GOMATI TUM BAHTI RAHNA - 14 in Hindi Biography by Prafulla Kumar Tripathi books and stories PDF | गोमती तुम बहती रहना - 14

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गोमती तुम बहती रहना - 14

   राग  सदा ऊपर को उठता ,आँसू नीचे झर  जाते हैं !                            पाठकों जैसा आप सभी जानते हैं कि गोपाल दास “नीरज “ हिन्दी काव्य जगत  के महानतम  गीतकार रहे हैं |प्रेम हो या विरह ,सुख हो या दुख मनुष्य जीवन की सभी  विधाओं पर सटीक शब्दों की काव्यमय माला श्रोताओं को पहना देना उनका काव्यमय तिलस्म  रहा है| उनका एक प्रसिद्ध गीत है -“स्वप्न झरे फूल से , गीत चुभे शूल  से,लुट  गए सिंगार सभी बाग  के बबूल से | और हम खड़े खड़े बहार देखते  रहे ,कारवां गुज़र गया , गुबार देखते रहे |”इसी गीत में आगे जीवन के दुख और दर्द का कितना सटीक  शब्दाकंन हुआ है | 

“नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई ,                          पाँव जब तलक उठे कि ज़िंदगी फिसल गई..

गीत अश्क बन गए तो , छंद हवन हो  गए |”

सचमुच , जब कभी आप दर्द में छटपटा रहे हों,आपकी  देह की दुकान पर सांस की शराब का खुमार चढ़ रहा हो या कि रात से चिराग छीन लेने जैसे अद्भुत और अविश्वसनीय घटनाओं  का आपको अपनी ज़िंदगी के साथ एहसास हो या कि आपको ऐसा लगने लगे  कि आप किसी के बिछड़ने के ग़म में इतना स्तब्ध हो चले हैं कि मृत का कफ़न ओढ़ कर उसकी मज़ार देख रहे हों तो इस गीत को अवश्य सुनिए ,  मलहम का काम करेगा |लेकिन अव्वल तो प्रभु से यह प्रार्थना करता हूँ कि किसी के जीवन में मेरे जैसा दुर्भाग्यपूर्ण क्षण कभी भी ना आने पाए कि जब किसी पिता को अपने ही कंधों पर अपने युवा बेटे की लाश ढोनी  पड़े.. .. कभी नहीं !                 लेकिन जैसा कि हरिवंश राय बच्चन का कहना है कि “ मानव क्या नभ से तारों को भी, नीरव आँसू आते हैं !“  और यह भी कि “ ऊपर देव तले मानव गण ,नभ में दोनों गायन - रोदन,राग सदा ऊपर को उठता , आँसू नीचे झर जाते हैं !.. “ इसलिए इस असमय ,अप्रत्याशित गहन शोक की आपदा को स्वीकार करने के अलावे अपने पास कोई दूसरा विकल्प भी  नहीं था |                   

