इशिता बिना कुछ बोले बाहर चली गई उसके जाते हीं ध्रुव ने गुस्से में एक जोरदार मुक्का दिवार में मारते हुए कहता है... " मुझे तुम्हे अकेला नहीं छोड़ना चाहिए था... तुम अच्छे से जानती हो इशू मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ फिर ये सौचु कैसे नहीं तुम इस तरह खतरे में क्यू आयी.. क्यू.. क्यू..... " ध्रुव चुपचाप वही बैठ गया लेकिन तभी बाहर से चिल्लाने की आवाज आती है जिसे सुनकर वो तुरंत बाहर जाता है....बरखा घबराइ हुई सी जल्दी से उसके पास जाकर कहती है.... " ध्रुव जी.. वीरा जी खतरे में है... " ध्रुव सवालिया नज़रो से उसे देखकर पूछता है.... " कौन वीरा...?... "
बरखा अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहती है.... " आपकी पत्नी वीरा.... " वीरा नाम सुनकर उसे अजीब लगा फिर उसे ध्यान आता है सब लोग उसे इसी नाम से पुकारते है...
" क्या हुआ उसे...?.. "
बरखा उसे चौपाल की तरफ जाने के लिये कहती है.. ध्रुव जैसे हीं चौपाल पहुंचता है वो घबरा गया... इशिता बेहोश हो रखी थी औऱ रांगा उसकी तरफ बढ़ रहा था... गुस्से में ध्रुव ने रांगा को पीछे की तरफ धक्का दिया जिसे वो लड़खड़ा गया , अपने आपको संभालते हुए रांगा गुस्से में जैसे हीं ध्रुव को मारने के लिये हाथ बढ़ाता है , ध्रुव ने उसे एक पांच मार दिया , जिसे गुस्से में रांगा ध्रुव को जैसे हीं खजर मारने जाता है मेयर उससे पकड़कर दूर करते हुए कहते है.... " रांगा अच्छा होगा यहां से चले जाओ वरना हम गॉव वालो के हाथों हीं मारे जाओगे... " रांगा देखता है उसके चारो तरफ गॉव वाले मशाल औऱ लाठी लिये खड़े थे जिन्हे देखते हुए वो बिना कुछ बोले वहाँ से चला जाता है.. उसके इस बिहेवियर से मेयर सोचते... " ये इतनी आसानी से कैसे चला गया..?... कोई प्रतिक्रिया नहीं की इसने,.. जरूर कुछ तो चल रहा है इसके दिमाग़ में... "
ध्रुव इशिता को वही चारपाई पर लेटाते हुए पूछता है.... " क्या आपमें से कोई मुझे बताएगा ये रांगा कौन है...?... क्या मकसद है इसका...?... " सब नज़रे चुराए इधर उधर देखने लगते है लेकिन उसके पास आकर कहती है.... " मैं बताती हूँ आपको... " बरखा इशिता के आने से लेकर अबतक की सारी बाते ध्रुव को बता देती है... जिसे सुनकर ध्रुव कहता है.... " उस रांगा को अब मुझसे सामना करना पड़ेगा... " ध्रुव इशिता के पास पहुंचकर बरखा से कहता है... " यहां क्या हुआ था...?.. " बरखा कुछ देर पहले हुई घटना को बताती है... " ध्रुव जी.. ज़ब वीरा बाहर आई थी तब मैं यही पर सोमेश औऱ सुमित के साथ कल वीरा जी के लिये उत्सव की तैयारी कर रहे थे.. तभी वीरा बाहर आयी थी... औऱ थोड़ी बाद रांगा ने यहां आकर ये धुआँ किया जिसे सब बेहोश हो गए , मैं भागते हुए आपके पास पहुंच गई... "
बरखा की बात सुनकर ध्रुव इशिता के पास बैठ जाता है औऱ सबको जाने के लिये कह देता है...
समय बीत चुका था ध्रुव वही बैठा हुआ सो गया , सूरज की रोशनी पड़ने से ध्रुव की आँख खुल गई तो उसने इशिता को देखा जो की अभी भी बेहोश थी.....
निराली हाथ में काढ़े का गिलास लिये ध्रुव के पास पहुंचकर उसे देकर कहती है... " इसे वीरा को पीला दो, उसे होश आजायेगा.. " ध्रुव उनकी बात मान लेता है ,... थोड़ी देर बाद इशिता को होश आता है जिसे देख सब खुश थे....