चुनौतियां , लुधियाना से दिल्ली तक !
मेरे फ़ेसबुक मित्र आदरणीय श्री एम.बी. त्रिपाठी का कहना है - “उत्साह संपन्न बनो , मुर्दा नहीं। बाहर की यात्रा की निवृत्ति हो गई तो अंतर्यात्रा की शुरुआत करो । यह स्थान परिवर्तन की बात नहीं , यह बहिर्मुखी वृत्तियों की चर्चा है।“ वे आगे लिखते हैं – “ वैसे मेरा स्वभाव बहिर्मुखी रहकर भी अंतर्मुखी है। खुद पहल कर लोगों का कुशल समाचार पूछते रहने का मै हिमायती रहा हूं.. छिप कर चोरों की तरह जीवन जीना मुझे पसंद नहीं। पर कुछ लोग तो सांस लेने से भी परहेज करने लगे हैं, ताकि उनके जिंदा रहने का लोगों को पता न लग जाय। तो मुझे अपनी आदत बदलनी पड़ रही है। किसी के विश्राम में खलल न डालो। मुर्दा अपनी कब्र मे सो रहा है,उसे जगाओ मत। जिनमे थोड़ी भी जान बाकी है,उन्हे मैं जगाता रहता हू़ं,न स्वयं सोता हूं और न सोने देता हू़ं। इतनी सुंदर सृष्टि परमात्मा ने हमारे लिए बनाई..क्या यह रो- रो कर काटने के लिए है ? नहीं, इसे मधुर बनाओ.. इसका वातावरण बदलो.. अपने अनुकूल बनाओ। ऐसे जिंदा लोगो को आगे लाओ.. जो उत्साह से लवरेज है। कुछ करने का माद्दा रखते हैं। ऐसे लोगो का समूह बनेगा तो अंतिम दम तक हम युवा बने रहेंगे।“
उन्होंने आगे कहा- “अपने संसार को बसाने मे हमने इतना वक्त गुजारा। खूब परिश्रम किया.. अब जीवन का उत्तरार्द्ध आया तो मिशन परमात्मा होना चाहिए। जब सब कुछ सफलता पूर्वक पा लिया तो क्या हम ईश्वर को नहीं पा सकते? कोशिश तो करो प्यारे ! कम से कम जीने का असल आनंद तो मिल जाय। हार कर बैठना हमने नहीं सीखा है। सुना है भोगों की प्राप्ति कर्म से होती है, ईश्वर की प्राप्ति इच्छा से होती है। यह सही लिखा है या झूठी बात है जरा परखें तो सही। जीवन के जो भी शेष दिन हैं एक दूसरे की मदद करते हुए.. यह लास्ट मिशन भी पूरा करना है। “ कहै कबीर ज्ञान नहिं उपज्यो,
बांध्यो जमपुरि जासी |”
उनकी बातों से सहमत होते हुए ये बातें मैंने अब जाकर अपने जीवन में उतारनी शुरू की है जब जीवन के सारे मिशन लगभग समाप्त हो गए हैं | लेकिन इसके पहले यह मेरा पूर्वार्द्ध जीवन, बाप रे बाप, कितना कंटकाकीर्ण, कितना अपमानजनक और कितना क्षोभ उत्पन्नकारी रहा है – जानना चाहेंगे आप ? आत्मकथा के इन पृष्ठों पर एक - एक कर बताऊँगा, बस धैर्य रखिएगा ! फिलहाल तो लुधियाना में वर्ष 2007 में अपने छोटे पुत्र लेफ्टिनेंट यश आदित्य की ऑन ड्यूटी असमय शहादत से उपजी परिस्थितियों पर लुधियाना से दिल्ली दरबार तक मिलने वाली चुनौतियों की चर्चा करूंगा जिसमें दुख है, क्षोभ है ,हताशा और आश्चर्य तो है ही उन पर हसूँ या रोऊँ इस पर भी एक नहीं अनेक दुविधाएं हैं | शुरुआत एक बार फिर 29 अगस्त 2007 से करता हूँ |मैँ अपने ऑफिस मे बैठा था कि अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बजती है और एक अज्ञात नंबर से फोन आता है जिस पर फोन करने वाले अपना परिचय देते हैं कि वे 7 मैकेनाइज्ड इन्फैन्ट्री के सी.