                                7 सितंबर 2007 को मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस  (आर्मी) के  एडजुडेंट  जेनरल   ब्रांच के लेफ्टिनेंट कर्नल जी.एस. बाजवा ने   कैजुएलिटी                                एफ. आई. आर. भारत के रक्षा मंत्री, सेनाध्यक्ष,सह सेनाध्यक्ष,सी.डी.ए.,पुणे और पी.सी.डी.ए.,इलाहाबाद आदि तमाम संबंधितों को जारी किया जिसकी एक प्रति दि.26-09-2007 को मुझे भी मिली | इसमें लिखा गया था ,1.” Information has been received from 7 Mech. Inf. that IC-68122H Lt. Yash Aditya has died on 05 Sept.2007 due to “Electric Flash Burn Injuries” caused on 29 Aug. 2007 while moving with SPL train of unit from Chakki Bank to Babina at CMC Ludhiana.2.The NOK has been informed………..”  लेकिन उसके पहले मेरे बेटे लेफ्टिनेंट यश आदित्य की इस शहादत का  दुखद समाचार दिल्ली , स्थानीय (लखनऊ),गोरखपुर और लुधियाना के लगभग सभी समाचार पत्रों  में सचित्र  छप चुके थे | दैनिक “लुधियाना केसरी” और दैनिक जागरण  के 30 अगस्त 2007 के अंक में एक शीर्षक छपा-“जंक्शन पर करेंट से झुलसा लेफ्टिनेंट” जिसमें यह समाचार था –“लुधियाना,29 अगस्त (स.ह.)|लुधियाना रेलवे जंक्शन यार्ड में उस समय भगदड़ मच गई जब स्पेशल मिलिट्री ट्रेन के साथ जा रहा उच्चाधिकारी हाई वोल्टेज तारों से झुलस गया |वह गाड़ियों की चेकिंग कर रहा था |अधिकारी की शिनाख्त डोगरा रेजीमेंट के लेफ्टिनेंट यश आदित्य के रुप में की गई है |उसे सी.एम.सी.                     हॉस्पिटल  में भर्ती कराया गया है |चक्की बैंक से बगीन (सही नाम बबीना) की तरफ जा रही  स्पेशल मिलिट्री ट्रेन की इंटेनसिव चेकिंग के लिए उसे यार्ड में भेजा गया था |चेकिंग को दो घंटे लगने थे | लेफ्टिनेंट ने ए.सी. कोच से निकल कर गाड़ी को चेक करना शुरू किया |अचानक वह तारों की चपेट में आ गया और बुरी तरह से झुलस गया |उसके पीछे काहल रहे जवान ने अन्य लोगों को बताया जिस पर उसे डाक्टरी सहायता उपलब्ध कराई गई |डाक्टरों के अनुसार वह 60 प्रतिशत झुलस गया है और उसकी हालत गंभीर है |घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी  गई है |”गोरखपुर के दैनिक जागरण ने लिखा-“गोरखपुर के होनहार लेफ्टिनेंट यश की अकाल मौत .. जवान बेटे की मौत के ग़म में डूबा त्रिपाठी परिवार !”   02 जनवरी 1985 को गोरखपुर के ललित नारायण मिश्र पूर्वोत्तर रेलवे हास्पिटल से शुरू हुई यश (पुकार नाम प्रतुल ) की जीवन यात्रा अब थम चुकी थी | भारतीय सेना ने एन . डी.ए.के कोर्स नंबर 108/एक्स एन.डी.ए.कोर्स 118  के बैच नंबर RDDA-70492 में 27 जून 2002 को दाखिल और 10 जून 2006 को सेना में कमीशन पाए और वर्ष 2007 के शुरुआती दिनों में सेना के कठिनतम “कमांडो” प्रशिक्षण पा चुके अपने 24 वर्षीय होनहार युवा लेफ्टिनेंट यश आदित्य को असमय खो दिया था और मेरे घर का तो चिराग ही बुझ चुका  था |   यश का पार्थिव शरीर 6 सितंबर की सुबह सड़क मार्ग से स्पेशल कान वाय के साथ वाया बबीना लखनऊ सेना के मध्य कमान के मुख्यालय लाया गया |                                                वहाँ मध्य कमान के एम.जी.(ई. एम. ई.)मेजर जेनरल आर. के. सानन ने मध्य कमान के सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट                  जनरल ओ . पी.चंद्रजोग की ओर से शहीद के पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित कर भारतीय सेना की ओर से श्रद्धांजलि दी |इस दौरान सेना की एक टुकड़ी द्वारा शहीद को अंतिम सलामी दी गई तथा शहीद की  दिवंगत आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया| उसके बाद यश के निर्जीव शरीर को विज्ञानपुरी,महानगर लखनऊ के  उसी निवास पर लाया गया जिस मकान का भूमि पूजन और उसकी  नींव यश ने ही रखी थी | तिरंगे में लिपटे यश के निर्जीव शरीर को जब गाड़ी से घर के अंदर ड्राइंग रूम में लाया गया तो उपस्थित जन समूह और परिजनों के चीत्कार ने मानो काल तक संवाद पहुंचाया कि आखिर क्यों उसने असमय यश को बुला    लिया ? साथ में उनके सी.ओ. कर्नल संजीव शर्मा, यश के अनन्य बचपन के मित्र असीम गुप्ता (अब कर्नल असीम गुप्ता)और  कुछ अन्य अधिकारी ,इन्फैन्ट्री के अनेक जवान आए हुए थे | नए संबंधी मेरे समधी श्री दिनेश शुक्ला(अब स्वर्गीय)  ने आनन फानन में आवश्यक वस्तुएं जुटाईं | सैनिक कल्याण बोर्ड ने अंतिम क्रिया के लिए स्थान बुक कराया |यश के बड़े भाई कैप्टन दिव्य आदित्य अन्य व्यवस्थाओं में  सक्रिय रहे |                                                                                    अंतत: लगभग 10 बजे सुबह शहीद लेफ्टिनेंट यश आदित्य की अंतिम यात्रा शुरू हुई |लखनऊ की जीवन रेखा गोमती नदी के किनारे बैकुंठ धाम( भैंसा कुंड ) पर उन्हें सैनिक सम्मान और रीति रिवाज से सेना और परिजनों, इष्ट - मित्रों,आदि ने अंतिम विदाई दी गई | अगले दिन  समाचार पत्रों ने सचित्र समाचार लिखा – “सैनिक सम्मान के साथ हुआ लेफ्टिनेंट यश का अंतिम संस्कार (दैनिक जागरण / अमर उजाला / वॉयस ऑफ लखनऊ/स्वतंत्र चेतना /स्वतंत्र भारत /आज / हिंदुस्तान आदि ) और अंग्रेजी अखबारों में भी सचित्र शीर्षक आया-“Lt. Yash Aditya cremated with military honours. “मुझे आज भी याद है कि जब यश की चिता को मुखाग्नि दी जा रही थी तो बिना किसी पूर्वानुमान के आसमान से अचानक बारिश होने लगी थी | दैनिक “अमर उजाला” (जो उन दिनों कानपुर से छप कर लखनऊ आता था) ने लिखा था- “यश की अंतिम विदाई पर आसमान भी रोया!” लखनऊ के एक वरिष्ठ और प्रतिष्ठित कवि मेरे अनन्य  मित्र श्री देवकी नंदन “शांत” ,(साहित्य भूषण) ने लिखा-

“कुर्बानियों की सफ़ (सूची)  में नया नाम लिख गया ,

दुनियां  के वास्ते कोई ,पैगाम लिख गया |

चरागों को लहू से जब भी दीवाने जलाते हैं ,

हवाएं थरथरा उठती हैं ,तूफ़ा कांप जाते हैं |                                                                 

वो नज़रों से हमारी दूर बेशक़  हो गए लेकिन ,

अभी भी नींद में वो  ख्वाब बन कर झिलमिलाते हैं |”

(शेष अगले अंक में )