Patjhad ke Baad - 5 in Hindi Fiction Stories by Neha kariyaal books and stories PDF | पतझड़ के बाद - एक सच्चा इंतजार - 5

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पतझड़ के बाद - एक सच्चा इंतजार - 5

अगर ज़िंदगी में सब कुछ आसानी से मिलने लगे, तो हम कभी किसी चीज़ की असली कीमत नहीं समझ पाएंगे - न ही खुशी की, और न ही दुःख की।

प्रकृति हमें हमेशा सिखाती है कि किसी के जाने से कुछ नहीं रुकता, और किसी के लौट आने से पहले जैसा कुछ भी वापस नहीं आता।

जब रित्विक ने आरवी को अपना सच बताया, तो चाय के कप ठंडे हो चुके थे और बारिश भी थम चुकी थी। सुबह होने को थी रात के सन्नाटे में पक्षियों की चहचहाट थी अब बचा था तो सिर्फ एक सवाल- क्या आरवी उसे माफ करेगी?

कैफ़े से बाहर निकलते हुए रित्विक धीरे से पूछता है, "क्या तुम मुझे माफ कर सकोगी, आरवी? मैं जानता हूं, गलती मेरी ही थी।"

आरवी चुपचाप उसकी ओर देखती है, फिर कहती है, "शायद मैं तुम्हें माफ कर दूं... पर मेरी बेटी की गलती क्या थी? उसने क्या बिगाड़ा था जो तुमने उसे उसके जन्म से पहले ही सजा दे दी? बस उस बेचारी की गलती इतनी थी कि वो मेरी बेटी है।

रोज़ मुझसे पूछती थी- 'मां, मेरे पापा कहां हैं?' और मैं चुप रह जाती थी।" रित्विक की आंखें नम थीं। वो महसूस कर रहा था वो सब कुछ जो आरवी ने उन सालों में अकेले सहा।

आरवी कहती है, "मैं तुमसे बहुत प्यार करती थी... तुम पर भरोसा करती थी। पर अब मैं तुम्हें माफ कर रही हूं, क्योंकि मैं तुम्हारी तरह खुदगर्ज़ नहीं हूं।

माफ कर रही हूं... पर तुम्हें वापस अपनी ज़िंदगी में आने की इजाज़त नहीं दे सकती।" रित्विक हैरान रह जाता है। "क्यों?" वो पूछता है।

आरवी कहती है, "क्योंकि मैं उस मोड़ से बहुत आगे निकल आई हूं, जहां तुमने मुझे अकेला छोड़ा था। अब मेरी और आन्या की दुनिया में तुम्हारा कोई स्थान नहीं है। आन्या को अब लगता है कि शायद उसके पिता कहानियों में ही थे।

रित्विक चुप रहा। फिर धीमे से बोला, "क्या मैं कम से कम अपनी बेटी को एक बार देख सकता हूं?" आरवी कहती है, "हां, दूर से। उसे मत बताना कि तुम कौन हो। मैं उसे मजबूत बनाना चाहती हूं, फिर से तोड़ना नहीं।" सुबह हो चुकी थी।

वे हॉस्टल पहुंचे। आरवी ने वहां खेड़े चपरासी से कहा कि वो आन्या को बुलाए और कहे उसकी मां उससे मिलने आई है। थोड़ी देर में आन्या आई-खुश, मासूम, अपनी मां को देखकर खिली हुई।

आन्या कहती हैं मां आप आज इतनी सुबह कैसे, लगता है आपको मेरी बहुत याद आ रही थी। आरवी मुस्कुराई और उसे गले से लगा कर कहती है हां तभी तो समारोह से सीधे तुम से मिलने आई हूँ।

रित्विक दूर खड़ा उसे देख रहा था- उस बच्ची को, जो उसकी बेटी थी, पर उसे कभी जान नहीं पाई। वो सब पुरानी यादें उसके मन में चल रही थी, शायद उसने कुछ छुपाया ही नहीं होता, तो आज वो भी अपनी पत्नी और बेटी के साथ होता। ये सब देख रित्विक को अहसास हो गया था कि अब उसकी किसी को जरूरत नहीं है वक्त किसी के लिए नहीं रुकता।

तभी... आरवी रित्विक को आन्या से मिलने के लिए आवाज लगती है, आन्या अपनी मां से कहती हैं मां ये कौन हैं। आरवी ने रित्विक का परिचय एक दोस्त के रूप में करवाया। आन्या मुस्कराई, नमस्ते की, और थोड़ी सी बातें और स्कूल के लिए निकल गई।

जब वो चली गई, रित्विक बोला, "अब मुझे समझ आ गया है... तुम्हें मेरी जरूरत नहीं थी, लेकिन मुझे तुम्हारी जरूरत थी। पर शायद अब मैं भी खुद को ढूंढ लूंगा।"

आरवी सिर्फ मुस्कराई। अब उसकी आंखों में आंसू नहीं थे, क्योंकि आज वो सिर्फ एक औरत नहीं,बल्कि एक मां थी-मजबूत, संपूर्ण।

रित्विक भी जा रहा था- खाली हाथ, पर भरे दिल के साथ। आरवी वहीं खड़ी रित्विक को देख रही थी जब तक वो उसकी आंखों से ओझल न हुआ। **

वो चला गया...

जैसे कोई ऋतु लौटती तो है, पर ठहरती नहीं। आरवी अब पहले से कहीं ज्यादा मजबूत थी और आन्या उसकी दुनिया।

आरवी अपने मन में सोचती है... "कभी-कभी कुछ सवालों को सवाल ही रहने दो... क्योंकि उनके जवाब... सिर्फ दर्द देते है

आज आरवी को उन सब अधूरे सवालों के जवाब मिल गए थे जिन्हें वर्षों से वह ढूंढ रही थी।

आरवी मुस्करा रही थी... क्योंकि उसे पता था, कुछ अधूरे रिश्ते पूरे नहीं होते बस दिल के किसी कोने में सहेज लिए जाते है

"पतझड़ में उसने सब कुछ खोया पर बसंत में पाया - खुद को।"

"रित्विक लौटा, लेकिन जो बीत गया था, अब वो एक कहानी बन चुका था।

"कभी कभी वक्त लौटता तो है पर सिर्फ ये समझाने कि अब सब कुछ वैसा नहीं रहा... और फिर चला जाता है- शांति से।"

पतझड़ अब बीत चुका था। वसंत आया भी था- लेकिन अब जरूरत नहीं थी, उसे थामने की।"

औरत कभी किसी के सहारे की मोहताज नहीं होती वो अकेली चल सकती हैं अगर वो ठान लें।

आरवी जो टूट गई थी वो खड़ी रही अपनी बेटी के लिए आखिर वो अपना सपना पूरा करने में कामयाब हुई जो वो चाहती थी अपने शब्दों से सबके दिलों को छू लेना।

आरवी एक लेखिका, एक मां, और एक औरत थी।

आन्या का अपने पिता के बारे में न जानना भी कोई अधूरापन नहीं, बल्कि वो अधूरा पन्ना है जिसे ज़िंदगी ने मोड़ कर आगे बढ़ना सिखा दिया।

"ज़िंदगी आगे बढ़ने का नाम है जहां माफ करना ताकत है, और खुद को फिर से जीना सबसे बड़ी जीत।"


                                ***

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