ओ. कर्नल संजीव शर्मा बोल रहे हैं | ज्ञातव्य है कि इससे पहले ये सज्जन कभी भी मुझसे बात करने की आवश्यकता नहीं महसूस किये थे |पहले तो वे औपचारिकता निभाते हुए मेरी खैरियत पूछते हैं और फिर बहुत सहज ढंग से यह सूचना देते हैं कि मेरा बेटा लेफ्टिनेंट यश लुधियाना में घटित एक दुर्घटना में घायल हो गया है और उसे बर्न इंजरी आई है ,फिलहाल उनकी हाल स्थिर है |मैं चौक उठता हूँ |तभी वे फोन यश को दे देते हैं |यश (हम लोग घबड़ाएं नहीं इसलिए ) कह उठते हैं कि डैडी ठीक है .. कर्नल साहब मेरी देखभाल कर रहे हैं |मैं ठिठक जाता हूँ और उनसे बोल उठता हूँ कि बेटा हम आज ही चल दे रहे हैं |इससे पहले कर्नल संजीव शर्मा (जो मेरे बेटे की मौत के कारण हैं ) मेरे बड़े बेटे कैप्टन दिव्य आदित्य ( जो उन दिनों हिसार में नियुक्त थे ) को फोन करके यह समाचार दे चुके थे|जब मैंने दिव्य से बात की तो उन्होंने बताया कि कर्नल शर्मा का फोन आया था और वे इस दुर्घटना से अवगत हैं और वे लुधियाना के लिए निकल चुके हैं | सच यह था कि लेह की पोस्टिंग समाप्त होने के बाद जब मिलिट्री स्पेशल ट्रेन सैनिक और सैन्य सामान ( बी. एम. पी. टैंक सहित अन्य टैंक , गोला, बारूद आदि) सहित बबीना के लिए आ रही थी और वह लुधियाना रेलवे स्टेशन पर खड़ी थी । ऐसा लगता है कि लोड करते समय बी. एम. पी. टैंक के बैरल को नीचे नहीं किया गया था और वह आसमान की ओर उठा हुआ था। ट्रेन में बैठे कर्नल शर्मा ने लेफ्टिनेंट यश को यह आदेश दिया कि ट्रेन पर लादे गए इन बी. एम. पी. तोप आदि की फ़ोटो वे खीच लें जिनको कर्नल साहब को सेना की Infantry Brigade की The Mechanised Dogras (A Saga of Gallantry and Valour of 7 MECH INF (1 DOGRA) पुस्तक के लिए भेजना था और इस जान लेवा और रिस्क भरे काम के लिए उन्होंने अपना Nikon SB-5000 AF Speedlight मंहगा, अति आधुनिक (Electric Camera) भी दिया था |अपने कर्नल के आदेश को पूरा करने के लिए यश ट्रेन पर चढ़ कर फ़ोटो खींच रहे थे कि वे ट्रेन के ऊपर जा रही हाई वोल्टेज बिजली की लाइन के संपर्क में आ गए और आग का गोला बन कर लुधियाना रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म पर आ गिरे थे |उनको सत्तर प्रतिशत की Burn Injuryआई थी |दुखद बात यह कि कर्नल शर्मा ने उस स्थिति में भी प्राथमिक उपचार दिलवा कर ख़ुद बोल बोल कर यश के अपने हाथों से ऐसा एफ. आई. आर. लिखवाया कि जिससे उन पर और सेना पर कोई आंच ना आने पाए। अब आप ही तय करें कि अपने जूनियर ऑफिसर से, जिसके 70 प्रतिशत अंग हाई वोल्टेज करेंट से जल गए हों, सीनियर सी. ओ. कर्नल शर्मा का यह कृत्य क्या क्षमा योग्य है ? लोमहर्षक दुर्घटना के इस इस सच को आज तक परिजनों से छिपाया जाता रहा है|सेना के अधिकारियों द्वारा परिजनो से यह बात भी छिपाई जा रही थी कि यश की स्थिति अति गंभीर थी और वे मौत के मुंह में जा रहे थे |पाठकों, सच यह है कि यह दुर्घटना नहीं बल्कि सेना के 23 वर्षीय युवा अफसर को मौत के मुंह में धकेलने की साजिश थी जिसे उसी के कर्नल रैंक के सी. ओ. (सीनियर अफसर) कर्नल संजीव शर्मा ने रची थी |
