता हो नहीं चलता के क्या पाने की चाहत में हम क्या खो बैठे हैं ! नाम पैसा और शौहरत की चमक में हमें अपनो को छोटी छोटी खुशियां दिखाई नहीं देती और हम अपने रिश्तों को खराब कर देते है ...!
यार पापा ... जैसा के नाम से ही लग रहा है के ये कहानी है मशहूर वकील मनोज साल्वे और उनकी बेटी साशा की रिश्तों पर आधारित कहानी है एक समय ऐसा आता हैं जब हमारे बच्चे बड़े हो जाते है और उनको हमारी दी हुई गिफ्ट से ज्यादा हमारे साथ जरूरत होती है पर हम अपने जीवन में सब कुछ पा लेने की जिद में उनकी छोटी छोटी जरूरतों पर ध्यान नहीं दे पाते उन्हें समय नहीं दे पाते ! ये कहानी ऐसे ही एक सफल वकील और उसकी बेटी की है जो अपने पिता से गलतफहमियों के चलते नफरत करने लग जाती हैं और दूरी बना लेती है ....!
कहानी के शुरू होती तीन दोस्तो मनोज , गजेन्द्र और मीता जो अपने लॉ कॉलेज की फाइनल एग्जाम देने वाले हो और आखिरी पेपर के दिन मनोज के पिता की मृत्यु की खबर आती है और वो एग्जाम का आखरी पेपर दिए बिना अपने घर वापस लौट जाता है और फिर नकली मार्कशीट के जरिए अपनी वकालत शुरू करता हैं और सफल वकील के रूप में स्थापित हो जाता है , फिर अचानक एक दिन उसकी नकली मार्कशीट की कहानी खुल जाती है और वो फिर से एग्जाम देने का तय करता है फिर उसकी कॉलेज में दाखिला लेता है जहां उसकी बेटी पढ़ती है और फिर शुरू होता बाप बेटी की नाराजगी , नफरत और आपसी गलतफहमियों को दूर करने का सफर ... !
कहानी में और भी कई किरदार है जो इस कहानी को और भी रोचक बनाते है । दिव्य प्रकाश दुबे जी का लेखन बहुत ही सादा और सुलझा हुआ है उन्होंने उपन्यास में सभी किरदारों का बखूबी अच्छा और विस्तृत उपयोग कर कहानी को बहुत अच्छे ढंग से लिखा है जैसे मनोज का रूम पार्टनर और कॉलेज का टॉपर पवी रंजन उर्फ बाबा और उसकी मां के बीच के रिश्ते को बहुत मर्मिक तौर पर पेश किया और साशा की समझ को सही दिशा दिखाने वाले अंकल .. मनोज के दोस्त गजेन्द्र और उसकी भतीजी गुनगुन के बीच एक प्यारा सा रिश्ता इन सभी किरदारों ने इस कहानी में एक अलग ही रंग भर दिया और उसको बहुत अच्छी और मार्मिक कहानी में बदल दिया है !
कुल मिलाकर बहुत अच्छा उपन्यास है जिसे पढ़ कर आपको अपने जीवन में क्या बदलाव लाने चाहिए ताकि आपके अपने परिवार और दोस्तों के साथ के रिश्ते को किस तरह से अच्छा बनाए रखें यह दर्शाती हैं कैसे आपके जीवन की महत्वकांक्षाएं आपको बदल देती हैं जिसका आपको उसका पता नहीं चलता .... !
हम एक रास्ता दो बार भटकते हैं। पहली बार कोई नया रास्ता खोजने की कोशिश में और दुबारा भटके हुए रास्ते पर फिर से चल पाने की इच्छा से। कई बार खुद से मिलने के लिए दुनिया भर के रास्ते भटकने पड़ते हैं।
समीक्षा प्रस्तुति : विश्वास