Pyar ki jeet - 5 in Hindi Fiction Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | प्यार की जीत - 5

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प्यार की जीत - 5

क्या यह उचित होगा।और लीला गहरे सोच में पड़ गयी।अरुण बोला"माँ अगर तू चाहेगी तो तेरी पसन्द की लड़की से शादी कर लूंगा।""

और सोच की दुनिया से बाहर निकलते हुए लीला बोली,"मैं तेरी माँ हूं, लेकिन एक औरत भी हूँ जो तुंमने किया वह गलत था।शादी से पहले किसी लड़की से---उसे भी सोचना चाहिये था।"

"माँ, अरुणा की इसमें कोई गलती नही है।उसने तो, मुझे बहुत मना किया था, पर मैं ही

अरुण को अपने किये पर पश्चाताप हो रहा था।

"अब पश्चाताप करने से क्या फायदा।जो करना था वह तो तुम कर चुके हो।अब इसके कोई मायने नही की गलती उसकी थी या तुम्हारी।"बेटे को उदास और परेशान देखकर लीला ने कहा था।

"तो माँ अब मैं क्या करूँ?"अरुण बोला

"अरुणा को गांव बुला ले।मैं उससे मिलना चाहूंगी।"लीला ने बेटे से कहा था।

और अरुण ने अरुणा को फोन किया था,"तुम कहाँ हो?

"समय क्या हुआ है?"अरुणा ने जवाब दिया था।

"बारह बज रहे हैं।"अरुण समय देखकर बोला।

"इस समय मैं कहाँ होती हूँ?"अरुणा ने फिर प्रश्न किया था।

"ऑफिस में।"

"तो बस वही हूँ,"अरुणा बोली,"तुम बताओ फोन कैसे किया।कब आ रहे हो तुम।"

"तुम छुट्टी लेकर यहाँ आ जाओ।"

"क्यो?"

"यह यहाँ आकर पता चलेगा।"

"लेकिन इतनी जल्दी टिकट नही बुक होगा।"वह बोली थी।

"मैं चेक करता हूँ।टिकट बुक करके तुम्हे भेजता हूँ।"

औऱ अरुण  ऑनलाइन टिकट देखने लगा।उसे राजधानी में फर्स्ट ए सी में एक बर्थ खाली मिल गयी और उसने बुक करके टिकट अरुणा को भेज दिया था

और अरुणा आते समय पूरे रास्ते सोचती रही।अरुण ने अचानक उसे क्यो बुलाया है।अरुणा ने ट्रेन में भी रात को फोन किया।तब भी उसने अरुण से पूछा था ।इसी उपोह में वह मथुरा पहुंच गई थी।अरुण स्टेशन पर ही उसे मिल गया था।वह बोली,"अचानक क्यो बुलाया है?"

"माँ ने मेरे लिय एक लड़की पसन्द कर ली है।वह मेरी शादी करना चाहती है।"उसने अरुणा को बताया था।

"तो इसमें मेरा क्या काम?"

",मेरी शादी में तुम्हे नही बुलाऊंगा तो किसे बुलाऊंगा

और अरुणा शादी वाली बात सुनकर हताश हो गयी, पर कोई प्रतिक्रिया नही की

"माँ, यह अरुणा।"अरुण ने उसे अपनी माँ से मिलवाया था।अरुणा ने उनके पैर छुए।लीला ने उसके सिर पर हाथ रख दिया।

और अरुणा नहा कर तैयार हो गयी तब अरुण नाश्ता लेने के लिये बाजार चला गया।तब लीला बोली

तुम्हारी माँ है

जी है" अरुणा ने जवाब दिया

"और कौन कौन है?"

"कोई नही।"अरुणा बोली थी।

"तुम्हारी माँ ने संस्कार नही दिये तुम्हे।"

"दिए हैं।"

"तुम्हे यह पता नहीं शादी से पहले समर्पण नही करना चाहिये।"

"जी पता है।""

"अगर तुम्हें यह बात पता है तो तुंमने शादी से पहले समर्पण क्यो किया?",लीला ने सीधा प्रश्न किया था।

"मैं तो नही चाहती थी लेकिन

"लेकिन उसने शादी का झांसा दिया।मर्द सब एक से होते है।अरुण भी अब मेरी पसन्द की लड़की से शादी कर रहा है

और लीला की बात सुनकड अरुणा उदास हो गयी।तभी अरुण लौट आया था।लीला ने सबको नाश्ता दिया दिया था।

और बाद में लीला, अरुणा से बोली,"खाना बनाना आता है।"

",बना लेती हूँ।"

"तो बनाओ।"

"क्या बनाऊ।"

"जो भी तुम अच्छा बना सको।वो ही बन लो।"

और अरुणा ने पूड़ी, सब्जी, हलवा बनाया था।लीला  ने उसके खाने की तारीफ की थी।

"और कौन है घर मे?"दूसरा प्रश्न किया था।

"बस माँ।"

और दिन में पंडितजी आ गए।वह आते ही बोले,"अरुण और मीनाक्षी की जन्मपत्री मिला ली है।बहुत बढ़िया जोड़ी रहेगी।"

लीला जब पंडित से बात कर रही थी।अरुणा वही बैठी थी और अरुण दोस्त से मिलने चला गया था।

"पंडितजी शादी की तारीख निकालो

पंडितजी मन ही मन पत्रा खोलकर देखने लगें तब लीला बोली,"पंडितजी,अरुण और अरुणा के नाम से देखो और एक दो दिन में।"

पंडितजी देझकर बोले,"परसो का शुभ है

और उनके जाने के बाद अरुणा, लीला से लिपटकर बोली,"आपने मेरा जीवन तबाह होने से बचा लिया।"

"मैं माँ के साथ एक औरत भी हूँ

और

उनका प्यार जीत गया था