उन दिनों इस सच पर पर्दा डालने के लिए 7 मैकेनाइज्ड इन्फैन्ट्री (1 डोगरा ) की पूरी यूनिट सक्रिय हो उठी थी और इसी लिए दुर्घटना के बाद सबसे पहले आर्मी में ही कार्यरत मेरे बड़े बेटे दिव्य को उन्होंने कॉन्फिडेंस में ले लिया था | लेकिन सच तो सच होता है आप उसे लाख छिपाने की कोशिश कर लें | उस दुखद घटना के लगभग 18 वर्ष बाद भी मेरे सीने में वह छटपटाहट आज भी मौजूद है |जब कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में कर्नल शर्मा अपनी पहुंच के चलते पाक साफ साबित हो गए तब उन्होंने अपना तबादला करवा लिया। मानो लेफ्टिनेंट यश को मरने के लिए प्रेरित करने के बाद इस खलनायक हत्यारे का सरकार और सेना द्वारा प्रमोशन दर प्रमोशन किया जाता रहा । कर्नल शर्मा जैसे सेना में एक नहीं सैकड़ों ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने अपने अधीनस्थ सैनिकों और जूनियर अफसरों की लाश पर चढ़ कर तमगे इकट्ठे किए, इनाम लिए और अपना प्रमोशन भी लिया है।
यह खलनायक- हत्यारा (अब सेवानिवृत्त) जनरल संजीव शर्मा भले ही आज सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जैसे लगभग सर्वोच्च पद से रिटायर होकर शिमला के अपने आलीशान फार्म हाउस और बंगले में अपनी शाम रंगीन कर रहे हों , उनको युवा सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट यश को मौत के मुंह में झोकने के लिए उकसाने के पाप और यश की मौत के सच को छिपाने के दंड को अवश्य भुगतना पड़ेगा | इस पाप की सजा उसे यहां की अदालत से नहीं सही ऊपर की अदालत अवश्य मिलेगी ,सिर्फ़ उसको ही नहीं उसकी वंशजों को भी, पूरी 7 Mech. Inf.यूनिट को भी |
कर्नल संजीव शर्मा उन दिनों बेहद रिसोर्स वाले सेना अधिकारी हुआ करते थे और अपने इस अपराध को छिपाने में सफल रहे | उनकी पहुंच सरकार, सेना मुख्यालय और आर्म्स ट्रिब्यूनल में भी थी। आगे, वर्षों बाद बबीना कैंट में जब मेरी मुलाकात उनसे हुई तो बातचीत में उन्होंने मुझे इसका इशारा भी किया था कि अगर मैंने यश की मृत्यु के कारणों की जांच पड़ताल की कोशिश भी की तो अव्वल तो उनका कुछ भी नहीं होगा बल्कि वे सेना में काम कर रहे मेरे बेटे दिव्य आदित्य का कैरियर खराब कर देंगे | कर्नल संजीव शर्मा को बी.एन.एस. की धारा 107, 108 और 226 के आधार पर 10 वर्ष तक के कारावास,पदावनति सहित अन्य विभागीय दंड ,अर्थ दंड मिलना चाहिए था और लेफ्टिनेंट यश आदित्य की मौत की साजिश रचने के लिए सेना को अपराध के कटघरे में लाया जाना चाहिए |उस मुलाक़ात से पहले तत्कालीन सी ओ कर्नल एल पी सिंह ने मुझसे फोन कर के यह पूछ था कि आप कोर्ट ऑफ इंक्वायरी और पोस्ट मार्टम रिपोर्ट किसलिए मांग रहे हैं? जब वे आश्वस्त हो गए थे कि मुझे कर्नल शर्मा या सेना के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं करनी है तब जाकर उन्होंने मुझे वे पेपर्स भेजे थे। सेना अधिकारियों द्वारा लुधियाना से रची गई इस साजिश से मुझे अपने बेटे को तो असमय खोना ही पड़ा उसकी शहादत के बाद उपजी ढेर सारी चुनौतियों का भी सामना मुझे लुधियाना , बबीना कैंट, लखनऊ से दिल्ली तक करना पड़ा | इस प्रसंग की चर्चा अगले अंक में स विस्तार करूंगा।
