कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें हम बोल भी नहीं सकते और सुन भी नहीं। और अगर वो बातें अचानक हमारे सामने आ जाएं, जिनकी कभी हमने कल्पना तक नहीं की थी, तो क्या हो?
कुछ ऐसा ही था रित्विक का सच - जिसे जानकर आरवी को लगा जैसे ज़मीन खिसक गई हो।
जिस इंसान को उसने सबसे ज्यादा चाहा, उसी ने कुछ छिपाया, कुछ झूठ बोला। उस पल आरवी को महसूस हुआ मानो सबकुछ खत्म हो गया हो।
आसमान में बिजली कड़की - जैसे कोई तूफान आने वाला हो और अंदर-बाहर सब कुछ तोड़ देने को तैयार हो।
थोड़ी ही देर में बारिश होने लगी। रित्विक और आरवी पास ही एक छोटे से कैफ़े में आ गए। दोनों एक टेबल पर आमने-सामने बैठे थे। टेबिल पर रखे दो गर्म चाय के कप भाप छोड़ रहे थे और बाहर बारिश लगातार गिर रही थी - जैसे आसमान भी दोनों के भीतर का बोझ समझ रहा हो।
आरवी की आंखों में एक अजीब सी बेचैनी थी सोच रही थी, "क्या सच में ये सब मेरे साथ हो रहा है?"
कुछ देर की चुप्पी के बाद रित्विक धीमे स्वर में बोलता है "आरवी, मैं वो नहीं हूँ जैसा मैं दिखता हूं। मेरी दुनिया बहुत अलग है। मैं जानता हूं कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया...
लेकिन मैं तुमसे सच में बहुत प्यार करता हूं। ना मेरा प्यार झूठा था, ना ही वो शादी जो हमने की थी..."
आरवी उसकी आंखों में देखती है, और धीरे से कहती है - "तो क्या वो सच नहीं था, जब तुम मुझे छोड़कर चले गए? बिना कुछ कहे... एक बार पलटकर भी नहीं देखा?" रित्विक थोड़ा रुकता है, और फिर कहता है
"जिस दिन मैं गया, उस रात कुछ ऐसा हुआ कि मुझे जाना पड़ा..." "ऐसा क्या हुआ था?" आरवी की आवाज़ कांप रही थी।
"जो तुमने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा? क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं था? क्या मैं तुम्हारे लायक नहीं थी?"
एक लंबा मौन... फिर वो आखिरी सवाल... वैसे तुम हो कौन, रित्विक?, और करते क्या हो?, या आज भी बिना बताए चले जाओगे?
रित्विक थोड़ी देर तक चुप रहा। बारिश की बूँदें अब भी कैफ़े की खिड़कियों से टकरा रही थीं। चारों ओर सन्नाटा था, बस दो कपों से उठती भाप और दिलों में उठते सवाल।
फिर उसने गहरी सांस ली। धीरे से कुर्सी से खड़ा हुआ और खिड़की की तरफ देखने लगा जैसे वहां कोई पुरानी याद छुपी हो।
आरवी उसकी तरफ देख रही थी, उसके चेहरे पर सवाल थे और आंखों में कुछ टूटी हुई उम्मीदें।
रित्विक ने बोलना शुरू किया "आज मैं तुम्हारे हर उस सवाल का जवाब दूंगा, जिन्हें अधूरा छोड़ कर मैं चला गया था। तुम्हें बताऊंगा कि मैं कौन हूं... और कहां चला गया था।"
उसने कुछ क्षण चुप्पी साधी, पर शायद वहीं से शुरू होती थी रित्विक की असल कहानी।
रित्विक ने कहा - तुम जानती हो, कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो आम ज़िंदगी नहीं जीते। जिनके पास अपने नाम से ज्यादा ज़िम्मेदारियाँ होती है मैं भी उनमें से एक था... "लेकिन तुम नहीं जानती कि मैं कौन था... और आज भी कौन हूँ।"
आरवी हैरानी से उसे देखती है। रित्विक आगे कहता है: मैं एक अमीर घर का लड़का हूँ, ये तुम जानती थी... लेकिन मेरी असली पहचान एक अमीर लड़के की नहीं थी। मैं भारत सरकार की एक विशेष खुफिया इकाई में था - जहाँ जीवन, रिश्ते और नाम सब सिर्फ एक परछाई की तरह होते हैं।
जहां सिर्फ मैं अपने काम को पहले रखता था। जैसे मेरी खुद की कोई जिंदगी ही नहीं हो। लेकिन... जब हम मिले, मैंने पहली बार जीना चाहा... खुद के बारे में सोचा, मुझे लगा मैं भी सब की तरह जी सकता हूं खुश हो सकता हूं कि मेरा भी एक परिवार होगा। पर किस्मत ने मुझे वो इजाज़त नहीं दी।
हमारी शादी के कुछ ही हफ्तों बाद मुझे एक मिशन पर भेजा गया... और उस मिशन पर सिर्फ एक शर्त थी कि मैं अपनी पुरानी पहचान से हमेशा के लिए नाता तोड़ दूं। मैं चाहकर भी तुम्हें कुछ बता न सका।
आरवी की आँखों से आँसू गिरने लगते हैं, पर वो बोलती नहीं। मैं चाहता था कि तुम उस आग से दूर रहो, जो मेरी जिंदगी थी। इसलिए गया... चुपचाप। बिना कुछ कहे। कई बार सोचा लौट आऊँ... मैं सोचता था कि तुमसे और अपनी बेटी से मिलूं। पर जब भी लौटने की कोशिश की, कोई न कोई खतरा सामने आ खड़ा होता।"
एक पल रुककर रित्विक कहता है- और आज... जब मुझे पता चला कि तुम अब भी लिखती हो अब भी सांस लेती हो... मैं खुद को रोक नहीं पाया।
मैं जनता था कि सब कुछ बदल चुका है, पर मैं ये जानना चाहता था... कि क्या तुमने कभी मुझ माफ किया या नहीं वह झुक कर बोला, मैं जनता हूँ कि तुमने बहुत कुछ सहा है। हां मैंने बहुत गलत किया तुम्हारे साथ, लेकिन अब मैं जवाब देने आया हूं।
आरवी अभी भी चुप थी। रित्विक कहता है क्या तुम मुझे मेरी बेटी से नहीं मिलने दोगी, बहुत मन करता है उससे मिलने का उसको गले लगाने का, उससे बताने का मैं क्यों गया था तुम्हें छोड़कर।
क्या आरवी रित्विक को माफ करेगी?, क्या वो आन्या से रित्विक को मिलने देगी? क्या आन्या उसे अपनाएगी?
पतझड़ के बाद बसंत आ भी जाय तो... क्या वो वैसा ही होता है जैसा छोड़ा था।
जारी....