मेरे हिप ज्वाइंट का चूंकि उन्हीं दिनों ऑपरेशन हुआ था इसलिए मैं तुरंत लुधियाना नहीं रवाना हुआ |मेरी पत्नी मीना और साढ़ू ओ. पी मणि त्रिपाठी के बेटे अनुराग 29 अगस्त 2007 की रात की ट्रेन से भागे |राम रक्षा स्त्रोत का जाप करते हुए |लुधियाना रेलवे स्टेशन से सीधे सी. एम. सी. अस्पताल |पत्नी ने बताया कि यश बर्न वार्ड में ,पूरे शरीर में बैंडेज बंधा हुआ ,मच्छरदानी के अंदर पड़े थे |होश में थे और अपनी चिर परिचित मुस्कान बिखेरने की असफल कोशिश में भी |मीना फफक कर रो उठीं |उनका मातृत्व चीत्कार कर उठा | बड़े बेटे दिव्य वहाँ मौजूद थे और खलनायक कर्नल संजीव शर्मा वहाँ से जा चुका था क्योंकि वह जानता था कि असली गुनहगार वही है और वह एक घायल बेटे की माँ से नजरें कैसे मिला पाता ? वहाँ से कर्नल जा चुके थे और एक जवान और एक लेफ्टिनेंट यश की रखवाली में छोड़ गए थे | पहली सितंबर को मीना ने फोन करके बताया कि घायल यश की हालत ठीक नहीं हैं हालांकि वह ऐसा बर्ताव कर रहे हैं कि वे सामान्य हैं और जल्दी ठीक हो जाएंगे |मेरी बड़ी बहन विजया की बहू डा. वैशाली उपाध्याय बी. एच. यू. से मेडिकल की थीं और उनकी एक परिचित डाक्टर उस अस्पताल में पोस्टेड थीं उनसे भी संपर्क साधा गया |फिर तय हुआ कि मैं भी बिना देर किये वहाँ पहुँच जाऊँ | अनुराग जो मीना को पहुंचा कर वापस आ गए थे एक बार फिर मेरे साथ दो सितंबर की रात ट्रेन से लुधियाना के लिए रवाना हुए | तीन को लगभग 12बजे मैं भी वहाँ उपस्थित हो गया था |मीना पहले से ही वार्ड में अंदर यश के पास थीं |यश को इन्फेक्शन न हो इसलिए मुझे अंदर नहीं जाने दिया गया और खिड़की से ही यश हाथ हिलाकर मेरा अभिवादन किये |मैं उसके साहस पर किंकर्तव्य विमूढ़ था ! उसी शाम यश की तबीयत बिगड़ने लगी | शरीर के एक एक अंग अब निष्क्रिय हो रहे थे |मामला संगीन होता देख रात में चंडीगढ़ से आए एक विशेषज्ञ डाक्टर से हम लोगों ने सिफारिश की कि यश को तुरंत दिल्ली रेफर कर दिया जाए , आवश्यकता हो तो एयर एंबुलेंस से जहां बेहतर चिकित्सा सुविधा मिल सके | लेकिन वे डाक्टर(संभवत:यह जानकर कि अब बहुत देर हो चुकी है ) मेरी बात से सहमत नहीं हुए | जाने क्या प्रेरणा मिली कि अनुराग को मैंने रोक रखा था और तीन सितंबर को लखनऊ से अपने साढ़ू और उनकी पत्नी को तुरंत आ जाने के लिए कहा |मरणासन्न यश उनके यहाँ दो साल रहकर अपनी इंटर की पढ़ाई तो किये ही थे उन्हीं के यहाँ रह कर एन.डी.ए. भी क्वालीफाई किये थे |वे अगले दिन 4 सितंबर को दोपहर में हमारे साथ थे |
उस साल 4 सितंबर को गुरु पूर्णिमा थी |संयोग कि पुणे से यश के बचपन के मित्र कर्नल असीम गुप्ता और उनकी माँ (जो गोरखपुर में यश की शिक्षिका भी रह चुकी थीं ) भी पहुँच गईं |उस दिन शाम को यश को आई.सी.यू.में शिफ्ट कर दिया गया था | वहीं जाकर वे लोग मिल लिए और यश के शीघ्र स्वस्थ होने का आशीर्वाद दिए |लेकिन अंतत: वही हुआ जिसका भय था |चार सितंबर की रात में यश को हृदयाघात हुआ | उनको व्हील बेड पर लेकर इस वार्ड से उस वार्ड तक भाग दौड़ शुरू हुई | हम संग साथ बने रहे |हालत गंभीर देख कर अब उनको आई. आई. सी.यू. में शिफ्ट कर दिया गया था |रात में लगभग 10 बजे जांच के लिए ले जाए जाते समय यश अचेत अवस्था में बोलते जा रहे थे और बोलते ही जा रहे थे.. “मम्मी मुझे घर ले चलो , ये लोग मुझे मार डालेंगे |ये लोग मुझे तंग कर रहे हैं |खाना नहीं दे रहे हैं .. डैडी हम लोग कब डाइनिंग टेबुल पर बैठेंगे ?.” . आदि आदि|पाठकों, ये पंक्तियाँ लिखते हुए मेरा दिल धक धक कर रहा है,वे दृश्य जीवंत हो रहे हैं .. उन पलों में हम क्रूर काल के प्रति असहाय थे ,अपने बेटे को काल के गाल में समाते हुए देखने को विवश थे !
पहले अटैक से यश उबर चुके थे लेकिन उनकी हालत अति नाजुक थी |देर रात अपना माथा तब ठनक उठा जब अस्पताल के स्टाफ और कुछ नन बाइबिल हाथ में लेकर आई.आई.सी.यू. आकर हमें साथ लेकर अपनी परम्परा के हिसाब से यश के लिए प्रेयर करने लगीं |कहते हैं कि प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है लेकिन उस दिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ |हम सभी से मानो भगवन रुठ गए थे |
अभी कुछ राहत मिलती कि रात लगभग 3 बजे आई.आई.सी.यू.में कुछ हलचल बढ़ गई |पता चला कि यश को दूसरा हृदयाघात हुआ |हम लोग (मैं, दिव्य, मीना, ओ. पी. मणि त्रिपाठी ,अनुराग, ममता और यश के दोस्त लेफ्टिनेंट असीम गुप्ता )बाहर ही थे |एक डॉक्टर बाहर निकले और दिव्य को साथ ले गए |असीम भी साथ गए |लगभग 4 बजे दिव्य बाहर आए और उन्होंने यश के देहांत का दुखद समाचार दिया |असीम अंदर ही यश के पार्थिव शरीर के पास ही बने रहे |उधर आई.आई.सी.यू.में अब तमाम औपचारिकताएं शुरू हुईं तो इधर हम सभी पर दुख और पीड़ा का पहाड़ टूट पड़ा | मीना लगभग बेसुध हो गईं और मैं क्या बताया जाए ?
उस दिन हम सभी की सुबह आंसुओं भरी, उदास थी |अस्पताल से यश का पार्थिव शरीर मिलने में अत्यधिक देर हो रहा था इसलिए यह तय हुआ कि हमलोग आगे की व्यवस्था के लिए तत्काल सड़क मार्ग से लखनऊ के लिए प्रस्थान कर जाए | यश के मित्र असीम ने निर्णय लिया कि वे वहीं रुक कर यश की बॉडी के साथ ही लखनऊ आ रहे हैं उसी दिन अर्थात 5सितंबर 2007 की देर रात हम लोग जब लखनऊ आए तो सभी परिजन बाहर बरामदे में बिना खाए पिए हम सभी की आतुर प्रतीक्षा में थे |उस रात किसी ने कुछ भी नहीं खाया पिया | सभी की जुबान पर मानो ताले लग गए थे | अगले दिन भोर से ही सैन्य अधिकारियों का आना जाना शुरू हो गया | बताया गया कि बॉडी सेना की गाड़ी से वाया बबीना आ रही है | लगभग दस बजे तिरंगे में लिपटे लेफ्टिनेंट यश और उनके साथ उनके सीओ कर्नल संजीव शर्मा तथा तमाम अधिकारी और जवान आए | घर और कालोनी में मानो कोहराम मच गया | मीना यश के पार्थिव शरीर से दहाड मार लिपट गईं |अंतत: यश को ससम्मान विदाई दी गई |
हमने 23 वर्षीय अविवाहित अपना लाडला खो दिया था | खो नहीं दिया था बल्कि हमसे कर्नल शर्मा हत्यारे ने साजिश कर मौत के हवाले कर दिया था |अगले चरण में लेफ्टिनेंट यश आदित्य की दुखभरी मृत्यु से आहत हम परिजनों की लड़ाई देश की सरकार और भारतीय सेना के सिस्टम से शुरू हुई |यह कम पीड़ा जनक नहीं था |इस प्रकरण की नियम अनुसार कोर्ट ऑफ Inquiry भी आनन फानन में निपटा ली गई | ना तो हमारा पक्ष सुनने की आवश्यकता महसूस की गई और ना ही हमको बुलाया ही गया |यह बहुत बड़ी साजिश थी |
मेरा अनुभव रहा है कि सेना के प्राय: सभी उच्च अधिकारी यह सोचते हैं कि देश के मध्यम वर्ग के परिवार से आए युवा देश सेवा की भावना से नहीं बल्कि सेना में मिल रही सुख सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए आते हैं | खेतीहर या आर्थिक रुप से कमजोर परिवार के लोग अपना पेट भरने और दारू सहित आवास,कैंटीन,बच्चों की सस्ती पढ़ाई और मेडिकल की सुविधा के लिए आते हैं | इसी सामंतवादी मानसिकता के चलते जब कोई कैजुअलटी होती है तो वे सबसे पहले पीड़ित परिजनों को मिलने वाली आर्थिक सुविधाओ को दिलाने पर अपना सारा ध्यान लगा देते हैं | उनकी इस घटिया सोच के पीछे उनकी यह गलत धारणा है कि अकूत रूपया पैसा गहरे से गहरे घाव पर मलहम का काम करेगा |लेफ्टिनेंट यश की शहादत के बाद भी ऐसा ही हुआ |वे नहीं जानते कि मेरे दोनों लाडले देशभक्ति से ओतप्रोत होकर सेना के कैरियर को चुने थे। उन दोनों में कूट कूट कर देशभक्ति का जज़्बा भरा हुआ था |वे चाहते तो किसी अन्य विधा को भी कैरियर बना लेते |सेना की इस घटिया मानसिकता को देख कर आज भी मेरा मन निराश और हताश है।
जब मैंने अपने शहीद बेटे लेफ्टिनेंट यश आदित्य की कोर्ट ऑफ Inquiry की रिपोर्ट और Post mortem रिपोर्ट के लिए सेना के सर्वोच्च कमांडर देश के राष्ट्रपति (प्रेसीडेंट सचिवालय) से पत्र व्यवहार किया तो मुझसे (एक नौजवान शहीद के पिता और केंद्र सरकार के विभाग आकाशवाणी के राजपत्रित अधिकारी पद पर कार्यरत व्यक्ति से ) यह पूछा गया कि क्या आप भारतीय नागरिक हैं ? मुझे इस बात का प्रमाण भेजना पड़ा। सोचिए, राष्ट्रपति पूछ रहा है कि देश की सेना में ऑन ड्यूटी शहीद पुत्र के पिता से यह पूछ जा रहा है कि तुम इस देश के नागरिक हो? इस प्रकार देश के लिए बलिदान हुए एक शहीद के पिता को उसके 23वर्षीय युवा सैन्य अधिकारी बेटे की लोम हर्षक मृत्यु की सच्चाई जानने के लिए कितनी जलालत झेलनी पड़ी इसे मैं आपको अगले अंक में विस्तार से बताऊगा |
कोर्ट ऑफ Inquiry की रिपोर्ट और पोस्ट मार्टम रिपोर्ट पाने में ढेर सारी अडचने आईं | अगले चरण में लेफ्टिनेंट यश आदित्य की दुखभरी मृत्यु से आहत हम परिजनों की लड़ाई देश की सरकार और भारतीय सेना के सिस्टम से शुरू हुई |क्या यह कम पीड़ा जनक नहीं ?
पाठकों ,इस प्रकरण के और भी बहुत कुछ दर्द सीने में लिए बैठा हूँ | एक सैन्य अधिकारी पिता का यह दुख दर्द आप भी सुनना चाहेंगे क्या ? चलते- चलते आपको यह भी बताना चाहूँगा कि सनातन में हमारा यह जीवन ,जन्म और मृत्यु तक ही सीमित नहीं,पूर्व जन्म , पुनर्जन्म और प्रारब्ध तक विस्तार लिए हुए भी है| मेरे युवा बेटे की हत्या की साजिश रचने वाले सेनाधिकारी को यह बात याद रखनी चाहिए | (क्रमश: अगले अंक में) ।